h n

रणवीर सेना और बिहार के अखबार

क्या समाचारपत्रों को सैकड़ों गरीब लोगों की हत्याओं के आरोपी को 'शहीद’ कहना चाहिए? इस शब्दावली के अंतर से आप समझ सकते हैं कि बिहार में खबर बनाने वाले लोगों की पक्षधरता क्या है

Dainik Bhaskarरणवीर सेना के संस्थापक बरमेश्वर नाथ सिंह (ब्रह्मेश्वर सिंह) ऊर्फ मुखिया की तीसरी बरसी पर पटना में 1 जून, 2015 को आयोजित कार्यक्रम के संबंध में बिहार के मीडिया में प्रसारित समाचारों का विश्लेषण करने से पूर्व समाचार की रचना प्रक्रिया और समाचार बनाने वालों की सामाजिक पृष्ठभूमि से उसके अंतर्संबंध से संबंधित कुछ मूलभूत बातों को ध्यान में रख लेना चाहिए।

कोई भी समाचार न तो तटस्थ होता है और न ही महज किसी घटनाक्रम का आंखों देखा हाल। किसी भी समाचार के कथ्य और रूप का निर्माण इस पर निर्भर करता है कि समाचार बनाने की प्रक्रिया से जुड़े लोगों ने वास्तविक घटना में से किन तथ्यों का चयन किया तथा उन्हें किस प्रकार की भाषा और रूप में प्रसारित करने का फैसला किया। किसी समाचार के निर्माण में जितनी भूमिका तथ्य की होती है, उससे कहीं अधिक भूमिका तत्कालीन समाज पर प्रभावी वैचारिक शक्तियों की होती है। यही वैचारिक शक्तियां परोक्ष रूप से तय करती हैं कि क्या समाचार है और क्या नहीं। इस निर्धारण के बाद समाचार बनाने वाले लोगों का दृष्टिकोण यह तय करता है कि वास्तविकता का कौन सा हिस्सा समाचार है और कौन सा नहीं। समाचार की भाषा, उसका रूप आदि इन्हीं लोगों की पक्षधरता पर निर्भर करता है। हालांकि आदर्श स्थिति तो यह है कि एक पेशेवर पत्रकार को अधिकतम तटस्थता प्रदर्शित करनी चाहिए लेकिन वास्तव में किसी भी समाचार से पूर्ण तटस्थता की उम्मीद करना एक काल्पनिक स्थिति ही है। असली चीज है पक्षधरता। किसी समाचार का विश्लेाषण कर हम यह जान सकते हैं कि समाचार तैयार करने वाले की पक्षधरता क्या है। वह कमजोरों के पक्ष में है या शक्तिशालियों के। वह नैतिकता और न्याय के पक्ष में है या अपने क्षुद्र व्यक्तिगत अथवा सामाजिक हितों के पक्ष में।

फैसला लेने वाले’ 100 फीसदी पदों पर द्विज

हिंदी क्षेत्र के मीडिया पर उच्चवर्ण के लोग काबिज हैं। दुर्भाग्यवश इनमें से अधिकांश की पक्षधरता प्राय: जाति के आधार पर तय होती रही है। यद्यपि बिहार निचले तबकों के सामाजिक आंदोलनों की भूमि रहा है लेकिन यहाँ के मीडिया संस्थानों की सामाजिक पृष्ठभूमि उच्चवर्णीय ही बनी हुई है। वर्ष 2009 में किये गये सर्वेक्षण के अनुसार बिहार के मीडिया संस्थानों में फैसला लेने वाले100 फीसदी पदों पर द्विज समुदाय का कब्जा था। यानी सभी बड़े पद इन्हीं के कब्जे में थे। संवाददाता, उप संपादक आदि कनिष्‍ठ पदों पर भी वंचित तबकों के लोग बहुत कम थे। इन कनिष्ठ पदों पर पिछड़ी (अति पिछडी जाति को मिलाकर) के पत्रकार 10 फीसदी थे। पसमांदा मुसलमान (उर्दू अखबारों समेत) 4 फीसदी और दलित महज 1 फीसदी। (देखें तालिका – 1)

तालिका 1 : बिहार के मीडिया में कनिष्‍ठ पदों पर सामाजिक प्रतिनिधित्‍व

उच्‍च जाति हिंदू

73 प्रतिशत

पिछडी व अति पिछडी जाति

10 प्रतिशत

दलित

1 प्रतिशत

अशराफ मुसलमान

12 प्रतिशत

पसमांदा मुसलमान

4 प्रतिशत

स्रोत : प्रमोद रंजन, मीडिया में हिस्‍सेदारी, प्रज्ञा सामाजिक शोध संस्‍थान, पटना, 2009

बिहार के पत्रकारों की सामाजिक पृष्ठभूमि का असर समाचारोंकी पक्षधरता पर स्पष्ट रूप से दिखलाई देता है। बिहार के अखाबार और समाचार चैनल प्राय: हर उस शक्ति के विरुद्ध खड़े होते हैं, जो इन तबकों की आवाज को कमजोर करने में भूमिका निभाती हैं। उनकी पक्षधरता हर उस विचार, सामाजिकराजनैतिक शक्ति के साथ रहती है, जो उच्चावर्णीय वर्चस्व को बनाये रखने में मददगार हो सकती है।

1990 के दशक में बिहार की कुख्यात रणवीर सेना का जन्म भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) द्वारा वंचितों के पक्ष में चलाए गए आर्थिक न्याय और सामाजिक सम्मान के आंदोलन को कुचलने के लिए हुआ था। इसका सरगना था आरा जिला के खोपिरा गांव का मुखिया रह चुका भूमिहार जाति का बरमेश्वर नाथ सिंह। अलगअलग गांवों में किए गए नरसंहारों व हत्याकांडों में करीब 300 से अधिक दलितोंपिछड़ों की हत्या का आरोप इस सेना पर है। (देखें तालिका -2) इन नरसंहारों की नृशंसता का वर्णन कठिन है। इन लोगों ने बड़ी संख्या में महिलाओं और बच्चों की हत्या की क्योंकि इनका मानना था कि दलितोंपिछड़ों की महिलाएं नक्सलवादियों को जन्म देती हैं तथा बच्चे बड़े होकर नक्सलवादी बन सकते हैं।

तालिका 2 : रणवीर सेना द्वारा किये गये जनसंहार

संख्‍या गांव

जिला

तिथि

मृतकों की संख्‍या

  1. खोपिरा

भोजपुर

29 अप्रैल,1995

5

  1. सरथुआ

भोजपुर

25 जुलाई,1995

6

  1. नूरपुर

भोजपुर

5 अगस्‍त,1995

6

  1. चांदी

भोजपुर

7 फरवरी,1996

4

  1. पतरनपुरा

भोजपुर

9 मार्च,1996

3

  1. नानौर

भोजपुर

22 अप्रैल,1996

5

  1. नाढी

भोजपुर

5 मई,1996

3

  1. नाढी

भोजपुर

19 मई,1996

3

  1. मोरथ

भोजपुर

25 मई,1996

3

  1. बथानी टोला

भोजपुर

11 जुलाई,1996

21

  1. पुरहारा

भोजपुर

25 नवंबर,1996

4

  1. खनेठ

भोजपुर

12 दिसंबर,1996

5

  1. इकबारी

भोजपुर

24 दिसंबर,1996

6

  1. बागर

भोजपुर

10 जनवरी,1997

3

  1. माछिल

जहानाबाद

31 जनवरी,1997

4

  1. हैबसपुर

पटना

26 मार्च,1997

10

  1. आकोपुर

जहानाबाद

28 मार्च,1997

3

  1. इकबारी

भोजपुर

10 अप्रैल,1997

9

  1. नागरी

भोजपुर

11 मई, 1997

10

  1. खाडासीन

जहानाबाद

2 सितंबर,1997

8

  1. कटेसर नाला

जहानाबाद

23 नवंबर,1997

6

  1. लक्ष्‍मणपुर बाथे

जहानाबाद

31 दिसंबर,1997

61

  1. ऐयारा रामपुर

जहानाबाद

25 जुलाई,1998

3

  1. शंकरबीघा

जहानाबाद

25 जनवरी,1999

23

  1. नारायणपुर

जहानाबाद

10 फरवरी,1999

12

  1. सिन्‍दानी

गया

21 अप्रैल,1999

12

  1. सोनवर्षा

भोजपुर

28 मार्च,2000

3

  1. पंचपोखरी

रोहतास

मई, 2000

5

  1. मियांपुर

औरंगाबाद

16 जून,2000

33

  1. राजबिगहा

नवादा

3 जून,2000

5

1 जून, 2012 को इसी बरमेश्वर नाथ सिंह ऊर्फ मुखिया, जिसे प्राय: ‘ब्रह्मेश्वर सिंह’ ऊर्फ मुखिया कहा जाता रहा है, की रहस्यमय तरीके से हत्या कर दी गयी (देखें, फारवर्ड प्रेस की कवर स्टोरी, ‘किसकी जादुई गोलियों ने ली बिहार के कसाई की जान’, जुलाई 2012)। हत्या के बाद मुखिया के समर्थकों ने तो बिहार की सडकों पर उत्पात मचाया ही, उसके बाद कई दिनों तक बिहार के अखबारों और न्यूज चैनलों ने मुखिया के महिमामंडन और प्रशस्ति का ऐसा अश्लील दृश्य किया, जिसे देखकर नैतिकता और न्याय के प्रति प्रतिबद्धता रखने वाला हर व्यक्ति विचलित हुआ होगा।

यहीं हम पक्षधरता का अंतर देख सकते हैं। मुखिया की हत्या के बाद दलित लेखक कंवल भारती ने लिखा, ‘मुखिया दलितों का हत्यारा था और हत्यारे की हत्या पर दलितों को कोई दुख नहीं है। जिस व्यक्ति ने दलित मजदूरों के दमन के लिए रणवीर सेना बनायी हो, उनकी बस्ती पर धावा बोलकर उन्हें गोलियों से भून दिया हो, दुधमुंही बच्ची को हवा में उछाल कर उसे बंदूक से उड़ा दिया हो और गर्भवती स्त्री का पेट फाड़कर भ्रूण को तलवार से काट डाला हो, उस दरिन्दे की हत्या पर कोई दरिन्दा ही शोक मना सकता है।’ (फारवर्ड प्रेस, जुलाई, 2012)

उसी मुखिया की हत्या का तीसरा शहादत दिवस’ पटना में उसके पुत्र इंद्रभूषण सिंह ने गत 1 जून को मानाया, जिसमें मुखिया की जाति के अनेक राजनेता शामिल हुए। मौजूदा मानकों के अनुसार जिस कार्यक्रम में राजनेता शरीक होते हैं, वह समाचार बनने के योग्य मान लिया जाता है। यह स्वभाविक था कि इस कार्यक्रम को कवर किया जाए। लेकिन इसे सिर्फ कवर ही नहीं किया गया, बिहार के मीडिया ने इसे मुखिया के महिमामंडन के एक और मौके के रूप में लिया। दैनिक जागरण’ को छोड़कर सभी हिंदी अखबारों ने इस आयोजन को ब्रह्मेश्वर मुखिया जी’ का शहादत दिवस’ दिवस कहा। अगर आयोजनकर्ताओं ने इस कार्यक्रम को शहादत दिवस’ का नाम दिया भी था तो भी क्या समाचारपत्रों को सैकड़ों गरीब लोगों की हत्याओं के आरोपी को शहीद’ कहना चाहिए? क्या इसे मुखिया की बरसी’ अथवा उसकी हत्या के तीन साल पर आयोजित कार्यक्रम/समारोह’ नहीं कहा जाना चाहिए? महज इस शब्दावली के अंतर से आप समझ सकते हैं कि बिहार में खबर बनाने वाले लोगों की पक्षधरता क्या है।

आइए, अखबारों द्वारा कथ्य के चयन’ पर नजर डालने से पहले हम देखें कि इस समाचार को उन्होंने ने किस तरह प्रस्तुत’ किया (देखें तालिका – 3)

तालिका 3 : विभिन्‍न समाचारपत्रों के पटना संस्करणों में 2 जून, 2015 में समाचार की प्रस्तुति

समाचारपत्र

शीर्षक

उपशीर्षक/ बॉक्‍स का शीर्षक

समाचार का स्‍थान

प्रभात खबर

ब्रहमेश्‍वर मुखिया का शहादत दिवस मना

पेज नंबर 6, फोटो और कैप्‍शन

दैनिक भास्‍कर

सीपी ठाकुर सीएम प्रत्‍याशी तभी भाजपा को देंगे समर्थन

  1. ब्रह्मेश्‍वर मुखिया के शहादत दिवस पर नेताओं ने दिखाए सियासी तेवर
    2.
    मुखिया जी व्‍यक्ति नहीं, अंजुमन थे

पेज नंबर 5 की लीड, तीन कॉलम, फोटो

राष्‍ट्रीय सहारा

ठाकुर को सीएम प्रोजेक्‍ट करें, दूंगा साथ

  1. ब्रह्मेश्‍वर मुखिया के तीसरे शहादत दिवस पर बोले पूर्व केंद्रीय मंत्री अखिलेश सिंह

  2. जेल में बंद रणवीर सेना के नेताओं को समाज की मुख्‍यधारा में लाएंगे

पेज नंबर 4 की लीड, सात कॉलम, फोटो

आज

शहादत दिवस पर याद किये गये ब्रह्मेश्‍वर मुखिया

शहीद ब्रह्मेश्‍वर मुखिया की श्रद्धांजलि सभा झूठ और राजनीति से प्रेरित: रणवीर सेना

पेज नंबर 3 की लीड, आठ कॉलम, फोटो

दैनिक जागरण

किसान हित में नीति बनाने पर जोर

  1. एस.के मेमोरियल हॉल में मनी बरमेश्‍वर मुखिया की पुण्‍यतिथि

  2. आदमकद प्रतिमा लगाने की मांग

पेज नंबर 10, चार कॉलम, फोटो

अब हम देखें कि घंटों चले इस आयोजन में से किन वक्तव्यों का चयन इन समाचारपत्रों ने किया।

निरपवाद रूप से बिहार के सभी अखबारों ने उपरोक्त समारोह के समाचार में ब्रह्मेश्वर मुखिया के लिए मुखिया जीका आदरसूचक संबोधन इस्तेमाल किया है, जबकि हिंदी पत्रकारिता में सामान्यत: श्री, ‘जी, आदि अतिरिक्त आदरसूचक शब्दों से बचने की परंपरा रही है।

हिंदुस्तान

Hindustanदैनिक हिंदुस्ताान ने समाचार का शीर्षक बनाया ब्रह्मेश्वर मुखिया के तीसरे शहादत दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में उठी मांग : ब्रह्मेश्वर हत्याकांड की जांच छह माह में हो।अखबार ने समाचार के इंट्रो में लिखा कि शहादत दिवस में पटना में मुखिया जी की आदमकद प्रतिमा लगाने, किसानों को दिया जाने वाला सम्मान ब्रह्मेश्वर मुखिया के नाम पर करने और एक जून को किसान जागरूकता के नाम पर करने की मांग केंद्र व राज्य सरकार से की गयी। अखबार ने कार्यक्रम के उद्घाटनकर्ता राम प्रपन्नाचार्य को स्वामी राम प्रपन्नाचार्यके नाम से संबोधित किया तथा उनकी उन बातों को उद्धृत किया, जिसमें उन्होंने मुखिया को संघर्ष करना सिखाने वाला बताया था। अखबार ने पूर्व केंद्रीय मंत्री सीपी ठाकुर की उस बात को भी प्रमुखता से उद्धृत किया, जिसमें उन्होंने कहा कि मुखिया जी उस वक्त खड़े हुए जब आवश्यकता थी। वैसे बेक़सूर लोगों को भी मुख्यधारा में लाना होगा, जिन्हें रणवीर सेना के नाम पर फंसाया गया।

प्रभात खबर

d12d5b94-35d4-49fd-bcb1-96a3733cc43cप्रभात खबर ने कार्यक्रम की ब्रह्मेश्वर मुखिया शहादत दिवस मनाशीर्षक से छोटी लेकिन सबसे आपत्तिजनक खबर छापी। उसने कार्यक्रम के फोटोग्राफ के कैप्शन में मुखिया को अमर शहीदबताते हुए लिखा कि अखिल भारतीय किसान संगठन द्वारा एसके मेमोरियल हॉल में अमर शहीद ब्रह्मेश्वर मुखिया के तीसरे शहादत दिवस पर समारोह मना।

दैनिक भास्कर

दैनिक भास्कर ने समाचार का शीर्षक दिया ब्रह्मेश्वर मुखिया के शहादत दिवस पर नेताओं ने दिखाए सियासी तेवर : सीपी ठाकुर सीएम प्रत्याशी तभी भाजपा को देंगे समर्थन। उसने समाचार के इंट्रो में लिखा कि अखिल भारतीय राष्ट्रवादी किसान संगठन के संस्थापक ब्रह्मेश्वर मुखिया के शहादत दिवस समारोह में सोमवार को नेताओं ने सियासी तेवर दिखाए। अखबार ने रामप्रपन्नाचार्य को उद्धृत करते हुए लिखा कि मुखिया जी ने लोगों को जगाया, संगठित किया और संघर्ष के लिए तैयार किया। समाज से डर व नपुंसकता को भगाकर जीवन की नई अनुभूति दी। आज उनके कार्यों को जीवन में उतारने की जरूरत है।भास्कर ने पूर्व मंत्री अखलाक अहमद को उद्धृत करते हुए लिखा कि मुखिया जी व्यक्ति नहीं अंजुमन थे। अपने आप में एक संगठन थे। उनके कार्यों से सबक लेने और उनसे बड़ी लकीर खींचने की जरूरत है।

राष्ट्रीय सहारा

राष्ट्रीय सहारा ने शीर्षक दिया, ‘ब्रह्मेश्वर मुखिया के तीसरे शहादत दिवस पर बोले पूर्व केंद्रीय मंत्री अखिलेश सिंह : ठाकुर को सीएम प्रोजेक्ट करें, दूंगा साथ। पूर्व केंद्रीय मंत्री अखिलेश प्रसाद सिंह को उद्धृत करते हुए अखबार ने लिखा कि ब्रह्मेश्वर मुखिया न सिर्फ साहसी व ईमानदार थे बल्कि सच को सच और गलत को गलत कहने वाले हमारे किसान नेता थे। मुखिया जी जैसा आदमी 100-200 साल बाद धरती पर पैदा होता है।

आज

DSC05023आज ने अपने तीसरे पन्ने की लीड के रूप में पूरे आठ कॉलम की खबर शहादत दिवस पर याद किये गए ब्रह्मेश्वर मुखियाशीर्षक से छापी तथा मुखिया की प्रशंसा में कही बातों को उद्धृत किया। साथ ही उसने कार्यक्रम के आयोजनकर्ता ब्रह्मेश्वर मुखिया के बेटे इन्द्र भूषण के विरोधी शमशेर बहादुर सिंह का बयान भी बॉक्स में छापा। इसमें शमशेर बहादुर सिंह को प्रतिबंधित रणवीर सेना का एरिया कमांडर बताया तथा उसके द्वारा गुप्त बैठक के बाद भेजी गई प्रेस विज्ञप्ति का हवाला देते शीर्षक दिया शहीद ब्रह्मेश्वर मुखिया की श्रद्धांजलि सभा झूठ और राजनीति से प्रेरित : रणवीर सेना।इस खबर में शमशेर बहादुर सिंह ने मुखिया के पुत्र इंद्रभूषण सिंह पर अपने चाटुकारों के साथ मिलकर मुखिया की शहादत का अपमान करने का आरोप लगाया। जाहिर है अखबार द्वारा अपनाया गया मुखिया और रणवीर सेना के महिमामंडन का यह और भी आपत्तिजनक तथा आपराधिक तरीका है।

दैनिक जागरण

Jagranउच्च जातीय हितों का प्रतिनिधित्व करने के लिए चर्चित रहे दैनिक जागरण ने अन्य समाचार पत्रों की तुलना में अधिक संतुलित शीर्षक से समाचार प्रकाशित किया तथा शहादत दिवसशब्द को समाचार में नहीं आने दिया। जागरण ने अपने समाचार का शीर्षक दिया एसके मेमोरियल हॉल में मनी बरमेश्वर मुखिया की पुण्यतिथि : किसान हित में नीति बनाने पर जोर।अखबार ने मुखिया को ब्रह्मेश्वर सिंह के स्थान पर उसके असली नाम बरमेश्वर नाथ सिंहसे संबोधित किया। हालांकि इस अखबार ने भी उसे मुखिया जीके रूप में ही संबोधित किया तथा पूर्व केंद्रीय मंत्री अखिलेश प्रसाद सिंह को समाज से मुखिया के बताए रास्ते पर चलने का आह्वानकरते हुए उद्धृत किया।

न्यूज चैनल

बरमेश्वर नाथ सिंह के महिमामंडन में प्रिंट मीडिया के तर्ज पर ही बिहार के इलेक्ट्रानिक मीडिया ने भी जबरदस्त उत्साह दिखाया। इस बात की पूरी कोशिश की गयी कि अज्ञात अपराधियों द्वारा मारे गए मुखिया को इतिहास पुरूष के रूप में स्थापित किया जाय। ईटीवी, कशिश और आर्यन नामक तीन क्षेत्रीय न्यूज चैनलों ने अपने प्राइम टाइम में करीब पांच मिनट का समय इस आयोजन की खबर को प्रसारित करने के लिए दिया।

वस्तुत: बिहार के मीडिया के लिए यह कोई नयी बात नहीं है। प्रदेश की पत्रकारिता का जब भी बहुजन नजरिये से इतिहास लिखा जाएगा तो पेशेवर नैतिकता को बट्टा लगाने वाले ये समाचार माध्यम सामाजिक परिवर्तन की राह में सबसे बडे खलनायक के रूप में सामने आएंगे।

(साथ में पटना से नवल किशोर कुमार)

 

फारवर्ड प्रेस के जुलाई, 2015 अंक में प्रकाशित

लेखक के बारे में

प्रमोद रंजन

प्रमोद रंजन एक वरीय पत्रकार और शिक्षाविद् हैं। वे आसाम, विश्वविद्यालय, दिफू में हिंदी साहित्य के अध्येता हैं। उन्होंने अनेक हिंदी दैनिक यथा दिव्य हिमाचल, दैनिक भास्कर, अमर उजाला और प्रभात खबर आदि में काम किया है। वे जन-विकल्प (पटना), भारतेंदू शिखर व ग्राम परिवेश (शिमला) में संपादक भी रहे। हाल ही में वे फारवर्ड प्रेस के प्रबंध संपादक भी रहे। उन्होंने पत्रकारिक अनुभवों पर आधारित पुस्तक 'शिमला डायरी' का लेखन किया है। इसके अलावा उन्होंने कई किताबों का संपादन किया है। इनमें 'बहुजन साहित्येतिहास', 'बहुजन साहित्य की प्रस्तावना', 'महिषासुर : एक जननायक' और 'महिषासुर : मिथक व परंपराएं' शामिल हैं

संबंधित आलेख

संघ-भाजपा की तरह बिरसा की पाखंड पूजा न करें हेमंत सोरेन
यह कैसी विडंबना है कि जो बात इंडिया गठबंधन के मुख्यमंत्री के रूप में आज हेमंत सोरेन कह रहे हैं, वही बात, यानि झारखंड...
यात्रा संस्मरण : जब मैं अशोक की पुत्री संघमित्रा की कर्मस्थली श्रीलंका पहुंचा (अंतिम भाग)
चीवर धारण करने के बाद गत वर्ष अक्टूबर माह में मोहनदास नैमिशराय भंते विमल धम्मा के रूप में श्रीलंका की यात्रा पर गए थे।...
जब मैं एक उदारवादी सवर्ण के कवितापाठ में शरीक हुआ
मैंने ओमप्रकाश वाल्मीकि और सूरजपाल चौहान को पढ़ रखा था और वे जिस दुनिया में रहते थे मैं उससे वाकिफ था। एक दिन जब...
When I attended a liberal Savarna’s poetry reading
Having read Om Prakash Valmiki and Suraj Pal Chauhan’s works and identified with the worlds they inhabited, and then one day listening to Ashok...
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में महाबोधि मंदिर पर बौद्धों के अधिकार का सवाल
भारत में बौद्ध धर्म और ब्राह्मणवाद के बीच टकराव का लंबा इतिहास रहा है। जहां बौद्ध धर्म समानता का संदेश देता है वहीं ब्राह्मणवाद...