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पेरियार के विचारों का उत्तर भारत में प्रसार

'हमारे महान दलितबहुजन नायकों को उनकी संकीर्ण समुदाय-आधारित जड़ों से मुक्त करना होगा। हमें जोतिबा फुले को उनकी महाराष्ट्रीयन माली जड़ों, पेरियार को उनकी द्रविड़ जड़ों और आंबेडकर को उनकी महाराष्ट्रीयन अनुसूचित जाति जड़ों से मुक्त करना होगा'

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बाएं से : काटारू के प्रकाशक एस विजयारागवन, टीवाईएसएफ के संयोजन वी प्रभाकरन, फारवर्ड प्रेस के सलाहकार संपादक प्रमोद रंजन व केटारू डॉट कॉम के रमेश। स्वागत भाषण देते हुए एपी शिवा

कोयंबतूर (तमिलनाडू) : ”काटारू’’ मासिक पत्रिका का प्रकाशन अक्टूबर 2014 में शुरू किया गया था। इंटरनेट व सोशल मीडिया की बढ़ती लोकप्रियता के इस युग में, एक नई पत्रिका शुरू करना कोई आसान काम नहीं था परंतु पेरियार के लेखन और भाषणों को प्रकाशित करने की हमारी उत्कट इच्छा के समक्ष ये चिंताएं कुछ भी नहीं थीं। पिछले एक वर्ष के अनुभव ने हमें और स्फूर्ति व उत्साह से भर दिया है।

जैसा कि पहले तय किया गया था, 24 अक्टूबर, 2015 को पत्रिका के एक वर्ष का मूल्यांकन करने के लिए बैठक का आयोजन किया गया। फारवर्ड प्रेस के सलाहकार संपादक प्रमोद रंजन को इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया। तमिल यूथ आर्गनाईजेशन के समन्वयक वी. प्रभाकरन बैठक में विशिष्ट अतिथि थे। मीटिंग का आयोजन कोयम्बटूर के दिव्योद्या हॉल में किया गया। काटारू के जुलाई अंक में हमने अपने पाठकों को पेरियार के लेखन और उनके भाषणें को इंटरनेट पर उपलब्ध करवाने की हमारी योजना से अवगत कराया था। यह कार्य पूरा हो गया और पेरियार के लेख व भाषण www.periyarwritings.org पर उपलब्ध करवा दिए गए हैं। बैठक में इस वेबसाईट का उद्घाटन केटरू रमेश ने किया, जिन्होंने बहुत कम समय में इसका निर्माण किया है। इसके बाद ”मूल्यांकन बैठक की कार्यवाही’’ को श्री रंजन द्वारा जारी किया गया।

अपने भाषण में श्री रंजन ने कहा कि ”उत्तर भारत में भी हम में से कई, महात्मा जोतिबा फुले और बाबासाहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर जैसे दलितबहुजन नायकों के साथ-साथ, पेरियार ई.वी.आर. को भी उनके आत्माभिमान आंदोलन और जाति उन्मूलन व ब्राह्मणवाद-जो उत्तर भारत में कहीं अधिक मज़बूत है-के विनाश के लिए किए गए महती प्रयासों के लिए बहुत सम्मान की दृष्टि से देखते हैं। हम सब ब्राह्मणवाद व संस्कृतिकरण के खिलाफ संघर्षरत हैं परंतु हम तब तक सफल नहीं होंगे जब तक कि हम विनम्रतापूर्वक एक-दूसरे से न सीखें-उत्तर भारत को दक्षिण भारत व देश के अन्य भागों से सीखना होगा और दक्षिण को भी उत्तर और भारत के अन्य हिस्सों से सीख लेनी होगी।

इस पथ पर चलने के लिए हमें हमारे महान दलितबहुजन नायकों को उनकी संकीर्ण समुदाय-आधारित जड़ों से मुक्त करना होगा और कम से कम भारत और दक्षिण एशिया में उनकी शिक्षाओं और विचारों का प्रचार-प्रसार करना होगा। हमें जोतिबा फुले को उनकी महाराष्ट्रीयन माली जड़ों, पेरियार को उनकी द्रविड़ जड़ों और आंबेडकर को उनकी महाराष्ट्रीयन अनुसूचित जाति जड़ों से मुक्त करना होगा। कभी-कभार इन नायकों ने जिन समुदायों में जन्म लिया और जिनके लिए काम किया, वे समुदाय इन्हें केवल अपना बनाए रखना चाहते हैं। यह प्रवृत्ति ब्राह्मणवादी हितों का पोषण करती है। ये महान नेता अपने जीवनकाल में अपने विचारों को पूरे देश में नहीं फैला सके परंतु अब उनके अनुयायियों का यह कर्तव्य है कि वे शब्दों (उनके लेखन और उन पर लेखन) और कर्मों (जाति उन्मूलन और समाज सुधार के संघर्ष को जारी रख) से यह करना होगा।’’ श्री रंजन ने अपने भाषण के अंत में यह अपील की कि, ”मैं अय्या वीरामनी, कोलाथुर मणी, कोवई रामचंद्रन और सुबा वीरा पंडियन से यह अनुरोध करता हूं कि वे पेरियार के लेखन को हिंदी में अनुदित करने में मदद करें। फारवर्ड प्रेस, पेरियार के विचारों का पूरे उत्तर भारत में प्रचार-प्रसार करने में अपनी भूमिका निभाएगी। मिलजुलकर हम सब उस सपने को पूरा कर सकते हैं, जो फुले, आंबेडकर और पेरियार ने देखा था और जिसे पूरा करने के लिए वे जीवनभर संघर्षरत रहे अर्थात जाति व ब्राह्मणवाद मुक्त भारत का निर्माण-एक ऐसे भारत का जिसमें हर नागरिक को सामाजिक न्याय, गरिमा और आत्मसम्मान उपलब्ध हो।’’ श्री प्रभाकरन, जो ‘काटारू’ के संपादकों में से एक हैं, ने भी बैठक में अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि ‘काटारू’ ने विद्यार्थियों सहित ऐसे कई युवाओं की पहचान की है जिनमें लेखक बनने की संभावना है और ‘काटारू’ उन्हें पेरियार और समाज के बारे में उनके विचारों को लोगों तक पहुंचाने का मौका दे रही है।

प्रोफेसर पुरात चिक्कोडी, डॉ. पेयियार सेल्वी व सुश्री वेणी कार्यक्रम के मेज़बान थे। इस अवसर पर मेहमानों का सम्मान किया गया। श्री रंजन का सम्मान सुश्री पोलाची धनलक्ष्मी ने किया, श्री प्रभाकरन का प्रो. ए. पुराट चिक्कोडी ने और कीटरू रमेश का सुश्री गौरी ने। श्री रंजन ने ‘काटारू’ की टीम को ब्रजरंजन मणि की पुस्तक ”डीब्राह्मानाईजिंग हिस्ट्री’’ की एक प्रति भेंट की।

जलपान के बाद औपचारिक चर्चा हुई। बैठक में उपस्थित लोगों ने ‘काटारू’ के हर अंक की विवेचना की और लेखकों से प्रश्न पूछे। लेखों की आलोचना और प्रशंसा दोनों हुई।

‘काटारू’ ने अपने अगले मिशन की घोषणा की जिसके अंतर्गत पेरियार के विचारों के प्रसार के लिए ”कुडियारसू स्कूलों’’ की स्थापना की जाएगी। इस अवसर पर पांडिचेरी विश्वविद्यालय के अंग्रेज़ी विभाग के प्रो. टी. माक्र्स का आभार व्यक्त किया गया, जिन्होंने पेरियार के 20 चुनिंदा लेखों का तमिल से अंग्रेज़ी में अनुवाद किया है। श्री रंजन ने श्रोताओं को याद दिलाया कि हमें प्रो. माक्र्स के पदचिन्हों पर चलते हुए इन लेखों को हिंदी में अनुदित करवाना चाहिए। बैठक के अंत में सभी उपस्थितों को स्वादिष्ट बीफ बिरयानी परोसी गई।

लेखक के बारे में

टी. थमराई कन्नन

पेरियादवादी सामाजिक कार्यकर्ता टी. थमराई कन्नन "कात्तारु : वैज्ञानिक संस्कृति का तमिल प्रकाशन" की संपादकीय-व्‍यवस्‍थापकीय टीम के संयोजक हैं। उनकी संस्था 'कात्तारु' नाम से एक तमिल मासिक पत्रिका का प्रकाशन भी करता है।

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