दलित लेखक संघ की पहल
दिल्ली : दलित लेखक संघ के तत्वावधान में एक विचार गोष्ठी का आयोजन 15 नवंबर को कनॉट पैलेस, नयी दिल्ली में सम्पन्न हुआ। वक्ताओं ने ‘आरक्षण: दलित-पिछड़ों की भागीदारी’ और ‘बढ़ती असहिष्णुता का जिम्मेदार कौन?’ विषयों पर अपने विचार रखे। दलित और स्त्रीवादी चिंतक विमल थोरात ने अपने वकतव्य में कहा कि ‘दलितों के प्रति समाज में जो रवैया है, उसे असहिष्णुता की बजाय क्रूरता कहा जाना चाहिए।’ अशोक वाजपेयी ने कहा कि ‘हम अभी तक साप्रदायिकता को बहुत कम करके आंक रहे थे। साप्रदायिकता पर विमर्श में जब तक उपेक्षितों की बात शामिल नहीं होगी तब तक सामाजिक विषमताएं समाप्त नहीं होंगी।’ गोष्ठी में मुरली मनोहर प्रसाद सिंह, केपी चौधरी, डा. रतन लाल, अनिता भारती, संजीव कुमार, संजीव चंदन, उमराव सिंह जाटव, डा. सुधीर सागर, सूरजपाल चौहान, मामचंद रिवाडिया आदि ने भी अपनी बात रखी। अध्यक्षता कर रहे कर्मशील भारती ने कहा कि ‘यह समय जागने का है और परिवर्तन के लिए अनुकूल भी है क्योंकि अनेक लेखक संगठन एक साथ हुए हैं। इस ऊर्जा को सहेजकर आगे बढऩा चाहिए।’
मराठी दैनिक का विरोध
नागपुर : प्रमुख मराठी दैनिक ‘लोकमत’ धुलिया संस्करण में 12 नवंबर को बलि-वामन की तस्वीर छपने का विरोध विदर्भ सहित महाराष्ट्र के ओबीसी संगठनों और व्यक्तियों ने किया। गौरतलब है कि राज्य का पिछड़ा-दलित तबका ‘बलि राजा’ को अपना आदर्श मानता है और दिवाली के दौरान बलिराजा का उत्सव मनाता है। इस वर्ष भी विदर्भ सहित पूरे महाराष्ट्र में यह उत्सव आयोजित हुआ। वर्धा में अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद् द्वारा रावण-दहन का विरोध प्रशासन को ज्ञापन देकर किया गया। परिषद् के जिला सचिव चंद्रशेखर मडावी ने कहा कि अगले वर्ष से हम रावणदहन नहीं होने देगें।