वर्ण-र्आधारित सामाजिक विभेद का प्रारंभ ऋग्वैदिक काल से ही देखा जा सकता है। ऋग्वेद के दसवें मंडल में चार वर्णों -शूद्र, क्षत्रिय, वैश्य एवं ब्राह्मण का उल्लेख है। समय के प्रवाह के साथ, वर्ण जातियों में बँट गए और जातियाँ उपजातियों में। हमें हमारी जाति जन्म से मिलती है और हम अपनी इच्छा से हम इसे छोड़ नहीं सकते। धर्म बदला जा सकता है लेकिन जाति नहीं। यही कारण है कि जातिप्रथा के मुखर विरोध के बावजूद, सबके अंतरूकरण में यह अस्मिता की मूलभूत इकाई के रूप में मौजूद है।
वर्चस्व का खेल और इतिहास लेखन
मनुष्य के विकास के लिए सबसे जरुरी है आत्मविश्वास। मनोबल से असंभव कार्य भी सिद्ध किए जा सकते हैं। यही कारण है कि लम्बी अवधि तक शासन करते रहने के लिएए शासक वर्ग सर्वप्रथम, शासितों के आत्मविश्वास को कमजोर करता है। इसके लिए वह ऐतिहासिक, भौगोलिक और सांस्कृतिक तर्क प्रस्तुत करता है, फिर चाहे वे कपोल कल्पित ही क्यों न हों। आधुनिक काल में यही प्रयास अंग्रेजों ने किया तथा प्राचीन काल में ब्राह्मणों ने। अंग्रेजों से मुकाबले के लिए लोगों में आत्मगौरव और राष्ट्रगौरव का भाव भरने के लिए जब जयशंकर प्रसाद चन्द्रगुप्त मौर्य की शरण में जाते हैं तो वे मुक्तिगामी एवं युगपुरुष कहलाते हैं। परन्तु ब्राह्मणों एवं उनसे व्युत्पन्न जातियों से मुकाबले के लिए ऐसा ही प्रयास कोई अन्य करता है तो वह हास्य एवं आश्चर्य का विषय बन जाता है।
दरअसल, सारा खेल वर्चस्व का है। दूसरों को नीच और नालायक साबित कर कैसे अपनी प्रासंगिकता बनाए रखी जाए, यही इतिहास लेखन की मूल चेतना रही है। जिस प्रकार अंग्रेजों का ऐसा व्यवहार आश्चर्य का विषय नहीं है, उसी प्रकार भारतीय इतिहासकारों का यहे प्रयास भी आश्चर्य का विषय नहीं है। भारत में इतिहास के शोध और लेखन में रत इतिहासकारों में से अधिकतर तथाकथित उच्च जातियों से संबंधित हैं। वे सिर्फ ऐसे विषयों पर शोध करते हैं, जो उनके अनुकूल हों और तथ्यों को अपने पक्ष में तोड़मरोड़ भी लेते हैं। तमाम बौद्ध एवं जैन ग्रंथों में चन्द्रगुप्त मौर्य को क्षत्रिय बताये जाने के बाद भी ब्राह्मण ग्रंथों के आधार पर उन्हें शूद्र क्यों मान लिया जाता है। बिना किसी तार्किक-वैज्ञानिक आधार के हर इतिहास की पुस्तक में यह क्यों लिखा रहता है कि ‘ऐसा माना गया है कि ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मण, भुजा से क्षत्रिय, जंघा से वैश्य तथा पैर से शूद्र की उत्पति हुई है’। दरअसल, प्राचीनकाल से आज तक, जब भी ब्राह्मणों द्वारा इतिहास लिखा गया, हर उस जाति को पतित घोषित करने का प्रयास किया गया, जो ब्राह्मणों के विरोध में थी या उनके विरोधियों का समर्थन करती थी। यही कारण है की जब मौर्य वंश के शासक,ब्राह्मणों के विरोधी सम्प्रदायों-जैन, बौद्ध, आजीवक आदि का समर्थन करने लगे तो उन्हें अधम और नीच साबित करने के लिए शूद्र कहा जाने लगा। चन्द्रगुप्त मौर्य के मुकाबले चाणक्य के व्यक्तित्व को इतना बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया गया मानो मौर्य वंश की स्थापना का सारा श्रेय चाणक्य (जो ब्राह्मण थे) को ही हो। आज जब हम इतिहास लेखन की बारीकियों को समझने लगे हैं तो ऐसी स्थापनाओं पर हमें हँसी भी आती है और रोष भी।
ज़मीनी हकीकत
इस आलेख में कुशवाहा जाति के मौर्यवंशीय संबंधों की पड़ताल के बहाने जातिगत अस्मिता के प्रश्न को उठाने का प्रयास किया जा रहा है। यह विषय इसलिए प्रासंगिक बन गया है क्योंकि कुशवाहा जाति के इस दावे, कि चन्द्रगुप्त मौर्य उनके पूर्वज थे, के विरोध में बिना कोई शोध किए एक व्यंग्यात्मक लेख ‘द टेलीग्राफ’ के 9 दिसम्बर 2014 के ई.पेपर (www.telegraphindia.com|1141210|) में प्रकाशित हुआ है। लेख में कहा गया है कि जब प्रसिद्ध इतिहासकार रोमिला थापर को बताया गया कि कुशवाहा जाति खुद को चन्द्रगुप्त मौर्य का वंशज मानती है, तो उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया। उन्होंने यह भी कहा कि चन्द्रगुप्त मौर्य के बचपन और पूवर्जों के सम्बन्ध में बहुत कम जानकारी हमें उपलब्ध है। चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्यारोहण की तिथि को लेकर भी विवाद है। इसी लेख में पटना विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एस.एस.सिंह को यह कहते हुए उद्धृत किया गया है कि चन्द्रगुप्त मौर्य किस जाति के थे, इसका कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है। केवल यह जानकारी मिली है कि वे निम्न जाति में जन्मे थे।
उपर्युक्त दोनों इतिहासकारों के विचारों को पढऩे से प्रतीत होता है कि उन्हें जानकारियों की कमी है। इस दिशा में पर्याप्त शोध नहीं हुए हैं। चन्द्रगुप्त मौर्य के पूर्वज कौन थे तथा उनके बाद की पीढिय़ाँ कौन थीं, यह शोध का विषय है। यदि शोध के द्वारा किसी ने यह प्रमाणित किया है कि कुशवाहा जाति के पूर्वज मौर्य वंश के शासक थे तो उसे प्रकाशित किया जाना चाहिए। यदि पर्याप्त शोध नहीं हुआ है, तो इस जाति के इतिहासकारों का कर्तव्य है कि इस विषय में शोध करें तथा प्रमाण के साथ तथ्य प्रस्तुत करें। इतिहास का विद्यार्थी न होने के बावजूद, सतही तौर पर मुझे जो दिखाई देता है उससे यही प्रतीत होता है कि कुशवाहा जाति के इस दावे को सिरे से ख़ारिज नहीं किया जा सकता। क्षेत्र-अध्ययन किसी भी परिकल्पना को सिद्ध करने की सटीक एवं वैज्ञानिक पद्धति है। यदि हम मौर्य साम्राज्य से जुड़े या बुद्धकाल के प्रमुख स्थलों का अवलोकन करें तो पायेगें कि इन क्षेत्रों में कुशवाहा जाति की खासी आबादी है। 1908 में किये गए एक सर्वेक्षण में भी यह बात सामने आई थी कि कुम्हरार (पाटलिपुत्र), जहाँ मौर्य साम्राज्य के राजप्रासाद थे, उससे सटे क्षेत्र में कुशवाहों के अनेक गाँव ,यथा कुम्हरार खास, संदलपुर, तुलसीमंडीए रानीपुर आदि हैं, तथा तब इन गाँवों में 70 से 80 प्रतिशत जनसँख्या कुशवाहा जाति की थी। प्राचीन साम्राज्यों की राजधानियों के आसपास इस जाति का जनसंख्या घनत्व अधिक रहा है। उदन्तपुरी (वर्तमान बिहारशरीफ शहर एवं उससे सटे विभिन्न गाँव) में सर्वाधिक जनसंख्या इसी जाति की है। राजगीर के आसपास कई गाँव (यथा राजगीर खास, पिलकी महदेवा, सकरी, बरनौसा, लोदीपुर आदि) भी इस जाति से संबंधित हैं। प्राचीन वैशाली गणराज्य की परिसीमा में भी इस जाति की जनसंख्या अधिक है। बुद्ध से जुड़े स्थलों पर इस जाति का आधिक्य है यथा कुशीनगर, बोधगया, सारनाथ आदि। नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहरों के आसपास भी इस जाति के अनेक गाँव हैं यथा कपटिया, जुआफर, कपटसरी, बडगाँव, मोहनबिगहा आदि। उपर्युक्त उदाहरणों से यह प्रतीत होता है कि यह जाति प्राचीनकाल में शासक वर्ग से संबंधित थी तथा नगरों में रहती थी। इनके खेत प्राय: नगरों के नज़दीक थे अत: नगरीय आवश्यकता की पूर्ति हेतु ये कालांतर में साग-सब्जी एवं फलों की खेती करने लग। आज भी इस जाति का मुख्य पेशा साग-सब्जी एवं फलोत्पादन माना जाता है। इस जाति की आर्थिक-सामाजिक परिस्थिति में कब और कैसे गिरावट आई, यह भी शोध का विषय है। राजपूत और कायस्थ जातियों का उदय 1000 ई. के आसपास माना जाता है। राजपूत, मध्यकाल में शासक वर्ग के रूप में स्थापित हुए तथा क्षत्रिय कहलाए। प्रश्न उठता है राजपूतों के उदय से पूर्व और विशेषकर ईसा पूर्व काल में क्षत्रिय कौन थे? स्पष्ट है वर्तमान दलित या पिछड़ी जातियाँ ही तब क्षत्रिय रहीं होंगी। इतिहास बताता है कि जिस शासक वर्ग ने ब्राह्मणों को सम्मान दिया तथा उन्हें आर्थिक लाभ पहुँचाया, वे क्षत्रिय कहलाए तथा जिसने उनकी अवहेलना की या विरोध किया, शूद्र कहलाये। यदि आज इन जातियों द्वारा अपनी क्षत्रिय विरासत पर दावा किया जा रहा है तो तथाकथित उच्च जातियों के लोगों को आश्चर्य क्यों होना चाहिए?
जातिगत पहचान और आत्मगौरव
इस लेख में पिछड़ी या दलित जातियों को क्षत्रिय साबित करने का यह अर्थ नहीं है कि मैं हिन्दू धर्म की वर्णाश्रम व्यवस्था में विश्वास रखता हूँ तथा किसी जाति को क्षत्रिय साबित कर उसे ‘ऊंचा दर्जा’ देना चाहता हूँ। मेरा उद्देश्य यह स्पष्ट करना है कि कोई भी जाति या वर्ण जन्म से आज तक शूद्र के रूप में मौजूद नहीं है। आर्थिक एवं राजनैतिक स्थिति में बदलाव के साथ उसकी सामाजिक हैसियत में भी बदलाव हुए हैं। ऐसी स्थिति में आज हम जिस भी जाति या वर्ण में पैदा हुए हैं, उसके लिए हममें हीनताबोध क्यों पैदा किया जाता है? जाति को आधार बनाकर हमारे आत्मगौरव एवं आत्मसम्मान को कुचलने की कोशिश क्यों की जाती है? यदि ऐसा किया जाता है तो हम दो तरीकों से उसका जबाव दे सकते हैं। एक तो ‘संस्कृतिकरण’ के जरिए अर्थात खुद को अपनी प्राचीन संस्कृति के उज्ज्वलतम अंश से जोड़कर। दूसरा,अपनी वर्तमान पहचान पर गर्व करके। दूसरे तरीके का बड़ा अच्छा उदाहरण चमार जाति के द्वारा न सिर्फ आधुनिक काल में वरन् मध्यकाल में भी पेश किया गया है। पंजाब में अनेक युवक, जो इस जाति से सम्बद्ध हैं, आज गर्वपूर्वक अपने मोटरबाइक पर अपनी जाति का इजहार करते हुए लिख रहे हैं ‘हैण्डसम चमार’ या ‘चमरा दा पुत्तर’। मध्यकाल में रैदास अपनी जातिगत पहचान के प्रति न सिर्फ मुखर रहे (कह रैदास खलास चमारा) वरन् उसे आत्मगौरव का विषय भी बनाया।
यह आलेखए कुशवाहा जाति के मौर्यवंशीय दावे पर जो प्रश्न खड़े किये गए हैं, उन पर विचार करते हुए मूलत: यह स्पष्ट करने का प्रयास है कि हम चाहे जिस भी जाति में जन्म लें, आत्मगौरव का भाव बनायें रखें, उसके लिए अपने भीतर या बाहर चाहे जैसे भी तर्क गढऩे पड़ें। जाति भले न बदली जा सके, विश्वास बदला जा सकता है। विश्वास चाहे स्वयं का हो या समाज का!
(फारवर्ड प्रेस के अगस्त, 2015 अंक में प्रकाशित)
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Thanks sir
Are murkho kab tak karate rhoge AAP’s me Jago be appreciated apna Raj asthapit karo
Super
कुशवाहा समाज के संदर्भ में जो तथ्य आपने दिया है वह बिल्कुल ही तार्किक, एवम् प्रामाणिक है इसके संदर्भ में किसी के प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं है।
Kyu vidya ye sab tere samne hua tha
Sach to ye hai ki morya sudra tha usko chankya ji ne tayyar kiya ye baat puri duniya janti hai.
lekin kuch Brahmano ne isko nhi apnaya quki ye dalit tha.
Or is lekh me Brahmano ko nisana banaya hai jab ki morya vans chankya ji ka basaya hua hai jo ki ek Brahman hai or inko bhi nhi choda.
Is se bada sabut or kya ho sakta hi ki tum dalit ho..
Jai Parsuram
logo ka to pata nahi per vickey tu to sach me uss kaal me janma malum deta hai murakh hai tu,
jab vishnu puran, mudrarachash,rajatrangani 10th centurey AD me likhi gayi or Mahabodhi dharmgranth 2nd BC me jo ki sambhavta chandragupta ka kaal tha , to he murkh brahman ye bata ki uss kaal khand ki pustak satik jankari degi ya baad me 1000 year baad likhi gayi book. brahmani ne sadiv samaj me asprusyata ka jahar ghola hai , agar essa nahi hai to sabhi mandiro me non-brahmin ko kyu mathadhish nahi banaya jata.
he murkh jati se brahman ( karmo Se to malum nahi deta) parsuram parsuram karne se parsuram nahi aayenge bachane unki bhi lag gayi thi jab bhishm ne hathiyaar uthaya tha .
agar chandragupta sudra hota to janam se brahman chanakya kya ek sudra ko gaddi se uttha ke dusre sudra ko gaddi pe bithata . aaj 21st centurey me jab tere jaisa jatu brahman itna bhed bhavi hai vo chanakya kitna raha hoga.
agli baar se apni jaat aur aukaat ke hisab se hi kuch bolna.
Thank you sir. You are right
Am MAURYA.
ekdam sahi jawab diya hai aap ne
भाई बहुत खूब
शानदार जवाब दिया है आपने
Brahmano me karan sabhi Shudra pata kya kya name dekar Duniya ko gumrah ki sach to yah he sabse bade chor Brahman he jinhone vedo me granto likhkar duniya unch ninch banakar apne ko mahan bataya in kutto ki vajah we ye aaj indiya ki halat kharab.
VICKY SHARMA जी मैं आपसे पूछना चाहता हूँ की किस आधार पर आप जाति का निर्धारण करते है? उत्तर यही है की वेद अथवा पुराण | यही वेद और पुराण हमें क्षत्रिय भी सिद्ध करता है| जो की निम्न प्रकार है –
१.आचार्य चाणक्य एक विद्वान् ब्राह्मण थे ऐसे में नन्द वंश से बदला लेने के लिए वे किसी शुद्र को नहीं चुनेगे जो की फेल हो जाये जाहिर सी बात है की वे क्षत्रिय में सबसे अछे गुणवत्ता के क्षत्रिय को चुना और वे क्षत्रिय थे अखंड भारत के निर्माता, महान मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चन्द्र गुप्त मौर्य, और सम्राट अशोक ने इस महान राष्ट्र का विस्तार किया |
२. हजारो साल पुराने भविष्य पुराण में लिखा है कि मौर्यो ने विष्णुगुप्त ब्राह्मण की मदद से नन्दवंशी शूद्रो का शासन समाप्त कर पुन क्षत्रियो की प्रतिष्ठा स्थापित की।
३.दो हजार साल पुराने बौद्ध और जैन ग्रन्थ और पुराण जो पण्डो ने लिखे उन सबमे मौर्यो को क्षत्रिय लिखा है।
४.1300 साल पुराने जैन ग्रन्थ कुमारपाल प्रबन्ध में चित्रांगद मौर्य को रघुवंशी क्षत्रिय लिखा है
५.महापरिनिव्वानसुत में लिखा है कि महात्मा बुद्ध के देहावसान के समय सबसे बाद मे पिप्पलिवन के मौर्य आए ,उन्होंने भी खुद को शाक्य वंशी गौतम क्षत्रिय बताकर बुद्ध के शरीर के अवशेष मांगे,
६.एक पुराण के अनुसार इच्छवाकु वंशी मान्धाता के अनुज मांधात्री से मौर्य वंश की उतपत्ति हुई है।
७. वायु पुराण विष्णु पुराण भागवत पुराण मत्स्य पुराण सबमें मौर्य वंश को सूर्यवँशी क्षत्रिय लिखा है।।
८.मत्स्य पुराण के अध्याय 272 में यह कहा गया है की दस मौर्य भारत पर शासन करेंगे और जिनकी जगह शुंगों द्वारा ली जाएगी और शतधन्व इन दस में से पहला मौरिया(मौर्य) होगा
९. विष्णु पुराण की पुस्तक चार, अध्याय 4 में यह कहा गया है की “सूर्य वंश में मरू नाम का एक राजा था जो अपनी योग साधना की शक्ति से अभी तक हिमालय में एक कलाप नाम के गाँव में रह रहा होगा” और जो “भविष्य में क्षत्रिय जाती की सूर्य वंश में पुनर्स्थापना करने वाला होगा” मतलब कई हजारो वर्ष बाद।
१०. इसी पुराण के एक दुसरे भाग पुस्तक चार, अध्याय 24 में यह कहा गया है की “नन्द वंश की समाप्ति के बाद मौर्यो का पृथ्वी पर अधिकार होगा, क्योंकि कौटिल्य राजगद्दी पर चन्द्रगुप्त को बैठाएगा।
११. महावंश पर लिखी गई एक टीका के अनुसार मोरी नगर के क्षत्रिय राजकुमारों को मौर्या कहा गया।
१२. मौर्यो ने पुरे भारत और मध्य एशिया तक पर राज किया।दूसरे वंशो के राज्य उनके सामने बहुत छोटे हैं
नोट – चन्द्रगुप्त के समय के सभी जैन और बौध धर्म मौर्यों को शुद्ध सूर्यवंशी क्षत्रिय प्रमाणित करते है ।चित्तौड के मौर्य राजपूतो को पांचवी सदी में
सूर्यवंशी ही माना जाता था किन्तु कुछ ब्राह्मणों ने द्वेषवष बौध धर्म ग्रहण करने के कारण इन्हें शूद्र घोषित कर दिया,
१३. एक क्षत्रिय ही इतना लम्बे १३९ वर्षों तक शाशन कर सकता है | आज तक इतिहास गवाह है की कोई भी ऐसा सम्राट नहीं हुआ जो की इतने लम्बे समय तक शाशन किया हो |
१४. गणपति बाप्पा मोरया अर्थात देवों के देव भगवान् शिव भी मौर्या हैं
निष्कर्ष- बिना सिर पैर की बात मत करिए जिस पवित्र ग्रन्थ वेद और पुराण की बात करते हो उसे पहले जा कर अच्छे से पढ़िए हिन्दू धर्मं की इन महान ग्रंथों पर संदेह जाहिर करके पवित्र ग्रंथों का कृपया अपमान ना करें |
एक बात और जो की आपने दलित शब्द का इस्तेमाल किया है तो आपको बता दूँ आप जैसे घटिया सोच वाले ब्राह्मण और दलितों में समानता होती है तन्त्र ग्रंथों के अनुसार चमार मरने के बाद चमर दोंग और ब्राह्मण मरने के बाद ब्रह्म दोंग बनते हैं ऐसा किसी भी अन्य जाती में नहीं होता है |
आखिरी बात ( जातियों में श्रेष्ठ क्षत्रिय होता है – वेद के अनुसार) भगवान परशुराम भी क्षत्रिय ही थे |
जय श्री राम, जय परशुराम, जय गणपति
अति उत्तम । दम्भी ब्राह्मणों को तर्कयुक्त जवाब ।
Hailll Ashoka
चाणक्य खुद ब्राम्हण नहीं अपितु व्रात क्षत्रिय राजकुल से था जिसका विवाह मोरा गांव के क्षत्रप वपुश्रेष्ठ की पुत्री यशोमती से हुआ था। इस लिए उन्हें रानी मोरा भी कहा जाता था।
क्यों यार इन ब्राहम्णों के चक्कर में पड रहे हो
नाई मुराई एक है मौर्य वंश ,नन्दवंश की ही शाखा है
इन्हौंने ही अपने वर्चस्व को बढाने के लिए नन्दवंश का टुकडा़
मौर्य वंश किया हम सब नाई और मुराई एक ही पिता की सन्तान हैं
यहां तक कि बंगाल का सेन वंश भी हम लोगों का है
इन्होंने हमें इसलिए बांटा कि उस समय (प्राचीन समय में) हमारा समाज (न्यायी वर्ण) सर्वस्रेष्ठ था और उस समय केवल हम लोग ही न्याय करते थे इसीलिए न्यायी(नाई आज कहे जाते हैं) कहलाये
मैं आपको बता दूं जो आज पूरे विश्व में जो डॉक्टर ,सर्जन बने बैठे हैं
वो सब हम न्यायीयों की ही देन आपको याद हो प्राचीन समय के
महान वैद्य धन्वंतरी,चरक,सुस्रुत इत्यादि सब न्यायी वर्ण के ही थे
जिन्होने भारत ही नहीं पूरे विश्व को आयुर्वेद का ग्यान कराया
तो इस प्रकार हम हर छेत्र में गुरू रहे हैं
उसके बाद जब ये लोग (ब्राहम्ण) भारत आये तो इन्होनें देखा कि
ये न्यायी वर्ण तो यहां हर छेत्र में आगे है
ये शासक भी हैं और इनके पूर्वज हर छेत्र में आगे थे
तो पहले इन्होने यहां सत्ता हासिल करने के लिये
नन्दवंशी शासक महापद्मनन्द के दूसरी पत्नी मुरा
से उत्पन्न पुत्र चन्द्रनन्द (जिनको इन्होने चन्द्रगुुप्त कहा है)
को उनके सौतेले भाई सम्राट धनानन्द (जो कि उस समय मगध के राजा थे) के खिलाफ भड़काया और धोखे से उन्हें मरवाकर चन्द्रनन्द को
सत्ता हासिल करवाई उस समय बौद्घ धर्म अपनी चरम सीमा पर था
और हम सब बौद्ध थे
हम हिन्दु धर्म को जानते तक नही थे और वास्तव में ये कोई धर्म था ही नही
इस प्रकार इन्होने हम मु़ूल निवासियों को धीरे धीरे मानसिक गुलाम
बनाना शुरू कर दिया
इधर इन्होने नन्दवंश का विनाश करवाया उधर ये नये
बने हमारे ही मौर्यवंश को खोखला बनाने की सोचने
लगे और अंत में पुष्यमित्र शुंग नामक ब्राहम्ण जो उस समय
मौर्य सम्राट ब्रहद्रथ का सेनापति था, ने उनकी हत्या कर
शुंगवंश की स्थापना की
असल में यही तथाकथित राम था और दशरथ मौर्य समेत दसों
मौर्य सम्राटों को इसने रामायण में रावण बताया है
और आज की स्थिति से आप भली भांति परिचित हैं
भारत सिर्फ बुद्घ की धरती है
नमो बुद्धाय
🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Abe tuchche kutte suar
Agar ham shudra hai to tare kyon fat rahi hai
Mare padoshi bhi sharma lagate hai lakin wo toilet saf karte hain
Tere jaise log jo sochte hai ki wo uche hai
Sale behan k land wo log mere jaiso logo k ghar k toilet saaf karte hain aaur unki maa bahen bartan saaf karti hai kute
Vicky sharma tere maa ki chut
Dalit ke gar magkar khane wala Bada kese ho Sakta he Bhai Bhramano ka yah bhram ab nahi chalega
pahli baat yahan daliton ke bare me jyada dalil na den please.hum kshatriya the hain aur rahenge history dekh lo.
vickey sharma ,fuck you bloody rascal…dont show your illeteracy here
now i show you the fact who we were and are ?
chittorgarh fort largest fort in asia(founder chitrangad maurya)
moriya kshatriya of gujrat jo general category me aate hain(maurya kshatriya hain)
bhim singh maurya n all were the navratnas of prithviraj chauhan
now kushwahas
kushwaha of amer fort read in wikipedia you ashole
then read some history of narsinghgarh about maurya kshatriya M.P.
n han todays kashi(banaras) were the regions of kachhi(kushwahas) n also now a days
high number of kushwaha n maurya are living there so dont try to teach us i know who we are ok.
N an since you believe more in brahmanic scriptures so please refer to the wikipedia of 36 roytal reces of india
there we are placed in parmar kshatriya kul .
Every thing what i wrote above you can check the credential by reaching these sites………….
http://www.indianrajputs.com/view/maswadia
https://www.jatland.com/home/Maurya
https://kutchitihasparisad.wordpress.com/2013/02/05/kshatriyas-36-kuls-and-full-details-of-all-kshtriyas-and-rajputs/
https://en.wikipedia.org/wiki/36_royal_races
1.अगर चाणक्य में हिम्मत थी क्यों नही खुद शाषक बने, क्यों चंद्रगुप्त मौर्य का सहारा लिए?
2. एक ब्राह्मण कभी भी एक दलित को शाषक नहीं चुन सकता, इसलिए एक बात तो साफ़ जाहिर है कि चन्द्रगुप्त क्षत्रिय थे।
Q. Tu itne Dave se kaise kah raha ? Tu us time par janma tha Kya ? Tujhe apne khud ka varn nahi pata dusre ka Kya batayega . Itne grantho me Jo praman h use tu galat bata raha h murkh insan .
maurya kshtriya hae, Hame garb hai ki ham maurya hai, maurya bo kshtriya ha jisne chakrvart raaj kiya he, issae bada kshtriya samsat prthve me nahe he ,maurya kshtriya hi.
maurya ka naam 36kshtriya ki list me hi jo kabe chanvardai ne likha hi.jisse sidha hota hi ki maurya kshtriya hi.
परिसिष्टपर्वन् के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य मयूरपोषकों के एक ग्राम के मुखिया की पुत्री से उत्पन्न थे। मध्यकालीन अभिलेखों के साक्ष्यानुसार मौर्य सूर्यवंशी मांधाता से उत्पन्न थे। बौद्ध साहित्य में मौर्य क्षत्रिय कहे गए हैं। महावंश चंद्रगुप्त कोमोरिय (मौर्य) खत्तियों से पैदा हुआ बताता है। दिव्यावदान में बिंदुसार स्वयं की मूर्धाभिषिक्त क्षत्रिय कहते हैं। सम्राट अशोक भी स्वयं को क्षत्रिय बताते हैं। महापरिनिब्बान सुत्त से 5 वी शताब्दी ई 0 पू 0 उत्तर �भारत आठ छोटे छोटे गाणराज्यों में बटा था। मोरिय पिप्पलिवन के शासक, गणतांत्रिक व्यवस्थावाली जाति सिद्ध होते हैं। पिप्पलिवन ई.पू. छठी शताब्दी में नेपाल की तराई में स्थित रुम्मिनदेई से लेकर आधुनिक देवरिया जिले के कसया प्रदेश तक को कहते थे। मगध साम्राज्य की प्रसारनीति के कारण इनकी स्वतंत्र स्थिति शीघ्र ही समाप्त हो गई। यहीं कारण था कि चंद्रगुप्त का मयूरपोषकों, चरवाहों तथा लुब्धकों के संपर्क में पालन हुआ। परंपरा के अनुसार वह बचपन में अत्यंत तीक्ष्णबुद्धि था, एवं समवयस्क बालकों का सम्राट् बनकर उनपर शासन करता था। ऐसे ही किसी अवसर पर चाणक्य की दृष्टि उसपर पड़ी, फलत: चंद्रगुप्त तक्षशिला गए जहाँ उन्हें राजोचित शिक्षा दी गई। ग्रीक इतिहासकार जस्टिन के अनुसार सांद्रोकात्तस (चंद्रगुप्त) साधारणजन्मा था।
Raja Maan Maurya bhi ek maurya kshtriya hai.
answer jaroor likhna
Pahli baat to ye hai ki Abhi Hamere Maurya jitna kisi ne Rajya nahi kiya jisne kiya hai uska naam batao ,,,aur aage shirf Maurya likhna Bas
Thanks & good job
khud ko brahaman kahane wale vickey sharma teri upjati ki aukat brahamano me kya hai sabako pata hai sabase tuchha jati hai bhat tu chhatriya ko nahi janata
बहुत सुंदर
Maurya,,,,क्षत्रिय hi,,,,,koi mane ya na mane ham kshatriya hi….,,,,,,,,,aur ha hindu samaj agar apni hi jatiyo ko manne se inkar karta hi,aur ek kshatriya ko nimn kul ka paribhashit karne ki koshish karta hi,~ to dhanya hi,,,,,,हिन्दू dharm ,,(hinduo ke vighatit hone ka sabse bada karan ,hindu dharm me vyapt *जातिवाद,,,,जो आजादी के 60 साल बाद भी है
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जहा तक मुझे पता है कि चन्द्र नन्द महापद्म नन्द के पुत्र है।
जिनको इनकी माँ मुरा के नाम पर चन्द्र गुप्ता मोर्या चाणक ने जिया था। जिसे मोर्य वंश आय वास्तव में वे नाई न्यायी वंश के प्रथम चक्रवर्ती सम्राट महापद्मा नन्द के पुत्र है और जिसके प्रमाण भी है ।
Bhai please muje iska praman Ka link dijiye
प्रमाण इस लेख से देख सकते है Mahapadma नंदा एक नई (नाई) जाति द्वारा Magadha.Nanda साम्राज्य के क्षेत्र में नंदा राजवंश या नंद वंश की स्थापना की प्रसिद्ध प्राचीन भारतीय राजवंशों में से एक था। यह 4 और 5 वीं शताब्दी ईसा पूर्व के समय में भारत में शासन किया। इसकी महिमा के शिखर के दौरान नंदा राजवंश पूर्व में बंगाल तक पश्चिम में पंजाब से अपने खिंचाव था, और विंध्य पर्वत रेंज तक दूर दक्षिण में।
उन्होंने कहा, “Panchalas, Aikshvakus, Haihayas, Kasis, अस्माक, कलिंग, Maithilas, कुरु, और Sursenas के राजवंशों पर विजय प्राप्त की है और यह भी Smarat (विस्तृत क्षेत्र और स्वीकृति के साथ राजा) उग्रसेन (बहुत मजबूत के रूप में भेजा जाता है मगध। Mahapadma नंदा करने के लिए इन प्रांतों जोड़ा ) orMahapadmapati (अधिकांश उदार विजेता)।
Mahapadma नंदा नंदा राजवंश के प्रथम राजा था। उन्होंने यह भी मगध के पहले राजा शूद्र हिन्दू धर्म वर्गीकरण के उप जाति नाई से संबंधित था। नंदा राजवंश Pradyota राजवंश के बाद स्थापित किया गया था। Sisunga के बाद से पहले पिछले Pradyota वंश के राजा और लोगों के लिए एक मंत्री को राजा बना दिया। Sisunga बिम्बिसार की लाइन के थे, इसलिए इस dynesty भी Sisunga राजवंश के रूप में कहा जाता है। Mahapadma नंदा के रूप में “सभी क्षत्रियों की विध्वंसक” वर्णित किया गया है। वह नाई जाति द्वारा Mahanandin का बेटा था।
भारतविद एफ ई Pargiter 382 ईसा पूर्व नंदा के राज्याभिषेक दिनांक, और आर लालकृष्ण मुकर्जी ने यह 364 BCE.Mahapadma नंदा Maghada में अपनी शक्ति केंद्र होने के पहले महानतम उत्तर भारतीय साम्राज्य स्थापित करने के लिए दिनांकित। उन्होंने कहा कि उत्तर के पुराने राजवंशों परास्त, धना नंदा के तहत अपनी सबसे बड़ी सीमा पर सभी kings.The नंद वंश dethroning लगभग 323 ईसा पूर्व। Mahapadma नंदा के रूप में सबसे शक्तिशाली (Chhakervarti samarat) पूरे देश का राजा माना जाता है। Mahapadma नंदा, जो स्पष्ट रूप से एक शूद्र के पुत्र के रूप में निंदा की है, और वह गैर-वैदिक दर्शन के अनुयायियों के लिए समर्थन दिया की कठोर सत्ता की राजनीति के तहत पुराने क्षत्रिय राजवंशों के पतन। लेकिन Vedis दार्शनिकों उनके धार्मिक नफरत और संकीर्ण mindlessness की वजह से काली युग के चिह्न के रूप Mahapadma नंदा के उदय का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि सभी लेकिन राजवंश के 100 साल के शासन के 12 साल के लिए नंदा वंश के शासक था। उन्होंने कहा कि 88 साल के अपने जीवन काल में मज़ा आया है की सूचना दी है।
Mahapadma नंदा, Panchalas पराजित किया। Panchalas उत्तरी भारत का एक प्राचीन क्षेत्र है, जो चारों ओर गंगा नदी और यमुना नदी, विशेष रूप से ऊपरी गंगा के मैदान भौगोलिक क्षेत्र से मेल खाती थी। यह जो ओडिशा के आधुनिक राज्य के सबसे शामिल उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश, Kasis, Haihayas (मालवा क्षेत्र में दक्षिण-पूर्वी राजस्थान के पश्चिमी मध्य प्रदेश के जिलों और भागों भी शामिल है), कलिंग (सेंट्रल-easternIndia के आधुनिक राज्यों धरना होगा , साथ ही आंध्र प्रदेश), Asmakas, कौरव, Maithilas, Surasenas और Vitihotras की सीमा से सटे राज्य के आंध्र क्षेत्र; कुछ नाम है। अपने फैसले गुणों और सैन्य शक्ति के कारण वह भी डेक्कन मैदानों के दक्षिण में अपने क्षेत्र का विस्तार किया।
नंद भी भारत के इतिहास में पहली बार साम्राज्य बिल्डरों के रूप में वर्णित हैं। नंदा किंग्स, व्यवस्थित करों के संग्रह को नियमित रूप से नियुक्त अधिकारियों द्वारा की गई। वे एक मजबूत प्रशासनिक व्यवस्था की थी। उनका खजाना लगातार सरकारी खर्च मैच के लिए सहारा लिया जाता था। नंद धन का बड़ा भंडार था। नंदा किंग्स भी नहरों और भूमि पानी के तरीके में बनाया नया नहरों खुदाई करके एक प्रभावी सिंचाई प्रणाली स्थापित करने के लिए।
इस पर, एक आम तौर पर फसल की खेती उन्मुख कृषि का आधार विकसित की है। कृषि के बुनियादी ढांचे में बड़े पैमाने पर विकसित किया गया था। एक शाही अनिवार्य रूप से एक कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था पर आधारित संरचना की संभावना को भारतीय मन सेट में फर्म जड़ों लेना शुरू किया। यह ध्वनि स्तर पर विकसित करने के लिए अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित किया। यह उनके विषयों जीवन के सभी क्षेत्रों में समृद्ध बनाया है।
वे विकसित की है, वजन और तंत्र को मापने standered रिपोर्ट कर रहे हैं। लोग बाहर की ओर आक्रमणकारियों से किसी भी खतरे के बाहर के साथ समृद्ध जीवन की स्थिति का आनंद लिया। यहाँ तक कि महान विजेता सिकंदर महान (356 -323 ईसा पूर्व), जब वह सेना के बारे में सुना नंदा राज्य क्षेत्र में अतिक्रमण करने के लिए वर्तमान दिन ब्यास नदी पार करने की हिम्मत नहीं हो सकता मूल निवासी से कहानियाँ। राजा पोरस भी अलेक्जेंडर सेना के खिलाफ एक बहादुर लड़ा
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IMPORTANT WORK PLS
1. भारत के नंद Greate नाई शासकों द्वारा टी.एम. लिखा धनराजू। एमए
2. प्राचीन भारत, पाठ्य पुस्तक (ग्यारहवीं कक्षा) एनसीईआरटी 2002
3. नंदा राजवंश: पहली गैर क्षत्रिय साम्राज्य है कि मगध शासन
(http://blog.mapsofindia.com/…/nanda-dynasty-the-first-non-…/)
Royalnayeebramhana Pandiths नंद द्वारा पोस्ट 21:16 कोई टिप्पणी नहीं:
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नंदा Rajavanshi के हैं Nayi ब्राह्मण समुदाय व्यक्तियों (सबूत)
नंदा Rajavansh सबूत (चंद्रगुप्त मौर्य पर नंद पुत्र सबूत):
నంద రాజ వంశీయుల ఆధారాలు:
చంద్రగుప్త మౌర్య నంద రాజ కుమారుడు ఆధారాలు:
1.క్రీ.పూ .4 వ శతాబ్దం విశాకదత్తుడు రచించిన “ముద్రరాక్షస” గ్రంధం లో క్లుప్తంగా వివరించారు “చంద్రగుప్త మౌర్యనంద వంశీయుల వారసుడే” అని వివరించినారు। (Visakadattas 4 शताब्दी ई.पू. “मुद्राराक्षस” पुस्तक)
2. ఎజెస్ ఆఫ్ ద నందస్ యండ్ మౌర్యస్ – (రచించిన వారు కే.ఎ. నీలకంఠ శాస్త్రి)। (नंद और मौर्य के युग – K.A.Neelakanta शास्त्री द्वारा लिखित)।
3. ద నందస్ (బార్బర్ రూలర్స్ ఇన్ ఇండియ) – (రచించిన వారు ధనరాజ్ టి.యం)। (भारत में नंद (नाई शासकों) – धनराजू T.M द्वारा लिखित)।
4. భారతదేశ చరిత్ర డిడి.కోసాంబె – ప్రఖ్యతిగాంచిన బౌద్ధమత రచేయిత డిడి.కోసంబె, ఇతను రాసిన అనేకగ్రంధాలలో కుడా “చంద్రగుప్త మౌర్య నంద వారసుడే” అని రచించినాడు। ( “डीडी कोसाम्बी” बौद्ध लेखक – भारत के इतिहास – डीडी कोसाम्बी भी Wrire अपनी पुस्तकों में चंद्रगुप्त मौर्य पर नंद बेटा)
5. సాక్షి దినపత్రిక లో (తేది: 20-11-2011) ప్రచురించిన ఫ్యామిలీ పెజిలో వచ్చిన ఆర్టికల్ లో కుడా “చంద్రగుప్తమౌర్య నంద వారసుడే అని వ్రాసినారు”। (तेलुगु लोकप्रिय समाचार पत्र “साक्षी” प्रकाशित एक Airtcle (दिनांक: 20-11-2011) चंद्रगुप्त मौर्य पर नंद पुत्र)
6. प्राचीन भारत के इतिहास – राधेश्याम चौरसिया।
7. भारत का एक इतिहास – Romola थापर।
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10 भारतीय विरासत और संस्कृति धीरेन्द्र सिंह द्वारा लिखित
11. एक इतिहास – “जॉन Keay” द्वारा लिखित
12. हिंदू धर्म और अपनी सैन्य लोकाचार एयर मार्शल आरके नेहरा द्वारा लिखित
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प्रारंभिक रिकॉर्ड्स पी लालकृष्ण भट्टाचार्य द्वारा लिखित से मध्यप्रदेश के 15.Historical भूगोल
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600 A.D करने के लिए जल्द से जल्द समय से तमिलों पी टी श्रीनिवास आयंगर द्वारा लिखित 17. इतिहास
एशियाई इतिहास की 18 मकदूनियाई आर द्वारा लिखित मजूमदार, डेविड पी Barrows
समय के पार 19. धर्मों: धार्मिक इतिहास के 5000 साल जम्मू गॉर्डन मेल्टन द्वारा लिखित
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23. धर्म: कानून, धर्म और कथा में अपनी प्रारंभिक इतिहास Alf Hiltebeitel ने लिखा है।
एशियाई इतिहास और संस्कृति के 24. कोलंबिया chronologies जॉन स्टीवर्ट बोमन ने लिखा है।
बिहार के 25 विश्वकोश अरुणिमा कुमारी ने लिखा है।
भंवरलाल द्विवेदी द्वारा लिखित भारत में शैक्षिक सोचा था की 26. विकास।
27. भारतीय राज्यों में चमत्कार की मेकिंग: आंध्र प्रदेश अरविंद पनगढ़िया, एम गोविंद राव ने लिखा है।
भारत के 28. इतिहास, नौ खंडों में: वॉल्यूम। द्वितीय – छठी लिखित विन्सेंट ए स्मिथ द्वारा, ए वी विलियम्स जैक्सन से।
29. चंद्रगुप्त मौर्य और उनके समय Radhakumud मुखर्जी ने लिखा है।
(Dhundiraja, 18 वीं सदी पुराणों के पाठ पर एक कमेंटेटर डी Mura का बेटा है जो राजा नंदा Chandraguptam Nandasyaiva patanyasya Mura-samjanasya putram Mauryanam prathamam की पत्नियों में से एक था होना करने के लिए चंद्रगुप्त मौर्य लेता है)।
पूर्व मौर्य टाइम्स में उत्तर-पूर्वी भारत में 30 जीवन मदन मोहन सिंह ने लिखा है।
प्राचीन भारत के इतिहास 31. राम शंकर त्रिपाठी ने लिखा है।
32. नंदा Mura गांव: https://villageinfo.in/bihar/siwan/siswan/nanda-mura.html: (। चंद्रगुप्त मौर्य (Mura) हमारे नंद बेटे के एक अन्य stroong सबूत “Mura” का अर्थ है चंद्रगुप्त मौर्य माता का नाम) ।
राष्ट्रीयता के लिए 33. भारत की रोड: उपमहाद्वीप के एक राजनीतिक इतिहास विल्हेम वॉन Pochhammer द्वारा लिखित
34. “विष्णु पुराण” हमें बताते हैं कि चंद्रगुप्त एक नंदा राजकुमार के बेटे और एक हिंदी था: दासी (अंग्रेजी: नौकरा
34. “विष्णु पुराण” हमें बताते हैं कि चंद्रगुप्त एक नंदा राजकुमार के बेटे और एक हिंदी था: दासी (अंग्रेजी: नौकरानी) Mura नाम दिया है। कवियों Kshmendra और Somadeva उसे Purvananda-Suta, वास्तविक नंदा का बेटा है, के रूप में योग-नंदा करने का विरोध किया है, यानी छद्म नंदा कहते हैं।
35. भारत: सिंधु घाटी Civlization से मौर्य को ज्ञान स्वरूप गुप्ता द्वारा लिखित (चंद्रगुप्त नंद बेटा)
36. अशोक और उसके शिलालेख मात्रा 1- पेज 48 बेनी Madhab बरुआ द्वारा लिखित .. (चंद्रगुप्त एक पत्नी ‘mura’ नामक द्वारा नंदा का बेटा था)
बिहार में 37. Rambles राम गोपाल सिंह चौधरी द्वारा लिखित (उनकी इस पुस्तक चंद्रगुप्त उल्लेख किया है, कमीने था नंदा के बेटे जा रहा है, उसकी मालकिन mura से, नाई जाति की एक महिला)
अनुवाद Subjoined साथ रोमन अक्षरों में 39. Mahawanso -। पाली Buddhistical साहित्य (चंद्रगुप्त नंदा के रूप में एक ही परिवार के सदस्य थे)
जाति और पूर्वी भारत के जनजाति G.K.Gish द्वारा लिखित की मूल के 40 महापुरूष, शुक्ला घोष (चंद्रगुप्त मौर्य पर नंद पुत्र)
41. यीशु ने बौद्ध धर्म से प्रभावित था? ड्वाइट गोडार्ड द्वारा लिखित (एक निश्चित कम जाति साहसी, Chandra- गुप्ता ने कहा कि कुछ एक नाई के बेटे किया गया है) के द्वारा
42. प्राचीन भारत में सभ्यता का इतिहास: संस्कृत रमेशचन्द्र दत्त द्वारा लिखित पर आधारित (Mahapadma नंदा एक छतरी के नीचे सारी पृथ्वी लाना होगा, कमेंटेटर का कहना है कि चंद्रगुप्त एक पत्नी द्वारा नंदा के बेटे Murfi नाम दिया गया)
43. वैकल्पिक भारतीय इतिहास प्राचीन भारत – प्रतियोगिता दर्पण संपादकीय टीम ( ‘Mudrara- kshasa’ चंद्रगुप्त के अनुसार नंदा राजा का बेटा था और ‘Virikhals’ के रूप में वर्णन किया गया है यह appeareds कि नाटककार उसे निम्न जाति का नाजायज पत्नी के बेटे के रूप में वर्णित है। )
44. गौरवशाली युग: Svayambhuva मनु Shakari शालीवहन को, 29000 ईसा पूर्व श्रीपाद Dattatraya कुलकर्णी, श्री भगवान Vedavyasa इतिहास Samshodhana मंदिरा (मुंबई, भारत) द्वारा लिखित [संस्कृत साहित्य में संदर्भ चलता है कि चंद्रगुप्त भी अपने शूद्र पत्नी Mura से Dhanananda का बेटा था ]।
45. भारतीय विरासत और संस्कृति Rao.P आर स्टाफ, P.Raghunadha राव द्वारा लिखित (जैन परंपरा का प्रतिनिधित्व चंद्रगुप्त मौर्य एक नंदा पुत्र था)
46. हिंदू धर्म का एक शब्दकोश: इसकी पुराण, धर्म सुबोध कपूर ने लिखा सहित (Mudraraksasa Mahapadma नंदा से संबंधित होने के रूप में Candragupta का प्रतिनिधित्व करता है, और विष्णु पुराण पर टीकाकार कहते हैं नामित निम्न जाति की एक महिला ने कहा कि वह नंदा का एक बेटा था mura)
bhandrakar ओरिएंटल रिसर्च institute- खंड 2 (चंद्रगुप्त मौर्य पर नंद बेटा) के 47. इतिहास।
मगध के 48. इतिहास: 6 वीं शताब्दी ईसा पूर्व के से 12 वीं कमल शंकर श्रीवास्तव द्वारा लिखित वीं सदी के लिए (Mudrarakshasa6 Candragupta के लेखक के अनुसार नंदा (Nandanavya) और Mauraputra के रूप में एक ही परिवार के सदस्य थे। विष्णु पुराण texts7 के व्याख्याकार उसे Mura द्वारा नंदा के बेटे बनाता है)
49. पूना प्राच्य: एक त्रैमासिक पत्रिका Har दत्त शर्मा द्वारा लिखित ओरिएंटल स्टडीज के लिए समर्पित (हम प्रभाव है कि Candragupta राजा नंदा के बेटे थे करने के लिए Mudraraksasa में कम से कम पांच बयानों है)
50. भारतीय विरासत और संस्कृति राव ने लिखा है। पी आर स्टाफ, पी Raghunadha राव (पुराणों के अनुसार, चंद्रगुप्त एक नौकर नौकरानी द्वारा नंदा राजाओं में से एक का बेटा था। राजवंश उसकी नानी Mura के नाम पर रखा गया था)।
51. जस्टिन: Pompeius Trogu का शाप इतिहास मार्कस Junianus Justinus, JCYardley, पैट Wheatley (चंद्रगुप्त की जाति निर्दिष्ट नहीं है, लेकिन वह आधार जन्मे नंद के साथ अन्य लोगों के अलावा, एक कमेंटेटर विष्णु पर जुड़ा हुआ है द्वारा लिखित का प्रतीक – पुराण, जो कहता है कि वह नाजायज बेटा या राजा Nandrus के पोते) था
52. सामान्य अध्ययन इतिहास K.Krishna रेड्डी द्वारा लिखित (पौराणिक खाते के अनुसार, वह अपने शूद्र उपपत्नी, Mura से पिछले नंदा राजा का बेटा था)
53. प्राचीन भारतीय इतिहास और सभ्यता शैलेन्द्र नाथ सेन द्वारा लिखित (पौराणिक खाते के अनुसार, वह अपने शूद्र उपपत्नी, Mura नाम से से पिछले नंदा राजा का बेटा है, जिस से उपनाम मौर्य निकाली थी था)
भारतीय पुरावशेष पर 54. निबंध: ऐतिहासिक सिक्का, और palaeographic जेम्स प्रिंसेप, हेनरी Thoby प्रिंसेप द्वारा लिखित (यूनानियों Chandra- गुप्ता, नंदा के बेटे की सहायता करने के लिए एक सहायक बल भेजने था कि, प्राची के राजा)
54. निबंध: ऐतिहासिक सिक्का, और palaeographic जेम्स प्रिंसेप, हेनरी Thoby प्रिंसेप द्वारा लिखित (यूनानियों Chandra- गुप्ता, नंदा के बेटे की सहायता करने के लिए एक सहायक बल भेजने था कि, प्राची के राजा)
55. सचित्र प्राचीन विश्व के इतिहास: जल्द से जल्द जॉन फ्रॉस्ट (मगध, Mahapadma नंदा के नाम से जाना जाता है, जो या तो एक पिता या चंद्र गुप्ता के एक निकट संबंध है) द्वारा लिखित से
डायस्पोरा बांग्लादेशियों प्रो एसएम दीन (चंद्रगुप्त मौर्य 320 ई.पू. द्वारा लिखित के लिए बंगाल की 56. एक संक्षिप्त इतिहास – 297BC आधुनिक patna.his मूल के निकट patiliputra में अपनी राजधानी स्पष्ट नहीं है, लेकिन कुछ इतिहासकारों का दावा है कि वह बेटा (या भव्य बेटे) का था mura, एक नंदा राजा की पत्नी। mura से नाम मौर्य आते हैं)
57. 50 सैन्य नेता हैं जो दुनिया बदल विलियम मेड़ (एक नंदा राजकुमार के बेटे Chandragupa) द्वारा लिखित
58. अध्ययन पैकेज सीडी परीक्षा भारद्वाज द्वारा लिखित (अपने शूद्र उपपत्नी से पिछले नंदा राजा के बेटे के रूप में चन्द्रगुप्त नाम से Mura)
59. एक यात्रा भारत की विगत चंद्र मौली मणि द्वारा लिखित के माध्यम से (विष्णु पुराण के अनुसार, चंद्रगुप्त एक शूद्र रानी Mura के पुत्र नंदा राजा, जो नाम मौर्य दिया की थी)
बंगाल मात्रा बंगाल के 3 एशियाटिक सोसाइटी की एशियाटिक सोसाइटी की 60.Journal (कि यूनानियों चंद्रगुप्त, नंदा के बेटे की सहायता करने के लिए एक सहायक शक्ति के रूप में भेजा था, प्राची के राजा)
बंगाल एशियाटिक सोसाइटी की एशियाटिक सोसाइटी (कलकत्ता, भारत) के 61. जर्नल – (कि यूनानियों चंद्रगुप्त के सहायता करने के लिए एक सहायक शक्ति के रूप में भेजा था, नंदा के बेटे)
ब्रह्मविद्या के 62. पांच साल: रहस्यमय दार्शनिक, थियोसोफिकल हेलेना Petrovna Blavatsky, टी सुब्बा पंक्ति, दामोदर लालकृष्ण मावलंकर (चंद्रगुप्त, जिसका बेटा नंदा) ने लिखा है।
भारतीय प्राचीन, ऐतिहासिक, सिक्का, और Palaeographic लिखित द्वारा जेम्स प्रिंसेप, एडवर्ड थॉमस पर 63. निबंध।
64. भारत: सिंधु घाटी Civlization से मौर्य को ज्ञान स्वरूप गुप्ता (नंदा राजा के पुत्र चंद्रगुप्त) द्वारा लिखित
65. भारत की प्राचीन अतीत शंकर गोयल (प्रसिद्ध नाटक मुद्रा Rakshasa विशाखदत्त द्वारा लिखित द्वारा लिखित उल्लेख Nandanvayah, यानी, के रूप में चंद्रगुप्त मौर्य ‘नंदा परिवार’ के वंशज। इस काम एल.एन. Rakshasa, नंद मंत्री के रूप में संबोधित करते हैं चंद्रगुप्त नंदा राजा के पुत्र)
भारत के 66 प्रारंभिक इतिहास भाई गुलशन राय ने लिखा है (इस कहानी Chandra- गुप्ता में पिछले नंदा का एक बेटा होने का प्रतिनिधित्व किया है)
67. भारतीय सभ्यता और संस्कृति सुहास चटर्जी (चन्द्र गुप्ता, के रूप में भी नाटक में वहाँ चंद्रगुप्त और नंदा वंश के बीच खून से कनेक्शन का संकेत कर रहे हैं मुद्राराक्षस Maruya साम्राज्य पुराण के संस्थापक) द्वारा लिखित
68. सिंधु घाटी सभ्यता के संस्थापकों और उनके बाद के इतिहास नौसेना Viyogi, भारतीय राष्ट्रीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद (चन्द्र गुप्ता की मां रानी नंदा famil से संबंधित होने के लिए कहा गया है, कमेंटेटर यहां चौंकाने बयान दिया था कि चंद्रगुप्त एक बेटा था बनाता है नंदा का)
69. जर्नल – उत्तर प्रदेश ऐतिहासिक सोसायटी (कि Candragupta एक निम्न जाति महिला द्वारा नंदा राजा का एक बेटा था)
70. प्राचीन संस्कृत साहित्य का इतिहास फ्रेडरिक मैक्स मुलर द्वारा लिखित (Mahapadma नंदा एक छतरी के नीचे सारी पृथ्वी लाएगा, वह आठ पुत्र होगा, नंदा के साथ Chandra- गुप्ता के रिश्ते की पुष्टि की है)
नंदा में यौन जीवन की झलक 71. – मौर्य भारत: Manomohan घोष द्वारा लिखित पाठ का अनुवाद (जो भी मौर्य के ‘अर्थ हो सकता है खुद को चंद्रगुप्त जो एक देर परंपरा के अनुसार’ मौर्य राजकुमार पद्म में उल्लेख अच्छी तरह से हो सकता है। ‘ पिछले नंदा का एक बेटा)
72. आधुनिक समीक्षा रामानंद चटर्जी द्वारा लिखित (जैसा चन्द्र गुप्ता की मां था-एक निम्न जाति के स्त्री, उसके आधे भाई, नंदा के वैध बेटे)
आर्थर Cotterell द्वारा लिखित शास्त्रीय सभ्यताओं में से 73. पेंगुइन विश्वकोश (Candragupta जन्म के समय कम से था – एक नीच कुल महिला द्वारा पिछले नंदा राजा का एक बेटा)
74. Ganganatha झा अनुसंधान संस्थान के जर्नल (विष्णु पुराण पर टीकाकार का कहना है कि Candragupta Mura नाम के एक पत्नी ने नंदा का बेटा था)।
75. नंद (नाई शासकों भारत में), कलचुरी (greate नाई शासकों भारत)ss
AAP ke lekhan se sahmati ka matlab hi nhi Banta…Agar 1908 me Kushwaha ki jansankhya jyada Nazar aayi aapko to aap Maurya aur Kushwah a dono ek hi hai ya usi ke vabshaj hai bol Dena kaha tak uchit hai….aap ka itihaas ko aakne ka tajurba sayad nhi hai.
Jabki saare saboot chikh chikh ke bta rahe hai ki Nanda hi Maurya ke vabshaj hai…
Per shayad aaj Nayee vansh ki kamjor sthiti ke Karan hi savi milkar dusari jati ka sidh karne me tule huye hai…
Kahte ho chankya bahut budhiman tha to Chandragupta ka pita ka Naam kyu nhi bataya kyu chhipaya…kyuki Nand vansh Brahman bad Ko nhi manta tha…Jai Nand
Sanjeev ji aapne koi galat itihaas pada h mourya vansh ram gram k nagvanshiyo ka banaya hua h
Kripaya aap history ko aur achchi tarah se pad le aur boudh grantho ki bhi sahayta le kyuki shakya rajvansh aur mourya rajvansh sbse bade rajvansh h bhartiya itihaas kal me jisse bharat kaa naam pure vishwa me vikhyat h
मैं किसी को जवाब देतेे थक गया हुँ अपना con no. देंगे ।
Kya Saini …mourya ….kushwaha shakay ek hi h ..cast h
Bhanvar singh hmm
Gupta Raj bans ke samay bahut se Greek itihaskar bhi bharat aate jaate Rahe hain . Un logon ne morae nam ki ek jati ka ullekh kiya hai aur bataya ki yeh log hi Maurya Raj bans ke uttaradhikari hain. Yahi morae hi Aaj ke murai hain brahman itihaskar Kitne jhoote aur makkar hain ye vast duniya jaanti hai in gaddaron ke kartoot SE hi Bharat 1000 salon tak gulaam raha hai
AAP ke lekhan se sahmati ka matlab hi nhi Banta…Agar 1908 me Kushwaha ki jansankhya jyada Nazar aayi aapko to aap Maurya aur Kushwah a dono ek hi hai ya usi ke vabshaj hai bol Dena kaha tak uchit hai….aap ka itihaas ko aakne ka tajurba sayad nhi hai.
Jabki saare saboot chikh chikh ke bta rahe hai ki Nanda hi Maurya ke vabshaj hai…
Per shayad aaj Nayee vansh ki kamjor sthiti ke Karan hi savi milkar dusari jati ka sidh karne me tule huye hai…
Kahte ho chankya bahut budhiman tha to Chandragupta ka pita ka Naam kyu nhi bataya kyu chhipaya…kyuki Nand vansh Brahman bad Ko nhi manta tha…Jai Nand
Agar aaj Lohar jati ki Sankhya Patna me jyada ho jayegi to aap kahenge lohar ke purvaj hi Maurya the….Ye koi tark nhi hai na hi koi manane wali bat.
Mudrarakshsa me saf saf bola gya hai ki Maurya ke purvaj Nand vansh hi tha….Bihar ka Nanda mura gaon v is bat ka Pratik hai ki mura a vivah Mahapadma nand se hua tha….Aaj Nayee jati me unity nhi hone ke Karan dusari jati isper apka hak jta Rahi hai..9832373022
Gautam budhha aur chandragupt maurya kushwaho k purvaj the kyu ki inse jude hue asthano pr aaj bhi kushwaha samaj k logo ki bahulta hai aur in jagaho se esi liye kushwaha samaj k m.p. m.l.a hamesha se hote aaye hai jaise kaushambi se keshav maurya kushinagar se swami maurya varadasi se aanadratan maurya salempur se harikewal kushwaha bihat se upedra kushwaha etc.
ऐतिहासिक प्रमाणों से अगर मौर्य राजवंश की उत्पत्ति के विषय में जो भी पता चलता है…उससे यही शिद्ध होता है कि चंद्र गुप्त मौर्य नन्द वंशी एकराट महापद् नन्द की पहली पत्नी मुरा की संतान थे…अर्थात मौर्य वंश भी नाई जाति से ही थे…
Kyo bhram peda kar raha mahapadma band ko harakar Chandra gupt ne morya samrajya sthapit kara aor tu bol raha he vo nand vansh katha apne baaap ko harakar koi aisa karega
Mourya vansi kastriya the iske prman HR jgah he but Bhai Thakur ji jese rajsthan me Rajput log Thakur nhi lgate he kyonki Thakur to pdvi hoti he Jo ghr ke bde insan ko milti he ..usi trah yeh kha ja sakta he ki kachabaha mourya rajsthani kastriya hi the aajkl hr jati ucch jati Ka nam apne aage lgane lgi he jese .jAtAv .Mourya.chohan.aur pasi samaj katheriya lgata he but usse kya unki jati nhi malum padegi aur nai log srivastv lgate he😂😁 kya he yeh nagvansi Thakur gehlot Thakur kachabaha mourya sheni na ki Mali shakya reddy kurmi lodhe Rajput tomar yaduvansi na ki yadav .Rana aadi real Indian kastriya jati he baki to sakk husan the brahmann apne aapko ucch manta he to fhir .. Bacche ke janm lene me dsthon pr Bo pehle kyo khata he .Aur aur ghr ghr mangne bale ucch kese ho gye aur Sharma ji methil brahmann hi aapko kon puchta he brahmanno aapko sabse neech btate he jese Katya brahmann jinke koi nhi khata Josi brahmann ..Aur jab muslmano me Fakeer brahmann hokar bhi Fakeer hota he uske yaha koi nhi khata he aur SC me aate he to brahmann yaha ucch kese .Aur nai ji aap nand vansh se na ki hum … Brahmann andhvisbas na felao .Thore din pehle kha gya tha ki kheti karne bale log kisan shudra hote he to to fhir buhmihar brahmann Patel kisan shudra huye kyo Sharma ji aur buhmihar brahmann apni ldki brahmanno me nhi krte he kyonki buhmihar brahmann apne aapko brahmann se bahut ucch mante he aur rahi chetgory ki bat to rajsthan me kachabaha aur reddy Kerala andhra me general me aate he ….Hum ucch suryavansi kastriya kachabaha mourya Kushbah sheni shakya gehlot nagvansi rnavat kohli he samjhe aap thora gyan bdaiye brna sab Hindu bikhar jayega brahmann hi 4% he aap aur hum 14%he samjhe
चन्द्रगुप्त मौर्य के पिता कि नाम सूर्यगुप्त था.. जो कि शाक्य गंणराज्य के मुखिया थे….
Yes , Surya Gupta are father of Chandragupta Maurya
Jo koi bhi khta wah meri bat bhi sune aaj bhi maurya nam up se jati praman ptra bnte hai to maurya jab naee the to uska jati naee se kyo nahi bnta hai ek bat aur ki kya wah maurya bansh ke nahi hai yadi nahi to aur kisi ka kyo nahi jati banti hai aur jiski jati maurya se banti hai ve apne aap ko kushwaha khte hai aur ve pichhde varg me aate hai bhai ham kushwaha kshatriy the aur hai chanragupta maurya maurya kushwaha the nahi jo kahta hai ki naee the to pure bharat ke maurya ko bhi naee sabit karo jo apne ko kushwsha bolte haiham batate hai kush bansh the shaky se maurya aur usse saini bane arthat sbki jade ek hai
Har jagh dikhaya jata hai ki saini shakya maurya kushwsha ek jati samuh hai to kya ye jhuth hai ham kushwaha thode sidhe hote hai pahle war nahi karte hai lekin karte hai to itihas ban jata hai ,sithapan ka fayda aur jati utha leti hai lekin hame ladna hoga aur itihas banana hoga kushwaha bhaeeyo
Chandragupta Maurya was Kshatriya.
Naee nhi OK
Chandragupta Maurya , Devi Mura aur Surya Gupta ka beta tha .Mura ka beta hone ke karan Chankya ne Chandragupta ko Maurya ki upadhi dee thi
chandragupt maury chakrvrti samrat shakya vanshi kul se the unka swatntrarajghrana tha yh jo kalpnik kahaniya brahmanvadiyo ne likha hai unhone ek bde rajvansh ko nicha dikhane ke liye likha reason jb ghananand ne chanaky ko bhri sbha se apmanit kr rajsbha se baher kiya tha to chanky apne apman ka bdla lene ke liye kisi charvahe ke ghar gya hoga yesa to uchit lgta hi nhi chankya awashya hi ghnanand ke pairlal raja ke pas gya hoga jo swabhavik chandrgupt ka rajghrana rha hoga jiske madhym se chanakya ne ghananand ko prajit kr nestanabud kr akhand bharat ki nive rakhi aur prtham chakrvarti smraat kahlaya
brahmanvadiyo ko kalpnik kahaniya likhne ki maharat hasil hai reason chandrgupt se lekar jitne bhi maurya samraat shasan kiye us samay baudd dharm hi mukhya dharm tha inhe nal
ayk ghoshit kiya ja chuka tha uski kasak lekhan ke madhym se nikal li aur jo bhi sathi bahut chuski lete haiunhe apne mhapurusho me dilchaspi rkhni chahiy n ki kisi ke mhapurush ko ulta sidha likhkr badnam kre
हम कुशवाहा समाज के लोगो शदियों से अशोक महान, गौतम बुध्द, चन्र्द गुप्त मौर्य की पूजा करते आ रहे हैं। और आगे भी इन्ही को मानते रहेगें।
maurya caste come from matasya puraan
raja maura tha matasya puraan me jo suryavanshi raja tha…
maurya kshatriya hi the agar na hote to kisi ke bap me dam nhi tha ki takshila me admission karwa dete chandragupt ka
bhale maan lo chanakya ne niji swarth ke liye chandragupt ko kshatriya bata kr admission dila diya
lekin kaise kya brahman murkh the caste se samjh nhi pate maurya kaun hote hai ?????
iska jawab bhi de do yaha is jagah aa kar sabka muh band ho jata hai….
kyuki tab brahmins aur kshatriyo ko hi siksha di jati thi na ki kisi sudra ko
ye dusra pramaan
chandragupt ne agar nanda ka putra hota to uski maa nanda ko marne ki sajish nhi rachti chanakya ke sath ushe nanda ko khatam krna tha kyuki wo ek sudra raja tha jo chun chun kr kshatriyo ko maar raha tha…
aaj bhi maurya kshatriya bahut se kshatriya samaj aur rajputo se jude hai humko zara batao ek sudra se kaun kshatriya shadi krega agar maurya shudra hai to
ek aur suno chandragupt maurya ke pita ka nam Sarvarthasiddhi Maurya tha jo ek kshatriya tha raja nhi tha ek chhote se ilake ka sarpanch keh sakte ho jo kosala me rehta tha kosala meeruth tak faila tha isliye kushwaha samaj ka bahut gehra asar tha mauryo pr ye mana jata hai uske bad bhi kuch doubt hai to ye link dekho
aankhe padh padh ke official link dekhnaaa okk….
http://www.ancient.eu/Kautilya/
Emon rajput ji aapki kuch baate sahi h mourya vansh ke sansthapak ..ramg gram k nagvanshiya koli ki sakha h jinse shakya ka shuru se sambhand rha h ..mourya aur shakya vansh se kayi rajput jatiyo ka bhi nirmaan hua aaj jo mourya aur shakya likhane lage h darasal wo keval bhagwaan boudh ki wajah se kyuki aaj pure vishva me lord boudha aur samrat ashok ka bahut hi prabhavshali itihaas rha h ajkl kuch jaatiya in surname ko use kar rhi h aur kuch jo asli mourya bhi h wo bhi inhi me shamil ho gaye h jaise up me kachi ..shakya mourya ..rajisthan me mali ..mahato aur bhi anya h jo inka upyog krti h mourya vansh k log aaj bhi aapko gujraat me mil jaayenge jaise makwana ..talpda .ghediya ..chouhan .etc …aur iske praman itihaas me kayi jagah varnit bhi
ऐतिहासिक प्रमाणों से अगर मौर्य राजवंश की उत्पत्ति के विषय में जो भी पता चलता है…उससे यही शिद्ध होता है कि चंद्र गुप्त मौर्य नन्द वंशी एकराट महापद् नन्द की पहली पत्नी मुरा की संतान थे…अर्थात मौर्य वंश भी नाई जाति से ही थे…
ये भिन्न बात है कि नन्द की पत्नी मुरा वर्तमान मौर्य जाती से हो….लेकिन अगर जाति की बात होगी तो ऐतिहासिक तथ्य मौर्य को नाई जाति से ही सम्बंधित बताते हैं..और इसे स्वीकारने में गलत क्या है…
और अगर चाणक्य नंदो की जाति से विद्वेश नही करता था…चाणक्य सिर्फ घनानंद से द्वेष रखता था..और रही बात चाणक्य के कट्टर ब्राह्मण होने की तो यह बता दू की चंद्रगुप्त मौर्य जीवन पर्यंत अपने पितृ धर्म जैन धर्म को ही आत्मसात किया…
मैं चौहान राजपूत हूं…और मैं वर्तमान नाई जाति को प्राचीन वीर जाति का दर्जा देते हुए क्षत्रिय मानता हूं…क्योंकि मैं तथ्यों पर विस्वास करता हूं सैनी जी
Sir ji aapne phle itihaas ko aur tatol le tabhi aapko jaankari milegi ….mourya vansh ramgram k logo yaani nagwanshiyo ka basaya hua h ..naaki naiyo ka ..isi mourya vansh me se kayi khatriya aur rajputo ki jaati ka bhi vistar hua h …bhagwaan mandhata ki history me bhi iska ullekh h aur bhagwaan mandhata ki history shindhu sabhyata se milti h ..aur yahi bhagwaan mandhata shri raam k purvaj bhi h yah sahi h ki kuswah yaani kachi logo ka mourya samrajya pr adhikaar vyarth h ..pr niyo ka bhi adhikar vyarth h history ko to tod marod krke rakh diya kuch videshi logo ne ..shakya aur mourya vansh me shuru se hi aapsi parivarik sambandh rhe h ..aap jara itihaas ko aur tatoliye sachchai khud ba khud saamne aa jaayegi
समर सिंह चौहान tum log hame na batao ki sach hai samjhe hame pata hai
aur ye galat history apne gharwalon ko parhao tum jake
bina proof ke bakchodi na karo yahan pe
pata nahi kyon admin kya kar rahe hain hadd hai delete kyonnahi karte aise misleading comments ko chhi
sabhi log yahan parhe jake
http://www.indianrajputs.com/view/maswadia
https://www.jatland.com/home/Maurya
https://kutchitihasparisad.wordpress.com/2013/02/05/kshatriyas-36-kuls-and-full-details-of-all-kshtriyas-and-rajputs/
https://en.wikipedia.org/wiki/36_royal_races
and narsinghgarh ki history parhe
बिल्कुल सही भाई जी
सच कभी छुपता नही . . . .
Jo history me vo sabne man liya but Jo itihaskaro see likhwaya gya vo hi Likha gya chay vo hua ho ya hua na ho
phir bahas kis baat ki
sabse pahale hum Hindu hai Jo bit gya use bit Jane do
3 baat jiske pass gyan tha usne APNI marzi se Likha hai
hum tum usme koi change Nahi Kar salted
samgho
kuchh to rah gaya aap ne achha likha hai lekeen our bhi point hain jin par prakash dalna chahiye
यूटूब पर सम्राट चन्द्रगुुप्त मूवी देखो
वहा बताया गया है कि चन्द्रगुुप्त नंदवंशी थे
Samar Singh Chauhan G !
Aapki samman ka shukria lekin aapki jaankari ke liye spasht karna hai ki *Maharani Moora* *Surya Gupt Maurya* ki patni thin.
Very good article.
Adikal tak ka itihaas dekhe to payege brahmano ne har kisi ko dabaya niche rakhne ki kosis ki kya chanakya ko koi Anya Kshatriya raja Rajkumar nahi mila ya nhi the ESA nahi Chandragupta me ve gur maujood the.chanakya B aam Brahman ki tarah bhojan ke liye Chandragupta par nirbhar tha
sale gandu brahman
Brahmno ki ma ki choot.,
Behchodo ki gand pad ke unke hath m dedo
चंदगुप्त maurya Was a Jat King, Sabko pata h,
Lekin Aap Use Kuch or bna rhe ho.
Gandhi Saale
Matlab kuch bi Kahi Donal trump bi kushwaha jati ka toh nhi h,
Mahatma Gandhi or Nehru Bi Sayad Kushwaha toh nhi tha 😂😂
Group admin shahid ho gaye kya jo koi bhi kuchh bhi galat bolke mislead kare ja raha hai.aur aap hain unko delete bhi nahi kar rahe na hi unko reply kar rahe hain.sabse bari haramipana to ye hai ki jo maurya kushwaha nahi hain vo aake galat jankari dete hain jisse hum log hamesha confused rahen aur kuchh log mislead ho bhi jate hain
Bhai chandragupta Maurya gadariya jaati se tha sadan gate n.5 pr unka stechu lga hai uspr unka name bhi likha balak aja pal the shepherd son pd lena agr pdna aata hoto
सुमित मौर्य अपनी जबान को गंदा मत करो..तुम क्या हो और मैं राजपूत …इससे ज्यादा मैं कुछ नही कहना चाहता…जो सत्य महसूस हुआ मैंने निरपेक्ष रूप स कह दिया…,आपका सहमत होना या न होना आपकी मर्जी है…आपको कुतर्क ही करना तो ये लीजिये
चंद्रगुप्तमौर्य जो भी हो कभी उनके भाटा बेचने का प्रमाण सामने नहीं आया है…
सुमित मौर्य अपनी जबान को गंदा मत करो…..इससे ज्यादा मैं कुछ नही कहना चाहता…जो सत्य महसूस हुआ मैंने निरपेक्ष रूप स कह दिया…,आपका सहमत होना या न होना आपकी मर्जी है…आपको कुतर्क ही करना तो ये लीजिये
चंद्रगुप्तमौर्य जो भी हो कभी उनके भाटा बेचने का प्रमाण सामने नहीं आया है…
और जो हो उस पर गर्व करना सीखो..उन्नति करो मेरी शुभकामनाये किन्तु दूसरे के बाप को अपना बाप बनाने में शर्म नही आती..छः
नाई जाती से थे…..
chalo maan liya ek bari ke liye ki chandrgupt kshatriy nahi tha….but rig vaidik kaal me to isnasan ka varn uske uske janm se nahi karm se nirdharit hota tha ……… aur sb apni jageh ek eham bhumika rakhte hai… chandrgupt ki jaati kya thi mujhe nahi pata kyu ki us time bhi sirf varan vyavstha hi thi… but janm pe adharit thi… aur chanaky bhale hi brahaman the lekin ek achhe guru bhi the aur unka niranay thik tha ki ek galt samarajy ka ant hona hi thik hai “ab ye nahi pata ki unho ne ek nimn varg ke ke balak ko hi kyu chuna sayd unhe is baat pe bharosa tha ki ek achhi siksha aur prkshin aur jo ise sikhne ki chaah rakhta ho vo vah achhi chhavi nirdharit kr sakta hai aur yah baat chadrgupt ke upar unhone sodh kiya aur safal hue isse ye pata chalta hai ki karm insan ko kisi bhi varan me sthapit kr sakta hai aur eK KSHATRIY KA KAAM HI HOTA HAI ANNYAY KO ROKNA DURACHAR SAMAPT KRNA DURBAL KI MADAD KRNA joki chandrgupt ne kiya is liye use KSHATRIYA kehna galt nahi hai” agr vah nimn varg se uth ke aaya hai tha to kis varg ka tha kya pata…. is bare me koi pokhta praman nahi hai…. aaj ke time me koi si bhi jati ho… unme bhi unch nich hai brahamn kayi tareh ke hai rajpoot kayi tareh ke hai vaisy varg ke jatiyo me bhi kayi prakar hai… aur unme bhi ek dusre ko uncha batate hai… to jb tk koi pokhta prman na mile kuchh kehna thik nahi hai…
Dil ko BAHALANE KE LIYE CHALO KHAW HI ACHCHHA HAI
💪नमस्ते मोर वंश के भाइयो और बहनों💓
मौर्य गोत्र सिर्फ जाट में था अमौर्य या मौर गोत्र का इतिहास
दलीप सिंह अहलावत[25] के अनुसार मौर्य या मौर चन्द्रवंशी जाटों का महाभारतकाल में हरयाणा में रोहतक तथा इसके चारों ओर के क्षेत्र पर राज्य था, जिसकी राजधानी रोहतक नगर थी। जब इस वंश का महाभारतकाल में राज्य था तो निःसन्देह इस वंश की उत्पत्ति महाभारतकाल से बहुत पहले की है।
इस मौर्यवंश की उत्पत्ति के विषय में कुछ असत्य विचार हैं –
1. मौर्यवंश के द्वारा बौद्धमत का प्रबल प्रचार होने से नवीन हिन्दूधर्मी ब्राह्मणों ने मौर्य सम्राट् चन्द्रगुप्त को वृषल (शूद्र) तथा मुरा नाईन से उत्पन्न होने से मौर्यवंश प्रचलन का सिद्धान्त घोषित कर दिया। बौद्ध और ब्राह्मण संघर्ष से यह कपोल-कल्पना उत्पन्न हुई जो असत्य व त्याज्य है।
2. बौद्ध महावंश में लिखा है कि “मगध के राजा ने शाक्य लोगों को वहां से निकाल दिया। वे लोग हिमालय पर्वत पर चले गये और जिस स्थान पर बहुत संख्या में मोर पक्षी रहते थे, वहां पर एक नगर बनाया। उस नगर में एक महल बनाया जिसकी बनावट में मोर पक्षी की गर्दन के रंग जैसी ईंटें लगाई गईं थीं। उनका यह महल मोरया नगर कहलाया तथा वे लोग मोरया कहलाये।” इस प्रकार की कल्पनायें केवल असत्य तथा प्रमाणशून्य हैं।
मौर-मौर्यवंश के विषय में सत्य प्रमाण निम्न प्रकार से हैं –
महाभारत सभापर्व अध्याय 32 के अनुसार – “पाण्डवों की दिग्विजय के लिए नकुल एक विशाल सेना के साथ खाण्डवप्रस्थ से निकले और पश्चिम दिशा को प्रस्थान किया। जाते-जाते वे बहुत धन-धान्य से सम्पन्न, गौओं की बहुलता से युक्त तथा स्वामी कार्तिकेय (वैदिककाल) के अत्यन्त प्रिय रोहीतक (रोहतक) एवं उसके समीपवर्ती देश में जा पहुंचे। वहां उनका मयूर नाम (वंश) वाले शूरवीर क्षत्रियों के साथ घोर संग्राम हुआ। उन पर अधिकार करने के बाद
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-309
नकुल आगे को बढ़ा।” मयूर, अपभ्रंश नाम मौर्य* है (जाटों का उत्कर्ष, पृ० 342, लेखक योगेन्द्रपाल शास्त्री)। पातञ्जल महाभाष्य में मौर्य जाति लिखी हुई है। “मौर्यैः हिरण्यार्थिभिः अर्चाः प्रकल्पिताः”। धन के इच्छुक ‘मौर्य’ मूर्ति निर्माण में संलग्न रहते थे। कामन्दकीय नीतिकार के मत में भी चन्द्रगुप्त “मौर्यवंश प्रवर्तक (चलानेवाला)” नहीं बल्कि “मौर्यवंश में प्रसूत (उत्पन्न हुआ) था।”
बौद्धग्रंथ महावंश के आधार पर मौर्य एक स्वतन्त्र वंश था। “संस्कृत साहित्य के इतिहास” पृ० 143 पर लेखक मैक्समूलर और “रायल एशियाटिक सोसाईटी जनरल” पृ० 680 पर लेखक मि० कनिंघम लिखते हैं कि “चन्द्रगुप्त मौर्य से भी पहले मौर्यवंश की सत्ता थी।” यूनानियों ने जंगल में रहने वाली मौर्य-जाति का वर्णन किया है। महात्मा बुद्ध के स्वर्गीय (487 ई० पू) होने पर पिप्पली वन1 के मौर्यों ने भी कुशिनारा (जि० गोरखपुर) के मल्लों (जाटवंशी) के पास एक सन्देश भेजा था कि “आप लोग भी क्षत्रिय हैं और हम भी क्षत्रिय हैं इसीलिए हमें भी भगवान् बुद्ध के शरीर का भाग प्राप्त करने का अधिकार है।” और हुआ भी ऐसा ही2। राजपूताना गजेटियर और टॉड राजस्थान के लेखों से भी मौर्य वृषल नहीं, बल्कि क्षत्रिय वंशी सिद्ध होता है।
मौर शब्द से मौर्य – व्याकरण के अनुसार मौर शब्द से मौर्य शब्द बना है। सो मौर पहले का है, फिर इसको मौर्य कहा गया। सम्राट् अशोक ने शिलालेख नं० 1 पर स्वयं मौर शब्द लिखवाया और मौर्य नहीं। जब इस वंश के जाटों का निवास [Central Asia|मध्य एशिया]] में था, तब भी ये मौरवंशी कहलाते थे। जब इस वंश के लोग यूरोप तथा इंग्लैण्ड में गये, वहां पर भी मौर कहलाये। मौर या मौर्य जाटों का राज्य खोतन तथा तुर्किस्तान के अन्य क्षेत्रों पर भी रहा। (जाट्स दी ऐनशन्ट रूलर्ज, पृ० 142-144, लेखक बी० एस० दहिया)।
जाट इतिहास पृ० 52-53 पर लेफ्टिनेन्ट रामसरूप जून लिखते हैं कि “जब सेल्यूकस भारत से अपने देश यूनान को वापिस गया तो अपने साथ पंजाब के जाटों को सेना में भरती करके ले गया। यूनान में इन जाट सैनिकों ने एक बस्ती बसाई जिसका नाम मौर्या रखा और एक टापू का नाम जटोती रखा।” यही लेखक जाट इतिहास अंग्रेजी अनुवाद पृ० 36 पर लिखते हैं कि “उस समय जटोती (यूनान) पर मौर्य जाटसेना ने शासन किया।”
जाट इतिहास पृ० 190, लेखक ठाकुर देशराज लिखते हैं कि “यूनान में जाटों ने अपने उपनिवेश स्थापित किये। यूनान में मौर्या के निकट ज्यूटी (Zouti) द्वीप के निवासी जाटों के उत्तराधिकारी हैं।”
मौर्य या मौरवंश का भारतवर्ष में शासन (322 ई० पूर्व से 184 ई० पूर्व)
इसका संक्षिप्त वर्णन – मौर्यवंश में सबसे शक्तिशाली सम्राट् चन्द्रगुप्त मौर्य था जिसका शासनकाल 322-298 ई० पू० तक था। इसने तक्षशिला विश्वविद्यालय की दीक्षा प्राप्त करके महापण्डित चाणक्य के नेतृत्व में पहले पंजाब पर अधिकार जमाया, फिर नन्दराज्य को समाप्त कर मगध पर अधिकार कर लिया।
1. पिप्पब हर जात में है मौर्य एक जाट गोत्र है
https://www.bhaskar.com/bihar/patna/news/BIH-PAT-HMU-MAT-latest-patna-news-021501-1822853-NOR.html दैनिक भास्कर के इस आर्टिकल में बताया कि चन्द्र नंद ही चन्द्र गुप्त है
Chandragupt means only Maurya bansh.
jitana jatiwad me jaoge pareshan ho jaoge kyoki ishwar ne manaw ko banaya jati ko nahi use to samaj ko chalane ke liye kai tarah ke toda gaya
sabhi manaw sreshth hai apana aatm samman banaye rakhe…………..
Ush time sudro ka hi time tha.
वाकई ये वमपथी द्वारा लिखा गया है जीसमे धूर्तता किया गया है ताकि ब्रैनवास कर के बिजनेस का दुकान किया जा सकता है इसमें प्राचीन काल मे ब्राह्मण को दोष दिया गया है और मध्यकाल में हिंदुस्तान 200 साल राज करने वाले अंग्रेज को दोषी ठहराया गया है और इसके बीच 800 साल मुगल राज करने वाले को गायब कर दिया गया और सबसे चतुराई की बात ये भी है कि सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य जो कुछ थे उसका श्रय चाणक्य ने जबरदस्ती लिया अगर श्रय ही लेना होता तो चाणक्य चन्द्रगुप्त को शिक्षा देता है क्यो खुद ही सम्राट बन जाता असलियत ये है कि दोनों शिष्य गुरु को अपने भारत माँ से बहुत प्यार था और यवन आक्रमण से भारत को बचाना था पूरे भारत एक साथ जोड़ना था इस तरह लाखो पेज मिल जाएंगे जिसमे इतिहास को तोड़ मरोड़ कर पेस करता है सम्राट चंद्रगुप्त फॉलो करने वाले से चाणक्य को मानने के बीच मे मतभेद बना रहे और मौका पाते ही दोनों के इतिहास को आसानी से मिटा दिया जा सकता है जैसे मध्यकाल में नालन्दा विश्व विद्यालय को जलाया गया लाखो गुरुकुल तोड़ा गया हिंदुस्तान का 75 प्रतिसत मंदिर मठ तोड़ा गया बौद्ध तथा सिख व्यपारियो से अफगानिस्तान छीना गया हिन्दुओ से कश्मीर छीना गया
Good information sir
Thank you sir
You are right
जिस बात का कोई ठोस सबूत ना हो उस पर उलझने से तो अछा तो हम सब मानव है मानवता का व्यवहार करे और जाती प्रथा से दूर रहे बेहतर होगा