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मार्क और मोदी की ब्राह्मणवादी परियोजना

''फ्री बेसिक्स या इंटरनेट डॉट ओआरजी’’ आम लोगों के अपनी शर्तों पर इंटरनेट पर उपलब्ध हर चीज़ को देखने के मूल अधिकार का हनन करेगा और ऑनलाइन प्रकाशकों की दुनिया के सभी कोनों तक पहुंच समाप्त हो जाएगी

ब्राज़ील से लेकर इंडोनेशिया और वहां से लेकर दक्षिण अफ्रीकी देशों तक-लगभग पूरी दुनिया, फेसबुक के सबके लिए खुले सोशल मीडिया मंच से नियंत्रण-कामी व विज्ञापन के भूखे राक्षस में तब्दील हो जाने का कड़ा विरोध कर रही है। परंतु भारत इस मामले में फेसबुक के साथ है। शायद इसलिए, क्योंकि ज्ञान को नियंत्रित करना और इसे कुछ चुनिंदा वर्गों तक सीमित रखना भारत में उचित और सही माना जाता है।

गत 27 दिसंबर को भारत के प्रधानमंत्री द्वारा अमरीका में फेसबुक के मुख्यालय में रूंधे गले से अपनी मां के संबंध में किस्से सुनाने के बाद, फेसबुक के सीईओ ने उनका प्रोफाईल चित्र तिरंगा बना दिया और करोड़ों भारतीयों ने इसकी नकल की। कहने की आवश्यकता नहीं कि भारत में जब किसी चीज़ को ”मां’’ या ”भारत माता’’ से जोड़ दिया जाता है तब उसपर प्रश्न उठाने की कोई संभावना नहीं बचती। इसके अलावा, यह दावा कि डिजिटल इंडिया व इंटरनेट डॉट ओआरजी के बीच साझेदारी से करोड़ों लोगों को मुफ्त इंटरनेट मिलेगा (व ”विकास’’ में मदद मिलेगी), ने इस साझेदारी को और ”पवित्र’’ बना दिया है-इतना पवित्र कि उसका विश्लेषण या आलोचना करना पाप होगा।

इंटरनेट डॉट ओआरजी आखिर है क्या?

फेसबुक ने अब इसका नाम बदलकर ”फ्री बेसिक्स’’ कर दिया है। ऐसा इसलिए क्योंकि इसके मूल नाम की भारत और दुनिया के अन्य देशों में कड़ी निंदा हुई थी। फेसबुक अपनी इस पहल को आम लोगों की भलाई के लिए उठाया गया कदम बता रहा है। इंटरनेट डॉट ओआरजी के जरिए फेसबुक, स्थानीय मोबाईल व इंटरनेट सेवा प्रदाताओं की साझेदारी से, 60 वेबसाईटों तक मुफ्त पहुंच देगा। स्पष्टत: इन वेबसाईटों की सूची फेसबुक, भारत सरकार और फेसबुक की साझेदारी कंपनियों द्वारा मिलकर तैयार की जाएगी। यह प्लेटफार्म, साईबर जगत में प्रवेश करने वाले नए लोगों के लिए इंटरनेट का स्थान ले लेगा और इस तरह, सरकार, फेसबुक व अन्य कंपनियां यह तय करेंगी कि लोगों को कौनसी सूचना दी जाए और कैसे? चूंकि इस मुफ्त सेवा का उपयोग करोड़ों लोग करेंगे इसलिए फेसबुक इसके जरिए लक्षित विज्ञापन प्रसारित कर ढेर सारा धन कमाएगा। इस तरह यद्यपि यह प्लेटफार्म उपयोगकर्ताओं के लिए मुफ्त रहेगा तथापि फेसबुक के लिए यह कुबेर के खज़ाने के द्वार खोल देगा। और इसके ज़रिए, सरकार अपना प्रचार भी कर सकेगी। उसकी लोगों के मोबाईलों तक सीधी पहुंच हो जाएगी और उपयोगकर्ताओं की जानकारी के बिना, इंटरनेट पर उनकी गतिविधियों की सूचना सरकार तक पहुंचने लगेगी।

Narendra Modi with CEO of Facebook, Mark Zuckerbergक्या असली इंटरनेट तब भी रहेगा? क्या वह मुफ्त और स्वतंत्र होगा? दुर्भाग्यवश, इन प्रश्नों का उत्तर नहीं है। फेसबुक की इंटरनेट डॉट ओआरजी व एयरटेल ज़ीरो जैसी परियोजनाओं का अर्थ यह होगा कि बाकी इंटरनेट पर भी अलग-अलग कंपनियों का कब्ज़ा हो जाएगा और उसे भी छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटकर बेच दिया जाएगा। इस प्रकार 60 वेबसाईटों के फ्री पैक के अलावा कुछ सैकड़ा वेबसाईटों के मनोरंजन पैक, समाचार पैक, खेल पैक व विभिन्न भाषाओं की वेबसाईटों के अलग-अलग पैकेज उपलब्ध होंगे। इसके अलावा, इंटरनेट की स्पीड के आधार पर इंटरनेट टेलीफोनी (जिनमें स्काईप भी शामिल है) जैसी ”ओवर द टॉप’’ सेवाओं के पैकेज भी उपलब्ध होंगे। पूरी तरह से खुला इंटरनेट भी कहीं न कहीं होगा परंतु ये पैकेज, वेबसाईटों और इंटरनेट सेवा प्रदाताओं के लिए आमदनी के स्त्रोत बन जाएंगे और इसलिए वे उन्हें अधिक से अधिक आकर्षक व सस्ता बनाने का प्रयास करेंगे।

फिर ऐसे किसी ब्लागर या सामाजिक समूह या स्वतंत्र प्रकाशक का क्या होगा, जो इंटरनेट के जरिए लोगों तक पहुंचना चाहता है? अगर आपकी वेबसाईट या ब्लॉग किसी ऐसे पैकेज का भाग नहीं है, जिसके बड़ी संख्या में ग्राहक हों तो आप यह भूल जाइए कि आपकी बात इंटरनेट पर पढ़ी, सुनी या देखी जाएगी। मतलब यह कि अगर आपके पास सेवा प्रदाताओं को देने के लिए धन नहीं है तो आपकी वेबसाईट/ब्लॉग लोकप्रिय इंटरनेट पैकों में शामिल नहीं होगा और साईबर जगत में आपकी आवाज़ को सुनने वाला कोई नहीं बचेगा। इससे उन वंचित वर्गों पर सीधा प्रभाव पड़ेगा जो अब तक मुख्यधारा के विमर्श को इंटरनेट के जरिए प्रभावित कर पा रहे हैं और लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच पा रहे हैं। इसके अलावा, अपनी वेबसाईट को किसी पैक का हिस्सा बनाने के पहले आपको सेवा प्रदाताओं को यह बताना होगा कि उस वेबसाईट/ब्लॉग पर आप क्या रखेंगे। स्पष्टत:, इससे निहित स्वार्थी तत्वों को वंचितों की आवाज़ को दबाने का हथियार मिल जाएगा।

तटस्थ इंटरनेट प्रजातंत्र के लिए आवश्यक

क्या गरीबों को इंटरनेट तक पहुंच दिलवाने का एकमात्र तरीका यही है कि हम इंटरनेट की पहुंच को नियंत्रित और सीमित कर दें और साईबर जगत को पैकों में विभाजित कर दें? इससे कहीं बेहतर यह होगा कि ऑप्टिकल फाइबर परियोजना, जो अभी चल रही है, का सार्वभौमीकरण किया जाए। इसका इंटरनेट के व्यवसाय से जुड़ी बड़ी कंपनियां कड़ा विरोध कर रही हैं।

चौकीदारों वाला इंटरनेट एक ऐसी लाइब्रेरी बन जाएगा, जहां विभिन्न प्रकाशक व वैचारिक समूहों के कांउटर होंगे, जो सस्ते से सस्ते में आपको उन तक पहुंच देने को तैयार होंगे। बड़ी और खुली लाइब्रेरी की फीस इतनी ज्यादा होगी कि आप उसे चुका ही नहीं सकेंगे। इससे यह सुनिश्चित हो जाएगा कि समाज के शक्तिशाली वर्ग अपनी आवाज को जनता तक पहुंचा सकें और आम लोगों के इस मूल अधिकार पर कुठाराघात होगा कि वे अपनी शर्तों और अपनी इच्छानुसार इंटरनेट पर उपलब्ध किसी भी चीज़ को देख-पढ़ सकें। इससे इंटरनेट पर अपनी सामग्री परोसने वाले प्रकाशकों के अधिकारों का भी उल्लंघन होगा क्योंकि उन्हें दुनिया के हर कोने का हर व्यक्ति नहीं पढ़ सकेगा।

सामाजिक-राजनैतिक समूह ही नहीं बल्कि नवउद्यमी भी इसके कारण नुकसान उठाएंगे। कई युवा उद्यमियों ने इंटरनेट का इस्तेमाल कर सफलता की कहानियां लिखीं हैं। इस तरह की सफलताएं इतिहास बन जाएंगी और वह भी ऐसे समय में जब मोदी ”स्टार्ट-अप इंडिया’’ की बात कर रहे हैं और तकनीक की समझ रखने वाला आर्थिक दृष्टि से संपन्न हो रहा यही मध्यम वर्ग उनका सबसे बड़ा समर्थक है।

कुछ महीनों पहले, भारत सरकार के दूरसंचार विभाग ने फेसबुक को निर्देश जारी कर कहा था कि वह अपने उपयोगकर्ताओं से इस प्रश्न पर मतदान करवाए कि विभाग, इंटरनेट डॉट ओआरजी परियोजना को लागू करने पर विचार करे या नहीं। यह भी तब हुआ जब नेट तटस्थता के समर्थकों ने इंटरनेट डॉट ओआरजी का कड़ा विरोध किया। इस निर्देश के बाद फेसबुक ने अपने उपयोगकर्ताओं से गोलमोल सवालों पर मत देने की अपील करना शुरू कर दी। इनमें से कई सवालों का न केवल अर्थ अस्पष्ट था वरन उन्हें पूछे जाने का उद्देश्य भी संदेहास्पद था, जैसे ”क्या आप मुक्त इंटरनेट का समर्थन करते हैं?’’ इन चालबाजिय़ों का मुक्त इंटरनेट के समर्थकों द्वारा पर्दाफाश और विरोध किया जा रहा था परंतु इसी बीच मोदी सरकार ने फेसबुक के साथ आधिकारिक समझौता कर लिया। इस समझौते ने फेसबुक को वैधता दी है और उसे शक्तिशाली बनाया है। इन दिनों वर्तमान सरकार और उसके वैचारिक आकाओं द्वारा विभिन्न तरीकों से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित करने के मुद्दे पर देशभर में बहस और चर्चा चल रही है। ऐसे समय में नियंत्रित इंटरनेट, ब्राह्मणवादी शक्तियों के हाथों में एक ऐसा शक्तिशाली हथियार बन सकता है, जिसका उपयोग वे सार्वजनिक रूप से उपलब्ध सूचना, ज्ञान व विमर्श को नियंत्रित करने के लिए कर सकते हैं।

फारवर्ड प्रेस के नवंबर 2015 अंक में प्रकाशित

लेखक के बारे में

कुमार सुंदरम

कुमार सुंदरम कोअलिशन फॉर न्यूक्लियर डिस्आर्मामेंट एंड पीस में शोधकर्ता हैं

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