मराठी लेखक भालचंद्र नेमाडे को वर्ष 2014 के ज्ञानपीठ पुरस्कार के लिए चुना गया है। नेमाडे का जन्म 1938 में महाराष्ट्र के ओबीसी (लेवा पाटीदार) किसान परिवार में हुआ था। 1963 में केवल 35 वर्ष की आयु में प्रकाशित ‘कोसला’ नामक उपन्यास से उन्हें अपार प्रसिद्धी मिली। सन 1991 में उनकी कृति ‘टीकास्वयंवर’ के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अपने साहित्य को सही मायनों में देशी-देहाती स्वर देने वाले वे माराठी के एकमात्र लेखक है। ब्राह्मणवाद के विरोध के प्रति उनकी संपूर्ण प्रतिबद्धता रही है। राम-कृष्ण, पेशवाई और ब्राह्मणवाद के खिलाफ जितना उन्होंने बोला और लिखा है, उतना शायद ही किसी अन्य मराठी लेखक ने किया होगा। उनका उपन्यास ‘हिन्दू’ इस धर्म की खामियों की तीखी आलोचना प्रस्तुत करता है। उपन्याास के अतिरिक्त कविता और आलोचना के क्षेत्र में भी नेमाडे के योगदान को बहुत प्रतिष्ठा से देखा जाता है। – श्रवण देवरे
इंसानी ज्ञान और इतिहास का दस्तावेज हैं आदिम आदिवासी कलाएं
आदिम जनजातीय समुदायों की कला परंपरा पर केन्द्रित दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन 3-4 फरवरी को रांची में संपन्न हुआ। इस कार्यशाला में राज्य के 12 जिलों से नौ आदिम जनजातीय समुदायों के 34 कलाकारों ने भाग लिया। इसका आयोजन प्यारा केरकेट्टा फाउंडेशन के द्वारा होटवार स्थित रामदयाल मुंडा कला भवन में किया गया।
(फारवर्ड प्रेस के मार्च, 2015 अंक में प्रकाशित )
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