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निशाने पर सोनी सोरी

बस्तर में आदिवासियों के लिए जो भी कुछ करता है, वह पुलिस और प्रशासन के निशाने पर आ जाता है

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सोनी सोरी

घटना 20 फरवरी 2016 की है। छत्तीसगढ़ के आदिवासियों को नि:शुल्क कानूनी मदद मुहैय्या कराने वाली ‘जगदलपुर लीगल ऐड ग्रुप’ की मानवाधिकार कार्यकर्ता एवं वकील शालिनी गेरा और इशा खंडेलवाल को पुलिस के दबाव के कारण जगदलपुर छोडऩा पड़ रहा था। ईशा और शालिनी से मिलने सोनी सोरी जगदलपुर गयीं थीं। घर लौटने के लिए वे रात सवा नौ बजे जगदलपुर से मोटर साइकिल से गीदम के लिए रवाना हुईं। मोटरसाइकिल रिंकी नाम की एक लड़की चला रही थी। जगदलपुर से गीदम की दूरी 85 किलोमीटर है। गीदम से लगभग बीस किलोमीटर पहले, बास्तानार घाटी शुरू होते ही, एक मोटरसाईकिल पर तीन लड़के पीछे से आये और सोनी की मोटरसाईकिल के आगे ले जाकर उन्हें रोक लिया।

लड़कों ने सोनी सोरी के मुंह पर एसिड जैसा ज्वलनशील पदार्थ फेंका और धमकी दी कि ‘तुम मारडूम वाली घटना को मत उठाओ और आज के बाद आईजी साहब के खिलाफ बोलना बंद कर दो। अगर तुम नहीं मानीं तो तुम्हारी बेटी का वो अंजाम करेंगे कि तुम किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहोगी।’ इसके बाद वे तीनों हमलावर वापस जगदलपुर की ओर लौट गए।

सोनी सोरी को उनके परिवारजन गीदम के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र लेकर पहुंचे, जहां डाक्टर ने उन्हें जगदलपुर मेडिकल कालेज रेफर कर दिया। फिलहाल, सोनी सोरी का दिल्ली के अपोलो अस्पताल में इलाज चल रहा है।

सोनी सोरी ने हमले के पीछे छत्तीसगढ़ पुलिस का हाथ बताया है। सोनी सोरी ने बताया कि उन्हें कुछ दिन पहले धमकी भरे पत्र मिले थे, जिनमें पुलिस और सरकार के खिलाफ न बोलने की हिदायत दी गई थी। हालांकि पुलिस ने सोनी सोरी के आरोपों का खंडन किया है और कहा है कि उनके चेहरे पर सिर्फ कालिख पोती गई है।

सोनी सोरी पर हमले के विरोध में आदिवासी व मानवाधिकार संगठनों ने मोर्चा खोल दिया है। छत्तीसगढ़ सरकार और केंद्र सरकार के खिलाफ  बस्तर, रायपुर और दिल्ली समेत देश के विभिन्न शहरों में रैली और धरना-प्रदर्शन किया जा रहे हैं।

देशव्यापी आलोचना के बाद छत्तीसगढ़ सरकार ने सोनी सोरी को ‘वाई’ श्रेणी की सुरक्षा मुहैय्या कराने की बात कही, जिसे सोनी सोरी ने ठुकरा दिया। दिल्ली के अपोलो अस्पताल से जारी अपने बयान में सोनी ने कहा कि ‘मेरी लड़ाई आम आदिवासी की लड़ाई है। अगर सरकार सचमुच कुछ करना चाहती है तो बस्तर के हर आदिवासी की सुरक्षा की गारंटी ले। हड़मा जैसे निर्दोष आदिवासी अगर मारे जाते रहेंगे तो एक सोनी सोरी की विशेष सुरक्षा का क्या औचित्य है।’

सोनी सोरी ने कहा कि ‘जिस बस्तर में 40 लाख आदिवासी असुरक्षित हैं, वहाँ एक सोनी सोरी को सुरक्षा देकर सरकार अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकती। अगर बस्तर को बचाना है तो आलोकतांत्रिक ताकतों को खत्म करने की दिशा मे सरकार पहल करे।’ सोनी सोरी ने कहा कि ‘मैं स्वस्थ होकर फिर पहले की ही तरह, आदिवासी हितों की लड़ाई लडूंगीं।’

इस बीच, बस्तर पुलिस ने सोनी सोरी के बच्चों की सुरक्षा के लिए दँतेवाड़ा में कुछ जवान तैनात किये हैं। इसी दौरान सोनी के घर पर एक और धमकी भरा पत्र मिला, जिसमें लिखा गया है कि ‘अपनी बेटी को गार्ड देकर खुश मत हो। तेरा बेटा भी है और तेरी बहनें भी हैं।’

कौन हैं सोनी सोरी?

सोनी सोरी ने छत्तीसगढ़ के दांतेवाड़ा जिले में बतौर स्कूल टीचर काम किया। सन् 2011 में पुलिस द्वारा यह इल्जाम लगाया गया कि वे नक्सलियों को सूचनाएं उपलब्ध करवाती हैं। सोनी सोरी को दिल्ली में गिरफ्तार कर लिया गया और दांतेवाड़ा पुलिस को सौंप दिया गया।

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हमले के बाद अस्पताल में सोनी सोरी

कोर्ट में पेशी से पहले इन्हें दो दिन की पुलिस हिरासत में रखा गया, जहां एसपी अंकित गर्ग द्वारा उन्हें नंगा किया गया और बिजली के झटके लगाए गए। थर्ड डिग्री टार्चर की वजह से कोर्ट में पहले दिन पेशी के दौरान वे चल भी नहीं पा रहीं थीं। बाद में सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वतंत्र जाँच करवाए जाने पर उनके यौनांग में तीन पत्थर पाए गए।

अंकित गर्ग को भारत सरकार ने 26 जनवरी, 2012 को राष्ट्रपति के पुलिस वीरता पदक से नवाजा, जिसकी कुछ मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने तीखी आलोचना की।

सोनी सोरी को कोर्ट में पेशी के बाद जेल भेज दिया गया। ढाई साल की यातनापूर्ण कैद के बाद सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें स्थाई जमानत प्रदान कर दी। छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा लगाए गए आठ आरोपों में सात झूठे निकले जबकि एक में उन्हें जमानत मिल गई।

वर्तमान में सोनी सोरी छत्तीसगढ़ के आदिवासियों पर हो रहे क्रूर हमलों का विरोध कर आदिवासियों को न्याय दिलाने की दिशा में काम कर रही हैं। बस्तर में फर्जी मुठभेड़ों, आदिवासियों महिलाओं के साथ सुरक्षाकर्मियों द्वारा बलात्कार समेत तमाम आदिवासी उत्पीडऩ के मुद्दों को सोनी सोरी ने राष्ट्रीय स्तर पर उठाया है, जिससे वह छत्तीसगढ़ पुलिस और प्रशासन के निशाने पर हैं।

पिछले दो दशकों से बस्तर के आदिवासी, पुलिस और नक्सलियों के बीच पिस रहे हैं। कभी पुलिस द्वारा तो कभी नक्सलियों द्वारा आदिवासियों को मारने की खबरें अक्सर प्रकाश में आती रहती हैं। भय के कारण हजारो आदिवासी बस्तर छोडऩे पर मजबूर हो गए हैं। बस्तर एक युद्धक्षेत्र बन गया है, जहां पुलिस और नक्सलियों की गोलियां चलती हैं और मरता है सिर्फ आदिवासी।

बस्तर में आदिवासियों के लिए जो भी कुछ करता है, वह पुलिस और प्रशासन के निशाने पर आ जाता है। शायद यहीं कारण है कि सोनी सोरी भी निशाने पर हैं।

 

(फारवर्ड प्रेस के अप्रैल, 2016 अंक में प्रकाशित )

लेखक के बारे में

राजन कुमार

राजन कुमार फारवर्ड प्रेस के उप-संपादक (हिंदी) हैं

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