क्या सच में देश भर की हिन्दुत्ववादी ताकतें अति उत्साह में हैं? यह सवाल इसलिए कि उनके वर्चस्ववादी विचारों और सोच के खिलाफ बोलने वाली हर आवाज को वे दबाने की मुहीम में लगी हैं। उनकी अलग-अलग जमातें या तो बलप्रयोग के द्वारा या स्टेट एजेंसी के दुरुपयोग से तर्कवादी आवाजों को कुचलने में लगी हैं। इस सिलसिले की ताजा कड़ी है, देश के पहले दलित-बौद्ध मीडिया-प्रोफेसर बीपी महेश चंद्र गुरु की गिरफ्तारी।
क्यों हुई गिरफ्तारी
एक साल पहले 3 जनवरी 2015 को आंबेडकरवादी प्रोफ़ेसर महेशचंद्र गुरू ने यू जी सी के एक प्रोग्राम के तहत मैसूर विश्वविद्यालय में शिक्षकों के लिए आयोजित एक विशेष व्याख्यान में ‘मीडिया और मानवाधिकार’ विषय पर बोलते हुए राम (प्रसिद्ध भारतीय मिथकीय चरित्र) की आलोचना की थी। उन्होंने कहा कि ‘राम ने रामायण में मानवाधिकारों का उल्लंघन किया है। राम ने गर्भवती सीता पर शक किया और उनका उत्पीड़न किया। मैं इसे मानवाधिकार के उल्लंघन का प्रसंग मानता हूँ। उन्होंने यह भी कहा कि आज मीडिया राम के तथाकथित आदर्शों का प्रचार कर रही है, जो जनता के लिए ठीक नहीं है।’ कार्यशाला में ही एंथ्रोपोलोजी के अस्सिस्टेंट प्रोफ़ेसर अप्पाजी गौड़ा ने उनका विरोध किया। विश्वविद्यालय के एक छात्र दिलीप कुमार के अनुसार अप्पाजी ने ही बाद में करुनाडू सर्वोदय सेना के रविशंकर को उकसाकर उनके खिलाफ उसी दिन मुकदमा दर्ज करा दिया। रियल स्टेट के कारोबारी रविशंकर ने 3 जनवरी, 2015 को जयलक्ष्मीपुरम थाने में मुकदमा दर्ज करवाया। इस बीच प्रोफ़ेसर गुरु ने हैदराबाद विश्वविद्यालय के दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्मह्त्या के बाद प्रधानमंत्री नरेंद मोदी और मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी के खिलाफ भी मोर्चा खोला था, जो मोदी समर्थकों और ब्राह्मणवादी ताकतों को नागवार गुजर रहा था। इसी पृष्ठभूमि में मैसूर की एक अदालत ने उनकी गिरफ्तारी का आदेश दे दिया।
उनकी गिरफ्तारी तब हुई, जब वे अदालत में उसी मुक़दमे की सुनवाई के दौरान उपस्थित हुए। अदालत इस बात पर भी नाराज थी कि इसके पहले दो तारीखों पर वे अदालत के सामने नहीं आये थे। जबकि अपनी अकादमिक व्यस्तता के कारण वे उन दो तारीखों पर उपस्थित नहीं हो सके थे।
कौन हैं प्रोफ़ेसर गुरु
प्रोफ़ेसर बी पी महेशचंद्र गुरू मीडिया के पहले दलित –बौद्ध प्रोफ़ेसर हैं, जिन्होंने पिछले तीन दशकों से न सिर्फ पत्रकारिता पढ़ाने का काम किया है, बल्कि कर्नाटक और देश के महत्वपूर्ण प्रशासनिक पदों पर भी रहे हैं। वे कर्नाटक राज्य सेवा आयोग तथा लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) में सदस्य रहे हैं तथा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की समितियों में भी शामिल रहे हैं। अंग्रेजी और कन्नड़ में उनकी 10 से अधिक किताबें प्रकाशित हुई हैं। प्रोफ़ेसर गुरु दलित –बहुजन चेतना से जुड़े आन्दोलनों और विमर्शों में शामिल रहे हैं। पिछले दिनों विचार और तर्क के खिलाफ हुए हिंदुत्ववादी हमलों के खिलाफ उन्होंने अपनी आवाज हमेशा बुलंद की है। अभी 13 जून, 2016 को उन्होंने फॉरवर्ड प्रेस में दलित चिंतक कांचा आयलैया के खिलाफ हुए मुक़दमे की निंदा करते हुए एक लेख भेजा था, तब उन्हें कहाँ पता था कि वे भी दो –चार दिनों के ही अंदर हिन्दुत्ववादी ताकतों के ही शिकार होने वाले हैं- गिरफ्तार किये जाने वाले हैं।
महिषासुर आंदोलन के साथी
प्रोफ़ेसर गुरु महिषासुर को बौद्ध शासक मानते रहे हैं। उनका मानना रहा है कि मैसूर का नाम महिषासुर के नाम पर ही रखा गया है। उनके अनुसार ‘‘245 ईसा पूर्व बौद्ध सम्राट अशोक ने एक बौद्ध भिक्षु महादेवा को कर्नाटक के ‘महिषामंडल’ में भेजा था, जो बाद में महिषा नामक शासक हुआ और महिषामंडल राज्य की स्थापना की। उसके शासन के प्रमाण के लिए इस क्षेत्र में कई ऐतिहासिक साक्ष्य उपलब्ध हैं। हालांकि चामुन्डेश्वरी ( दुर्गा) के द्वारा उसकी हत्या का कोई प्रमाण नहीं है। उसे ब्राह्मणवादियों ने असुर (राक्षस) बना दिया।’’ पिछले दिनों प्रोफ़ेसर महेश गुरु और उनके अन्य साथियों ने मैसूर में ‘महिषासुर शहादत दिवस’ का आयोजन भी किया था। महिषासुर को बौद्ध बताते हुए प्रोफ़ेसर महेश चंद्र गुरु का एक विस्तृत आलेख फॉरवर्ड प्रेस के सलाहकार संपादक प्रमोद रंजन के संपादन में शीघ्र प्रकाश्य किताब “महिषासुर : एक मिथक का अब्राहमणीकरण” में संकलित है।
बुद्धिजीवियों ने की निंदा
लेखक कांचा आयलैया, मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़, अर्थशास्त्री जयती घोष, समाजशास्त्री शम्शुल इस्लाम, राम पुनियानी, आनंद स्वरुप वर्मा, कुमार प्रशांत, एस आनंद, रतन लाल, लेखक-आलोचक कँवल भारती, प्रयाग शुक्ल, राजेश जोशी, मंगलेश डबराल, जीतेंद्र भाटिया, सुधीर सुमन, बजरंग बिहारी तिवारी, कृपाशंकर, फरीद खान, अमलेंदु उपाध्याय, संजय जोठे, सामाजिक कार्यकर्ता विद्या भूषन रावत, अनुराग मोदी प्रीतम सिंह, सुरेश कुमार,अनंत गिरी, सत्या,सिंथिया स्टीफेन,निस्सीम मन्नादुकेरण, गिरिजेश्वर प्रसाद, बादल सरोज, नवल कुमार सहित अनेक बुद्धिजीवियों ने महेशचंद्र गुरू की गिरफ्तारी की निंदा की है।
(महिषासुर आंदोलन से संबंधित विस्तृत जानकारी के लिए पढ़ें ‘फॉरवर्ड प्रेस बुक्स’ की किताब ‘महिषासुर: एक जननायक’ (हिन्दी)।घर बैठे मंगवाएं : http://www.amazon.in/dp/819325841X किताब का अंग्रेजी संस्करण भी शीघ्र उपलब्ध होगा )