
मैसूर विश्वविद्यालय के मीडिया प्रोफ़ेसर बीपी महेशचंद्र गुरू की गिरफ्तारी, उनकी जमानत याचिका को खारिज किये जाने और फिर जमानत मिलने की घटनाओं के बीच उनके विश्वविद्यालय की भूमिका तटस्थ नजर आ रही थी। (पढ़ें प्रोफ़ेसर गुरू की गिरफ्तारी के पीछे की कहानी) विश्वविद्यालय ने कानूनन बाध्यता के हवाले से पिछले सोमवार (20.6.2016) को उन्हें निलंबित करने का निर्णय लिया था, इस आशय की सूचना विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफ़ेसर रंगप्पा ने फॉरवर्ड प्रेस से बातचीत में दी थी। ( पढ़ें: संकट में रामद्रोही गुरू)
लेकिन मैसूर विश्वविद्यालय में क्या सबकुछ वैसा ही था, जैसा सतह पर दिख रहा था, बिलकुल नहीं। 20 जून को सिंडिकेट के द्वारा निलंबन के निर्णय को जब विश्वविद्यालय ने 24 जून को अपने एक आदेश के माध्यम से अमली जामा पहनाया तब सतह के भीतर की कहानी भी स्पष्ट हो गई। 24 जून को ही प्रोफ़ेसर गुरू को न्यायालय से जमानत मिल थी।
जमानत के बाद भी जारी निलंबन
कानूनन जिस तरह जेल में होने के कारण उन्हें निलंबित किया गया था, उसी तरह जेल से बाहर आने के बाद उनका निलंबन वापस लिया जाना चाहिए था। लेकिन हुआ ठीक इसके विपरीत। 24 जून को ही उन्हें जमानत मिली और 24 जून को ही उनके निलंबन का आदेश जारी हुआ, साथ ही उनके खिलाफ जांच का आदेश भी जारी हुआ।
राम से ज्यादा मोदी –स्मृति की आलोचना महंगी

निलंबन के आदेश पत्र के मजमून से ही स्पष्ट है कि विश्वविद्यालय ने ‘भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी तथा कुलपति के पद पर टिप्पणी करने के कारण प्रोफ़ेसर गुरू को निलंबन का दंड दिया।’ जनवरी 2016 में हैदराबाद विश्वविद्यालय के दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या के खिलाफ एक कार्यक्रम में प्रोफ़ेसर गुरू ने स्मृति ईरानी और नरेंद्र मोदी को दलित विरोधी बताया था, तथा इसी प्रसंग में उन्होंने हैदराबाद विश्वविद्यालय सहित विश्वविद्यालयों के कुलपतियों पर टिप्पणी की थी। अपने निलंबन आदेश में विश्वविद्यालय ने यह भी लिखा है कि प्रोफ़ेसर गुरू के सारे बयान को किसी ने रिकार्ड कर ऑडियो क्लिप भी बनाया है। गौरतलब है कि विश्वविद्यालय ने पिछले छः महीने में इस प्रसंग में कोई कार्रवाई नहीं की और अब अपने निलंबन कार्रवाई के लिए इसे पर्याप्त आधार बना रही है। विश्वविद्यालय के कुलपति से जब इस बावत फॉरवर्ड प्रेस ने पूछा तो उन्हें मामले को रजिस्ट्रार की ओर यह कहते हुए टाल दिया कि वे क़ानून के प्रोफसर हैं, वही बताएँगे।
भाजपाई कुलाधिपति को खुश करने की कोशिश
प्रोफसर महेश गुरू ने विश्वविद्यालय की कार्रवाई को बदले की भावना से प्रेरित बताया। उन्होंने कहा कि ‘रोहित वेमुला के मसले पर बात करते हुए मैंने देश के विश्वविद्यालयों में राजनीतिक पहुँच के भ्रष्ट व्यक्तियों को कुलपति बनाये जाने पर टिप्पणी की थी। मेरा बयान अपने नियोक्ता विश्वविद्यालय से सम्बंधित नहीं था इसलिए सर्विस कंडक्ट के तहत भी नहीं आता।’ गुरु ने आरोप लगाया कि मैसूर विश्वविद्यालय के कुलपति के द्वारा भ्रष्टाचार (तथाकथित) के खिलाफ वे समय –समय पर विश्वविद्यालय के भीतर ही बोलते रहे हैं। पिछले दिनों कुलपति रंगप्पा के खिलाफ न्यायिक जांच हुई थी, जिसकी रिपोर्ट कुलाधिपति और कर्नाटक के गवर्नर के पास आगे की कार्रवाई के लिए लंबित है।’ अब सवाल है कि क्या कुलपति रंगप्पा इसी जांच पर कार्रवाई से बचने के लिए कहीं प्रोफ़ेसर गुरू पर कार्रवाई का सहारा तो नहीं ले रहे? निलंबन के लिए नरेंद्र मोदी और स्मृति ईरानी की आलोचना को आधार बनाकर भाजपा के द्वारा नियुक्त गवर्नर को खुश तो नहीं करना चाह रहे? राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से अपने समाजिक जीवन की शुरुआत करने वाले गुजरात के महत्वपूर्ण भाजपा नेता विजूभाई वाला 2014 में कर्नाटक के राज्यपाल बनाये जाने के पूर्व गुजरात विधानसभा के अध्यक्ष थे।
कांग्रेस शासित राज्य में मोदी की आलोचना पर पाबंदी
प्रोफ़ेसर गुरु के निलंबन के लिए नरेंद्र मोदी और स्मृति ईरानी की आलोचना को आधार बनाये जाने से एक सहज सवाल भी खडा हुआ है कि क्या कांग्रेस शासित राज्यों में भी नरेंद्र मोदी और स्मृति ईरानी की नीतियों की आलोचना तर्कवादियों और दलित चिंतकों को मंहगी पड़ेगी? इस सवाल के जवाब के लिए फॉरवर्ड प्रेस ने राज्य के महत्वपूर्ण दलित नेता और लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खडगे से संपर्क किया तो उनकी ओर से उनके सहयोगी का जवाब आया कि वे इस पर अपनी राय के लिए खुद सम्पर्क कर लेंगे। कर्नाटक में कांग्रेस के राज्य अध्यक्ष और प्रदेश के गृहमंत्री डा.जी परमेश्वर के पी एस ने बताया कि वे देश से बाहर हैं, जबकि पार्टी के प्रवक्ता जी सी चंद्रशेखर ने मामले की जानकारी व्हाट्स अप पर माँगी और रिपोर्ट लिखे जाने तक कोई जवाब नहीं भेजा। राज्य के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया भी बहुजन नेता के रूप में जाने जाते हैं। (पढ़ें सिद्धरमैया से संबंधित रिपोर्ट)