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आम्‍बेडकर के बहाने मोदी का प्रचार कर रही सरकार

केन्द्र सरकार बाबा साहेब आंबेडकर के नाम पर किए जाने वाले जिन कार्यक्रमों का आयोजन कर रही है, उनका नामकरण केवल और केवल हिन्दुवादी/ब्राह्मणवादी संस्कृति के आधार पर कर रही है। जैसे बाबा साहेब के नाम पर पंच तीर्थ की स्थापना करना, और न जाने क्या-क्या

Calender kaa last pageबीजेपी शासित केन्द्र और राज्य सरकारें, जहाँ बाबा साहेब आंबेडकर की 125वीं जयंती के अवसर पर नाना प्रकार के कार्यक्रम आयोजित कर बाबा साहेब के चहेतों को लुभाने का प्रयोग कर रही हैं, वहीं दूसरी ओर बीजेपी संघ के इशारे पर बाबा साहेब की मूल विचारधारा को किनारे लगाने के काम में लगी है।

सरकार चाहे जिस भी राजनीतिक दल की रही हो, सबने बाबा साहेब की माला जपकर सत्ता में बने रहने का या सत्ता हासिल करने का रास्ता अपनाया प्रधानमंत्री रहे माननीय वी. पी सिंह ने बाबा साहब की जन्म-शताब्दी वर्ष के दौरान “ डा. आंबेडकर प्रतिष्ठान” की स्थापना की, जो पहले 25, अशोक रोड, नई दिल्ली पर स्थित था। बाद वाली सरकार ने इसे जनपथ रोड पर स्थांतरित कर दिया। यू.पी.ए.  सरकार की मंत्री मीरा कुमार ने तो आंबेडकर प्रतिष्ठान को दिल्ली से बाहर स्थांतरित करने का मन तक बना लिया था, किंतु जनता के आक्रोश के चलते फैसला वापिस लेना पड़ा।
वी. पी सिंह सरकार की तर्ज पर वर्तमान भाजपा सरकार के मुखिया नरेंद्र मोदी  ने सत्ता में आते ही बाबा साहेब आंबेडकर की 125वीं वर्षगांठ मनाने का फरमान जारी कर दिया था। वी. पी. सिंह की सरकार ने बाबा साहेब के नाम पर बहुत सा जमीनी काम किया, लेकिन मोदी और उनके चहेते केवल और केवल बयानी जमा-खर्च कर रहे हैं।

बाबा साहेब की 125वीं वर्षगाँठ पर प्रत्येक वर्ष की तरह डा. आंबेडकर प्रतिष्ठान द्वारा तैयार किए जाने वाले वार्षिक कलेंडर को इस वर्ष मिनिस्टरी आफ सोशल जस्टिस एंड एम्पावरमेंट , गवर्मेंट आफ इंडिया द्वारा प्रकाशित किया गया है। वर्ष 2016 से पूर्व छपने वाले कलेंडर पर कहीं भी किसी भी प्रधान मंत्री का फोटो नहीं होता था। इस बार छापे गए कलेंडर पर नरेंद्र मोदी का फोटो इस प्रकार छापा गया है कि आपकी नजर बाबा साहेब की फोटो पर पड़ने से पहले मोदी की फोटो पर ही पड़ेगी।

एक और कमाल की बात कि गत वर्षों में छपने वाले कलेंडर्स में कलेंडर के हर पन्ने पर बाबा साहेब की फोटो के नीचे समाज और मानव-जाति के हित में जारी उनकी सूक्तियों का प्रकाशन किया जाता था। किंतु वर्ष 2016 के कलेंडर के किसी भी पेज पर बाबा साहेब की एक भी सूक्ति प्रकाशित नहीं की गई है। इस प्रकार तो किसी भी व्यक्ति की कितनी ही जय-जयकार की जाय सब कुछ व्‍यर्थ चला जाएगा, यदि उसकी विचारधारा और दृष्टिकोण का प्रचार और प्रसार न किया जाए।सूक्तियाँ आदर्श और प्रेरणास्पद होती हैं, राह दिखाती हैं, उत्साह बढ़ाती हैं और जीवन को रोशनी से भर देती हैं। सूक्तियों से दिल और दिमाग के जाले साफ होते हैं, नई दृष्टि मिलती है। इस अर्थ में समाज के उद्धार में रत तमाम लोगों के बीच डा. अम्बेडकर की सूक्तियाँ परेणाप्ररेक होती हैं।

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तस्वीर में डा. आंबेडकर भारत के पहले कानून मंत्री के रूप में शपथ लेते हुए

प्रतिष्ठान  के कलैंडर में दी जाती रही डा. आंबेडकर की सूक्तियाँ असामाजिक तत्वों पर करारा प्रहार तो होती ही हैं, साथ ही उनमें कुकृत्यों से उबरने की विधि भी निहित है। समाज में व्याप्त गैरबराबरी को लेकर उनमें नई दार्शनिकता और अनुभव है। इनमें दर्द भी है, दर्द से निपटने का सलीका भी है। डा. आंबेडकर की सूक्तियों की विशेषता यह है कि उनके सारे दृष्टांत विकृत भारतीय समाज से लिए गए हैं या फिर सामान्य जीवन से। डा. आंबेडकर का हृदय समाज के उत्थान के लिए कल्पना अथवा किसी उड़ान की अपेक्षा नहीं रखता। वे संसार के सच्चे और प्रत्यक्ष व्यवहारों की सच्चाई में से जन्मी सूक्तियां हैं।

भाजपा सरकार के ऐसा करने से बाबा साहेब आंबेडकर की 125वीं वर्षगांठ मनाने के पीछे भाजपा और आर. एस. एस. की मंशा का खुलासा हो गया। अब बारी है आंबेडकर वादियों की कि वो इस साजिश से कैसे निपटते हैं? एक और उदाहरण और कि भाजपा और संघ द्वारा”समानता” के स्थान पर “समरसता” शब्द का प्रयोग निरंतर किया जा रहा है, जो आंबेडकर की विचारधारा का नितांत विरोधी है। क्या इससे यह सिद्ध नहीं होता कि बीजेपी और संघ परिवार “समरसता” का निरंतर राग अलापकर बाबा साहेब के” समता, समानता और मैत्री” के सूत्र के मूल भाव को जंमीदोज़/ दबाने की कोशिश में लगी है ?

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2016 में डा. आंबेडकर प्रतिष्ठान द्वारा प्रकाशित कैलेण्डर का एक पन्ना : तस्वीर में डा. आंबेडकर अपने विद्यार्थी दिनों में

बात पुरानी है, किंतु यहाँ उसका उल्लेख करना मुझे जरूरी जान पड़ता है। एक बार मैं स्वयं लोदी रोड पर आयोजित एक समारोह में मान्यवर कांशीराम जी से एक पत्रकार की हैसियत से मिला था।मैंने उनसे सवाल किया था कि, बाबा साहेब की कर्मभूमि रहे महाराष्ट्र (नागपुर) को छोड़कर आपने राजनीति के लिए उत्तर प्रदेश को ही क्यों चुना। उनका जवाब था, “इसलिए, क्योंकि महाराष्ट्र (नागपुर) में बाबा साहेब का भगवाकरण हो चुका है। वहाँ शिवसेना और आर.आर.एस. ने बाबा साहेब आंबेडकर को भगवान बना दिया है, वहाँ दलित आंदोलन लगभग मर सा गया है। उत्तर प्रदेश में भी रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया जैसे समाप्त हो चुकी है। बी पी मौर्य काँग्रेस में चले गए, आंदोलन थम गया। उत्तर प्रदेश ही एक ऐसा प्रदेश शेष रहा है जहाँ बाबा साहेब के नाम परदलित जागरुक हैं, किंतु उसे सही प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया, इसलिए मैंने बाबा साहेब के सपने को पूरा करने का सिलसिला उत्तर प्रदेश से शुरू किया है, और कुछ नहीं।”

आज उनकी बात सिद्ध होती दिख रही है। केन्द्र सरकार के मुखिया मोदी जी बार-बार बाबा साहेब की 125वीं जयंती का राग तो अलाप रहे हैं, किंतु भाजपा और संघ परिवार बाबा साहेब आंबेडकर को भगवान घोषित करके ठीक वैसे ही फायदा उठाना चाहती है जैसे एक मुसलमान साईं बाबा को मुसलमानों के हाथ से खींच कर अपने पाले में कर लिया।और धन कमाने का जरिया बना लिया। मेरे इस तर्क को ऐसे भी जाना जा सकता है कि केन्द्र सरकार बाबा साहेब आंबेडकर के नाम पर किए जाने वाले जिन कार्यक्रमों का आयोजन कर रही है, उनका नामकरण केवल और केवल हिन्दुवादी/ब्राह्मणवादी संस्कृति के आधार पर कर रही है। जैसे बाबा साहेब के नाम पर पंच तीर्थ की स्थापना करना, और न जाने क्या-क्या?

 

लेखक के बारे में

तेजपाल सिंह तेज

लेखक तेजपाल सिंह तेज (जन्म 1949) की गजल, कविता, और विचार की कई किताबें प्रकाशित हैं- दृष्टिकोण, ट्रैफिक जाम है आदि ( गजल संग्रह), बेताल दृष्टि, पुश्तैनी पीड़ा आदि ( कविता संग्रह), रुन-झुन, चल मेरे घोड़े आदि ( बालगीत), कहाँ गई वो दिल्ली वाली ( शब्द चित्र) और अन्य। तेजपाल सिंह साप्ताहिक पत्र ग्रीन सत्ता के साहित्य संपादक और चर्चित पत्रिका अपेक्षा के उपसंपादक रहे हैं। स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त होकर इन दिनों अधिकार दर्पण नामक त्रैमासिक का संपादन कर रहे हैं। हिन्दी अकादमी (दिल्ली) द्वारा बाल साहित्य पुरस्कार ( 1995-96) तथा साहित्यकार सम्मान (2006-2007) से सम्मानित।

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