मैसूर विश्वविद्यालय में पत्रकारिता और जनसंचार के शिक्षक प्रोफेसर महेश चन्द्र गुरु की, जनवरी 2015 में आयोजित एक संगोष्ठी में दिए भाषण के लिए गिरफ़्तारी से यह साबित होता है कि इस समय तार्किक भारतीयों के समक्ष एक बड़ी चुनौती उपस्थित है। हालिया घटनाएँ, जिनमें हाशिये के समुदायों से आने वाले वरिष्ठ शिक्षाशास्त्रियों, प्रोफेसर कांचा आयलैया और प्रोफेसर गुरु पर क्रमशः ब्राह्मण समूहों के हमले और उनकी गिरफ़्तारी शामिल है, से यह पता चलता है कि देश को असली खतरा मुख्यधारा पर काबिज़ उन लोगों से है, जो विचार और वाणी को नियंत्रित करना चाहते हैं। ये तत्त्व सभी जगह हैं – विश्वविद्यालयों व सरकारी विभागों में, निम्न न्यायपालिका में, मीडिया में और अकादमिक दुनिया में।
गिरफ्तारियों, निलंबन, मीडिया ब्लैकआउट, अदालतों से राहत पाने में परेशानियों और प्रोफेसर कांचा आयलैया का ब्राह्मणों का अभूतपूर्व विरोध–इन सब से यह जाहिर है कि भारत के बौद्धिक जगत में स्वतंत्रता के लिए युद्ध का शंखनाद हो चुका है। स्पष्तः देश का सत्ता प्रतिष्ठान, बौद्धिक स्पेस में अपनी प्राधान्य पुनर्स्थापित करने का ज़ोरदार प्रयास कर रहा है।
ब्राह्मणवादी अधिरचना और उसके प्यादों ने इतिहास से सबक नहीं सीखा है। सूचना प्रोद्योगिकी ने संचार का प्रजातांत्रीकरण कर दिया है। और जहाँ तक हमारी जानकारी है, साइबर दुनिया पर किसी समूह का नियंत्रण नहीं है। इसलिए बौद्धिक स्वतंत्रता और उसकी अभिव्यक्ति का केवल एक नतीजा हो सकता है: जीत। अस्थायी पराजयों की सम्भावना तो है परन्तु अंत में विजय अवश्यम्भावी है। ब्राह्मणवादी शक्तियों को चाहिए कि वे इस स्थिति से समझौता कर लें।
मैं प्रोफेसर महेश चन्द्र गुरु की गिरफ़्तारी और उन्हें जेल भेजे जाने की निंदा करती हूँ। मैं विश्वविद्यालय के अधिकारियों का आव्हान करती हूँ कि वे अपने साथी को पूरा समर्थन दें और इस महत्वपूर्ण संस्थान की उच्च बौद्धिक उपलब्धियों और स्वतंत्रता की रक्षा करें।