पिछले 31 अगस्त को महाराष्ट्र के कद्दावर नेता शरद पवार ने यह कह कर हंगामा खड़ा कर दिया कि ‘अनुसूचित जाति-जनजाति अधिनयम क़ानून (दलित उत्पीड़न क़ानून)’ को ख़त्म करने की मांग को गंभीरता से लेना चाहिए, क्योंकि यह सामाजिक प्रतिक्रिया से ऊपजी मांग है।’ दरअसल अहमदनगर जिले के कोपर्डी में 13 जुलाई को एक लड़की पर कथित सामूहिक बलात्कार के बाद उसकी हत्या किये जाने के खिलाफ पूरे महाराष्ट्र में मराठा समुदाय लाखों की संख्या में सड़क पर उतर रहा है। महात्मा फुले, डा.आंबेडकर को केंद्र में रखकर किये जा रहे इस आंदोलन (शांति मोर्चा) की अन्य मांगों के साथ एक मांग है ‘अनुसूचित जाति-जनजाति अधिनयम क़ानून (दलित उत्पीड़न क़ानून)’ को ख़त्म करना।
इस बीच महाराष्ट्र ओबीसी संगठन के अध्यक्ष प्राध्यापक श्रवण देवेरे ने बयान जारी करते हुए हालांकि इस क़ानून को ख़त्म किये जाने की जगह उसके विस्तार की मांग की है। श्रवण देवरे ने मांग की है कि इस क़ानून का विस्तार अतिपिछड़ी दस्तकार जातियों तक हो। श्रवण देवरे ने बयान जारी करते हुए कहा,’ गांवों में अतिपिछड़ी दस्तकार जातियों की स्थिति दयनीय है। उनके साथ जातीय भेदभाव उत्पीड़न ग्रामीण इलाकों का सच है। औद्योगीकरण के कारण उनका रोजगार भी समाप्त हो चुका है। उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति के कारण ग्रामीण सवर्ण उनका जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल कर अपमान करते हैं।

देवरे के अनुसार, “डा. आंबेडकर ने कहा था कि शिक्षा के प्रचार-प्रसार के कारण सभी जातियां शिक्षित बनेंगी और जातीय द्वेष नष्ट हो जाएगा। उसी प्रकार स्वतंत्रता के पश्चात शासक जातियां अपनी शाहू महाराज और सयाजी राव महाराज की पुरोगामी विरासत जारी रखेंगे, इस विश्वास के कारण बाबा साहेब आंबेडकर ने संविधान बनाते समय एट्रोसिटी एक्ट का उसमें समावेश नहीं किया, लेकिन शासक जातियों ने प्रत्यक्ष व्यवहार में बाब साहेब के विश्वास को तोड़ने का काम किया। जातीय अन्याय और अत्याचारों के बढ़ जाने पर 9 सितंबर 1989 को तत्कालीन प्रगतिशील प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने दलित और आदिवासी जाति-जनजातियों की सुरक्षा के लिए जातीय अत्याचार विरोधी क़ानून के रूप में यह क़ानून लागू किया। आज वीपी सिंह प्रधानमंत्री होते तो इस क़ानून की सुरक्षा दस्तकार जातियों तक भी विस्तार पा जाती।“
फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्त बहुजन मुद्दों की पुस्तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्य, सस्कृति व सामाजिक-राजनीति की व्यापक समस्याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +919968527911, ईमेल : info@forwardmagazine.in