भारत में जो भी महान लोग पैदा होते हैं, ब्राह्मण उन्हें अपनी संतान कहने का कोई न कोई कारण ढूंढ ही लेते हैं- इस जन्म की बात घोषित करें या पूर्वजन्म की। यह जमात हिन्दू को मुसलमान और मुसलमान को हिन्दू बनाने में तनिक भी देर नहीं करती। ‘साईं’ मुसलमान थे उन्हें अपना ईष्ट बना लिया और हो गई पौबारह। वर्ष भर में इतना दान किसी और देवता के नाम पर नहीं आता, जितना साईं बाबा के मन्दिर पर आता है।
पिछले 21 अगस्त को उत्तरप्रदेश के पीलीभीत में ब्राहमण चेतना मंच के कार्यक्रम में भाजपा के राज्यसभा सांसद शिव प्रताप शुक्ल ने अपने संबोधन में कहा, “बाबा साहेब आंबेडकर दलित नहीं थे, वे सनाढ्य ब्राह्मण थे। वे पंडित दीनदयाल उपाध्याय से प्रेरित थे, उन्होंने लोगों को उपर उठाने का काम किया, इसलिए उन्होंने संविधान लिखा। उनका नाम आंबेडकर नहीं था, उनका नाम था भीमराव, लेकिन अब उन्हें बाबा साहब आंबेडकर कहा जाता है।” बीजेपी के राज्यसभा सांसद शिव प्रताप शुक्ल का यह बयान यूँ ही नहीं आया होगा, अपितु इस बयान के पीछे बाबा साहेब के ब्राह्मणीकरण की बू आती है।
उन्होंने बसपा का नाम लिए बिना निशाना साधते हुए आगे कहा कि ‘इस देश में ब्राह्मणों ने इतिहास रचा था, लेकिन आज यहां आंबेडकर के नाम पर राजनीति होती है। जरा भी कुछ हो जाता है तो दंगे शुरू हो जाते हैं। लेकिन आंबेडकर का नाम भीमराव न कहकर बाबा साहब आंबेडकर कहने वाले लोगों से पूछना चाहता हूं कि भीमराव को उनकी प्राथमिक शिक्षा दिलाने का काम किसने किया था, उन्हें यूरोप में शिक्षा दिलाने का काम किसने किया था। भीमराव अपने नाम के आगे आंबेडकर की उपाधि लगाए थे, यह उनका नाम नहीं था।’
सांसद शिव प्रताप शुक्ल के इस बयान से स्पष्ट हो जाता है कि उनको बाबा साहेब के जीवन के बारे में कुछ भी पता नहीं है। जब उन्हें इतना ही पता नहीं है कि बाबा साहेब की प्राथमिक और उच्च शिक्षा दिलाने के पीछे कौन-कौन लोग रहे तो उन्हें और क्या पता होगा। उनका यह बयान हवा में पत्थर उछालने जैसा ही है। बिना सिरपैर की बयानबाजी करना ही ब्राह्मणवादियों की सबसे बड़ी खूबी है, जिसकी जाल में अज्ञानी लोग आराम से फंस जाते हैं।
आरएसएस और अब उसके द्वारा पोषित भाजपा का यह कोई पहला अवसर नहीं है कि जब उसने किसी न किसी के जरिए बाबा साहेब को अपने पाले में करने और अनुसूचित जातियों में फूट डालने का प्रयास किया है, ‘राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ’ परिवार पहले भी ऐसे कार्य कर चुका है। संघ के सुरुचि प्रकाशन, झन्डेवालान द्वारा प्रकाशित डा. कृष्ण गोपाल और श्रीप्रकाश द्वारा संपादित पुस्तक “राष्ट्र पुरूष: बाबा साहब डा. भीमराव अम्बेडकर” में अनेक ऐसे झूठे प्रसंग है। इन प्रसंगों के जरिए बाबा साहब को पूरा-का-पूरा सनातनी नेता, गीता का संरक्षक, यज्ञोपवीत कर्त्ता, महारों को जनेऊ धारण कराने वाले के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो बाबा साहब के प्रारंम्भिक जीवन काल के हैं। दुःख तो यह है कि संदर्भित पुस्तक के रचियता ने 1929 और 1949 के बीच के वर्षों पर कोई चर्चा नहीं की है जबकि बाबा साहब का मुख्य कार्यकारी दौर वही था। पुस्तक के लेखक ने सबसे ज्यादा जोर बाबा साहब को मुस्लिम विरोधी सिद्ध करने पर लगाया है, जो दुरग्रह पूर्ण कार्य है। इतना ही नहीं, डा. कृष्ण गोपाल के मन का मैल पेज 5 पर उल्लिखित इन शब्दों में स्पष्ट झलकता है– “एक अपृश्य परिवार में जन्मा बालक सम्पूर्ण भारतीय समाज का विधि-विधाता बन गया। धरती की धूल उड़कर आकाश और मस्तक तक जा पहुँची”। इस पंक्ति का लिखना-भर ही सीधे-सीधे बाबा साहेब का अपमान करना है, और कुछ नहीं। इन पंक्तियों में पूरा का पूरा मनुवाद भरा पड़ा है।
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