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मायावती, लालू प्रसाद और राज्यसभा : काल्पनिक सवाल और हकीकत

बसपा प्रमुख मायावती के सितारे गर्दिश में हैं। सियासी गलियारे में उनके राजद प्रमुख लालू प्रसाद के सहारे राज्यसभा में जाने की खबर चर्चा बटोर रही है। लेकिन राजद प्रवक्ता ने साफ़ किया कि उनकी पार्टी का इस खबर से कोई लेना-देना नहीं है। हवाई खबरें चलायी जा रही हैं

बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती अपने राजनीतिक जीवन के विषमतम दौर से गुजर रही हैं। इसकी एक वजह यह भी है कि उनके पास आज इतने भी विधायक नहीं हैं कि वे एकबार फ़िर राज्यसभा जा सकें। उल्लेखनीय है कि वर्ष 1989 में राजनीति में सक्रिय होने के बाद यह पहला मौका है जब मायावती के पास यह सवाल है। अबतक वे यूपी विधानसभा और विधानपरिषद के अलावा लोकसभा व राज्यसभा की सदस्य रह चुकी हैं। वैसे यह भी महत्वपूर्ण है कि राज्यसभा की सदस्यता के लिए चुनाव अगले वर्ष यानी वर्ष 2018 के अप्रैल माह में होने हैं। वहीं दूसरी ओर यह खबरें भी चलायी जा रही हैं कि राष्ट्रीय जनता दल के सहयोग से इस बार मायावती राज्यसभा जा सकती हैं।

जबकि राजद खेमे के लोग इस तरह की चर्चा को सिरे से खारिज करते हैं। राजद के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रोफ़ेसर मनोज झा के मुताबिक पार्टी में इस विषय पर किसी तरह की चर्चा नहीं हुई है। विभिन्न मीडिया संस्थानों (फ़ारवर्ड प्रेस नहीं) के द्वारा फ़ैलायी जा रही खबर के विपरीत राजद प्रवक्ता ने साफ़ किया कि उनकी पार्टी का इस खबर से कोई लेना-देना नहीं है। हवाई खबरें चलायी जा रही हैं।

उल्लेखनीय है कि इस वर्ष के आरंभ में यूपी में हुए विधानसभा चुनाव में मायावती की पार्टी 87 विधायकों वाली मुख्य विपक्षी पार्टी से बदलकर अब केवल 19 विधायकों वाली तीसरे नंबर की पार्टी बनकर रह गयी है। वहीं समाजवादी पार्टी के विधायकों की संख्या 54 है। राज्यसभा में सदस्यता के लिए कम से कम 37 विधायकों का समर्थन आवश्यक होगा। लिहाजा सपा के पास भी केवल एक उम्मीदवार को राज्यसभा भेजने की राजनीतिक हैसियत शेष है। इसके बाद उसके पास 17 विधायकों का समर्थन शेष रहेगा। अब यदि सपा के 17 और बसपा के 19 को जोड़ दें तो विधायकों की संख्या 36 हो जाती है। यानी यदि सपा चाहे तो भी मायावती को अपने बूते राज्यसभा नहीं भेज सकती है। जाहिर तौर पर मायावती को निर्दलीय विधायकों या फ़िर कांग्रेस की सहायता अनिवार्य होगी। यूपी विधानसभा में कांग्रेस के कुल 7 विधायक हैं।

यह तभी संभव है जब बसपा और सपा के बीच मजबुत समझौते हो जायें या फ़िर दोनों का विलय हो जाये। राजद प्रमुख लालू प्रसाद द्वारा हाल के दिनों में देश में भाजपा के खिलाफ़ नये मोर्चे की कवायद के कारण इस संभावना को बल मिलता है। यह भी उल्लेखनीय है कि वर्ष 2009 में जब रामविलास पासवान लोकसभा चुनाव हार गये थे तब उनकी सदस्यता व लुटीयंस इलाके में उनकी हवेली को लालू प्रसाद ने ही उन्हें राज्यसभा भेजकर बचाया था। हालांकि तब श्री पासवान राजद के साथ गठबंधन में थे।

बहरहाल इस पूरे मामले में बहुजन समाज पार्टी के प्रवक्ता उम्मेद सिंह के मुताबिक उन्हें इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि राज्यसभा सदस्यता के मसले पर राजद प्रमुख लालू प्रसाद और बसपा प्रमुख मायावती के बीच कोई सहमति बनी है। पूछने पर उन्होंने कहा कि इस मसले पर या तो श्री प्रसाद कुछ कह सकते हैं या फ़िर बसपा प्रमुख। हालांकि उन्होंने स्वीकार किया कि विधायकों की कम संख्या रहने के कारण बसपा प्रमुख की राज्यसभा सदस्यता को लेकर अड़चनें हैं। वहीं उन्होंने यह भी कहा कि राज्यसभा चुनाव में अभी एक वर्ष शेष है। अभी यह कोई मुद्दा नहीं है।

समाजवादी पार्टी के मुख्य प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी भी मानते हैं कि राजनीति में संभावनायें कभी खत्म नहीं होती हैं। हालांकि मायावती को समर्थन देने के संबंध में पूछे जाने पर उन्होंने कहा इस मामले में पार्टी में कोई चर्चा नहीं हुई है और चूंकि चुनाव अगले वर्ष अप्रैल में होने हैं। इसलिए इस सवाल का कोई मतलब नहीं है।


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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