इक्कीसवीं सदी में राजनीति की परिभाषा भी बदल चुकी है। इसका एक प्रमाण बीते 26 जुलाई को देर रात बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उस वक्त दिया जब रात के डेढ़ बजे वह अपने समर्थक विधायकों के साथ राजभवन पहुंचे और अपना दावा पेश किया। वह भी तब जबकि वयोवृद्ध हो चुके राज्यपाल केसरी नाथ त्रिपाठी अस्वस्थ थे और देर शाम पटना के इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में इलाजरत थे।
हालांकि यह पहला अवसर नहीं है जब देश में आधी रात को इस तरह लोकतंत्र की हत्या की गयी। देश में आपातकाल लागू करने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को आधाी रात को ही तत्कालीन राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद को मजबूर किया था। कल जो बिहार में हुआ वह उसका लघु स्वरूप अवश्य थाा, परंतु वह किसी भी मायने में लोकतंत्र के लिए कम खतरनाक नहीं था। वजह यह कि बिहार की जनता ने वर्ष 2015 में नीतीश कुमार को महागठबंधन के नेता के रूप में चुना और लालू प्रसाद इसमें बड़े साझेदार थे। उस जनादेश का एक और संदेश भाजपा को बिहार की सत्ता से दूर रखने का भी था।
27 जुलाई की रात करीब डेढ बजे कार्यवाहक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी के समक्ष सरकार बनाने का दावा पेश किया। वहीं रात करीब ढाई बजे तेजस्वी यादव ने राजभवन मार्च किया और राज्यपाल से मिलकर अपनी ओर से सरकार बनाने का दावा पेश किया। भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में हुई इस दूसरी काली घटना की शुरुआत बुधवार को करीब 6 बजकर 30 मिनट पर हुई जब नीतीश कुमार ने राजभवन जाकर राज्यपाल को महागठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री के रुप में अपना इस्तीफ़ा सौंपा। दिलचस्प यह कि करीब 3 मिनट के बाद ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुमार को ट्वीट कर बधाई दी।
इस्तीफा देने के बाद दी नैतिकता की दुहाई
करीब बीस महीने तक राजद के साथ सरकार चलाने के बाद बुधवार को राज्यपाल को इस्तीफ़ा सौंपने के बाद नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव पर हमला बोलते हुए कहा कि अब मैं इस सरकार को आगे नहीं चला सकता। उन्होंने बिना तेजस्वी का नाम लिये कहा कि यदि वे इस्तीफ़ा देते तो और ऊंचा उठ सकते थे।
हत्या के अभियुक्त हैं नीतीश : लालू
जवाबी प्रहार राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने प्रेस कांफ़्रेंस करके किया। उन्होंने कहा कि नीतीश कु्मार पर 1991 में बाढ के पंडारक में हत्या का मामला पटना हाईकोर्ट में चल रहा है। उन्होंने कहा कि कथित तौर पर भ्रष्टाचार का मुकदमा अधिक गंभीर है या हत्या का?
आधी रात को हाशिये पर लोकतंत्र
हालांकि इन आरोप-प्रत्यारोपों के बीच नीतीश कुमार ने बाजी मारते हुए अपनी ओर से भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया, जिसे राज्यपाल ने मंजूर करते हुए उन्हें सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर दिया। रातोंरात घटित हुए इस घटनाक्रम के बाद आज (27 जुलाई) की सुबह 10 बजे नीतीश कुमार छठी बाद बिहार मुख्यमंत्री बन गए।
राज्यपाल की भूमिका पर सवाल
इस पूरे मामले में राज्यपाल केसरी नाथ त्रिपाठी की भूमिका अहम रही। दरअसल तेजस्वी ने सबसे बड़ी पार्टी होने के आधार पर राज्यपाल के समक्ष दावा पेश करने के संबंध में मिलने की अनुमति मांगी थी। राजभवन के सूत्रों के मुताबिक तेजस्वी को 27 जुलाई को 11 बजे दिन में समय दिया गया था। दूसरी ओर राज्यपाल ने आनन-फानन में नीतीश कुमार को पूर्व के 5 बजे शाम के बदले सुबह 10 बजे ही शपथ लेने के लिए आमंत्रित कर लिया ।
नीतीश के लिए चुनौतियां बरकरार
बहरहाल, 27 जुलाई को नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री और सुशील कुमार मोदी ने मंत्री के रूप में शपथ ली। लेकिन श्री कुमार के लिए केवल यही अंकगणित काफी नहीं है कि उनके पास 131 विधायकों का समर्थन है। इसमें उनके पास अपने केवल 71 विधायक हैं। दरअसल, इनमें से करीब दो दर्जन विधायक वे हैं जिन्हें टिकट लालू प्रसाद के कहने पर दिया गया था और उनके जीतने का आधार भी लालू प्रसाद का आधार वोट था। इसके अलावा जदयू के अल्पसंख्यक विधायकों में भी नीतीश कुमार के भाजपा के साथ जाने पर असंतोष सामने आ रहा है। जदयू के राज्यसभा सांसद अली अनवर ने खुले तौर पर बगावत कर दी है। उनके अलावा भाजपा के साथ जदयू के नये रिश्ते को लेकर शरद यादव भी नाराज बताये जा रहे हैं।
इस प्रकार नीतीश कुमार के लिए पहली चुनौती तो 28 जुलाई को बहुमत साबित करने की होगी। इसके अलावा एक बड़ी चुनौती उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर है। नीतीश कुमार ने यूपीए के उम्मीदवार को अपना समर्थन देने का एलान कर दिया है। नतीजतन बदले हालात में वे किसका समर्थन करेंगे, इसका खुलासा वे ही करेंगे और इसका भाजपा के साथ नये रिश्ते पर क्या असर होगा, यह भी आने वाला समय ही बतायेगा।
नीतीश कुमार के लिए बड़ी चुनौती अाने वाले दिनों में तब सामने आयेगी जब भाजपा अपने एजेंडे को लागू करेगी। ध्यातव्य है कि नीतीश कुमार ने विश्व योग दिवस जैसे कार्यक्रम का बहिष्कार तो किया ही है। साथ ही गौरक्षा के नाम पर हत्या, दलितों पर अत्याचार व लिंचिंग जैसे मुद्दों पर भाजपा की मुखालफत भी की है। हालांकि नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी के लिए साझे तौर पर सकारात्मकता यह है कि जीएसटी और नोटबंदी जैसे बड़े सवालों पर दोनों एकमत रहे हैं।
नैतिकता और शुचिता को लेकर सवाल
बहरहाल नीतीश कुमार द्वारा रातोंरात पाला बदले जाने के बाद देश भर के बुद्धिजीवियों द्वारा नैतिकता और शुचिता के सवाल उठाये जा रहे हैं। ये सवाल बेमानी नहीं हैं। लेकिन ये सवाल केवल नीतीश कुमार के लिए ही नहीं हैं। वास्तविकता यह है कि लालू प्रसाद भी कटघरे में खड़े हैं। चारा घोटाले में कोर्ट की तारीखों से परेशान लालू केवल यह कहकर नहीं बच सकते हैं कि केंद्र सरकार उन्हें फंसाने को षडयंत्र कर रही है। क्या वे स्वयं अपनी अंतरात्मा से पूछेंगे कि जो उन्होंने किया है, वह नैतिकता पर आधारित था? उन्हें इस सवाल का जवाब भी देना होगा कि विधानसभा चुनाव से पहले सामाजिक न्याय की राजनीति करने के बाद उन्होंने इसे तिलांजलि क्यों दी!
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