गोपीनाथ मुंडे भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेता थे। वे जनता के नेता थे और बहुत लोकप्रिय थे। सामान्यत: लोग भारतीय जनता पार्टी को ब्राह्मण-बनिया पार्टी समझते हैं। गोपीनाथ मुंडे भाजपा के भीतर दलितों-पिछड़ों की आवाज थे। उन्होंने औरंगाबाद स्थित मराठवाड़ा विश्वविद्यालय का नाम बाबासाहेब आम्बेडकर के नाम पर करवाने के लिए हुए नामांतर आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। तब हमारे संगठन ‘दलित पैंथर’ का कहना था कि बाबासाहेब महाराष्ट्र से थे, इसके बावजूद उनके नाम पर राज्य में कोई विश्वविद्यालय नहीं है।
बाबासाहेब आम्बेडकर ने 1946 में ‘पीपुल्स एजुकेशनल सोसायटी’ बनाई और मुम्बई में सिद्धार्थ कॉलेज खोला। वहां बहुत से लड़के पढऩे आते थे। सभी समुदायों से संबंध रखने वाले ये लड़के दिनभर रोजगार करने के बाद शाम को पढ़ाई के लिए आते थे। कुछ ऐसे छात्र भी थे जो सुबह पढ़ाई के लिए आते थे और फिर काम पर चले जाते थे। उसके बाद बाबासाहेब ने औरंगाबाद में कॉलेज खोला, जो कम से कम दो सौ एकड़ जमीन पर था। बाबासाहेब का कहना था कि मराठवाड़ा के लिए एक स्वतंत्र विश्वविद्यालय होना चाहिए। उस समय मराठवाड़ा के सारे कॉलेज हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय के अधीन थे। बाबासाहेब की मांग थी कि मराठवाड़ा के लिए स्वतंत्र विश्वविद्यालय हो। इसलिए हमारे संगठन ने भी मांग रखी कि मराठवाड़ा विश्वविद्यालय का नाम आम्बेडकर विश्वविद्यालय किया जाए। इसके लिए जब आंदोलन चला तो प्रमोद महाजन और गोपीनाथ मुंडे दोनों हमारे साथ जेल गए। उन्होंने इस विचार का पूरा समर्थन किया।

मुंडे के नेतृत्व के कारण ओबीसी समुदाय के बहुत से लोग भाजपा में आए। वे लोगों से मिलने के लिए हरदम तैयार रहते थे। वे पार्टी कार्यकर्ताओं को पत्र भी लिखते थे और फोन भी करते थे। इससे पूरे महाराष्ट्र में उनका जनाधार तेजी से बढ़ा। उनकी छवि सभी समाजों को साथ लेकर चलने वाले नेता की थी। पिछले दिनों महाराष्ट्र की राजनीति में जो परिवर्तन आया उसमें गोपीनाथ मुंडे का बहुत बड़ा योगदान है।
जब मुझे उनके साथ काम करने का मौका मिला तब मुझे पता चला कि उन्हें ग्रामीण इलाकों की बहुत अच्छी समझ थी। किसानों, बेरोजगारों, खेत-मजदूरों, दलितों और आदिवासियों की समस्याओं को वे बहुत अच्छी तरह से समझते थे। वे झोपड़पट्टी से लेकर अकाल तक के संकटों से परिचित थे।
वे एक प्रकार से महाराष्ट्र के सफल सोशल इंजीनियर थे। बहुत बार वे बोलते थे कि अगर अठावले हमारे साथ आते हैं तो मैं उन्हें डिप्टी सीएम का पद देने को तैयार हूं। वे मेरे बारे में बहुत अच्छा सोचते थे। जब वे 2 जून को दिल्ली आए उससे पहले हमारा एक प्रतिनिधिमंडल उनसे मिला और करीब आधा-पौन घंटे हमारी बातचीत हुई।
मुझे लगता है कि गोपीनाथ मुंडे के जाने से भाजपा का बहुत नुकसान हुआ है। भाजपा का ही नहीं बल्कि हमारी ‘महायुती’ के लिए भी यह बड़ा नुकसान है। जब शिवसेना और भाजपा’ एक साथ थीं तो उसे युती कहा जाता था। आरपीआई के साथ आने पर यह ‘महायुती’ हो गई। बहुत सारे लोग हमें मजाक में ‘एटीएम बोलते थे। ‘एटीएम’ यानी अठावलेे, ठाकरे और मुंडे। हम भी बोलते थे कि ‘एटीएम’ आपके सामने है जितना पैसा निकालना है, निकाल लो।
मुंडे के साथ पूरे महाराष्ट्र में हमने माहौल तैयार किया था। गोपीनाथ मुंडे जैसा नेता भाजपा को मिलना बहुत मुश्किल है। ‘महायुती’ के प्रमुख नेता के रूप में उन्होंने बहुत ही अच्छा कार्य किया। उनके प्रति पूरे महाराष्ट्र में आदरभाव था। उनके कार्यकर्ता जगह-जगह पर थे। वे जहां भी जाते थे उनसे मिलने के लिए कार्यकर्ताओं की भीड़ लग जाती थी। मेरे उनके साथ अच्छे संबंध थे। वे कई सभाओं में बोलते थे कि जब हमारी सरकार आएगी तो अठावले जी मंत्री बनेंगे। कांग्रेस ने उनके साथ अन्याय किया है। उनका सामान बाहर निकालकर फेंक दिया। वे कहते थे कि अठावले का सामान जिन्होंने बाहर निकाला, हम उन्हें सत्ता से बाहर निकाल देंगे।
हमें विश्वास ही नहीं हो रहा है कि मुंडे जी नहीं रहे। हमने उनकी मौत की सीबीआई जांच की मांग की है। भाजपा और शिवसेना ने भी यही मांग की है। लोगों में काफी रोष है। उनके जाने से महाराष्ट्र को बहुत बड़ा नुकसान हुआ है।
(फारवर्ड प्रेस के अगस्त 2014 अंक में प्रकाशित)
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