संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘पद्मावती’ को लेकर इस समय राजपूत क्षत्रिय जाति के महिला पुरुष या यूं कहें तो ज्यादा स्पष्ट होगा कि राजा, रानी, राजकुमार तथा राजकुमारियां अत्यधिक क्रोधित एवं आन्दोलित हैं। इनका बढ़-चढ़कर साथ दे रहे हैं हिन्दू राष्ट्र, हिन्दू अस्मिता के स्वयंभू रक्षकगण। ये लोग इस समय भारतीय लोकतन्त्र के स्तम्भों- विधायिका एवं कार्यपालिका पर काबिज भी है। इनमें मुख्य रूप से राजस्थान की मुख्यमन्त्री वसुन्धरा राजे सिन्धिया, मध्य प्रदेश के मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान, पंजाब के मुख्यमन्त्री कैप्टन अमरेन्दर सिंह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ एवं उ.प्र. के उपमुख्यमन्त्री केशव प्रसाद मौर्य है। इनके साथ कई मन्त्री, सांसद एवं विधायक भी ‘पद्मावती’ फिल्म को बैन करने की मांग कर रहे हैं। फिल्म की नायिका को नाक काटने की धमकी एवं गोली मारने वाले को एक करोड़ एवं निर्माता संजय लीला भंसाली का सर काटने वाले को 10 करोड़ रुपये, ईनाम देने की घोषणा भी राजपूत-क्षत्रिय जाति के नेताओं की तरफ से की गयी है। ‘करणी सेना’ ने तो संजय लीला भंसाली के साथ फिल्म की सूटिंग के समय हाथापायी भी की थी। इन घटनाओं के बरक्स फिल्म के निर्माता, मीडिया एवं फिल्म की अभिनेत्री दीपिका पादुकोण की तरफ से सफाई देने का अभियान चलाया जा रहा है और कहा जा रहा है कि राजपूतों-क्षत्रियों-राजवाड़ों की आन-बान-शान से कहीं भी यह फिल्म छेड़छाड़ नहीं करती है, बल्कि उनके आन-बान-शान को बढ़ाती ही है। साथ ही साथ निवेदन भी किया जा रहा है कि हे राजवंशी जन्! कुपित न हों, कृपया पहले फिल्म देखें, फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिससे हम आपके क्रोध का भाजन बनेंगे, फिल्म देखने के पश्चात् आपका क्रोध शान्त हो जायेगा, ऐसा हमारा पूर्ण विश्वास है। फिलहाल, फिल्म का बढ़ता विरोध, सेंसर बोर्ड की झिड़की और फिल्म से जुड़े व्यक्तियों को मिलती धमकियों के बीच फिल्म निर्माता ने फिल्म की रिलीज तिथि 01 दिसम्बर 17 को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया है।

पदमावती फिल्म का पोस्टर
लोकतन्त्र में विरोध करना एवं किसी भी मुद्दे से सहमत या असहमत होना किसी भी नागरिक का अधिकार होता है। लेकिन जिस प्रकार राजवंशी क्षत्रिय पद्मावती फिल्म को लेकर आक्रोशित है तथा कानून हाथ में लेने को आतुर हैं उससे तो यही प्रतीत होता है कि राजवंशी क्षत्रिय अपने लोकतान्त्रिक अधिकारों को नहीं बल्कि 1947 के पूर्व रजवाड़ों को मिले अधिकारों का उपभोग करना चाहते हैं। अपने आप को राजा के रूप में देखना चाहते हैं जो लोकतन्त्र के लिए बेहद खतरनाक प्रवृत्ति है। आइये जरा इनके दावे और तर्कों पर विचार करें। राजवंशियों का कहना है रानी पद्मावती हमारे कुल की माता हैं और फिल्म में इनकी भूमिका के साथ छेड़-छाड़ की गयी है। इस सन्दर्भ में पहले यह समझना होगा कि ‘इतिहास’ में रानी पद्मावती या रानी पद्मिनी जैसे किसी पात्र का कोई प्रमाण नहीं मिलता है। इतिहास में केवल इतना ही दर्ज है कि सन् 1303 में सुल्तान अलाउद्दी खिलजी ने चित्तौड़ के राजा रतन सिंह को पराजित किया था। इसलिए राजवंशियों का यह दावा कि इस फिल्म में इतिहास के साथ छेड़छाड़ की गयी है, निराधार है। जब पद्मिनी का कोई ऐतिहासिक वजूद ही नहीं है तो इतिहास के साथ छेड़छाड़ कैसी? वास्तव में रानी पद्मावती, मलिक मुहम्मद जायसी के ग्रन्थ ‘पद्मावत’ की नायिका है जो अपने पति राजा रतन सिंह से बेहद प्रेम करती है। दिल्ली का सुल्तान खिलजी उसके रूप की चर्चा सुनकर चित्तौड़ पर आक्रमण कर देता है। रानी पद्मावती, सुल्तान खिलजी की रानी बनना स्वीकार नहीं करती है तथा सोलह हजार रानियों के साथ जौहर कर लेती हैं अर्थात् अपने आपको आग की चिता में जला लेती हैं। यही जौहर की कथा थोड़ी बहुत परिवर्तन के साथ विभिन्न ग्रन्थों में मिलती है, जिन ग्रन्थों को ‘साहित्य’ कहा जाता है। मलिक मुहम्मद जायसी की ‘पद्मावत’ 1540 में अवधी में लिखी गयी थी इसके पश्चात् भी इस कथानक पर कई ग्रन्थ कई भाषाओं में लिखे गये हैं। राजवंशी इसी साहित्यिक कृति ‘पद्मावती’ को ऐतिहासिक चरित्र सिद्ध करना चाह रहे हैं।
जायसी की इस नायिका को ऐतिहासिक मान लेने की जिद राजवंशियों के अलावा हिन्दुत्ववादी ताकते भी कर रही हैं। इनका तर्क है कि राजस्थान की लोक कथाओं में ‘पद्मावती’ के चरित्र का वर्णन है जिसे मौखिक इतिहास मान लिया जाये। इन ताकतों को यह पता होना चाहिए कि लोककथाओं के वर्णन को मौखिक इतिहास की श्रेणी में रखने के कुछ मापदण्ड हैं जिस पर ‘पद्मावती’ खरी नहीं उतरती है। फिर कैसे ‘पद्मावती’ के चरित्र को ऐतिहासिक मान लिया जाए।

पद्मावती फिल्म का विरोध करती राजपूतों की करणी सेना
क्रोधित राजवंशी बार-बार अपने ऐतिहासिक गौरव की बात कर रहे हैं, क्षत्राणियां अपने तलवार म्यान में से बाहर निकाल रही हैं काश! इसी तरह यदि साहित्यिक पात्र पद्मावती 16000 रानियों के साथ तलवार निकाल लेती तो शायद उनको जौहर नहीं करना पड़ता तथा भारत का इतिहास भी दूसरा होता। आज जो विरोध का अधिकार लोकतन्त्र के कारण इनको मिला हुआ है उसकी आड़ में ये राजवंशी अपनी मिथकीय शौर्य गाथाओं को इतिहास बता रहे हैं। वरना इन राजपूतों का इतिहास कौन नहीं जानता है। अंग्रेजों से पूर्व विदेशी आक्रमणकारियों से हारना एवं अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार करना ही इनका इतिहास है। अभी ये लोग दीपिका पादुकोण की केवल नाक काटने की बात कर रह हैं, लेकिन कौन नहीं जानता कि पूर्व सांसद फूलन देवी के साथ जिस हैवानियत का परिचय इन क्षत्रियों ने दिया था उससे एक खिलजी क्या दसों खिलजी लज्जित हो जायेंगे। राजस्थान की भंवरी देवी का सामूहिक बलात्कार क्या खिलजी के वंशजों ने किया था। इन दोनों घटनाओं पर बनी फिल्म बैंडिट क्वीन और बवण्डर पर किसी ने प्रतिबन्ध की मांग नहीं किया। क्या इन फिल्मों में महिलाओं का अपमान नहीं हुआ था। ये लोग पद्मावती के जौहर को आधुनिक स्त्री के सम्मान के साथ जोड़ रहे हैं। इनको पता होना चाहिए कि यही जौहर की प्रथा भारत में सती प्रथा के रूप में सभी सवर्ण जातियों में व्याप्त हो गयी थी। इस सती प्रथा के कारण नाबालिग मासूम बच्चियों को जलती आग की चिता में झोंक दिया जाता था, जिसे ब्रिटिश काल में कानून बनाकर रोका गया। मध्यकालीन राजा स्वयं कई रानियां रखते थे तथा इनके बीच सुन्दर राजकुमारियों से विवाह के लिए युद्ध भी होता था। भारतीय राजा और विदेशी आक्रमणकारियों में महिलाओं के प्रति सोच या व्यवहार के स्तर पर कोई अन्तर नहीं था, तो आखिर राजवंशी किस गौरवशाली परम्परा की बात कर रहे हैं। इतिहास तो इनके घिनौने चेहरे को ही उजागर करता है।

अन्य स्त्रियों के साथ आग में खुद को जलाती पदमावती की एक पेंटिग
सच्चाई यह है कि सवर्ण इतिहास से डरते हैं। इसलिए ये लोग यह कदापि नहीं चाहते कि इतिहास पर कोई चर्चा तक हो, फिल्म बनाना या किताब लिखना तो इनको बर्दाश्त ही नहीं होता है। ये लोग इतिहास के स्थान पर काल्पनिक पात्रों को स्थापित करना चाहते हैं। यह परम्परा आर्यों से चली आ रही है। सबसे पहला मिथक यह स्थापित किया गया कि देवी-देवताओं अर्थात् आर्यों की संख्या 33 करोड़ है जबकि आज भी आर्यों अर्थात् ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों की कुल संख्या 18 करोड़ से ज्यादा नहीं है। राम, कृष्ण, सहित हजारों काल्पनिक पात्रों को ऐतिहासिक पात्रों के रूप में स्थापित करने हेतु सवर्ण और इनके संगठन जी जान से लगे हुए हैं। पद्मावती को ऐतिहासिक पात्र के रूप में स्थापित करने का प्रयास मिथकों को इतिहास के रूप में स्थापित करने की इसी परम्परा का हिस्सा है। इन्हीं मिथकों और राजनीति में मिथकीय मुद्दों को उछालकर ये लोग भारत की सम्पत्ति और राजसत्ता पर कब्जा जमाये हुए हैं। जिस दिन शूद्र, दलित और महिलायें इनके मिथकीय मायाजाल से वाकिफ हो जायेंगे, इनका तिलिस्म टूट जायेगा। राजसत्ता व सम्पत्ति इनके हाथ से निकल जायेगी। इसीलिए सवर्ण इतिहास से डरते हैं।
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बहुजन साहित्य की प्रस्तावना (Bahujan Sahitya Ki Prastaawanaa)
जो पद्मावती फिल्म बनी है वह इतिहास के अनुसार सत्य है और जो भी इतिहास के बारे जानना चाहते हौ तो वह आदिवासीयों के पास जाओ और ज्यादा इतिहास मिलेगा
Sherman jhooth failana koi apse sheekhe. Ap ko baaton ka ek ek jar ke jawab deta Hun. Rajasthan, Punjab aur mp ke cm Maratha jat aur kirar jati se hain. Doosri bat apne Jan boojh ke Hamare liye raja Rani etc use kiya to appko batata dun ki sirf2% Rajput raja aur samnt the Baki kiisan aur Sainik the. Aur ab ate hain abhi pe, Bharatiya sena mein paidal sainikon ki ginti kijiye appko meri Rajput jati ke ladke bhare mileage. Aazadi ke bad se sena aur Anya forces ke shaheedon ki ginti kijiyega ham and population ke proportion se jyada milenge
Kyu chud fela raha h…… Gadhe
यह सब जो भी लेखक है उसने कुंठा ग्रसित होकर लिया है जो राम और कृष्ण को काल्पनिक बता रहा है उसे इतिहास का ज्ञान नहीं है, अगर झुठी कहानियां लिख कर ब्राह्मण वर्ग ने थोपी हैं तो कुछ झूठा लिख कर लेखक भी थोपने का प्रयास करें, नहीं थोप पायेगा ।राम कृष्ण के बिना सनातन संस्कृति की कल्पना करना ही बैकारर है, जिन बातों के सबूत मोजूद है उन्हें कोन झूठा साबित करेगा।इतिहास के साथ खिलवाड़ करना उचित नहीं है।
आगे ही वामपंथी विचारधारा के लेखकों ने भारतिय इतिहास को तोड़ मरोड़ के रख दिया है।
यदि राजपूत नही होते तो यह लेख भी हमे उर्दू या अन्य कोई विदेशी भाषा मे देखने को मिलता