h n

‘महिलाओं का खतना’ समाज के लिए कलंक : थरूर

वोहरा समुदाय की किशोर बच्चियों को खतना से गुजरना पड़ता है। उनके जननांग से मांस का एक टुकड़ा गर्म चाकू से काटकर निकाल दिया जाता है और उनके जननांग में टांके लगा दिये जाते हैं। कांग्रेसी सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर ने इस मामले में सभी दलों से दलगत राजनीति से उपर उठकर महिलाओं के साथ खड़े होने का आहवान किया

यकीन नहीं आता है कि हम इक्कीसवीं सदी में जी रहे हैं। अपनी सत्ता बनाये रखने के लिए पुरूष प्रधान समाज आज भी महिलाओं को खतना/खफ्द जैसी यातनाएं थोप रहा है। यह सभ्य समाज के लिए कलंक है। राजनीति और धर्म से परे इस कलंक को दूर करने की दिशा में पहल करनी चाहिए। ये बातें वरिष्ठ कांग्रेसी सांसद सह पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर ने सोमवार को नई दिल्ली के कंस्टीच्यूशन क्लब के सभागार में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में कही।

खतना के खिलाफ संघर्ष विषयक रिपोर्ट जारी करते सांसद व पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर व अन्य

दलगत राजनीति के परे करें विरोध

श्री थरूर ने जोर देते हुए कहा कि खतना का विरोध केवल इसलिए नहीं टाला जाना चाहिए कि यह किसी धर्म विशेष से जुड़ा है। महिलाओं पर जुल्म का समर्थन कतई नहीं किया जा सकता है। उन्होंने खतना के खिलाफ अभियान चलाने वाले सामाजिक संगठन ‘वी स्पीक आऊट’ को महत्वपूर्ण हस्तक्षेप करने के लिए बधाई दी। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि वे इस मामले को लोकसभा में उठायेंगे। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर सभी राजनीतिक दलों को अपनी पार्टी की राजनीति को परे रखकर आवाज उठानी चाहिए। संयुक्त राष्टसंघ ने इसे मानवता के खिलाफ माना है। हम सभी मिलकर इसे खत्म करने की दिशा में पहल करें।

संयुक्त राष्ट्रसंघ ने किया है पहल

पिछले तीन वर्षों से वी स्पीक आऊट के जरिए महिलाओं के खतना के विरूद्ध कानूनी लड़ाई लड़ने वाली मासूमा राणालवी ने इस मौके पर कहा कि यह कुप्रथा विश्वव्यापी है। लैटिन अमेरिकी देशों व अफ्रीकी देशों में इस कुप्रथा को खत्म करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा पहल किया गया है। इसके लिए 6 फरवरी को ‘जीरो टॉलरेंस फॉर एफजीएम डे’ घोषित किया गया है।

ऐसे किया जाता है भारत में महिलाओं का खतना

भारत में करीब दस लाख की आबादी वाले वोहरा समुदाय के लोगों में यह कुप्रथा है। इसके जरिए वयस्क होने के ठीक पहले किशोरी बच्चियों के जननांग में एक गैर पेशेवर महिला द्वारा चीरा लगाया जाता है। इसके जरिए उनके जननांग के उस हिस्से को काटकर निकाल दिया जाता है, जिसके कारण महिलायें सेक्स के दौरान आनंद की अनुभूति करती हैं। साथ ही उनकी यौन पवित्रता बनी रहे, इसके लिए उनके जननांग पर टांके भी लगाये जाते हैं। मासूमा ने कहा कि वह स्वयं पीड़िता हैं। जब वह छोटी थीं तब उनके परिजनों ने उनका खतना कराया था। उन्होंने यह भी कहा कि बच्चियों पर होने वाले इस जुल्म को मजहब से जोड़ दिया गया है।

तीन साल पहले शुरू हुई लड़ाई

वी स्पीक आऊट के जरिए इस लड़ाई की शुरूआत तीन साल पहले हुई। तीन वर्ष पहले सर्वोच्च न्यायालय में इस बाबत एक जनहित याचिका दायर की गयी है। लेकिन इस मामले में सुनवाई नहीं हो रही है। लक्ष्मी अनंतनारायणन ने बताया कि भारत में आज भी यह कुप्रथा जारी है। किए गए सर्वेक्षण में यह बात सामने आयी है कि 14 वर्ष तक होते-होते वोहरा समुदाय की  75 फीसदी बच्चियों का खतना कर दिया जाता है। 97 फीसदी महिलायें, जिनका खतना हो चुका है, मानती हैं कि यह पूरी प्रक्रिया बहुत पीड़ादायक थी। केवल दो फीसदी महिलाओं ने कहा कि खतना से उनके जीवन में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। लक्ष्मी ने बताया कि खतना से सेक्स जीवन पर भी असर पड़ता है। हालांकि इस मुद्दे पर महिलायें खुलकर नहीं बोलती हैं, लेकिन सर्वेक्षण में भाग लेने वाली 33 फीसदी महिलाओं ने यह स्वीकार किया है कि खतना ने उनका यौन सुख हमेशा-हमेशा के लिए छीन लिया।

इस्लाम में खतना आवश्यक नहीं, पहल करे सरकार

मासूमा राणालवी ने बताया कि इस्लाम में महिलाओं के खतना को अनिवार्य नहीं माना गया है। स्त्रियों की यौन पवित्रता के लिए इसे आवश्यक बताने की परंपरा का मजहब से कोई लेना-देना नहीं है। यहां तक कि कुरान में भी प्रतिबंधितों की सूची से बाहर रखा गया है। उन्होंने कहा कि भारत सरकार को इस दिशा में आवश्यक पहल करना चाहिए ताकि हजारों बच्चियों को इस पीड़ा से मुक्ति मिल सके और भारत को इस कलंक से।


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +919968527911, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें :

बहुजन साहित्य की प्रस्तावना 

 जाति के प्रश्न पर कबी

महिषासुर : मिथक और परंपराएं

चिंतन के जन सरोकार 

महिषासुर : मिथक व परंपराए

 

लेखक के बारे में

एफपी डेस्‍क

संबंधित आलेख

यूजीसी के नए मसौदे के विरुद्ध में डीएमके के आह्वान पर जुटान, राहुल और अखिलेश भी हुए शामिल
डीएमके के छात्र प्रकोष्ठ द्वारा आहूत विरोध प्रदर्शन को संबोधित करते हुए अखिलेश यादव ने कहा कि आरएसएस और भाजपा इस देश को भाषा...
डायन प्रथा के उन्मूलन के लिए बहुआयामी प्रयास आवश्यक
आज एक ऐसे व्यापक केंद्रीय कानून की जरूरत है, जो डायन प्रथा को अपराध घोषित करे और दोषियों को कड़ी सज़ा मिलना सुनिश्चित करे।...
राहुल गांधी का सच कहने का साहस और कांग्रेस की भावी राजनीति
भारत जैसे देश में, जहां का समाज दोहरेपन को अपना धर्म समझता है और राजनीति जहां झूठ का पर्याय बन चली हो, सुबह बयान...
‘सामाजिक न्याय की जमीनी दास्तान’ नई किताब के साथ विश्व पुस्तक मेले में मौजूद रहेगा फारवर्ड प्रेस
हमारी नई किताब ‘सामाजिक न्याय की जमीनी दास्तान : इतिहास का पुनरावलोकन’ पुस्तक मेले में बिक्री के लिए उपलब्ध होगी। यह किताब देश के...
छत्तीसगढ़ में दलित ईसाई को दफनाने का सवाल : ‘हिंदू’ आदिवासियों के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट
मृतक के परिजनों को ईसाई होने के कारण धार्मिक भेदभाव और गांव में सामाजिक तथा आर्थिक बहिष्कार का सामना करना पड़ रहा है। जबकि...