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आज भी दलित और ओबीसी विरोधी है उनकी ‘राम कहानी’

राम का मिथकीय चरित्र उन्हें कटघरे में खड़ा करता है। फिर चाहे वह सामाजिक आचरण का मामला हो या फिर व्यक्तिगत। इसके बावजूद उन्हें मर्यादा पुरूषोत्तम कहा जाता है। योगी सरकार के मंत्री ने नरेंद्र मोदी को राम, मुलायम सिंह यादव को रावण और मायावती को शूर्पणखा की संज्ञा दी है। राजकिशोर का विश्लेषण :

राम के नामपर राजनीति करने वाली भारतीय जनता पार्टी द्वारा एक बार फिर मिथकों के आधार पर लोगों को मुख्य मुद्दों से दिग्भ्रमित करने का प्रयास किया गया है। फुलपुर लोकसभा क्षेत्र में उपचुनाव के लिए प्रचार के दौरान योगी सरकार के एक मंत्री नंदगोपाल नंदी ने मुलायम सिंह यादव को रावण और बसपा प्रमुख मायावती को शूर्पणखा की संज्ञा दी।

नरेंद्र मोदी को राम और मुलायम सिंह यादव को रावण कहने वाले उत्तरप्रदेश सरकार के मंत्री नंद गोपाल नंदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ

ऐसे समय में, जबकि राम का पूरा चरित्र ही विवादास्पद हो गया है और शूर्पणखा के साथ उन्होंने और उनके अनुज लक्ष्मण ने जो किया था, उसके मर्दवादी स्वरूप की भर्त्सना हो रही है। नंदगोपाल नंदी ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मौजूदगी में रामायण का अपना समकालीन भाष्य पेश कर साबित कर दिया है कि भारतीय जनता पार्टी एक ऐसी पार्टी है जिसके नेता न तो कुछ पढ़ते-लिखते हैं और न समाज की बदलती हुई संवेदना को पहचानते हैं। वे अभी भी उसी पुराने जातिवादी, स्त्री-विरोधी वातावरण में जीते हैं जिसमें ओबीसी समाज का हर व्यक्ति उनका दुश्मन और हर दलित लांछन का पात्र है।

चुनावी सभा में नंदी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आज का राम, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को हनुमान, राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और देश के पूर्व रक्षा मंत्री मुलायम सिंह को रावण, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को मारीच, उत्तर प्रदेश के एक और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को मेघनाद और दलित नेता तथा उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती को शूर्पणखा कहा। इसे सुन कर अपने को योगी और तपस्वी बताने वाले मुख्यमंत्री की खींसों में कोई फर्क नहीं पड़ा।

गौर तलब है कि नंदी उत्तर प्रदेश के नागरिक उड्ड्यन मंत्री हैं। नागरिक उड्डयन राज्य सरकार का नहीं, केंद्र सरकार का विषय है। यह मंत्रालय किसी भी अन्य राज्य में नहीं है। जाहिर तौर पर नंदी अपने राम के हनुमान के भी हनुमान हैं और उन्हें प्रसन्न कर अपना भविष्य बनाने की कोशिश कर रहे होंगे। लेकिन नागरिक उड्डयन मंत्री को पूरी राम कथा में जिस एक चीज की याद नहीं आयी, वह था रावण का पुष्पक विमान, जिस पर सवार हो कर राम सीता, लक्ष्मण और हनुमान के साथ अयोध्या लौटे थे। पुष्पक विमान का अस्तित्व अगर वास्तव में था, तो यह टेक्नोलॉजी की एक बड़ी उपलब्धि थी, जबकि राम को हथियार के नाम पर सिर्फ तीर-धनुष मालूम था।

मोदी भारत के एकमात्र प्रधानमंत्री हुए हैं, जिन्होंने इतने वादे किये हैं। इतनी प्रतिज्ञाएँ की हैं और भारत की हताश जनता में इतनी उम्मीदें पैदा की है। लेकिन चार साल के शासन के बावजूद किसी भी एक बात के प्रति वे वफादारी नहीं दिखा पाये हैं।

अब बात राम के हनुमान की। राम के पास एक हनुमान थे, जिन्होंने अपनी तमाम निजी इच्छाओं-कामनाओं से मुक्ति पा ली थी और अपने पुराने स्वामी सुग्रीव का साथ छोड़ कर नये और ज्यादा वैभवशाली स्वामी का अक्रीत दास हो गये थे। लेकिन नंदी के राम नरेंद्र मोदी का हनुमान आदित्यनाथ एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें माया और राम, दोनों एक साथ चाहिए। वे एक मंदिर का मठाधीश हैं, अपने को योगी कहते हैं, लेकिन पिछले डेढ़ दशक से सांसद भी बने हुए हैं, जिन्हें भोग की तमाम आधुनिक सुविधाएँ मिली हुई हैं। योगी को संसद से क्या काम। वह अपनी संसद खुद होता है, लेकिन आदित्यनाथ को जब मुख्यमंत्री बनने का प्रस्ताव मिला, तो उन्होंने राष्ट्रीय संसद का त्याग कर दिया और अपने राज्य की विधान परिषद का सदस्य बन गये। सांसद तो फिर भी जनता द्वारा चुना जाता है, लेकिन इस नये हनुमान ने मुख्यमंत्री बने रहने के लिए विधान परिषद का रास्ता चुना, जिसके सदस्य मतदाताओं द्वारा नहीं चुने जाते। यानी उत्तर प्रदेश का वर्तमान मुख्यमंत्री किसी भी परिभाषा से जन प्रतिनिधि नहीं है। जाहिर तौर पर हनुमान का हनुमान होना ही काफी होता है।

नंदी के राम के पास कई और हनुमान हैं। एक हैं केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेतली, जो लोक सभा का चुनाव हार जाने के बाद राज्य सभा के रास्ते इतने बड़े देश की अर्थव्यवस्था सँभालने के लिए लाये गये हैं। यानी ये भी निर्वाचित जन प्रतिनिधि नहीं हैं। ठीक वैसे ही जैसे दो बार प्रधानमंत्री रह चुके मनमोहन सिंह जन प्रतिनिधि नहीं हैं।

रावण और सीता की एक पेंटिंग

भाजपाइयों द्वारा मुलायम सिंह यादव को रावण कहा जाना अचरज पैदा नहीं करता है। भाजपाई दिमाग कभी माफ नहीं कर सकता, क्योंकि एक तो मुलायम सिंह यादव आरक्षणवादी हैं और दूसरे उन्होंने बाबरी मस्जिद को बचाने के लिए कार सेवकों पर गाली चलवाने से भी संकोच नहीं किया था। ऐसे ही लालू प्रसाद सवर्ण घृणा के स्थायी पात्र हैं, क्योंकि उन्होंने टोयटा कार को राम रथ बना कर सत्ता-यात्री लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया था। इन दोनों लोक नेताओं का शासन जैसा भी रहा हो, पर दो ऐतिहासिक मौकों पर उन्होंने जितना बड़ा राजनैतिक साहस दिखाया है, उसका भारत की राजनीति में कोई सानी नहीं है। इसलिए ये रावण जैसे क्यों नहीं लगेंगे, जिनका एकमात्र ‘कसूर’ यह था कि उसने अपनी बहन के अपमान का बदला लेने के लिए अपने समय के एक और प्रतापी राजा की पत्नी का अपहरण कर लिया था। यानी स्त्री के अपमान का बदला स्त्री के अपमान से, लेकिन व्यक्तिगत शालीनता का परित्याग करते हुए नहीं, क्योंकि लंका में सीता को बड़े सम्मान से रखा गया था और उनकी इच्छा के विरुद्ध उनका स्पर्श तक नहीं किया गया था।

और शूर्पणखा? उनकी नाक काटने के लिए रान-लक्ष्मण को घृणा की निगाह से देखा जाता है, क्योंकि दोनों भाई बड़ी विनम्रता से उनसे कह सकते थे कि हम दोनों विवाहित हैं और यद्यपि हमारे वंश में बहुविवाह की प्रथा है, लेकिन उसी के दुष्परिणाम से पीड़ित हो कर हम यहाँ जंगल में प्रवास कर रहे हैं, इसलिए हम दोनों में से कोई भी एक और विवाह नहीं करना चाहता। लेकिन वे एक विवाह-अभिलाषी युवा स्त्री से उसी तरह खेलते रहे जैसे छोटे शहरों के शोहदे लड़कियों की इज्जत से खेलने के लिए बदनाम हैं। और अंत में उसकी नाक काटकर भगा दिया, जो किसी भी दृष्टि से न तो शास्त्र-सम्मत था और न ही आचार-सम्मत। विवाह करने का अनुरोध करना किसी भी पुरुष या स्त्री का मूलभूत अधिकार है। लेकिन एक राक्षस कुल की युवती ने दो आर्य बंधुओं से यह अनुरोध करने की जुर्रत कैसे की? दलित युवती मायावती ने उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने की इच्छा कर यही अपराध तो किया था। इसके लिए उन्हें कैसे माफ किया जा सकता है? भारत की जाति राजनीति में जयललिता और ममता बनर्जी को इसके लिए सहन किया जा सकता है, क्योंकि जयललिता भी ब्राह्मणी थीं और ममता भी ब्राह्मणी हैं। लेकिन मायावती ने वर्ण व्यवस्था के पासे को पलट दिया है। एक तो दलित और दूसरे स्त्री – वह किसी की भोग्या बनने से कैसे बची हुई है? कोई वजह नहीं है कि मायावती सवर्ण निगाहों में युग-युगों तक न खटकती रहें।

और कुमारी मायावती? नंद गोपाल नंदी ने उनके विवाह के प्रश्न को ले कर उपहास कर जिस क्षुद्रता का परिचय दिया है, वह भारत के भद्र समाज का स्थायी रोग है। कोई व्यक्ति विवाह करता है या नहीं, यह उसका निजी मामला है। भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनेक मान्य सदस्य आजीवन अविवाहित रहे हैं और आज भी हैं, तो क्या इसलिए कि वे विवाह योग्य नहीं हैं? मोहन भागवत और राम माधव विवाहित नहीं हैं, तो क्या इसलिए कि उन्हें कोई स्त्री नहीं मिली? या, उन्होंने विवाह करना चाहा, पर वे किसी स्त्री को पसंद नहीं आये? विवाह तो कई मुख्यमंत्रियों ने नहीं किया है। और उत्तर प्रदेश के एक भाजपाई मुख्यमंत्री ने तो विवाह करने के बाद भी अपनी एक और जीवन साथी चुन ली। फिर शूर्पणखा को यह शाप किसने दे दिया कि जा, दूसरे जन्म में भी तेरा विवाह नहीं होगा? क्या यह किसी क्षत्रिय राजा कालशाप हो सकता है? इस उदाहरण से यह भी पता चलता है कि सवर्ण मनोवृत्ति के लोगों की निगाह स्त्री जीवन के किस पहलू पर केंद्रित रहती हैं। उन्हें अविवाहित मायावती सदोष लगती हैं, लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी अच्छे लगते हैं, जिन्होंने विवाह नहीं किया, पर कुँवारेपन की पीड़ा कभी नहीं सही।

असल में, सारा मामला जाति के जहर का है, जिसने भाजपा के साम्राज्यवादी विस्तार में नया जन्म लिया है। गैर कांग्रेसवादी राजनीति ने इस साँप को छेड़ा जरूर, पर वह इसे कुचल नहीं पायी। वही सवर्ण चित्त कांग्रेस और गैरकांगेसवाद, दोनों की राजनैतिक विफलताओं के बाद भाजपा के अहंकारी नेताओं के मुँह से फुँफकार रहा है। इसलिए वैकल्पिक राजनीति की अगली लड़ाई सामाजिक विषमता और छुआछूत के विरुद्ध होनी चाहिए, जो नहीं हो पाया तो कई हजार साल से सत्ता और समृद्धि पर एकाधिकार जमाए समूह दूसरी नयी-नयी बुराइयों के साथ भारत को पूरी तरह से तबाह कर देंगे – भारत, जो अब भी संभावना है।


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लेखक के बारे में

राजकिशोर

राजकिशोर (2 जनवरी 1947-4 जून 2018), कोलकाता (पश्चिम बंगाल)। वरिष्ठ पत्रकार और लेखक। ‘पत्रकारिता के परिप्रेक्ष्य’, ‘धर्म, सांप्रदायिकता और राजनीति’, ‘एक अहिंदू का घोषणापत्र’, ‘जाति कौन तोड़ेगा’, और ‘स्त्री-पुरुष : कुछ पुनर्विचार’, अादि उनकी महत्वपूर्ण वैचारिक रचनाएं हैं। इनके द्वारा संपादित 'आज के प्रश्न' पुस्तक श्रृंखला, ‘समकालीन पत्रकारिता : मूल्यांकन और मुद्दे’ आदि किताबें अत्यन्त चर्चित रही हैं। साहित्यिक कृतियों में ‘तुम्हारा सुख’, ‘सुनंदा की डायरी’ जैसे उपन्यास, और ‘अंधेरे में हंसी’ और ‘राजा का बाजा’ व्यंग्य रचनाएं हैं

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