द्विज राजनीति सदा से अपना वर्चस्व कायम करने और उसे बनाये रखने के लिए छल-प्रपंचों का इस्तेमाल करती रही है। चाणक्य बहुत पहले आर्यो की सांस्कृतिक विरासत को आगे बढ़ाने वाले अपने राजनीतिज्ञ वारिसों को यह सब सीखा-पढ़ा कर चले गए थे। निश्चित ही चाणक्य की राजनीति देश और समाज के लिए घातक सिद्ध हुई है। उनकी सीख को आजादी के बाद के सवर्ण राजनीतिज्ञ कभी आंशिक रूप से, तो कभी पूर्ण रूप से प्रयोग कर सत्ता के रथ पर सवार होते रहे हैं। इस कौशल में उनलोगों ने महारत हासिल की है।

बीते 28 मार्च को मंडी हाऊस स्थित एलटीजी ऑडिटोरियम में शिवाजी सावंत के उपन्यास मृत्युंजय पर आधारित नाटक का एक दृश्य। इस दृश्य में द्रोणाचार्य एकलव्य से उनका अंगुठा मांग रहे हैं
वैसे राजनीतिक विचारकों की मानें तो भारत में रामराज्य की शुरुआत आजादी मिलने से बहुत पहले ही हो चुकी थी। जिसके जनक लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक से लेकर सावरकर और आरएसएस से लेकर गांधी तक थे। यूं तो गांधी के बारे में बहुत से लोगों को गफलत रही, लेकिन उन्होंने स्वयं ही कहा है कि वे ब्रिटिश राज्य के बाद राम राज्य लाना चाहते है। आजादी मिलने के बाद यह कैसे हो सकता था कि राष्ट्रपिता गांधी के सपनों को साकार करने के लिये राष्ट्र को रामराज्य में तब्दील करने की पहल न होती। इसकी एक स्पष्ट बानगी तब सामने आई जब 1949 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने काशी जाकर दो सौ ब्राह्मणों और पुरोहितों के चरण धोये थे। उनके इस कृत्य पर जवाहर लाल नेहरू बहुत नाराज हुए और डॉ. राम मनोहर लोहिया ने तो यहाँ तक कहा था कि भारतीय दुनिया में सबसे अभागे लोग हैं। उनके प्रथम नागरिक यानी राष्ट्रपति तथाकथित विद्वतजनों का चरण धोता है। पर तत्कालीन राष्ट्रपति को न तो अपने पद की गरिमा की चिंता थी और न ही देश की अस्मिता की परवाह। वैसे राजेन्द्र प्रसाद ही नहीं, बाद में अधिकांश राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भी बनारस जाकर पंडितों के पांव छूने से लेकर, शंकराचार्यो के मठों और दरबारों में जाकर उनके पैर धोते रहे हैं। उनकी देखा-देखी राज्यपालों से लेकर मुख्यमंत्रियों तक और मंत्रियों से लेकर कैबिनेट सचिवों तक ने यही सब किया। साथ ही सरकारी धन को मठों,मन्दिरों तथा आश्रमों में बांटने का प्रावधान आरम्भ हुआ।

दांडी मार्च के दौरान महात्मा गांधी के साथ डॉ. राजेंद्र प्रसाद व अन्य
पाठकों को बता दें कि 6 दिसम्बर,1956 को बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर के परिनिर्वाण के पश्चात उनके द्वारा बनाए गए संविधान में संशोधन शुरू हो गया था। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सरकार में भारतीय सविंधान की धारा 290 को संशोधित कर दिया गया और 290(क) के प्रावधान के अनुसार हिन्दू देवताओं और मन्दिरों को देवस्वम निधि के रूप में सरकारी धन दिया जाने लगा। इसका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-
1. तिरुपति तिरुमला देव स्थान 1925 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष
2. राम कृष्ण मिशन 220 करोड़ रुपये प्रति वर्
3. पलानी देवस्थान 110 करोड़ रुपये प्रति वर्ष
4. शिरडी साई स्थान 100 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष
5. वैष्णो देवी 400 करोड़ रुपये प्रति वर्ष
यह पुराना आंकड़ा है। कहना न होगा कि अब यह धनराशि बढ़ गई होगी और अन्य देवताओं को भी सरकारी धन दिया जाने लगा होगा।
आज की तारीख में अगर सरकार द्वारा मठों, मन्दिरों, आश्रमों तथा विभिन्न देवी और देवस्थानों को खैरात में बांटे जाने वाले धन का ब्यौरा लें तो यह पूर्व की तुलना में बहुत अधिक होगा।

बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर
ये लोग खुल्लमखुल्ला एेलान करते हैं कि राम मंदिर पर हिन्दू मुसलमानों के बीच राजीनामा हो या न हो, सुप्रीम कोर्ट के साथ संविधान भी उनके लिए कोई मायने नहीं रखता, हम हर हालत में मन्दिर वहीं अयोध्या में बनाएंगे। बाबरी मस्जिद ढाह कर राम सेवकों ने राम राज्य की दिशा में एक प्रयोग तो पिछली शताब्दी में कर लिया था। अब नई शताब्दी में राम मंदिर बनाकर नया प्रयोग और होगा। बजरंगियों के साथ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ एक नही हजार प्रयोग करने पर उतारू हैं।
यह अकारण नहीं है कि भाजपा के मंत्रियों से लेकर पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं की राजनीति की भाषा बदलने लगी है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को राम की उपमा दे दी गई। आदित्यनाथ को हनुमान, मुलायम सिंह यादव को रावण, अरविंद केजरीवाल को मारीच, अखिलेश यादव को मेघनाथ और मायावती को शूर्पनखा बता दिया। मौजूदा राजनीति के इतिहास में शम्बूक का सिर और एकलव्य के अंगूठे काटे जाने शुरू हो गए हैं। महिलाओं को नंगा करने और उनसे बलात्कार करने की परंपरा तो जोर- शोर से आरम्भ हो गई है। बस राम मंदिर बनने की देर है। चाहे देश और समाज श्मशान में बदल जाए। तब क्या लोकतंत्र सुरक्षित रहेगा? हां जयपुर और नागपुर में मनु तथा चाणक्य की मूर्तियां जरूर सुरक्षित रहेंगी। क्योंकि आरएसएस और बजरंगियों को अर्धसैनिकों में तब्दील करने की कवायद शुरू हो गई है। उन्हें सरकारी धन मुहैय्या कराया जा रहा है। भले ही अन्य महापुरुषो की मूर्तियां टूटती रहे। अभी हाल ही में उत्तर भारत में आंबेडकर और चेन्नई में पेरियर रामास्वामी की मूर्ति राम सेवकों ने तोड़ दी। पेरियार को तो रामसेवक बिल्कुल भी झेलने को तैयार नही हैं। बाबा साहब डॉ. आंबेडकर को भाजपा झेल सकती है। बशर्ते अांबेडकर को वे भगवा रंग में रंग दे। उनके द्वारा बनाए गए संविधान में संशोधन कर दे।

राम द्वारा शंबूक की हत्या को प्रदर्शित करता एक चित्र
देश मे आजादी आते -आते करपात्री ने तो रामराज्य पार्टी बना कर चुनाव भी लड़ा था। जिसे चुनाव आयोग ने स्वीकृति ही दे दी थी। उन दिनों हिन्दू कोड बिल पर करपात्री के साथ राजेन्द्र प्रसाद भी अांबेडकर के विरोधी थे। सीधे-सीधे कहा जाए तो वे रामराज्य के समर्थक थे।
तब से लेकर अब तक राम राज्य के प्रतिनिधियों ने दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों को पीछे धकेलने में क्या- क्या नही किया। मायावती के बारे में तो अपशब्द कहे ही गए, जिस पर न्यायालय भी चुप रहे।
देश मे परिस्थितियों में तेजी से बदलाव आ रहा है। पहले गुजरात और बाद में अधिकांश राज्यो में राम सेवकों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है वैसे ही उनकी गुंडई में भी। पिछले दिनों मुम्बई के दादर स्थित आंबेडकर भवन को महाराष्ट्र सरकार ने तोड़ दिया। मुम्बई में ही शिवाजी पार्क में चैत्य भूमि का कैसा विकास हुआ,यह किसी से छुपा नही है।यहाँ तक कि देश की राजधानी दिल्लीः में 26 अलीपुर रोड पर न बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर स्मारक बन सका और न जनपथ पर आंबेडकर मेमोरियल, न ही आंबेडकर पुस्तकालय। जबकि देश के प्रधानमंत्री मंत्री आंबेडकर के सपनों का भारत बनाने की बात बार- बार अपने भाषण में करते है।
फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्त बहुजन मुद्दों की पुस्तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्य, सस्कृति व सामाजिक-राजनीति की व्यापक समस्याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +919968527911, ईमेल : info@forwardmagazine.in
फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें :
Kya dalit aur pichhadi jaati ke log hindu dharm ke nhi kya ye ram ko ya bhgwan ko nhi maante hain.aap log desh ko gumraah mat kariye.aur ram rajy to aakar rahega aur ram rajy ka matlab nyay se sushasan se hai.
अबे जा तेरे पूर्वजों से पूछ की उन्होने क्या क्या सत्यानाश किया है इतने वर्षों में जाति बनाकर इस देश के अंदर वाह रे दोगले विदेशी ब्राह्मण