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लालू परिवार की सुरक्षा हटाने के राजनीतिक मायने

नब्बे के बाद बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद एक स्तंभ के रूप में हैं। चारा घोटाला मामले में सजायाफ्ता होने और चुनाव नहीं लड़ पाने के बावजूद उनकी राजनीति बरकरार है। लेकिन अब उनके परिवार की सुरक्षा घटाने के पीछे भाजपा और नीतीश कुमार की मंशा क्या है। नवल किशोर कुमार की रिपोर्ट :

बीते 10 अप्रैल 2018 को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मोतिहारी में गांधी के नाम पर ‘स्वच्छाग्रह’ अभियान की घोषणा कर रहे थे, उसी समय पटना में पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के आवास पर सीबीआई छापेमारी कर रही थी। वह भी तब जबकि लालू परिवार में खुशी का आलम है। लालू प्रसाद के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव की सगाई राजद विधायक चंद्रिका राय की बेटी से 18 अप्रैल को होनी है। शादी 13 मई को होगी। दिन में सीबीआई की छापेमारी और पूछताछ के बाद लालू प्रसाद का परिवार चैन की सांस लेने ही वाला था कि देर रात राज्य सरकार द्वारा उनके आवास पर तैनात सुरक्षाकर्मियों को वापस बुला लिया गया। इस वजह से पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी, विपक्ष के नेता तेजस्वी प्रसाद यादव और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री तेज प्रताप यादव पूरी रात बिना सुरक्षा के रहे। सवाल उठता है कि आखिर ऐसी क्या हड़बड़ी थी कि राज्य सरकार ने सुबह होने का इंतजार तक नहीं किया? सवाल यह भी कि इसके राजनीतिक मायने क्या हैं?

सुरक्षा हटाये जाने के बाद मीडिया से बातचीत के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो यह अस्वभाविक नहीं था। इसके दो पहलु हैं और दोनों पहलुओं में भाजपा के साथ नीतीश कुमार भी शामिल हैं। बात यदि सीबीआई की छापेमारी की की जाय तो यह इसलिए किया गया ताकि आम जनता में यह संदेश जाय कि लालू और उनके परिवार को केंद्र सरकार जब चाहे तब जेल के अंदर कर सकती है। ऐसा संदेश देकर भाजपा एक साथ दो निशाने साध रही है। पहला तो यह कि वह लालू और उनकी पार्टी की जनता में साख को खत्म कर देना चाहती है। वह चाहती है कि जनता यह समझे कि जब लालू और उनकी पार्टी अपनी रक्षा नहीं कर सकते हैं तो वे हमारी(जनता) जिम्मेवारी क्या संभालेंगे। भाजपा के दूसरे निशाने पर नीतीश कुमार हैं। भाजपा चाहती है कि जनता यह भी समझ ले कि बिहार में भाजपा का राज है और वह जो चाहे कर सकती है। नीतीश कुमार का होना या ना होना उसके लिए कोई मायने नहीं रखता है। वहीं सुरक्षा हटाने का सवाल नीतीश कुमार से जुड़ा है। कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि उनके हाथ में कमान नहीं रह गया है। इसका एक प्रमाण हाल ही में बिहार के डीजीपी के रूप में के. एस. द्विवेदी का पदस्थापन है जिनके उपर 1989 में भागलपुर दंगे को संरक्षण देने का मामला न्यायालय में अभी तक लंबित है।

लालू प्रसाद और राबड़ी देवी अपने दोनों पुत्रों के साथ

पहले छापेमारी और फिर सुरक्षा बलों को हटाये जाने के मामले का एक पक्ष लालू प्रसाद और उनके परिजनों को कमजोर करना है। इसके लिए साम-दाम-दंड-अर्थ-भेद सभी उपाय किये जा रहे हैं। उन्हें अपमानित करने का प्रयास भी जारी है। वैसे बिहार की राजनीति में ओबीसी, ईबीसी और दलित वर्ग के नेताओं को ऊंची जातियों के दबंग नेताओं और अन्य लोगों द्वारा भी अपमानित किया जाना कोई नई बात नहीं है। जातिगत दबंगता प्रदर्शित करने के साथ, ऐसा यह स्थापित करने के लिए भी किया जाता है कि पिछड़ी-दलित जातियों के नेताओं की कोई हैसियत नहीं है। इन घटनाओं की शृंखला में जगदेव प्रसाद की हत्या से लेकर रामलखन सिंह यादव को विधानसभा के अंदर जातिसूचक गाली, मुख्यमंत्री रहते कर्पूरी ठाकुर को मां-बहन की गाली, नीतीश कुमार की छाती तोड़ देने और जीतन राम मांझी को मारने की धमकी देने तक की बात शामिल है। लेकिन ऊंची जातियों के लोगों ने राजद प्रमुख लालू प्रसाद पर कभी इस प्रकार हाथ नहीं डाला। इसकी वजह यह भी रही है कि लालू पिछड़े वर्ग की उस जाति से संबंध रखते हैं जिसकी संख्या सबसे अधिक है और बिहार में इस जाति को दबंग भी माना जाता है।

बात यदि सुरक्षाकर्मियों को हटाये जाने और इसके पीछे की राजनीति की करें तो बिहार के राजनीतिक गलियारे में यह बात आग की तरह फैली। तैश में आते हुए विपक्ष के नेता तेजस्वी प्रसाद यादव ने देर रात ही ट्वीटर पर घोषणा कर दी कि वे, उनकी मां और उनके भाई तीनों अपनी-अपनी सुरक्षा वापस करेंगे। उन्होंने इसके लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को जिम्मेवार ठहराया। गौरतलब है कि गृह विभाग की जिम्मेवारी नीतीश कुमार के पास ही है।

बीते दिनों रांची से दिल्ली एम्स लाये जाने के क्रम में गया जंक्शन पर अपने समर्थकों का अभिवादन करते बीमार लालू प्रसाद

हालांकि सुबह-सुबह राज्य सरकार द्वारा  राबड़ी देवी के आवास पर सुरक्षा प्रहरी भेजे गये। लेकिन राबड़ी देवी ने सुरक्षा प्रहरियों की सेवायें लेने से इन्कार कर दिया और मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर इसकी सूचना दी। अपने पत्र में उन्होंने कटाक्ष करते हुए बधाई भी दी कि सरकार ने उनकी और उनके परिजनों की सुरक्षा को कम कर दिया। हालांकि बाद में उन्होंने एक न्यूज चैनल को दिये साक्षात्कार में नीतीश कुमार और सुशील मोदी पर अपनी और परिजनों की हत्या की साजिश रचने का आरोप भी लगाया।

वर्तमान में राजद की पूरी राजनीति सहानुभूति बटोरने पर टिकी है। चारा घोटाला मामले में लालू प्रसाद को जेल भेजे जाने के बाद वह सीबीआई कोर्ट के हर फैसले को एक मौके के रूप में उपयोग कर रही है। इसमें लालू प्रसाद को 14 साल तक की सजा से लेकर उनका बीमार पड़ना भी शामिल है। दिलचस्प यह भी है कि भाजपा उन्हें बार-बार सहानुभूति बटोरने का मौका भी दे रही है। अभी हाल ही में जब उन्हें इलाज के लिए रांची से दिल्ली लाया गया तो अनुरोध के बावजूद उन्हें ट्रेन से लाया गया। लालू प्रसाद ने इसका भी लाभ उठाया। उनका बीमार चेहरा उनके समर्थकों को उत्तेजित कर गया।

इसी प्रकार सुरक्षा प्रहरियों को वापस लिया जाना भी राजद के लिए एक मौका है। अपने नेता के समर्थन में खड़ा होते हुए राजद के सभी विधायकों व विधान पार्षदों ने अपने-अपने सुरक्षाकर्मियों को वापस कर दिया है। जाहिर तौर पर राज्य सरकार के लिए चिंता का सबब बन सकता है। वहीं उसके लिए राजद के सभी नेताओं की सुरक्षा की भी बड़ी चुनौती रहेगी।

बहरहाल इस पूरे मामले में राजनीति में बिहार के सवर्ण जाति के लोगों का बढ़ता वर्चस्व खासा मायने रखता है। इसी सोमवार को आरक्षण के विरोध में आहूत बंद के दौरान सवर्ण जाति के लोगों ने केंद्रीय राज्य मंत्री उपेंद्र कुशवाहा के साथ अभद्र व्यवहार किया। इसके पहले उनकी ही पार्टी के सांसद रहे अरूण कुमार ने बिहार विधानसभा चुनाव के समय नीतीश कुमार की छाती तोड़ देने की बात कही थी। हालांकि तब लालू प्रसाद उनकी ढाल बनकर खड़े हुए थे। अब स्थिति बदल चुकी है। नीतीश कुमार अब स्वयं अपनी छाती तोड़ने की बात करने वालों के साथ हैं। ऐसे में सवर्ण जाहिर तौर पर उनकी छाती तोड़ने के बदले तेजस्वी की छाती तोड़ने की बात कहेंगे।


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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