बीते 29 मई को नई दिल्ली के फिल्म डिवीजन सभागार में पवन श्रीवास्तव की फिल्म ‘लाइफ ऑफ एेन आऊटकास्ट’ की स्क्रीनिंग हुई। यह फिल्म दलितों के प्रतिरोध पर आधारित है। यह दो पीढ़ियों की कहानी है। सामंती जुल्म से तंग होकर अपना घर छोड़ गांव के बाहर रहने वाले एक व्यक्ति और उसके शिक्षक पुत्र की कहानी। दलित शिक्षक को पुलिस इसलिए गिरफ्तार कर लेती है क्योंकि वह हिंदूवादी नहीं आंबेडकरवादी है। वह आंबेडकर के संविधान को मानता है और अपनी कक्षा में पढ़ाते समय ब्लैक बोर्ड पर ‘ओम’ नहीं लिखता है।
फिल्म की स्क्रीनिंग के बाद दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज इक्कीसवीं सदी में भी ऐसी फिल्में बनानी पड़ रही हैं जिसमें बहुसंख्यक आबादी प्रताड़ित स्थिति में सामने आती है। यह आवश्यक भी है क्योंकि आज भी समाज में दलित प्रताड़ना की घटनायें घटित हो रही हैं। ऐसी घटनायें बताती हैं कि देश में आरक्षण जारी रहना क्यों जरूरी है। फिल्म के निर्देशक पवन श्रीवास्तसव को बधाई देते हुए सिसोदिया ने कहा कि यह फिल्म समाज का सच बताती है।

उन्होंने कहा सीबीएसई के तहत सातवीं कक्षा की एक किताब में दलित साहित्य पर एक लेख किताब में संकलित है। उस लेख में ओमप्रकाश वाल्मीकि की आत्मकथा जूठन का एक छोटा सा अंश लिया गया है। परीक्षा में सवाल पूछे जाते हैं कि ओमप्रकाश वाल्मीकि की रचना का नाम बतायें। जवाब है जूठन। या फिर सवाल यह पूछा जाता है कि जूठन के लेखक कौन हैं। यह सवाल एक नंबर का होता है। लेकिन क्या दलिताें की समस्यायें व उनका साहित्य केवल एक नंबर या पांच नंबर के लिए ही हैं। इस सोच से आगे जाना होगा। यह एक बड़ी लड़ाई है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत सरकार ने सभी राज्यों से यह अधिकार छीन लिया है कि वह किसी फिल्म को टैक्स फ्री घोषित कर सकें। यह एक नये तरह का फेडरलिज्म है।
सिसोदिया यही नहीं रूके। उन्होंने नरेंद्र मोदी सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि दिल्ली सरकार द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के अनेक कार्य किए जा रहे हैं जो मोदी जी को पच नहीं रहा है। उन्होंने कहा कि फिल्म के प्रचार-प्रसार में दिल्ली सरकार मदद करेगी।
वही दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रतनलाल ने सवाल उठाया कि क्या दलित आज भी प्रताड़ना के ही योग्य हैं? उनका कहना था कि दलितों के संघर्ष को आज के नजरिए से देखा जाना चाहिए। वहीं निर्देशक पवन श्रीवास्तव ने बताया कि यह फिल्म मौजूदा दौर में दलितों के संघर्ष को दिखाती है। इस संघर्ष में वह अकेला है। न कोई वामपंथी न कोई समाजवादी। उन्होंने कहा कि वह इसका प्रदर्शन बारह राज्यों के करीब पांच सौ गांवों में करेंगे।
फिल्म के निर्देशक पवन के मुताबिक इस फिल्म का निर्माण 120 लोगों द्वारा दिये गये चंदे से किया गया है। फिल्म के निर्माण में नैकडोर ने भी आर्थिक सहयोग किया है। स्क्रीनिंग के मौके पर नैकडोर के संस्थापक अशोक भारती सहित फिल्म से जुड़े कलाकार भी मौजूद रहे।
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