
लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित सरकारें भी अपने दायित्वों से दूर होती जा रही हैं। हालत यह हो गयी है कि सरकारें पूंजीपतियों के पक्ष में खड़ी हैं और उनके शिकार आमजन जब अपनी सुरक्षा और अधिकारों को लेकर गुहार लगाते हैं तो बदले में निराशा तो मिलती ही है, अपमानित भी होना पड़ता है। ऐसी ही घटना हरियाणा में घटी है। दरअसल हरियाणा के भिवानी जिले के खानक गांव के ग्रामीण अपनी जान बचाने के लिए अपना गांव छोड़कर कहीं और चले जाना चाहते हैं। इस बाबत उन्होंने मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को पत्र लिखा है। पत्र में ग्रामीणों ने यह आरोप भी लगाया है कि बीते 4 जुलाई को जब वे लोग मुख्यमंत्री से गुहार लगाने पहुंचे तब उनके विशेष कार्य पदाधिकारी भूपेश्वर दयाल ने भद्दी-भद्दी गालियां दी।
हालांकि ग्रामीणों के इस आरोप को भूपेश्वर दयाल ने खारिज किया। दूरभाष पर बातचीत में उन्होंने कहा कि खानक गांव के लोग इस समय भी मेरे पास आये हैं। मैंने कभी इनका अपमान नहीं किया। गालियां देने की बात निराधार है। उन्होंने कहा कि जो लोग मुझसे मिलने आये थे, वे दलित नहीं थे। उन्होंने यह भी कहा कि खानक गांव के लोगों की मुख्य मांग खनन में हिस्सेदारी की है। साथ ही उनकी मांग पत्र को यथोचित कार्रवाई हेतु अग्रसारित कर दिया गया है।

गौरतलब है कि भिवानी जिला पत्थरों के लिए जाना जाता है। यहां के पहाड़ों को तोड़कर स्टोन चिप्स (गिट्टी) बनाया जाता है जिसका उपयोग सड़क निर्माण से लेकर इमारतों के निर्माण में किया जाता है। अर्थशास्त्र के लिहाज से यह राज्य सरकार के खजाने के लिए तो महत्वपूर्ण है ही, गांव वालों के लिए भी रोजी-रोटी का जरिया है। हालांकि भिवानी जिले के ही डाडम पहाड़ में पांच हजार करोड़ रुपए से अधिक के अवैध पत्थर खनन का मामला चंडीगढ़ हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था। अदालती हस्तक्षेप के बाद राज्य सरकार ने संवेदक कंपनी से खनन का अधिकार छीन लिया था। उस समय भी ग्रामीणों ने ही पहाड़ को बचाने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।
एक बार फिर पहाड़ के अस्तित्व पर सवाल खड़ा हो गया है। गांव वालों द्वारा मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को लिखे गये पत्र के मुताबिक खानक पहाड़ का अंधाधुंध खनन कोई और नहीं बल्कि हरियाणा स्टेट इंडस्ट्रीय डेवलपमेंट कारपोरेशन और केएससी नामक कंपनी कर रही है। गांवा वालों का यह भी आरोप है कि दोनों कंपनियों ने स्थानीय लोगों को उनके रोजगार से वंचित कर दिया है जो कि उनकी आजीविका का मुख्य आधार रहा है। इसके अलावा गांव वालों ने कहा है कि नियम-कानून ताक पर रख किये जा रहे अंधाधुंध खनन के कारण खानक गांव के लोगों की जान आफत में है। उनके घरों पर पत्थर के टुकड़े गिरते हैं जिससे उनके घर टूट रहे हैं। हर समय जान जाने का खतरा बना रहता है।

हालांकि ग्रामीणों ने इस बार भी अदालत का दरवाजा खटखटाया। बीते 28 मार्च 2018 को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के जज महेश ग्रोवर और राजबीर सेहरावत की खंडपीठ ने अपने अंतरिम आदेश में एचएसआईडीसी को खनन के समय पूरी सावधानी बरतने का निर्देश दिया ताकि ग्रामीणों का जनजीवन प्रभावित न हो। इसके लिए अदालत ने सरकार द्वारा तय नियमों का अनुपालन सख्ती से करने की बात कही। लेकिन गांव वालों का आरोप है कि अदालती आदेश के बावजूद कंपनी नियमों का पालन नहीं कर रही है।
खानक ग्राम पंचायत के पंच रवीद्र सिंह के मुताबिक खानक गांव में दलित और ओबीसी जातियों के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं। वे पहाड़ पर होने वाले खनन कार्य करके अपना और अपने परिवार का पेट पालते हैं। लेकिन एचएसआइडीसी और केएससी कंपनी ने मिलकर उनका रोजगार छीन लिया है। वहीं खानक ग्राम पंचायत की एक और पंच पूजा रानी का कहना है कि बीते 12 जुलाई को हमारे गांव का एक सैनिक परिवार मरने से बच गया। वजह यह कि केएससी कंपनी द्वारा खानक पहाड़ में किये विस्फोट के कारण उनका घर गिर गया। उन्होंने बताया कि हम खानक गांव के लोग दहशत में जी रहे हैं। पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। नियमों को ठेंगा दिखाकर पेड़ों को काटा जा रहा है। अंधाधुंध खनन के कारण पत्थर के धुलकण हवा में मिल गये हैं जिससे लोगों को गंभीर बीमारियां हो रही हैं।
वहीं बीडीसी (प्रखंड विकास परिषद) की सदस्या सुषमा कुमारी के अनुसार यदि राज्य सरकार उनका रोजी-रोजगार छीन लेना चाहती है तो बेशक छीन ले, लेकिन जीने का अधिकार तो नहीं छीने। उनका कहना है कि राज्य सरकार खानक गांव के सभी लोगों को कहीं और भेज दे ताकि वे अपनी जान बचा सकें। जब कंपनी खनन कर पहाड़ को खत्म कर दे तब बेशक हमें गांव वापस भेज दे।
(कॉपी एडिटर : सिद्धार्थ)
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