h n

जानिए क्यों है एनडीए खेमे में दलित विद्रोह की सुगबुगाहट?

अगले वर्ष लोकसभा चुनाव होने हैं। जाहिर तौर पर सभी अपनी-अपनी राजनीति में जुट गये हैं। पिछले चार वर्षों तक लगभग खामोश रहने वाले एनडीए के दलित मंत्रियों और सांसदों ने भी मोर्चा खोल दिया है। क्या वे ऐसा केवल अपना खूंटा मजबूत बनाये रखने के लिए कर रहे हैं? संजीव चंदन की रिपोर्ट :

भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में राज कर रही राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में बंधन की गांठ कमजोर पड़ने लगी है। खासकर दलित नेताओं ने एक तरह से आवाज उठाना शुरू कर दिया है। इसी कड़ी में  बीते 23 जुलाई की शाम रामविलास पासवान के नेतृत्व में एनडीए के दलित नेताओं ने बैठक की। 

बैठक के तुरंत बाद लोजपा नेता और रामविलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि ‘रिटायरमेंट के तुरत बाद जस्टिस आदर्श कुमार गोयल को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल  का चेयरमैन बनाये जाने से दलित जनता नाराज हैं।’ चिराग इतना कहकर ही नहीं रुके उन्होंने ‘जस्टिस गोयल को इस पद से हटाने की मांग भी कर डाली।

केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के नेतृत्व में एनडीए के दलित मंत्रियों व सांसदों ने की बैठक

गौर तलब है कि जस्टिस गोयल और जस्टिस यू. यू. ललित की बेंच ने ही अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार अधिनियम (एट्रोसिटी एक्ट) के प्रावधानों को लेकर दिशानिर्देश दिये थे, जिसके खिलाफ 2 अप्रैल को दलित संगठनों ने भारत बंद किया। भारत बंद उत्तर भारत में काफी सफल रहा था। 6 जुलाई को जस्टिस गोयल रिटायर हुए और 9 जुलाई तक वे 5 साल के लिए एनजीटी में चेयरमैन नियुक्त कर दिए गये।

जाति का विनाश( लेखक डॉ. भीमराव आंबेडकर, हिंदी अनुवादक राजकिशोर) बिक्री के लिए अमेजन पर उपलब्ध

बैठक के बाद केन्द्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री (राज्य) रामदास आठवले ने ट्वीट किया कि ’20 मार्च 2018 को सुप्रीमकोर्ट में जस्टिस ए. के. गोयल और जस्टिस यू. यू. ललित की बेंच ने SC/ST ऐक्ट में बदलाव के निर्देश दिये उसके खिलाफ जनाक्रोश है। अभी जस्टिस गोयल को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल का चेयरमैन नियुक्त किया गया है। ऐसी नियुक्तयों से बचना चाहिए।’ इस नियुक्ति के खिलाफ भाजपा सांसद उदित राज ने भी मुंह खोला है।

बैठक में उठाये गये तीन एजेंडे

हालांकि रामविलास पासवान द्वारा बुलायी गयी बैठक के तीन एजेंडे थे- पहला एसएसटी एक्ट के लिए अध्यादेश लाने की सरकार से मांग, दूसरा पदोन्नति  में आरक्षण को सुनिचित कराने की मांग’ और तीसरा उच्च शिक्षा में आरक्षण, रोस्टर आदि के मुद्दे। इन तीन एजेंडों पर बात करते हुए नेताओं के बीच 9 अगस्त को दुबारा भारत बंद के आह्वान पर भी चर्चा हुई और उसके संभावित असर का विश्लेषण भी। दो अप्रैल को पिछले बंद के बाद देश भर से दलित युवाओं, सरकारी कर्मियों को परेशान करने, उनपर मुकदमा करने या उन्हें जेल भेजने की शिकायत भी इन नेताओं को मिली है।

बढ़ती जा रही है नाराजगी

भाजपा सांसद उदित राज ने  सरकार से आग्रह किया है कि 2 अप्रैल को दलित संगठनों द्वारा आयोजित भारत बंद के दौरान जिन दलित सत्याग्रहियों को अभी तक जेल में बंद कर रखा गया है उन्हें सरकार तुरत रिहा करे।  डॉ। राज ने कहा कि भारत बंद के दौरान देश के कई राज्यों में 10 दलित सत्याग्रहियों की मौत हुई। उनके अनुसार ये हत्याएं कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा किये गए जो अधिकतर सवर्ण समाज के लोग थे।

राजनीतिक विश्लेषकों के बीच इन नेताओं के इन विरोधी तेवरों को देखते हुए चर्चा का विषय यह भी है कि क्या दलित नेताओं के समर्थकों ने इनपर इतना दवाब बनाया है कि वे इतना मुखर बोल रहे है। इसके पहले ही भाजपा की एक और दलित सांसद सावित्रीबाई फुले ने खुलेआम सरकार की आलोचना करनी शुरू कर दी थी। यद्यपि सावित्रीबाई फुले अपनी आलोचना के साथ मुखर रही हैं लेकिन व्हिप जारी होने के बाद उन्होंने विपक्ष के  अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ अपना वोट दिया था।

चुनाव का भय

देश भर में दलितों पर हमलों की घटनाओं में विपक्ष की मुखरता उसे दलितों के प्रति संवेदनशील छवि दे रही है, जबकि सरकार ऐसे मामलों में कटघरे में है। सरकार में शामिल इन दलित नेताओं को न्यायालय के कई फैसलों और उनपर सरकार के लचीले रुख से भी जनता के बीच जवाब देने में परेशानी हो रही है। महाराष्ट्र में पिछले दिनों हुए विधान परिषद के चुनाव में आठवले की पार्टी आरपीआई (ए) को एक भी सीट नहीं मिलने के कारण उनकी पार्टी के नेताओं ने मीडिया में खुलकर बयान दिये, जिसका समर्थन करते हुए भी आठवले स्वयं नरेंद्र मोदी में आस्था जाताते दिखे। लेकिन सवाल है कि असंतोष कबतक दबाया जा सकता है। आखिरकार इन नेताओं को चुनाव में जाना है, जहाँ अपने नाराज समर्थकों से संवाद इन्हें ही बनाना है। आठवले कहते हैं ‘दलितों पर हमले के लिए राजनीतिक पार्टियों और सरकार से ज्यादा समाज में फैला जातिवाद जिम्मेवार है। हम सरकार को इसके लिए दोष नहीं दे सकते। विपक्ष कई बार मुद्दा बनाता है पर असल में यह सामाजिक समस्या है।’

और आख़िरी सवाल

सवाल इन नेताओं की बेचैनी के असर पर भी है। सवाल है कि क्या ये आवाजें भाजपा नेताओं का टिकट कटने के भय से बन रही हैं या क्या एनडीए के नेता आगामी चुनाव में अपनी सीट शेयरिंग के लिए दवाब की रणनीति के तहत काम कर रहे हैं? मसलन पिछली बिहार यात्रा में अमित शाह द्वारा नीतीश कुमार को दिये गये तबज्जो और सीट शेयरिंग में जदयू को मिलने वाली सीटों की बड़ी संख्या देखते हुए राम विलास पासवान दवाब के लिए मुखर हो रहे हैं? हालांकि कारण कई हो सकते हैं लेकिन फारवर्ड प्रेस ने पहले भी सरकार बनने के बाद इस आशय की खबरें और विश्लेषण छापे थे कि सरकार की नकेल पार्टी के दलित-बहुजन नेता ही कसेंगे। आरपीआई के राष्ट्रीय सचिव राजीव मेनन कहते हैं, ‘ दलित नेता एनडीए में रहकर भी भाजपा के एजेंडे और प्राथमिकताओं से अलग प्राथमिकता रखते हैं। इनसे जुड़े जमीनी कार्यकर्ताओं की जाति, उनके धर्म और उनकी आर्थिक स्थिति से भी इसे समझा जा सकता है।’

बहरहाल, दलित नेताओं के मन में आक्रोश गहराता जा रहा है। केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर अपनी ओर से उन्हें अवगत करा दिया है। अपने पत्र में उन्होंने एससी/एसटी एक्ट को और मजबूत व प्रभावकारी बनाने के लिए अध्यादेश लाने की मांग की है।

(कॉपी एडिटर : नवल)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें 

बहुजन साहित्य की प्रस्तावना 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

महिषासुर एक जननायक’

महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोकार 

लेखक के बारे में

संजीव चन्दन

संजीव चंदन (25 नवंबर 1977) : प्रकाशन संस्था व समाजकर्मी समूह ‘द मार्जनालाइज्ड’ के प्रमुख संजीव चंदन चर्चित पत्रिका ‘स्त्रीकाल’(अनियतकालीन व वेबपोर्टल) के संपादक भी हैं। श्री चंदन अपने स्त्रीवादी-आंबेडकरवादी लेखन के लिए जाने जाते हैं। स्त्री मुद्दों पर उनके द्वारा संपादित पुस्तक ‘चौखट पर स्त्री (2014) प्रकाशित है तथा उनका कहानी संग्रह ‘546वीं सीट की स्त्री’ प्रकाश्य है। संपर्क : themarginalised@gmail.com

संबंधित आलेख

केशव प्रसाद मौर्य बनाम योगी आदित्यनाथ : बवाल भी, सवाल भी
उत्तर प्रदेश में इस तरह की लड़ाई पहली बार नहीं हो रही है। कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह के बीच की खींचतान कौन भूला...
बौद्ध धर्मावलंबियों का हो अपना पर्सनल लॉ, तमिल सांसद ने की केंद्र सरकार से मांग
तमिलनाडु से सांसद डॉ. थोल थिरुमावलवन ने अपने पत्र में यह उल्लेखित किया है कि एक पृथक पर्सनल लॉ बौद्ध धर्मावलंबियों के इस अधिकार...
मध्य प्रदेश : दलितों-आदिवासियों के हक का पैसा ‘गऊ माता’ के पेट में
गाय और मंदिर को प्राथमिकता देने का सीधा मतलब है हिंदुत्व की विचारधारा और राजनीति को मजबूत करना। दलितों-आदिवासियों पर सवर्णों और अन्य शासक...
मध्य प्रदेश : मासूम भाई और चाचा की हत्या पर सवाल उठानेवाली दलित किशोरी की संदिग्ध मौत पर सवाल
सागर जिले में हुए दलित उत्पीड़न की इस तरह की लोमहर्षक घटना के विरोध में जिस तरह सामाजिक गोलबंदी होनी चाहिए थी, वैसी देखने...
फुले-आंबेडकरवादी आंदोलन के विरुद्ध है मराठा आरक्षण आंदोलन (दूसरा भाग)
मराठा आरक्षण आंदोलन पर आधारित आलेख शृंखला के दूसरे भाग में प्रो. श्रावण देवरे बता रहे हैं वर्ष 2013 में तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण...