कांग्रेसी रणनीति के तहत पहले सतीश प्रसाद सिंह और बाद में छोड़ दी बी.पी. मंडल के लिए कुर्सी
आजादी के बाद 1967 में लोकसभा और विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को जबदरस्त चुनौती मिली थी। केंद्र में कांग्रेस की सरकार जरूर बन गयी थी, लेकिन कई राज्यों की सरकार उसके हाथ निकल चुकी थी। उसी में एक था बिहार। बिहार में पहली बार गैरकांग्रेसी सरकार जन क्रांति दल (जेकेडी) के नेतृत्व में बनी और इसके नेता थे महामाया प्रसाद सिन्हा। इसे संविद सरकार यानी संयुक्त विधायक दल की सरकार कहा गया। महामाया प्रसाद सिन्हा ने पटना पश्चिम विधान सभा क्षेत्र से के. बी. सहाय को पराजित किया था।
महामाया प्रसाद सिन्हा ने 5 मार्च, 1967 को पदभार संभाला था। इनके गुट के कुल 24 विधायक थे, जबकि एसएसपी के विधायकों की संख्या 68 थी। कांग्रेस के कमजोर पड़ने के बाद पिछड़ावाद काफी मुखर होने लगा था। इसका असर संविद सरकार पर भी पड़ा। महामाया प्रसाद सिन्हा की सरकार में एसएसपी के तीन लोग ऐसे मंत्री बन गये थे, जिन्हें पार्टी संविधान के अनुसार मंत्री नहीं होना था। इसमें एक थे बी. पी. मंडल, जो लोकसभा के सदस्य रहते हुए राज्य सरकार में मंत्री थे। दूसरे थे रामानंद तिवारी, जो एसएसपी के प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए मंत्री थे और तीसरे थे भोला सिंह, जो एमएलसी होने के बावजूद मंत्री थे।
पूरा आर्टिकल यहां पढें : बी.पी. मंडल के सीएम बनने की कहानी, बिहार के पहले ओबीसी मुख्यमंत्री सतीश प्रसाद सिंह की जुबानी