आदिवासी अस्मिता और आत्मसम्मान होगा जयस का चुनावी मुद्दा
‘आदिवासी अधिकार महारैली’ आदिवासियों के आत्मसम्मान का आंदोलन है और संवैधानिक अधिकारों को हासिल करने के लिए एक जिद्द है। संविधान की पांचवीं अनुसूची को सख्ती से लागू कराना हमारी मुख्य मांग है। महारैली का मुख्य उद्देश्य यह है कि आदिवासी अपनी समस्याओं पर खुलकर बोल सकें और अपने अधिकारों के लिए सरकार से लड़ सकें।
‘आदिवासी अधिकार महारैली’ बीते 29 जुलाई, 2018 को रतलाम जिले के सातरुण्डा गांव से शुरू होकर झाबुआ, अलीराजपुर, धार, बड़वानी, खरगोन, बुरहानपुर, खंडवा और देवास जिले से होकर हरदा जिले के टिमरनी में 8 अगस्त, 2018 को प्रथम पड़ाव का समापन हुआ।
दूसरा पड़ाव 16 अगस्त, 2018 को होशंगाबाद जिले से शुरु होकर बैतूल, सिवनी, मालवा होते हुए रायसेन जिले में 18 अगस्त, 2018 को संपन्न हुई।
तीसरा पड़ाव 27 अगस्त, 2018 को शहडोल से शुरु होकर अनुपपुर, सीधी, उमरिया, डिंडोरी, मंडला होते हुए 31 अगस्त, 2018 को जबलपुर में संपन्न होगी। ‘आदिवासी अधिकार महारैली’ का समापन सभा का आयोजन आगामी 2 सितंबर, 2018 को धार जिले के कुक्षी तहसील के कृषि उपज मंडी में होगा।

हमारी यह ‘आदिवासी अधिकार महारैली’ कई मायनों में ऐतिहासिक रही। पहला यह कि आजादी के 70 साल के इतिहास में पहली बार आदिवासी युवाओं ने अपने नेतृत्व में अपने झंडे और डंडे के नीचे– जल-जंगल-ज़मीन की लड़ाई के लिए, अस्तित्व और अस्मिता के लिए, आत्मसम्मान, स्वाभिमान और पहचान के लिए– इतने बड़े क्षेत्र में रैली निकालकर जंगलों-पहाड़ों में रहने वाले आदिवासियों के अंदर स्वाभिमान जगाने के साथ-साथ एक नई राजनीतिक चेतना पैैदा करने में सफलता हासिल की है। इसका परिणाम आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनाव में ज़रुर देखने को भी मिलेगा। यहीं कारण है कि हमारे प्रथम चरण की रैली से ही भाजपा और कांग्रेस जैसी पार्टियों के सांस फूलने लगे हैं।
आदिवासी अधिकार महारैली में सभी आदिवासी बहुल जिलों के हजारों की संख्या में युवाओं ने एकजुट होकर भाजपा और कांग्रेस जैसी पार्टियों की धड़कने बढ़ा दी है। भाजपा और कांग्रेस को अब समझ में आ रहा होगा, जो पिछले 70 सालों से आदिवासी वोट हासिल करने के लिए शराब, मुर्गे, बकरे, कपड़े, पैसे और तमाम तरह के प्रलोभन देते रहे हैं।
मुझे यह बताने में बहुत गर्व महसूस हो रहा है कि सभी गांवों के आदिवासी ग्रामीणों ने भाजपा और कांग्रेस की जमानत जब्त करवाने का संकल्प लिया है। इससे बड़ी जागरुकता और क्या चाहिए कि उन्होंने खुद इन राजनीतिक पार्टियों के खिलाफ माेर्चा खोल दिया है। यह देखकर मुझे बहुत खुशी होती है जब किसी गांव में महारैली के पहुंचने से पहले ही वहां के लोग ‘अबकी बार आदिवासी सरकार’ का नारा लगाने लगते हैं। जयस ने यह नारा आदिवासी युवाओं में नये सामाजिक-राजनीतिक नेतृत्व के उभार के लिए दिया है। यानि हमारी बात सभी जगह पहुंच रही है। पिछले 6-7 सालों से लगातार जयस के युवाओं की मेहनत रंग ला रही है। अबकी बार इसका परिणाम भी दिखेगा।
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जयस ने जिस तरह से आम आदिवासियों के दिलो-दिमाग में जगह बनाने में सफलता हासिल की है, पिछले 70 सालों में शायद ही किसी भी संगठन या आदिवासी नेता ने इतने बड़े स्तर पर सफलता पायी हो, क्योंकि जयस आदिवासियत के लिए समर्पित है।
आदिवासी अधिकार महारैली के माध्यम से हमने प्रदेश और देश के आदिवासियों के संवैधानिक अधिकार– पांचवी अनुसूची, पेसा कानून, वनाधिकार कानून को सख्ती से धरताल पर लागू करवाने, मनावर तहसील के 32 आदिवासी गांवों की ज़मीन का अल्ट्राटेक सीमेंट फैक्ट्री द्वारा अधिग्रहण को निरस्त करने, धामनोद नगर परिषद के 12 आदिवासी गांवों के विस्थापन को निरस्त करने संबंधी मुद्दों पर लोगों काे जागरुक करने का प्रयास किया। साथ ही यावल वाइल्ड लाइफ प्रोजेक्ट सेंचुरी के नाम पर मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के सतपुड़ा क्षेत्र में 244 आदिवासी गांवो के विस्थापन प्रस्तावित योजना के खिलाफ आदिवासियों को एकजुट होकर लड़ने, अपनेे संवैधानिक अधिकारों एवं ग्राम सभा की ताकत को जानने, आदिवासी क्षेत्रों के मूलभूत मुद्दे जैसे– पलायन, कुपोषण, बेरोजगारी, बदतर स्वास्थ्य व्यवस्था, बदतर शिक्षा व्यवस्था समेत तमाम मुद्दों पर लोगों को सरकार से सवाल करने के लिए जागरुक किया गया।
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महारैली के माध्यम से लोगों को मालूम है– “जयस के समर्थन में 80 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा जाएगा।” मैंने लोगों से आह्वान किया– मध्य प्रदेश में इस बार आदिवासी मुख्यमंत्री होना चाहिए। मुझे विश्वास है कि मध्य प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में जयस के समर्थन में 80 विधानसभा सीटों पर शिक्षित आदिवासी युवा चुनावी मैदान में उतरेंगे और पिछले 70 सालों से आदिवासी इलाकों में राज करने वाली भाजपा-कांग्रेस के प्रत्याशियों की जमानत जब्त करवाएंगे।
मुझे खुशी है कि अगामी 5 महीनों बाद नई सरकार बनाने का सपना देखने वाली भाजपा और कांग्रेस के सारे राजनीतिक समीकरण बिगड़ गये हैं एवं मध्य प्रदेश की राजनीति में हलचल मच गई है। इतनी बड़ी संख्या में आदिवासी किसी भी राजनीतिक पार्टी की रैली में कभी भी नहीं शामिल हुए जितनी ‘आदिवासी अधिकार महारैली’ में शामिल हुए।
विश्व आदिवासी दिवस के उपलक्ष्य में बीते 8 और 9 अगस्त, 2018 को जयस द्वारा आयोजित कई कार्यक्रमों में 50 हजार से एक लाख की संख्या में आदिवासी शामिल हुए। यह बिना पैसे वाली भीड़ थी। आदिवासियों की यह संख्या मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार के लिए संदेश था कि अब आदिवासी जागरुक हो गये हैं और अपने अधिकार लेकर रहेंगे।
आदिवासी अधिकार महारैली का पहला चरण आत्मसम्मान और संवैधानिक मुद्दे पर केंद्रित रहा, वहीं दूसरा चरण आदिवासियों पर सरकारी दमन और विस्थापन पर केंद्रित रहा। तीसरा चरण, पहले और दूसरे चरण के मुद्दों के साथ-साथ आदिवासी संस्कृति, रीति-रिवाज और परंपराओं के संरक्षण के मुद्दों पर केंद्रित रहा।

हमने महारैली के दौरान महसूस किया कि लोग सरकार से बहुत क्षुब्ध हैं। उनमें भारी रोष है। कोई भी इनकी अावाज सुनने वाला नहीं है। हमने लोगों को विश्वास दिलाया कि यदि जयस की सरकार बनी तो निश्चित ही सभी मांगों पर इमानदारी से अमल किया जाएगा। उनकी आवाज को दबने नहीं दिया जाएगा।
मुझे बहुत दुख होता है जब कोई सरकारी प्रोजेक्ट आती है और कभी वाइल्ड लाइफ सेंचुरी, कभी बांध, तो कभी खनन के लिए संविधान के नियमों का उल्लंघन करके आदिवासियाें को उनके जमीन से उजाड़ दिया जाता है। जब वे विरोध करते हैं तब या तो मार दिये जाते हैं या जेल में डाल दिया जाता है। मैंने आदिवासी लोगों से आह्वान किया है कि वे आगामी विधानसभा चुनाव में इसका जवाब दें। लोगों ने भी जयस को समर्थन देने का वादा किया है। मुझे पूरा विश्वास है कि मध्यप्रदेश में ‘अबकी बार आदिवासी सरकार’ बनेगी।
(कॉपी-संपादन : राजन/एफपी डेस्क)
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