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एससी-एसटी नहीं, सिर्फ ओबीसी पर लागू होगा क्रीमी लेयर : मोदी सरकार

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से साफ़ कहा है कि दलितों और आदिवासियों का पिछड़ापन अभी दूर नहीं हुआ है और इसलिए उनके आरक्षण के मामले में क्रीमी लेयर का मामला लागू नहीं होता है। परंतु केंद्र ने क्रीमी लेयर के मामले में सुप्रीम कोर्ट में ओबीसी का बचाव नहीं किया। बता रहे हैं अशोक झा :

दलितों और आदिवासियों को पदोन्नति में आरक्षण मिलने को लेकर एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि क्या अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति  के संपन्न लोगों को सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण के कोटे से बाहर किया जा सकता है या नहीं ताकि इन समुदायों में जो पिछड़ रहे हैं उनको भी आगे आने का मौक़ा मिल सके।  

सरकार की ओर  से अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने इसके जवाब  में सुप्रीम कोर्ट से कहा कि एससी और एसटी के क्रीमी लेयर को इस आरक्षण से बाहर नहीं किया जा सकता।  उन्होंने कहा कि चूंकि क़ानूनन उनको पिछड़ा माना गया है इसलिए उनमें क्रीमी लेयर का प्रावधान लागू नहीं हो सकता। उन्होंने पीठ से कहा की सिर्फ कुछ लोग संपन्न  हो गए हैं इस वजह से उनका पिछड़ापन दूर नहीं हो जाएगा।

अटॉर्नी जनरल ने कहा की अनुसूचित जातियों से आज भी भेदभाव होता है, ऊंची जातियों में उन्हें शादी नहीं करने दिया जाता, उनको घोड़े पर चढ़ने नहीं देते। उनके पिछड़ेपन को ध्यान में रखते हुए वेणुगोपाल ने एससी और एसटी को नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण जारी रखने की अपील की।  

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सुनवाई के दौरान पीठ ने  पूछा कि एम. नागराजा मामले में फैसला आए 12  साल हो गए हैं, अभी तक राज्यों ने सरकारी नौकरियों में एससी  और एसटी को कम प्रतिनिधित्व मिलने पर कोई मात्रात्मक आंकड़ा क्यों नहीं  प्रस्तुत किया है ताकि इस बारे में कोई निर्णय लिया जा सके।

इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा की इसकी कोई जरूरत  नहीं है क्योंकि यह माना जा रहा है कि एससी -एसटी अभी भी पिछड़े हुए हैं और यह साबित  करने के लिए किसी आंकड़े की जरूरत नहीं है।

अटॉर्नी जनरल  कहा कि एम. नागराजा मामले में आए फैसले पर पुनर्विचार की जरूरत है क्योंकि  इस फैसले ने पदोन्नति आरक्षण के लिए बहुत ही शर्तें लगा दी हैं। उन्होंने कहा कि इस फैसले द्वारा इन लोगों के साथ काफी अन्याय  हुआ क्योंकि फैसले में यह नहीं बताया गया कि राज्य सरकार को मात्रात्मक आंकड़ों में ऐसी कौन सी जानकारी जुटानी चाहिए जो ऐसे वर्ग के पिछड़ेपन या उनके अपर्याप्त प्रतिनिधित्व को साबित कर सके।   

सुप्रीम कोर्ट, नई दिल्ली

बीते 16 अगस्त 2018 को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने केंद्र सरकार से पूछा कि एससी और एसटी वर्ग के सुखी संपन्न लोगों को आरक्षण के लाभ से वंचित क्यों नहीं किया जा सकता है। इस पीठ में कुरियन जोसफ, आर.एफ. नरीमन, संजय किशन कौल और इंदु मल्होत्रा भी हैं।

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इस तरह केंद्र सरकार ने स्पष्ट  कर दिया है कि वह एससी और एसटी के लिए क्रीमी लेयर के प्रस्ताव को नकारती है क्योंकि यह वर्ग आज भी पिछड़ा है।

इस मामले में अगली सुनवाई अब 22 अगस्त को होगी।

सुप्रीम कोर्ट भी यह मानती है कि संविधान की धारा 16(4) सभी पिछड़े वर्गों के हितों की रक्षा करती है। बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर ने भी 1949 में इस धारा के संबंध में यही कहा था। ओबीसी मामलों के जानकार के कोंडाला राव  ने अपनी पुस्तिका ‘ओबीसी एंड स्टेट पालिसी’ में कहा है कि जहां तक प्रतिनिधित्व का सवाल है, वर्ष 2004 में ओबीसी की स्थिति एससी और एसटी से भी बदतर थी। उन्होंने लिखा है कि जब इन तीनों समूहों को पदोन्नति में आरक्षण देने के मामले पर विचार हो तो इनकी आनुपातिक जनसंख्या को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।  और इसी आधार पर उनका कहना है कि संविधान का 77वां संशोधन ओबीसी के साथ भेदभाव करता है और इसीलिए इसके आधार पर बनाई गई राज्य की नीतियाँ भी भेदभावपूर्ण हो गई है। इनमें बहुत सारी बातें उस समय स्पष्ट हो जाएंगी अगर जाति आधारित जनगणना को प्रकाशित कर दिया जाए।

(कॉपी-संपादन : एफपी डेस्क)


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लेखक के बारे में

अशोक झा

लेखक अशोक झा पिछले 25 वर्षों से दिल्ली में पत्रकारिता कर रहे हैं। उन्होंने अपने कैरियर की शुरूआत हिंदी दैनिक राष्ट्रीय सहारा से की थी तथा वे सेंटर फॉर सोशल डेवलपमेंट, नई दिल्ली सहित कई सामाजिक संगठनों से भी जुड़े रहे हैं

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