h n

आंखन देखी : जब जगदेव बाबू ने कहा – सौ में नब्बे भाग हमारा है

वह जगदेव प्रसाद ही थे जिन्होंने शोषित दल बनाकर बिहार में पिछड़ों और दलितों की राजनीति को सवर्णों की राजनीति के समानांतर खड़ा कर दिया। हालांकि वे खुद मुख्यमंत्री नहीं बन सके लेकिन उनके कारण ही बी.पी. मंडल, दारोगा प्रसाद राय, कर्पूरी ठाकुर, भोला पासवान शास्त्री आदि सत्ता के शीर्ष पर बैठ सके। लेकिन जगदेव बाबू का संघर्ष अभी अधूरा है। बता रहे हैं शोषित समाज दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष रघुनीराम शास्त्री :

शहीद जगदेव प्रसाद (2 फरवरी 1922 – 5 सितंबर 1974) और बी. पी. मंडल (25 अगस्त 1918 – 13 अप्रैल 1982) का राजनीतिक संघर्ष

जब बाल गंगाधर तिलक ने कहा कि ‘गड़ेरिया, नाई, धोबी, बढ़ई, लोहार, कोईरी, कुर्मी, मल्लाह, तेली, चमार आदि संसद में आकर क्या तेल पेरेंगे, हल जोतेंगे, कपड़ा धोयेंगे, जूता बनायेंगे? इनकी संसद में क्या जरूरत है?’ इस हिकारतपूर्ण कथन के विरोध में तभी से देश के दलित-पिछड़ों में एक उभार आरम्भ हुआ और इसकी परिणति के रूप में किसी व्यक्ति का नाम सामने आता है, तो वे हैं शहीद जगदेव प्रसाद। शहीद जगदेव प्रसाद ने देश  की धन-धरती, नौकरी, व्यापार से लेकर शासन-प्रशासन में जनसंख्या के अनुपात में हिस्सेदारी के लिए शंखनाद किया, तो बी.पी. मंडल ने पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष की हैसियत से सिफारिश करके उक्त स्थानों में कानूनी प्रक्रिया को मूर्त रूप प्रदान किया। जगदेव प्रसाद ने इसकी शुरूआत 60-65 के दशक में कर दी थी। जब पिछड़ों-दलितों के हक-हकूक की बात करना लोहे के चने चबाने जैसा था। यह एक युगांतकारी आन्दोलन था।

 

 

लेखक के बारे में

रघुनीराम शास्त्री

रघुनीराम शास्त्री शोषित समाज दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। संपर्क : (मोबाइल) +919955253715

संबंधित आलेख

सावित्रीबाई फुले, जिन्होंने गढ़ा पति की परछाई से आगे बढ़कर अपना स्वतंत्र आकार
सावित्रीबाई फुले ने अपने पति जोतीराव फुले के समाज सुधार के काम में उनका पूरी तरह सहयोग देते हुए एक परछाईं की तरह पूरे...
रैदास: मध्यकालीन सामंती युग के आधुनिक क्रांतिकारी चिंतक
रैदास के आधुनिक क्रांतिकारी चिंतन-लेखन को वैश्विक और देश के फलक पर व्यापक स्वीकृति क्यों नहीं मिली? सच तो यह कि उनकी आधुनिक चिंतन...
जब नौजवान जगदेव प्रसाद ने जमींदार के हाथी को खदेड़ दिया
अंग्रेज किसानाें को तीनकठिया प्रथा के तहत एक बीघे यानी बीस कट्ठे में तीन कट्ठे में नील की खेती करने के लिए मजबूर करते...
डॉ. आंबेडकर : भारतीय उपमहाद्वीप के क्रांतिकारी कायांतरण के प्रस्तावक-प्रणेता
आंबेडकर के लिए बुद्ध धम्म भारतीय उपमहाद्वीप में सामाजिक लोकतंत्र कायम करने का एक सबसे बड़ा साधन था। वे बुद्ध धम्म को असमानतावादी, पितृसत्तावादी...
डॉ. आंबेडकर की विदेश यात्राओं से संबंधित अनदेखे दस्तावेज, जिनमें से कुछ आधारहीन दावों की पोल खोलते हैं
डॉ. आंबेडकर की ऐसी प्रभावी और प्रमाणिक जीवनी अब भी लिखी जानी बाकी है, जो केवल ठोस और सत्यापन-योग्य तथ्यों – न कि सुनी-सुनाई...