शहीद जगदेव प्रसाद (2 फरवरी 1922 – 5 सितंबर 1974) और बी. पी. मंडल (25 अगस्त 1918 – 13 अप्रैल 1982) का राजनीतिक संघर्ष
जब बाल गंगाधर तिलक ने कहा कि ‘गड़ेरिया, नाई, धोबी, बढ़ई, लोहार, कोईरी, कुर्मी, मल्लाह, तेली, चमार आदि संसद में आकर क्या तेल पेरेंगे, हल जोतेंगे, कपड़ा धोयेंगे, जूता बनायेंगे? इनकी संसद में क्या जरूरत है?’ इस हिकारतपूर्ण कथन के विरोध में तभी से देश के दलित-पिछड़ों में एक उभार आरम्भ हुआ और इसकी परिणति के रूप में किसी व्यक्ति का नाम सामने आता है, तो वे हैं शहीद जगदेव प्रसाद। शहीद जगदेव प्रसाद ने देश की धन-धरती, नौकरी, व्यापार से लेकर शासन-प्रशासन में जनसंख्या के अनुपात में हिस्सेदारी के लिए शंखनाद किया, तो बी.पी. मंडल ने पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष की हैसियत से सिफारिश करके उक्त स्थानों में कानूनी प्रक्रिया को मूर्त रूप प्रदान किया। जगदेव प्रसाद ने इसकी शुरूआत 60-65 के दशक में कर दी थी। जब पिछड़ों-दलितों के हक-हकूक की बात करना लोहे के चने चबाने जैसा था। यह एक युगांतकारी आन्दोलन था।
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