अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगों के सम्मान और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए बनाया गए एससी/एसटी एक्ट को संसद ने फिर से सशक्त बनाया है। इसके लिए संसद में कानून पास कर सर्वोच्च न्यायालय के 30 मार्च,2018 के उस फैसलों को रद्द कर दिया गया, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने एससी-एसटी एक्ट को कमजोर बनाने की कोशिश की थी।
संसद द्वारा एक्ट को अधिकार संपन्न बनाने के फैसलों का कुछ सामाजिक संगठनों ने विरोध किया है। बिहार में इस मुद्दे पर भूमिहार-ब्राह्मण एकता मंच आगे बढ़कर विरोध के स्वर को मुखर बना रहा है। 30 अगस्त को एससी/एसटी एक्ट के खिलाफ बिहार बंद के दौरान इसी संगठन के कार्यकर्ताओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। कई जिलों में बंद असर आंशिक रहा, जबकि कई जिलों में बंद का असर नहीं दिखा। गया में बंद के दौरान आगजनी भी की गयी और मौके पर पहुंची पुलिस पर उपद्रवियों ने पथराव भी किया। इसके अलावा नालंदा, बेगूसराय, पटना के बाढ़ और लखीसराय में बंद समर्थकों ने सड़क आवागमन को बाधित कर दिया। ये लोग आर्थिक आधार पर आरक्षण की मांग भी कर रहे थे।

कौन कर रहा है सपोर्ट : एससी/एसटी एक्ट के खिलाफ आंदोलन को किसी पार्टी का प्रत्यक्ष समर्थन नहीं मिल रहा है। कोई भी पार्टी नेता उसके पक्ष में नहीं बोल रहे हैं। इसके बावजूद परदे के पीछे से सवर्ण जाति के कुछ नेता इन उपद्रवी तत्वों को समर्थन दे रहे हैं। भूमिहार-ब्राह्मण एकता मंच मूलत: भूमिहार जाति के युवाओं का संगठन है और कुछ भूमिहार नेताओं का उन्हें समर्थन प्राप्त है। इन संगठनों को आर्थिक मदद भी की जा रही है।
दलितों के बंद का असर : एससी-एसटी एक्ट को कमजोर करने वाले सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ देश में दलित संगठनों ने 2 अप्रैल को भारत बंद का आयोजन किया था। इसका कई दलों ने समर्थन भी किया था। इस कारण भारत बंद अभूतपूर्व साबित हुआ था। इसका इतना व्यापक असर हुआ कि सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को लेकर पुनर्विचार याचिका भी दायर की थी। बाद में सरकार ने संसद में कानून बनाकर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को निरस्त कर दिया था।
संयम की आवश्यकता : दलितों द्वारा आयोजित भारत बंद की सफलता के बाद सवर्ण जातियों में भी एससी-एसटी एक्ट के विरोध का ट्रेंड चल पड़ा है। इसमें सवर्ण जाति के युवा आगे आते दिख रहे हैं। लेकिन संपूर्ण समाज का इन्हें सहयोग नहीं मिल रहा है। इस कारण उनका विरोध प्रतीकात्मक बन कर रह जाता है। ऐसे विरोधों को लेकर दलित समुदाय के लोग संयम बरत रहे हैं।
(कॉपी संपादन : सिद्धार्थ)
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