पी.एस. कृष्णन : सामाजिक न्याय का प्रश्न दलितों/अनुसूचित जातियों (एससी), सामाजिक और शैक्षणिक तौर पर पिछड़े वर्गों (एसइडीबीसी/बीसी) और आदिवासी/अनुसूचित जातियों (एसटी) से जुड़ा रहा है। सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष मेरे जीवन के सुनहरे क्षण रहे हैं, यह संघर्ष मेरे पूरे जीवन के साथ जुड़ा रहा है। किशोर अवस्था से लेकर अब तक मैं इस संघर्ष से जुड़ा रहा हूं, इसमें मेरे 1956 में आईएएस बनने से लेकर 1990 के अंत तक का सेवाकाल शामिल है। जहां तक इस प्रश्न का संबंध है कि क्या चीज मुझे सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष का रास्ता चुनने और इसे अपनाने की ओर ले गई, यह प्रश्न मुझसे कई बार अन्य लोगों ने भी आवेगपूर्ण तरीके से पूछा। सच्ची बात यह है कि मेरे मित्र मुझसे आत्मकथा लिखने के लिए कहते रहे हैं। सितंबर 2015 से 2016 तक मैं गंभीर बीमारी का शिकार रहा, जब मैं बीमारी की इस स्थिति से उबरा तो श्री के. माधव राव (आंध्रप्रदेश कैडर में सीधी भर्ती से आईएएस बनने बाले तीसरे दलित व्यक्ति, जो मुख्य सचिव के पद पर रहते हुए सेवानिवृत हुए) ने मुझे शिद्दत के साथ इस बात की याद दिलायी। उन्होंने आत्मकथा लिखने के संबंध में अपने बहुत पहले के अनुरोध को याद दिलाया और मुझसे आग्रह किया कि बिना समय गंवाये मुझे यह काम कर देना चाहिए।
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