h n

मेरी राजनीति का केंद्र में अब भी बहुजन समाज : देवाशीष जरारिया

मध्य प्रदेश में बसपा का चेहरा बन चुके देवाशीष जरारिया ने हाल ही में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली। उनके इस कदम पर विभिन्न तरह की प्रतिक्रियायें सामने आ रही हैं। इसके अलावा कांग्रेस के साथ वे बहुजन की राजनीति कैसे कर सकेंगे, यह सवाल भी उठाया जा रहा है। प्रस्तुत है देवाशीष जरारिया से खास बातचीत

मध्य प्रदेश की राजनीति में बीते दिनों एक दिलचस्प मोड़ तब आया जब बसपा के युवा चेहरे के रूप में अपनी पहचान बना चुके देवाशीष जरारिया कांग्रेस में शामिल हुए। चुनावी राजनीति में बहुजन समाज में खासी पकड़ रखने वाले युवा चेहरे को अपने साथ जोड़ने से कांग्रेस को कितना लाभ होगा, यह तो वक्त ही बताएगा। लेकिन दलित आंदोलनों की प्रतिक्रिया में अब जिस तरह से सवर्ण आंदोलन प्रदेश भर में चल रहा है उससे इन सभी पहलुओं की अहमियत सत्तारूढ़ सरकार के लिए बढ़ जाती है। भारतीय जनता पार्टी मध्य प्रदेश में पिछले लगभग डेढ़ दशक से सत्तासीन है। जाहिर तौर पर वह हार का मुंह नहीं देखना चाहती है। वहीं सत्ता परिवर्तन के लिए कांग्रेस हरसंभव प्रयास कर रही है। ऐसे में तमाम सवालों को लेकर बी. साना ने देवाशीष जरारिया से बातचीत की। प्रस्तुत है संपादित अंश :

आपने हाल ही में कांगेस पार्टी की सदस्यता ली। इस पर बहुजन समाज के अलग-अलग हिस्सों की प्रतिक्रिया किस तरह की है?

मैं बहुजन विचारधारा पर काम करता रहा हूं। देश भर में इसी विचार को आगे बढ़ाने के उद्देश्य के साथ बड़ी संख्या में मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों के समर्थक मुझसे जुड़े हैं। बसपा छोड़ कांग्रेस में जाने के मेरे निर्णय से निश्चित ही उत्तर प्रदेश के मेरे समर्थक नाराज हैं। उनके लिए मेरा यह कदम शाॅकिंग था। सही बात है कि मेरे इस पक्ष पर उत्तर प्रदेश में विरोध है लेकिन अगर मध्य प्रदेश के संदर्भ में मेरे इस कदम को देखें तो यहां लोग इसके समर्थन में हैं। उत्तर प्रदेश में जो कार्यकर्ता आज मेरे विरोध में हैं उनका यह गुस्सा अस्थायी है। अगर वे भी इस निर्णय के दूरगामी परिणामों पर विचार करेंगे तो मुझे सही पायेंगे।

मध्यप्रदेश के जिस इलाके से आप आते हैं, वहां बीते दिनों दलित आंदोलन सक्रिय रहा। अब सवर्ण आंदोलन भी जोर पकड़ चुका है। इसे कैसे देखते हैं?

देखिए, दोनों आंदोलनों का मैं प्रमुख बिंदु रहा हूं। मध्यप्रदेश के जिन इलाकों में दलित आंदोलन सक्रिय रहा है मैंने वहां लंबे समय से काम करता रहा हूं। अब यहां अन्य संगठन भी सवर्ण आंदोलन कर रहे हैं। यदि हम गहन विचार करेंगें तो पायेंगे कि हर आंदोलन के प्रतीकात्मक रूप से कुछ फायदे और नुक्सान होते हैं। सवर्ण समर्थन वाले आंदोलनों से मध्य प्रदेश में निश्चित ही सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को नुक्सान होगा। यह वर्ग भाजपा का पारंपरिक वोटर रहा है। ऐसे में दलित आंदोलन के बाद सवर्ण आंदोलन भी सरकार के लिए एक कठिन चुनौती है।

  • बसपा में युवाओं के लिए स्पेस न होने से पार्टी छोड़ी

  • ब्रेन-डेन रोकने के लिए बसपा में बदलाव की बड़ी जरूरत

  • राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस में बदलाव का दौर

  • राजनीति में संतुलन के लिए अलग-अलग आवाजों के लिए स्पेस जरूरी

  • भारत की तमाम बड़ी सामाजिक और आर्थिक समस्याओं की जड़ जाति

आपकी सोशल मीडिया फैन फॉलोइंग अच्छी खासी है, लेकिन अब जबकि आपने कांग्रेस की सदस्यता ले ली है। क्या इससे कोई फर्क पड़ा है?

सोशल मीडिया पर देश भर में लाखों लोगों तक मेरी सीधी पहुंच है। मैं अब कांग्रेस में रहकर भी बहुजन समाज के मुद्दों पर सक्रिय हूं। जहां तक मेरे राजनैतिक शिफ्ट और सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं की बात है तो इस वक्त जरूर मेरे प्रति नेगेटिव सेंटिमेंट्स हैं। इसमें निश्चित ही उत्तर प्रदेश में मेरे फालोअर्स में नेगेटिव माहौल है। लेकिन मेरा यह निर्णय दूरगामी है। मैं समझता हूं कि यह नेगेटिव सेंटिमेंट अस्थायी है। मैं अपने समर्थकों को यकीन दिलाना चाहता हूं कि मैं हमेशा ही बहुजन समाज के मुद्दों को इसी प्रकार आगे भी उठाता रहूंगा।

बहुजन विमर्श को विस्तार देतीं फारवर्ड प्रेस की पुस्तकें

आप एक युवा चेहरा हैं। नौजवानों में खासा प्रभाव भी है। कांग्रेस के साथ खुद का भविष्य कैसा देखते हैं?

कांग्रेस में भी वक्त के साथ बहुत बदलाव आया है। पार्टी के मुखिया राहुल गांधी जी के नेतृत्व में पूरी कांग्रेस पार्टी एक नए बदलाव के दौर में है। मुझे लगता है कि आज की जो कांग्रेस है उसमें अलग-अलग आवाजों के लिए खासा स्पेस है। मैं कांग्रेस में शामिल हुआ हूं तो यहां मुझे बिना किसी गाइड लाइन के बोलने दिया जाता है। मुझे महसूस हुआ है कि कांग्रेस पार्टी भी मुझे सकारात्मक तरीके से ले रही है। जिन बातों को मैं बसपा में रहकर उठाता था, उन्हीं मुद्दों को अब कांग्रेस में रहकर भी उठाता रहूंगा।

मध्य प्रदेश में चुनावी कार्यक्रम में देवाशीष जरारिया

आप टेलीविजन पर अच्छी बहस करते हैं। सामाजिक मुद्दों को लेकर सक्रिय रहते हैं। राजनीति में आपका ध्येय क्या है?

राजनीति में मेरा अल्पकालिक लक्ष्य केवल शिवराज सरकार का सफाया करना है। यह भी मेरा तात्कालिक ध्येय है कि अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में मैं भाजपा को हटा सकूं। बाकी मेरी राजनीति बहुजन विचारों के लिए ही है। मैं आगे भी इसी पर काम करूंगा। बहुजन विचार पर काम करने वाले संगठनों से मैं कहूंगा कि वे अलग-अलग आवाजों को अपने यहां स्पेस दें। ये दल अपने लिए काम कर रहे टैलेंटेड युवाओं को अपने यहां अवसर दें। बेहतर समाज में सभी दलों और विचारों का होना आवश्यक हैं। राजनीति में अलग-अलग आवाजों का होना संतुलन के लिए आवश्यक है।

आपके बहुत से फालोअर्स बहुजन समाज की राजनीति के कायल रहे हैं। अब आप कांग्रेस में हैं। उनकी अपेक्षाओं पर कैसे खरा उतरेंगे? उन्हें क्या संदेश देंगे?

मैं स्वयं में कोई परिवर्तन महसूस नहीं करता हूं। मेरा सामाजिक दृष्टिकोण अब भी वही है। मैं अपने फालोअर्स को कहना चाहता हूं कि वे मेरे फैसले का सही विश्लेषण करेें। मुझे समझें और मौका दें। बसपा में युवाओं को मौका नहीं मिल रहा है। मैं यह भी कहना चाहता हूं कि अगर मेरे जाने से वहां पर कोई प्लेटफार्म बनता है तो यह जरूर सुखद रहेगा। लेकिन एक सवाल महत्वपूर्ण है कि क्यों बसपा जैसे दलों में सेंकेड लीडरशिप विकसित नहीं हो रही है। युवाओं को वहां क्यों नकारा जा रहा है। सवाल यह भी है कि बहुजन समाज की बात करने वाला युवा कहां जाएगा। ऐसे में अगर कांग्रेस प्लेटफार्म दे रही है तो दूसरे दलों में युवा क्यों न जाए। ब्रेन-ड्रेन को रोकने के लिए बसपा जैसी पार्टियों को अवश्य ही कदम उठाने होंगे।

कांशीराम जी और मायवती जी की राजनीति के बारे में आपकी क्या राय है?

मान्यवर कांशीराम जी एक राजनेता, समाज सुधारक और बड़े चिंतक थे। वे एक महापुरूष थे। जहां तक दोनों की राजनीति की बात है तो मायावती और कांशीराम जी की राजनीति में जमीन-आसमान का अंतर है। मायावती जी एक अच्छी प्रशासक हैं। वर्तमान राजनीति का जो दौर है बसपा उससे कदमताल नहीं मिला पा रही है। बसपा में कोई बदलाव हमें देखने को नहीं मिल रहा। युवा नेतृत्व उभर कर सामने नहीं आया। मेरा मानना है कि समय के हिसाब से बदलना आवश्यक है। बडी से बड़ी सत्ताएं बदली हैं। बाबा साहब डॉ. आंबेडकर ने भी कहा था कि “एक विचार भी मर सकता है अगर उसे सही तरीके से प्रोपेगेट नहीं किया जाए।” तो बसपा को अपने विचारों को सही ढंग से प्रचारित करने की जरूरत है। मैं समझता हूं कि वर्तमान में बसपा में बड़े बदलावों की आवश्यकता है।

क्या आप एक दलित नेता के रूप में वामपंथ के विचारों को दलितों के उत्थान के लिए उपयोगी मानते हैं?

मैं वामपंथ में विश्वास नहीं करता। पूरी दुनिया के संदर्भ में वामपंथ जिस क्लास डिफरेंस की जो बात करता है, मैं उससे सहमति नहीं रखता। वामपंथ भारत में क्लास और कास्ट की बात एक साथ नहीं करता। अगर हम वामपंथ को देखें तो उसमें कहीं भी कास्ट की बात नहीं दिखती। कम्युनिज्म भारत में केवल वर्ग संघर्ष की बात करता है। मैं समझता हूं कि भारत में सभी सामाजिक और आर्थिक समस्याओं की जड़ जाति है। भारत में पहले जातिमुक्त समाज की आवश्यकता है।

(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। हमारी किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, संस्कृति, सामाज व राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के सूक्ष्म पहलुओं को गहराई से उजागर करती हैं। पुस्तक-सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

महिषासुर एक जननायक

महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोकार

लेखक के बारे में

बी. साना

बी.साना ने मीडिया व संचार के क्षेत्र में उच्च शिक्षा प्राप्त की है तथा पिछले एक दशक से मीडिया-अध्यापन व लेखन में सक्रिय हैं

संबंधित आलेख

वोट देने के पहले देखें कांग्रेस और भाजपा के घोषणापत्रों में फर्क
भाजपा का घोषणापत्र कभी 2047 की तो कभी 2070 की स्थिति के बारे में उल्लेख करता है, लेकिन पिछले दस साल के कार्यों के...
शीर्ष नेतृत्व की उपेक्षा के बावजूद उत्तराखंड में कमजोर नहीं है कांग्रेस
इन चुनावों में उत्तराखंड के पास अवसर है सवाल पूछने का। सबसे बड़ा सवाल यही है कि विकास के नाम पर उत्तराखंड के विनाश...
मोदी के दस साल के राज में ऐसे कमजोर किया गया संविधान
भाजपा ने इस बार 400 पार का नारा दिया है, जिसे संविधान बदलने के लिए ज़रूरी संख्या बल से जोड़कर देखा जा रहा है।...
केंद्रीय शिक्षा मंत्री को एक दलित कुलपति स्वीकार नहीं
प्रोफेसर लेल्ला कारुण्यकरा के पदभार ग्रहण करने के बाद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) की विचारधारा में आस्था रखने वाले लोगों के पेट में...
आदिवासियों की अर्थव्यवस्था की भी खोज-खबर ले सरकार
एक तरफ तो सरकार उच्च आर्थिक वृद्धि दर का जश्न मना रही है तो दूसरी तरफ यह सवाल है कि क्या वह क्षेत्रीय आर्थिक...