उत्तर प्रदेश की योगी सरकार आगामी 25 नवंबर 2018 आरक्षण को दरकिनार कर नौकरियां बांटने जा रही है। जिन्हें यह नौकरियां दी जाएंगी, उनमें अधिकांश सामान्य कोटे के हैं। दरअसल, योगी सरकार मान्यता प्राप्त गैर सरकारी कॉलेजों में पढ़ाने वाले शिक्षकों को नियमित करने जा रही है। हालांकि योगी सरकार के इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी, लेकिन हाई कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी। इसके बाद योगी सरकार के हौसले बुलंद हो गए हैं।
फारवर्ड प्रेस ने राज्य की उच्च शिक्षा निदेशालय की निदेशक प्रीति गौतम से यह पूछा कि आगामी 25 नवंबर को जो नौकरियां बांटी जाएंगी, क्या उनमें आरक्षण का प्रावधान है? जवाब में उन्होंने आरक्षण से इनकार किया और कहा कि नियुक्तियां कोर्ट के आदेश के तहत हो रही हैं। इसलिए अगर किसी को कोई आपत्ति है, तो कोर्ट जाए। नियुक्तियों में अधिकांश सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थी होने के सवाल पर उन्होंने कहा कि ये लोग वर्षाें से सेवा दे रहे हैं और तब की परिस्थिति के हिसाब से सब कुछ तय किया जा रहा है। इसलिए आज की परिस्थिति के हिसाब से सोचना ठीक नहीं होगा। उन्होंने यह भी कहा कि शिक्षा निदेशालय ने इस तरह की कोई सूची तैयार नहीं की है, इसलिए इसका जवाब देना संभव नहीं है।
बताते चलें कि नियुक्तियों के संबंध में कानपुर, बरेली, मेरठ, वाराणसी, झांसी, गोरखपुर, आगरा, मुरादाबाद व लखनऊ मंडलों के मंडलवार डाटा उत्तर प्रदेश सरकार के उच्च शिक्षा निदेशालय के वेबसाइट पर उपलब्ध कराया गया है। इसके तहत कानपुर मंडल में कुल 222 सीटों पर सहायक प्राध्यापकों की नियुक्तियां होने जा रही हैं, जिनमें से 200 पदाें पर सामान्य कोटे के, 17 पर अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), 5 पर अनुसूचित जाति (एससी) के अभ्यर्थी हैं। जबकि अनुसूचित जनजाति के एक भी अभ्यर्थी नहीं है। इसी तरह बरेली मंडल में 40 सहायक प्राध्यापकों की नियुक्तियां होने जा रही हैं, जिनमें से 33 सामान्य कोटे के हैं, जबकि 5 ओबीसी व 2 एससी वर्ग के अभ्यर्थी हैं।

इसी तरह मेरठ मंडल में सामान्य श्रेणी के कुल 41 सीटों में से 32 पर सामान्य, 6 पर ओबीसी और तीन पर एससी अभ्यर्थियों के नाम हैं। जबकि वाराणसी मंडल में कुल 107 सीटों में से 97 पर सामान्य, 6 पर ओबीसी और चार पदाें के लिए एससी अभ्यर्थियों के नाम है। इसी तरह झांसी, गोरखपुर, आगरा, मुरादाबाद व लखनऊ मंडलों में क्रमशः 37, 45, 83, 40, 68 सहायक प्राध्यापकों की नियुक्तियां होने जा रही हैं, जिनमें 31, 41, 70, 32 व 59 पर सामान्य; 4, 4, 9, 5 व 6 पर ओबीसी और 2, 0, 4, 3 व 3 पदाें पर एससी सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति होने जा रही है।
नियुक्तियों पर सवाल
एक तरफ प्रतियोगी परीक्षा से चयनित अभ्यर्थी सहायक प्राध्यपकों की नियुक्तियों पर सवाल उठा रहे हैं, वहीं इन नियुक्तियों में संविधान प्रदत्त आरक्षण का लाभ नहीं दिए जाने पर कड़ी नाराजगी व्यक्त की जा रही है। प्रतियोगी परीक्षा से चयनित अभ्यर्थी इस बात को लेकर गुस्से में हैं कि शिक्षा निदेशालय शिक्षकों के एक जैसे ही पद पर नियमित नियुक्ति के लिए दो नियम अपना रहा है। विज्ञापन संख्या 37 और 46 के चयनित अभयर्थी एक बड़ा सवाल उठा रहे हैं कि जब उनकी कउंसलिंग ऑनलाइन माध्यम से रुकी हुई है, तो मानदेय पर कार्यरत शिक्षकों का नियमितीकरण काउंसलिंग की किस प्रक्रिया के तहत किया जा रहा है?
बता दें कि मान्यताप्राप्त महाविद्यालयों में सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति मैनेजमेंट कोटे से 2005 के आसपास हुई है और इन शिक्षकों के स्थायीकरण की प्रक्रिया में योगी सरकार की भी स्वीकृति है, क्योंकि प्रदेश सरकार ने ही यूपी हायर एजुकेशन सर्विस कंडीशन एक्ट की धारा-31(ई) में संशोधन कर नियमितीकरण के लिए आदेश जारी किया है। इसके तहत 29 मार्च 2011 तक नियुक्ति पा चुके ऐसे मानदेय शिक्षकाें को सेवा में नियमित किया जाएगा, जो पद की अर्हता पूरी करते हैं और 10 सितंबर तक लगातार पढ़ा रहे हैं।

नहीं रखा गया संविधान तक का ख्याल
एससी/एसटी/ओबीसी आरक्षण बचाओ समिति के संयोजक डॉ. दुर्गा प्रसाद यादव का तो साफ कहना है कि अशासकीय महाविद्यालयों में मानदेय पर कार्यरत शिक्षकों का नियमितीकरण पूरी तरह से असंवैधानिक है, क्योंकि संवैधानिक व्यवस्था के तहत दिए गए आरक्षण का इसमें बिलकुल ख्याल नहीं रखा गया है। 87-90 फीसदी सीटों पर सवर्ण अभ्यर्थी नियुक्त होने जा रहे हैं, जबकि 85 फीसदी आबादी वाले बहुजन अभ्यर्थी 10-12 फीसदी सीटों पर नियुक्त होने जा रहे हैं। यह बिलकुल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और आरक्षित वर्ग का नुकसान न हो, चाहे बैकलॉग से ही नियुक्ति क्यों न करनी पड़े, इस पर विचार करे शिक्षा निदेशालय व उत्तर प्रदेश सरकार। अगर ऐसा नहीं हुआ तो बैकडोर से होने वाली इस नियुक्ति के खिलाफ कोर्ट जाया जाएगा।

इसी तरह एलआईसी एससी/एसटी वेलफेयर एसोसिएशन के गोरखपुर मंडल के महासचिव डॉ. अलख निरंजन ने कहा कि जिस तरह संविधान में प्रदत्त आरक्षण का सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति में ख्याल नहीं रखा जा रहा है वह बिलकुल गलत है और गैर संवैधानिक कदम का विरोध करने वे सड़कों पर उतरने को तैयार हैं। क्योंकि यह कोई साधारण मामला नहीं है, बल्कि इससे साजिश की बू आ रही है कि कहीं आरक्षण को खत्म करने की मंशा रखने वाली मनुवादी ताकतें कोई खेल तो नहीं कर रही हैं। उन्होंने कहा कि सोशल ऑडिटिंग का नमूना देखें, 85 फीसदी आबादी वाले को 13 फीसदी व 15 फीसदी आबादी वालों के लिए 87 फीसदी सीटें।
(कॉपी संपादन : प्रेम/एफपी डेस्क)
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