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ट्विटर के सीईओ ने किया पितृसत्ता और ब्राह्मणवाद पर प्रहार का आह्वान, सवर्ण कर रहे विरोध

ऐसा नहीं है कि जैक डोरसे ने कोई ऐसी बात कही है, जो पहले नहीं कही गई। मध्यकाल में कबीर और बाद में जोतीराव फुले और आंबेडकर ने ब्राह्मणवादी व्यवस्था के खात्मे का आह्वान किया। आंबेडकर ने तो जाति का विनाश किताब ही लिख दी, जिसमें उन्होंने कहा कि बेहतर समाज के निर्माण के लिए वर्ण-जाति व्यवस्था का समर्थन करने वाले धर्मग्रंथों को डायनामाइट से उड़ा देना चाहिए। फारवर्ड प्रेस की खबर :

भारत के सवर्ण गुस्से में हैं। वे माइक्रोब्लागिंग साेशल साइट ट्विटर के सीईओ जैक डोरसे को लानत भेज रहे हैं। आक्रोश में वे उन्हें मूर्ख और गंवार आदि की संज्ञा दे रहे हैं। इतना ही नहीं, एक आईपीएस अधिकारी ने तो यहां तक लिखा है कि जैक के खिलाफ भारत सरकार को मुकदमा दर्ज कराना चाहिए, क्योंकि जैक ने हमारे देश को अशांत करने का प्रयास किया है।

जाहिर तौर पर इस पर कोई बहस नहीं है कि मनुवादी जातिवादी पितृसत्ता वाली सामाजिक व्यवस्था इस देश और समाज का एक भयानक कोढ़ है। अधिकांश यह सोचते हैं कि इस बीमारी से केवल वही ग्रस्त हैं, जो पुराने विचारों के हैं, जिन्हें आधुनिकता की हवा नहीं लगी है। लेकिन, सच ऐसा नहीं है।

जैक डोरसे के खिलाफ सोशल मीडिया पर जिस तरह के बोल बोले जा रहे हैं, उसे देखकर तो यही कहा जा सकता है कि 21वीं सदी के दूसरे दशक के अंत में भी भारतीय सवर्ण उसी संस्कृति को बेहतर मानते हैं, जिसमें जातिवादी भेदभाव है। महिलाओं को बराबरी का अधिकार नहीं है और जिसमें बहुसंख्यक समाज मुट्ठीभर सवर्णों का पारंपरिक रूप से दास है। चाहे वे शूद्र हों या महिलाएं, वे केवल सेवा के लिए बने हैं।

जैक डोरसे की इसी तस्वीर पर भड़के हैं सवर्ण

ऐसा नहीं है कि जैक डोरसे ने कोई ऐसी बात कही है, जो पहले नहीं कही गई। मध्यकाल में कबीर और बाद में जोतीराव फुले और बाबा साहब आंबेडकर ने ब्राह्मणवादी व्यवस्था के खात्मे का आह्वान किया था। आंबेडकर ने तो ‘जाति का विनाश’ नामक किताब ही लिख दी, जिसमें उन्होंने यहां तक कहा कि बेहतर समाज के निर्माण के लिए वर्ण-जाति व्यवस्था का समर्थन करने वाले धर्मग्रंथों को डायनामाइट से उड़ा देना चाहिए।

दरअसल, बीते 18 नवंबर 2018 को ट्विटर के सीईओ जैक डोरसे ने भारत प्रवास के दौरान एक बैठक में हिस्सा लिया। इस बैठक के जरिये उन्होंने कुछ महिला पत्रकारों, लेखकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं से ट्विटर के इस्तेमाल के उनके अनुभवों को जानना-समझना चाहा। इस बैठक में एक दलित महिला ने उन्हें एक पोस्टर गिफ्ट किया। बाद में यह तस्वीर वायरल हो गई, जिसमें जैक उस पोस्टर को हाथ में लिए हैं। इस पाेस्टर में ‘स्मैश ब्राह्म्णिकल पैट्रियाकी’ (ब्राह्मणवादी पितृसत्ता पर कड़ा प्रहार करें) लिखा हुआ है। इस तस्वीर में जैक के अलावा छह अन्य लाेग और हैं। इसमें वह दलित महिला भी है, जिसने उन्हें यह पोस्टर दिया।

सोशल मीडिया पर यह तस्वीर पोस्ट होते ही वायरल हो गई। साथ ही शुरू हो गया जैक डोरसे पर ब्राह्मणवादी लाेगाें का प्रहार। उन्हें भला-बुरा कहने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ने वालों में महिला-पुरुष दोनों हैं।  

एक बानगी देखिए। भारत में अग्रणी सॉफ्टवेयर कंपनी इंफोसिस के पूर्व आला अधिकारी मोहनदास पाई ने ट्वीट किया- ‘कितनी शर्म की बात है; लोग इस तरह के घृणित पोस्टर को कैसे डाल सकते हैं और एक समुदाय को बदनाम कर सकते हैं। आप इस तरह की नफरत के साथ ट्विटर के सीईओ कैसे हो सकते हैं? चौंका देने वाला ; यह सबसे खराब प्रकार का ब्राह्मणफोबिया है।”

जैक डोरसे द्वारा ब्राह्मणवादी पितृसत्ता सामाजिक व्यवस्था पर हमला बोले जाने के आह्वान के बाद सवर्णों में आक्रोश का आलम यह है कि संदीप मित्तल नामक एक आईपीएस अधिकारी ने उनके खिलाफ भारत में अशांति फैलाने का मुकदर्मा दर्ज करने की बात कही। उन्होंने लिखा- “क्या आपको नहीं लगता है कि यह तस्वीर भारत में सांप्रदायिक दंगे करा सकती है? देश के कई राज्यों में चुनाव हो रहे हैं। ऐसे में जैक से माफी मांगने को कहने मात्र से काम नहीं चलेगा। वास्तव में जैक ने जो किया है, वह एक अपराध है। उन्होंने एक देश को अशांत करने का प्रयास किया है। उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया जाना चाहिए।”

हालांकि कई ऐसे भी हैं, जो जैक डोरसे के आह्वान को उचित बता रहे हैं। उनका मानना है कि जैक ने कुछ भी गलत नहीं कहा है। भारत में ब्राह्मणवादी जाति व्यवस्था और पितृसत्ता विकास की राह में सबसे बड़ा अवरोधक है। जैक ने युवा पीढ़ी का आह्वान किया है कि वे नकारात्मकता का परित्याग कर बेहतर समाज बनाएं। इसमें आपत्ति क्यों?

(काॅपी संपादन : प्रेम/एफपी डेस्क)


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लेखक के बारे में

रवीन्द्र गोयल

रवीन्द्र गोयल दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यापक हैं तथा सामाजिक एवं आर्थिक विषयों पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन करते हैं

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