h n

उपेंद्र कुशवाहा के सामने अब महागठबंधन ही विकल्प

हाल के दिनों में बिहार के सियासी गलियारे में हलचल तेज हो गई है। जदयू ने उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी के दो विधायकों को तोड़कर अपने दल में शामिल कर लिया है। ‘एक म्यान में दो तलवारें’ वाली स्थिति के बीच यह तय माना जा रहा है कि कुशवाहा राजग से अलग होंगे। अब उनके पास कोई रास्ता भी नहीं है। बता रहे हैं कन्हैया भेलारी :

बिहार की सियासी राजनीति पिछले एक पखवाड़े से उपेंद्र कुशवाहा के इर्द-गिर्द घूम रही है। कुशवाहा नरेंद्र मोदी सरकार में मानव संसाधन राज्य मंत्री हैं तथा शाहाबाद प्रक्षेत्र में काराकाट लोकसभा का प्रतिनिधित्व करते हैं। राजग के नए सदस्य नीतीश कुमार के ‘निर्देशन’ में भारतीय जनता पाटी (भाजपा) का नेतृत्व कुशवाहा को इस कदर लंगड़ी मार रहा है कि भागने के अलावा अब उनके पास कोई रास्ता नहीं है।

नीतीश कुमार से अलग होकर कुशवाहा ने राष्ट्रीय लोकतांत्रिक समता पार्टी (रालोसपा) के रूप में नई पार्टी का गठन किया तथा 2014 लोकसभा चुनाव से कुछ दिन पहले राजग का हिस्सा बने। भाजपा ने कुशवाहा की पार्टी रालोसपा को चुनाव में तीन सीटें (काराकाट, जहानाबाद और सीतामढ़ी) लड़ने को दीं। इस चुनाव में उन्हें शत प्रतिशत सफलता मिली। रालोसपा ने तीनों सीटें जीत लीं। बाद के दिनों में जहानाबाद के सांसद अरुण कुमार ने बगावत कर अलग दल बना लिया। फिर भी कुशवाहा की राजनीतिक औकात कम नहीं हुई।

किसान परिवार में पैदा हुए उपेंद्र कुशवाहा मिजाज से लड़ाकू हैं। बिहार के वजीरे आला नीतीश कुमार से इनका छत्तीस का रिश्ता रहा है। स्वभावतः जूलाई 2017 के अंतिम सप्ताह में नीतीश कुमार जब राजग का अंग बने, तो लगने लगाा था कि आगे आने वाले समय में उपेंद्र कुशवाहा पर गाज गिरेगी। अब वही हो रहा है।

बीते दिनों औरंगाबाद के परिसदन में मिले राजद नेता तेजस्वी यादव और उपेंद्र कुशवाहा

राजग का मुख्य घटक दल भाजपा बिहार अफेयर में देखन्त रूप में नीतीश कुमार के दबाव में काम कर रही है। कहते हैं कि सीएम नीतीश कुमार ने भाजपा नेतृत्व को अल्टीमेटम दे दिया है कि ‘राजग में या तो मैं रहूंगा या कुशवाहा।’ नीतीश कुमार के अल्टीमेटम को भाजपा नेतृत्व ने गंभीरता से लिया है। इसीलिए भाजपा कुशवाहा के साथ वैसा ही बर्ताव कर रही है, जैसा दुश्मन के साथ किया जाता है।

नीतीश का विकास का दावा हवा, जातियों से बची उम्‍मीद

कयास लगाए जा रहे हैं कि राजग के तीर से घायल कुशवाहा किसी भी क्षण मंत्री पद से त्यागपत्र देकर लालू यादव की लालटेन थाम सकते हैं। वैसे औपचारिक बातचीत में उपेंद्र कुशवाहा ने बताया कि ‘मैं राजग का पुराना अंग हूं। मेरा मकसद है नरेंद्र मोदी को दूसरी बार देश का प्रधानमंत्री बनाना। इसीलिए मैं कहीं भागने वाला नहीं हूं।’

विहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने दो महीने पहले एक इंटरव्यू में मुझसे कहा था कि ‘‘आज या कल उपेंद्र कुशवाहा और रामविलास पासवान को महागठबंधन का ही अंग बनना है। क्योंकि, नीतीश कुमार के आने के बाद इन दोनोें नेताओं की राजग में जरूरत नहीं हैं।’’

बीते दिनों जदयू द्वारा रालोसपा के दो विधायकाें को शामिल किए जाने के बाद दिल्ली में शरद यादव से मिलते उपेंद्र कुशवाहा

तब मैंने तेजस्वी यादव के दावे को गंभीरता से नहीं लिया था। लेकिन, अब तो धीरे-धीरे सब कुछ शीशे की तरह साफ होता जा रहा है कि कुशवाहा के पास महागठबंधन में आने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है।

बहरहाल, भाजपा नेतृत्व जिस प्रकार से उपेंद्र कुशवाहा के प्रति राजनीतिक व्यवहार कर रहा है, उससे उसके कई दिग्गज नेता भी आहत हैं। उनमें भाजपा सांसद तथा पूर्व केंद्रीय मंत्री डाॅ. सी.पी. ठाकुर लीड भूमिका में हैं। पद्मभूषण अलंकार से सम्मानित डाॅ. ठाकुर ने आशंका व्यक्त की है कि कुशवाहा का महागठबंधन का हिस्सा बनना राजग के लिए अपशकुन के समान है। पत्रकारों के सााथ बातचीत में ठाकुर ने बिना लाग-लपेट के कहा कि ‘‘उपेंद्र कुशवाहा बिहार में अपने समाज के नेता के रूप में इमर्ज कर गए हैं। इनको इग्नोर करना हम लोगों के लिए घाटे का सौदा होगा’।

(कॉपी संपादन : प्रेम/एफपी डेस्क)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। हमारी किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, संस्कृति, सामाज व राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के सूक्ष्म पहलुओं को गहराई से उजागर करती हैं। पुस्तक-सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

महिषासुर एक जननायक

महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोकार

लेखक के बारे में

कन्हैया भेलारी

कन्हैया भेलारी वर्ष 1986 में टाइम्स ऑफ इंडिया से जुड़े। बाद में 'द वीक' के लिए उन्होंने लंबे समय तक बतौर वरिष्ठ संवाददाता कार्य किया। वर्तमान में वह स्वतंत्र पत्रकार के रूप में 'फर्स्टपोस्ट' वेब पोर्टल के लिए लेखन करते हैं

संबंधित आलेख

लोकसभा चुनाव : भाजपा को क्यों चाहिए चार सौ से अधिक सीटें?
आगामी 19 अप्रैल से लेकर 1 जून तक कुल सात चरणों में लाेकसभा चुनाव की अधिसूचना चुनाव आयोग द्वारा जारी कर दी गई है।...
ऊंची जातियों के लोग क्यों चाहते हैं भारत से लोकतंत्र की विदाई?
कंवल भारती बता रहे हैं भारत सरकार के सीएए कानून का दलित-पसमांदा संदर्भ। उनके मुताबिक, इस कानून से गरीब-पसमांदा मुसलमानों की एक बड़ी आबादी...
1857 के विद्रोह का दलित पाठ
सिपाही विद्रोह को भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम कहने वाले और अखंड हिंदू भारत का स्वप्न देखने वाले ब्राह्मण लेखकों ने यह देखने के...
मायावती आख़िर किधर जा सकती हैं?
समाजवादी पार्टी के पास अभी भी तीस सीट हैं, जिनपर वह मोलभाव कर सकती है। सियासी जानकारों का मानना है कि अखिलेश यादव इन...
आंकड़ों में बिहार के पसमांदा (पहला भाग, संदर्भ : नौकरी, शिक्षा, खेती और स्वरोजगार )
बीते दिनों दिल्ली के कंस्टीट्यूशन क्लब में ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज की एक रिपोर्ट ‘बिहार जाति गणना 2022-23 और पसमांदा एजेंडा’ पूर्व राज्यसभा...