अप्रैल 2017 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विश्वविद्यालयों में नियुक्ति के संबंध में एक फैसला दिया था। इसके मुताबिक विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए विभागवार रोस्टर बनाये जाने की बात कही गयी थी। इसके आलोक में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने एक सर्कूलर जारी कर दिया था और फिर पूरे देश में इस फैसले का विरोध हुआ। अब केंद्र सरकार जल्द ही एक विधेयक संसद में प्रस्तुत करेगी। इसके जरिए वह इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को बदल देगी। इस संबंध में समाजवादी पार्टी के सांसद धर्मेंद्र यादव ने एक बयान दिया है। उनके मुताबिक केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने उन्हें यह बात तब कही जब उन्होंने उनसे मुलाकात की और विभाग के बजाय विश्वविद्यालय को इकाई बनाने हेतु विधेयक लाने की मांग की।
वहीं सूत्रों की मानें तो इस संबंध में एक विधेयक पहले से ही तैयार हो चुका है। यह दूसरा मौका होगा जब केंद्र सरकार अदालती आदेश को निष्प्रभावी बनाने के लिए संशोधन विधेयक लेकर आएगी। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी-एसटी एक्ट के संबंध में दिए गए फैसले को निष्प्रभावी बनाने के लिए सरकार पिछले सत्र में विधेयक लाई थी।

हालांकि इस मामले में एक पेंच यह भी है कि केंद्रीय कार्मिक व शिकायत निवारण मंत्रालय की ओर से प्रस्तावित संशोधन विधेयक को मंजूरी नहीं मिली है। अंग्रेजी समाचार पत्र टेलीग्राफ में प्रकाशित एक खबर के अनुसार मंत्रालय के अधिकारियों ने इसकी पुष्टि की है। खबर के अनुसार मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने बिना कार्मिक मंत्रालय की स्वीकृति के विधेयक को स्वीकृति दे दी है।
वहीं इस संबंध में सपा सांसद धर्मेंद्र यादव ने फारवर्ड प्रेस से दूरभाष पर बातचीत में कहा कि “इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के कारण उच्च शिक्षा में आरक्षित वर्गों की संख्या चिंताजनक तरीके से कम हो जाती। यह एक प्रयास था जिसका मकसद उच्च शिक्षा से दलितों, आदिवासियों और ओबीसी को दूर रखना था। इसे खत्म करने के लिए मैंने केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से मुलाकात की तथा उनसे संशोधन विधेयक लाने का अनुरोध किया। जवाब में उन्होंने आश्वस्त किया कि सरकार विधेयक लाएगी।”

दरअसल यदि इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के अनुरूप विभाग के आधार पर आरक्षण का रोस्टर बनेगा तो आरक्षित वर्गों के लिए सीटें बहुत कम हो जाएंगी। जैसे मान लें कि किसी भी विभाग में चार, पांच, छह या सात पद हैं तो ओबीसी जिनके लिए 27 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है तब बमुश्किल से एक सीट बनेगा। इसी प्रकार एससी को 15 फीसदी आरक्षण का प्रावधान है। लेकिन हाईकोर्ट के फैसले के कारण यदि विभाग में पदों की संख्या 5 हुई तो दलितों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 0.75 होगी। यदि विभाग में पदों की संख्या 7 होगी तब दलितों के लिए एक सीट आरक्षित मानी जाएगी। यही हाल आदिवासियों का होगा।
बहरहाल, यह साफ है कि केंद्र सरकार आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर आरक्षित वर्गों के लोगों को निराश नहीं करना चाहती है। यदि यह विधेयक सदन में लाया जाता है और पारित हो जाता है, जिसकी पूरी संभावना है, तब पिछले दो वर्षों से विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति में हो रही बाधा तो दूर होगी ही, साथ ही आरक्षित वर्गों के साथ हकमारी भी नहीं होगी।
(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)