बहु-जन दैनिकी
पिछले लगभग दो-चार वर्षों से देश-दुनिया की गतिविधियों से परिचित होने का मेरा एकमात्र माध्यम इंटरनेट है। परंपरागत टीवी-बक्से को देखे हुए दो साल से ज्यादा हो गए। समाचारों के विजुअल्स तेज गति की इंटरनेट सुविधा के कारण मोबाइल फोन व अन्य गैजेट्स पर ज्यादा प्रचुरता में और रुचि के अनुरूप मिल जाते हैं, जिससे समय बचता है।
कुछ अच्छे लेख न हों तो, सिर्फ समाचारों के लिए अखबारों का प्रिंट संस्करण नियमित तौर पर लेने का कोई तुक नहीं है।
इन दिनों अखबार भी घर पर नहीं मंगवाता। सुबह की सैर से लौटते हुए खरीद लेता हूं। इन दिनों पूर्वी दिल्ली के जिस इलाके में रह रहा हूं, वह बिहार, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से आए अप्रवासियों का इलाका है। ज्यादातर छोटे-मंझोले स्तर के व्यवसाय या निजी क्षेत्र में मध्यम दर्जे की नौकरियां करने वालों का इलाका।
जैसा कि मैंने उम्मीद की थी, अन्य दिनों की अपेक्षा पटरी पर अखबार बिछाए विक्रेता के पास आज कुछ ज्यादा भीड़ थी। आज सभी अखबारों की मुख्य खबर के रूप में केंद्रीय मंत्रिमंडल का फैसला प्रकाशित है। सरकार ने कहा है कि वह संविधान संशोधन कर गरीब सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण देगी।
![](https://www.forwardpress.in/wp-content/uploads/2019/01/news-paper-hawkers-in-delhi.jpg)
अखबार विक्रेता से पूछकर आज की बिक्री के बारे में तस्दीक की। मालूम चला कि जो अखबार सुबह 9-10 बजे तक खत्म होते थे, वे 7 बजे ही 95 फीसदी से अधिक बिक चुके हैं। द्विज समुदाय के प्रति अधिक पक्षधर माना जाने वाला दैनिक जागरण सबसे अधिक बिका है। अन्य हिंदी अखबार भी खत्म होने के कगार पर थे। जब मैं पहुंचा तो वहां कुछ अधेड़ और बूढ़े अखबार खरीद रहे थे और केंद्र सरकार द्वारा दिए गए 10 फीसदी सवर्ण आरक्षण पर चर्चा कर रहे थे। उनकी बातों से जाहिर था कि वे भूमिहार-ब्राह्मण अथवा किसी अन्य कथित ‘उच्च’ जाति से ताल्लुक रखते थे। वे सभी हिंदी अखबारों के पाठक थे। अखबार विक्रेता से मैंने पूछा कि अंग्रेजी अखबारों में सबसे अधिक आज कौन-सा बिका? तो उसने बताया कि अंग्रेजी अखबारों की बिक्री पर कोई असर नहीं है। उनके जितने ग्राहक रोज आते थे, आज भी उतने ही आ रहे हैं।
![](https://www.forwardpress.in/wp-content/uploads/2019/01/protest-against-reservation.jpg)
क्या आप भी सवर्ण-आरक्षण के लिए संविधान संशोधन की खबर, राजधानी दिल्ली के एक मोहल्ले में हिंदी अखबारों की अधिक मांग और अंग्रेजी अखबारों की बिक्री के बे-असर रहने में कोई पूर्व निश्चित संबंध-संगति देख पाते हैं?
मेरे पास इस संबंध में कोई व्यवस्थित अध्ययन नहीं है। लेकिन, अपने अन्य पत्रकारिता अनुभवों को इससे मिलाकर देखूं तो कुछ ठोस संकेत पाता हूं।
संकेत यह हैं कि आरक्षण नामक काठ की हांडी में येन केन प्रकारेण कई बार राजनीति का पानी गर्म किया जा चुका है। अब यह व्यापक सरोकार वाला मुद्दा नहीं रह गया है। कम-से-कम महानगरों में तो नहीं। यह बूढ़े होते अधेड़ों को युवाओं की अपेक्षा अधिक अपील करता है। जबकि, इससे अधिक जुड़ाव युवाओं का होना चाहिए था।
पिछले कुछ वर्षों में दुनिया जितनी तेज गति से बदली है, और बदल रही है, उतनी तेजी से सभ्यता के इतिहास में कभी नहीं बदली। ये बदलाव आरक्षण की मौजूदा अवधारणा को (कम से नौकरी के परिप्रेक्ष्य में) अप्रासंगिक बनाते जा रहे हैं। हाँ, शिक्षा के क्षेत्र में इसकी प्रासंगिकता अभी भी मजबूती से बनी हुई है।
नरेंद्र मोदी ने निश्चित तौर पर मास्टर स्ट्रोक चला है, लेकिन इससे उन्हें सवर्ण वोट नहीं मिलेंगे। उन्होंने सवर्णों के मुखर और प्रभावशाली तबके को किंकर्तव्यविमूढ़ता की स्थिति में ला दिया है। अमीर तबके को गरीब सवर्णों के लिए आरक्षण को न निगलते बनेगा, न उगलते। वे इसके विरोध में तमाम किंतु-परंतु कर इसे खारिज करने की कोशिश करेंगे।
इस मास्टर स्ट्रोक से मोदी ने हिंदुत्व का भावनात्मक प्रपन्च रचने के पैरोकारों को जबरदस्त चोट पहुंचाई है। हिंदुत्व का यह धड़ा अयोध्या में राम मंदिर को आगामी लोकसभा चुनाव का मुद्दा बनाना चाहता था। मोदी ने उस मुद्दे को अपने छक्के से (रामदास आठवले के शब्दों में) फील्ड से बाहर कर दिया है। बतौर मुख्यमंत्री गुजरात दंगों से मिली बदनामी के बाद संभवतः वे अपनी जीवन-संध्या में नए दाग नहीं चाहते।
क्या-क्या होगा?
एक ओर गरीब सवर्णों को आरक्षण देने से तात्कालिक रूप से सवर्ण समुदाय की एकता टूटेगी, लेकिन संभावना यह भी है कि व्यावहारिक रूप से यह आरक्षण ‘गरीब सवर्णों’ के लिए न रहकर, सभी सवर्णों के लिए हो जाए।
अगर पहली बात हुई तो बहुजन अवधारणा मजबूत होगी क्योंकि गरीब सवर्ण अनेक मुद्दों पर बहुजन तबके के साथ आने लगेंगे। इससे अधिक न्यायपूर्ण संघर्षों की शुरूआत होगी। साथ ही बहुजन तबकों की ओर से आबादी के अनुपात में प्रतिनिधित्व देने की मांग उठेगी।
दूसरी ओर, बड़ा खतरा यह रहेगा कि इसी बहाने कांग्रेस और भाजपा मिलकर संविधान की उस मूल अवधारणा को ही बदलने की कोशिश कर सकते हैं, जिसके तहत सामाजिक रूप से दलित-शोषित तबके को सत्ता केंद्रों में प्रतिनिधित्व दिया गया है।
![](https://www.forwardpress.in/wp-content/uploads/2019/01/PARLIAMENT.jpg)
गरीब सवर्णों को आरक्षण देने के लिए संविधान की धारा 15 (4) तथा 15 (5) और 16 (4) में संशोधन अपेक्षित है। भाजपा समेत सभी दलों के बहुजन सांसदों को इनमें से 15 (4) की शब्दावली के प्रति विशेष तौर पर सचेत रहना चाहिये। यह धारा कहती है कि कोई भी बात “राज्य को सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े हुए नागरिकों के किन्हीं वर्गों की उन्नति के लिये या अनुसूचित जातियों,अनुसूचित जनजातियों के लिए कोई विशेष उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी”।
उपरोक्त में “सामाजिक और शैक्षिक” शब्द युग्म मुख्य है। गरीब सवर्णों को सरकारी नौकरियों और उच्च अध्ययन संस्थानों में जगह देने के लिए इस शब्द-युग्म से छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए, बल्कि इसके अलग से यह प्रावधान किया जाना चाहिये कि “राज्य चाहे तो किसी भी वर्ग के गरीब लोगों को नौकरी तथा उच्च शिक्षा में सामान्य वर्ग के अंतर्गत प्राथमिकता देने के लिए विशेष प्रावधान कर सकेगा”।
[परिवर्धित : 08.01.2019 : 10. 28 P.M]
फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्त बहुजन मुद्दों की पुस्तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्य, सस्कृति व सामाजिक-राजनीति की व्यापक समस्याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in
फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें
मिस कैथरीन मेयो की बहुचर्चित कृति : मदर इंडिया