h n

सवर्णों को आरक्षण देने से पहले उनकी गरीबी का आंकड़ा जारी करे सरकार

पिछले तीन वर्षों से केंद्र सरकार ने रोजगार संबंधी आंकड़े जारी नहीं किए हैं। नीति आयोग के उपाध्यक्ष रहे अरविन्द पनगढ़िया ने भी इस संबंध में बातें कही थीं। लेकिन, जब कोई आंकड़े ही नहीं हैं, तो फिर सवर्णों में गरीबी का उसका पैमाना क्या है और किस आधार उन्हें आरक्ष्ण देने की बात कही जा रही है

नरेंद्र मोदी सरकार की नीयत में खोट : मुणगेकर

पूर्व राज्यसभा सांसद और योजना आयोग के सदस्य रहे डॉ. भालचंद्र मुणगेकर के मुताबिक, ‘‘केंद्र सरकार को गरीब सवर्णों को आरक्षण देने से पहले यह बताना चाहिए कि कितने सवर्ण गरीब हैं।’’ हालांकि, फारवर्ड प्रेस से बातचीत में उन्होंने केंद्र सरकार के इस कदम का स्वागत किया है, परंतु उन्होंने सवाल भी उठाया है कि सरकार गरीब सवर्णों को नहीं, बल्कि खुले तौर पर सवर्णों को आरक्षण देना चाहती है। प्रस्तुत है डॉ. मुणगेकर से बातचीत का संपादित अंश :

फारवर्ड प्रेस : केंद्रीय मंत्रिपरिषद ने गरीब सवर्णों को सरकारी नौकरियों में दस फीसदी आरक्षण देने का फैसला किया है। इस संबंध में आप क्या कहेंगे?

भालचंद्र मुणगेकर : देखिए, मैं केंद्र सरकार के इस कदम का स्वागत करता हूं कि वह उन्हें विशेष अवसर देना चाहती है, जो गरीब हैं। इससे किसी को भी इंकार नहीं होना चाहिए। लेकिन, मुझे शक है कि केंद्र सरकार का यह फैसला महज चुनावी स्टंट है। उसकी नीयत में खोट है।

फा. प्रे. : सरकार की नीयत में खोट! कैसे?

भा.मु. : देखिए, सबसे पहले तो यह समझने की बात है कि आरक्षण का जो प्रावधान अभी हमारे संविधान में है, उसका आधार क्या है? हमारा संविधान कहता है कि वे सभी, जो सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े हैं; उन्हें आरक्षण मिलना चाहिए। इसी के आधार पर अनुच्छेद 15 और 16 में उपबंध भी जोड़े गए हैं। इन उपबंधों में आर्थिक रूप से पिछड़ेपन का उल्लेख नहीं है। अब सरकार इसमें बदलाव करना चाहती है। लेकिन, यह बात सभी को समझनी चाहिए कि ऊंची जातियों में गरीबी का कोई पैमाना नहीं है। फिर किस आधार पर सरकार दस फीसदी आरक्षण की बात कह रही है। फिलहाल जो बातें सामने आ रही हैं, उससे तो यही लगता है कि सरकार सवर्णों को सीधे-सीधे आरक्षण का लाभ देना चाहती है।

यह भी पढ़ें : सवर्ण आरक्षण : जानने योग्य बातें

फा. प्रे. : क्या संसद में सरकार को चुनौती का सामना करना पड़ेगा?

भा.मु. : बिलकुल। सरकार को संसद में इस संशोधन विधेयक का औचित्य बताना पड़ेगा कि आखिर वह आधार क्या है, जिसके बुनियाद पर वह यह फैसला कर रही है। वैसे भी किसी भी विधेयक को संसद के दोनों सदनों में पेश किया जाता है। कोई विधेयक तभी कानून बनता है, जब दोनों सदनों में उसे पारित किया जाए।

डॉ. भालचंद्र मुणगेकर, पूर्व राज्यसभा सदस्य और योजना आयोग के पूर्व सदस्य

फा. प्र. : सरकार यदि संशोधन विधेयक लेकर आती है, तो कांग्रेस का रुख क्या होगा?

भा.मु. : देखिए, मैं कांग्रेस का अधिकृत प्रवक्ता नहीं हूं। कांग्रेस की अधिकारिक टिप्पणी के लिए आप सुरजेवाला जी से बात करें। जहां तक मेरा सवाल है; मैं मानता हूं कि यदि यह विधेयक सदन में लाया जाता है, तो कांग्रेस को इसका समर्थन करना चाहिए। लेकिन, मैं एक बार फिर कह रहा हूं कि मुझे सरकार की नीयत में खोट नजर आती है।

फा. प्रे. : क्या आपको नहीं लगता है कि जो हाल तीन तलाक वाले विधेयक का हुआ, वही हश्र इस विधेयक के साथ भी होगा? 

भा.मु. : सबसे पहले तो मैं यह साफ कर दूं कि तीन तलाक वाले विधेयक का कांग्रेस ने विरोध नहीं किया। महिलाओं के हक की बात के लिए कांग्रेस हमेशा उनके साथ है। परंतु, सरकार ने क्या किया? उसने मुसलमान स्त्रियों और पुरुषों को बांटने का प्रयास किया। कांग्रेस सरकार के इस मसौदे का विरोध करती है कि तीन तलाक देना एक आपराधिक कृत्य है। रही बात सवर्णों को आरक्षण देने का तो मैं पहले ही कह चुका हूं कि सरकार को यह बताना होगा कि इसके पीछे उसके आधार क्या हैं?

यह भी पढ़ें : सवर्णों को आरक्षण : संविधान की मूल भावना को नष्ट करने की कोशिश

फा. प्रे. : आप किस आधार की बात कर रहे हैं?

भा.मु. : देखिए, पिछले तीन वर्षों से सरकार ने रोजगार संबंधी आंकड़े जारी नहीं किए हैं। नीति आयोग के उपाध्यक्ष रहे अरविन्द पनगढ़िया ने भी इस संबंध में बातें कही थीं। लेकिन, जब कोई आंकड़े ही नहीं हैं, तो फिर सवर्णों में गरीबी का उसका पैमाना क्या है?

(कॉपी संपादन : प्रेम/सिद्धार्थ)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें 

मिस कैथरीन मेयो की बहुचर्चित कृति : मदर इंडिया

बहुजन साहित्य की प्रस्तावना 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

महिषासुर एक जननायक’

महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोकार

लेखक के बारे में

एफपी डेस्‍क

संबंधित आलेख

जब राहुल गांधी हम सभी के बीच दिल्ली विश्वविद्यालय आए
बातचीत के दौरान राहुल गांधी ने विश्वविद्यालयों में दलित इतिहास, आदिवासी इतिहास, ओबीसी इतिहास को पढ़ाए जाने की मांग की। उन्होंने कहा कि 90...
प्रधानमंत्री के नए ‘डायलॉग’ का इंतजार कर रहा है बिहार!
बिहार भाजपा की परेशानी यह है कि आज की तारीख में ऐसा कोई नेता नहीं है जो चुनाव में पार्टी का नेतृत्व कर सके।...
कौन बैठे हैं उच्च न्यायालयों में शीर्ष पर? (संदर्भ पटना व झारखंड उच्च न्यायालय)
सवर्ण जातियों में सबसे श्रेष्ठ मानी जानेवाली ब्राह्मण जाति के जजों की पटना उच्च न्यायालय में हिस्सेदारी 30.55 प्रतिशत है। जबकि राज्य की आबादी...
क्यों दक्षिण भारत के उच्च न्यायालयों के अधिकांश जज ओबीसी, दलित और आदिवासी होते हैं तथा हिंदी पट्टी में द्विज-सवर्ण?
जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस खन्ना के कार्यकाल में देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों में हुई जजों की नियुक्तियों में पिछड़ा वर्ग, अत्यंत पिछड़ा वर्ग,...
बिहार के गांवों में पति का प्रभुत्‍व और जाति की दबंगता दरकी, लेकिन खत्‍म नहीं हुई
रोहतास और औरंगाबाद जिले में सर्वेक्षण के मुताबिक, पिछले 35 वर्षों में ग्रामीण सत्‍ता में सवर्णों के आधिपत्‍य को यादव जाति ने चुनौती दी...