आरक्षण के विरोध में चलने वाले आंदोलन पर लगेगी लगाम : कांचा आयलैया
बीते 8 जनवरी 2019 को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के जवाहर भवन में देश भर के ओबीसी प्रतिनिधियों की बैठक आयोजित हुई। इस बैठक का मकसद इस पर विचार करना था कि ओबीसी समुदाय की बेहतरी के लिए क्या-क्या कोशिशें की जानी चाहिए। इस मौके पर सवर्णों के दस फीसदी आरक्षण पर भी चर्चा हुई और अधिकांश वक्ताओं ने गरीब सवर्ण के आरक्षण का विरोध नहीं करने की बात की। हालांकि यह सवाल भी उठाया गया कि कहीं आर्थिक आधार पर आरक्षण सामाजिक तौर पर पिछड़े वर्ग के आरक्षण को खत्म करने की कोशिश तो नहीं है। अगर ऐसा है तो इसका विरोध किया जाएगा और नहीं है तो गरीब सवर्ण के आरक्षण का विरोध नहीं किया जाना चाहिए।
बैठक में महाराष्ट्र से आए ओबीसी विचारक प्रोफेसर श्रवण देवरे ने सवर्ण के लिए दस फीसदी आरक्षण का समर्थन किया और कहा कि इससे आरक्षण विरोधियों का आंदोलन कुंद होगा। अलग-अलग राज्यों में कभी जाट तो कभी पटेल तो कभी रेड्डी आरक्षण के लिए आंदोलन करते रहे हैं, इससे इस तरह के आंदोलन करने वालों को कहा जा सकेगा कि आप सबों के लिए 10 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया जा रहा है। टुकड़े-टुकड़े में आरक्षण देने से सवर्णो के आरक्षण का भी कुल प्रतिशत बढ़ सकता है, इसलिए इन सबों को 10 फीसदी में ही समाहित कर लेना बेहतर रहेगा।

उन्होंने कहा कि अकेले महाराष्ट्र में मराठों ने आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन किया और वहां 16 फीसदी आरक्षण लेने में सफल हो गया। मराठों ने महाराष्ट्र में आरक्षण के बाद केंद्र की नौकरियों व शैक्षणिक संस्थानों में भी 16 फीसदी आरक्षण की मांग करनी शुरू कर दी है। गरीब सवर्ण को दस फीसदी आरक्षण दिए जाने से मराठा सहित अन्य सवर्ण जो आरक्षण की मांग कर रहे हैं, उनकी बेहिसाब मांगें भी खत्म हो जाएंगी। हालांकि इसमें एक डर यह भी है कि आरक्षण में आर्थिक आधार जोड़ने से सामाजिक आधार पर दिए जा रहे आरक्षण धीरे-धीरे खत्म ना हो जाए और उसकी जगह भी आर्थिक आधार ही ना ले ले। हमें इस पर करीब से नजर रखनी होगी।

इस मौके पर चिंतक व लेखक प्रो. कांचा आयलैया ने भी गरीब सवर्ण के 10 फीसदी आरक्षण दिए जाने का समर्थन किया और कहा कि इससे एक पंथ दो कार्य होंगे। एक तो मानवीय आधार पर सवर्ण गरीब का कल्याण होगा, वहीं दूसरी तरफ पटेल, गुज्जर, जाट आदि जाति के लोग जो आरक्षण की मांग कर रहे हैं, उनकी आवाज बंद होगी। उन्होंने कहा कि ओबीसी समुदाय को इस निर्णय का स्वागत करना चाहिए क्योंकि इससे 50 फीसदी के आरक्षण की बाध्यता भी खत्म हो जाएगी और ओबीसी के पास आबादी के हिसाब से आरक्षण की मांग करने का विकल्प रहेगा।
उन्होंने कहा कि वैश्विक प्रतिस्पर्धा में शामिल होने के लिए ओबीसी समुदाय को भी अपने तौर-तरीके बदलने होंगे। इसके लिए उन्होंने कॉमन स्कूल सिस्टम की वकालत की और कहा कि एक स्टेट लेंग्वेज के साथ-साथ इंग्लिश लेंग्वेज को अनिवार्य करना होगा। शुरू में इसमें जरूर दिक्कत आएगी लेकिन आगे इसके परिणाम सकारात्मक ही दिखेंगे। हमें ग्रामीण इलाकों तक इसे ले जाना होगा, भले ही वहां शहरों की तुलना में इसकी रफ्तार कम ही क्यों ना हो।
इस बैठक का आयोजन समृद्ध भारत फाउंडेशन द्वारा किया गया था जिसमें हैदराबाद, केरल, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, गुजरात आदि राज्यों के ओबीसी प्रतिनिधि आए हुए थे। इन सबों ने भी अपने-अपने विचार रखे।
(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)
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