लोकसभा चुनाव के पहले अंतरिम बजट के दौरान सरकार ने कई घोषणाएं की। एक घोषणा देश के उपेक्षित घुमंतू व अर्द्ध घुमंतू जातियों/जनजातियों के कल्याण व विकास के लिए भी की गई। केंद्रीय वित्त, कॉरपोरेट मामले, रेल और कोयला मंत्री पीयूष गोयल ने 1 फरवरी 2019 को संसद में अंतरिम बजट 2019-20 पेश करने के दौरान इसकी घोषणा की।
उन्होंने कहा कि सरकार सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अंतर्गत एक कल्याण विकास बोर्ड का गठन करेगी, जिसका उद्देश्य गैर अधिसूचित घुमंतू और अर्द्ध घुमंतू समुदायों के कल्याण और विकास कार्यक्रमों को क्रियान्वित करना होगा।

लोकसभा में अंतरिम बजट रखते पीयूष गोयल
उन्होंने कहा कि सरकार देश के सबसे वंचित वर्ग तक पहुंचने के लिए प्रतिबद्ध है। इसमें गैर अधिसूचित, घुमंतू और अर्द्धघुमंतू समुदायों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। इन समुदायों तक विकास व कल्याण कार्यक्रम नहीं पहुंच पा रहे हैं और ये निरंतर पीछे छूटते जा रहे हैं।
(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)
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सरकार ने फिर ठेंगा दिखया विमुक्त और घुमंतू समुदायों को: –
राष्ट्रीय विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध घुमंतू जनजाति आयोग ( इदाते आयोग ) ने अपनी प्रथम व प्रमुख शिफारिश की थी कि इन समुदायों के लिए भी एक स्थाई आयोग का गठन किया जाय. आयोग की रिपोर्ट को तो अभी तक माना नहीं गया. पहले नीति आयोग ने इदाते आयोग की स्थाई आयोग गठन संबंधी सिफारिश पर अपनी सहमति भी दे दी थी लेकिन आज बजट सत्र में घोषणा यह की गई कि घुमंतू समुदाय जो एससी, एस टी और आेबीसी में नहीं है केवल उनके लिए डेवलपमेंट बोर्ड का गठन किया जाएगा. विदित रहे कि पहले भी ऐसे विमुक्त और घुमंतू समुदायों के लिए प्री मैट्रिक और पोस्ट मेट्रिक छात्र वृत्ति और हॉस्टल योजना लागू की गई थी जो किसी भी आरक्षित वर्ग में नहीं थे, ये दोनों योजनाएं बुरी तरह फ्लॉप हो गईं क्योंकि ये दोनों स्कीम भी केवल उन डीएनटी के लिए थी जो किसी रिजर्व कैटेगरी में नहीं थे. इसलिए वांछित संख्या में अभ्यर्थी / आवेदक ही नहीं मिले. यह तथ्य डीएनटी विशेषज्ञों और न्यायालयों द्वारा बार बार रेखांकित किया जा चुका है कि डीएनटी अत्यंत पिछड़े समुदाय हैं इसलिए उन्हें किसी अन्य कैटेगरी एससी, एस टी या ओबीसी में सम्मिलित करने से कभी भी हक नहीं मिल सकता फिर भी सरकारें इस वास्तविकता की अनदेखी कर रही हैं. रेनके आयोग ने 2008 में ही सिफारिश की थी कि विमुक्त और घुमंतू जनजातियों को शिक्षा एवं नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण दिया जाय तब से आज तक उन्हें तो आरक्षण नहीं दिया गया जबकि आठ लाख रुपए सालाना आमदनी वाले (कमजोर सवर्णों) को 10 प्रतिशत लागू भी कर दिया गया. इदाते आयोग की रिपोर्ट प्रस्तुत किए भी एक वर्ष बीत गया लेकिन उसे लागू करने के बजाय डीएनटी विकास बोर्ड के गठन का लॉलीपॉप पकड़ा दिया गया. जबकि नीति आयोग ने इदाते आयोग कि प्रथम और प्रमुख सिफारिश अर्थात विमुक्त व घुमंतू जनजातियों के लिए एक स्थाई राष्ट्रीय आयोग गठित किए जाने की वकालत की थी. डीएनटी समुदायों को बहुत उम्मीद थी कि वर्तमान केंद्र सरकार दादा इदाते आयोग की रिपोर्ट को निश्चित लागू करेगी किन्तु प्रस्तावित बोर्ड के गठन की घोषणा से इस विशाल समुदाय में आक्रोश व्याप्त हो गया है. आज़ादी के बाद से लगातार यही हो रहा है कुल आठ नौ कमेटियों और दो राष्ट्रीय आयोगों की सिफारिशों के बाद फिर एक नए बोर्ड का झुनझुना भाजपा के गले की फांस बन सकता है.
Dr B K Lodhi, DNT Activist.
Ex-Deputy Secretary, National Commission for Denotified, Nomadic & Semi- nomadic Tribes,GoI.
सरकार ने फिर ठेंगा दिखया विमुक्त और घुमंतू समुदायों को: –
राष्ट्रीय विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध घुमंतू जनजाति आयोग ( इदाते आयोग ) ने अपनी प्रथम व प्रमुख शिफारिश की थी कि इन समुदायों के लिए भी एक स्थाई आयोग का गठन किया जाय. आयोग की रिपोर्ट को तो अभी तक माना नहीं गया. पहले नीति आयोग ने इदाते आयोग की स्थाई आयोग गठन संबंधी सिफारिश पर अपनी सहमति भी दे दी थी लेकिन आज बजट सत्र में घोषणा यह की गई कि घुमंतू समुदाय जो एससी, एस टी और आेबीसी में नहीं है केवल उनके लिए डेवलपमेंट बोर्ड का गठन किया जाएगा. विदित रहे कि पहले भी ऐसे विमुक्त और घुमंतू समुदायों के लिए प्री मैट्रिक और पोस्ट मेट्रिक छात्र वृत्ति और हॉस्टल योजना लागू की गई थी जो किसी भी आरक्षित वर्ग में नहीं थे, ये दोनों योजनाएं बुरी तरह फ्लॉप हो गईं क्योंकि ये दोनों स्कीम भी केवल उन डीएनटी के लिए थी जो किसी रिजर्व कैटेगरी में नहीं थे. इसलिए वांछित संख्या में अभ्यर्थी / आवेदक ही नहीं मिले. यह तथ्य डीएनटी विशेषज्ञों और न्यायालयों द्वारा बार बार रेखांकित किया जा चुका है कि डीएनटी अत्यंत पिछड़े समुदाय हैं इसलिए उन्हें किसी अन्य कैटेगरी एससी, एस टी या ओबीसी में सम्मिलित करने से कभी भी हक नहीं मिल सकता फिर भी सरकारें इस वास्तविकता की अनदेखी कर रही हैं. रेनके आयोग ने 2008 में ही सिफारिश की थी कि विमुक्त और घुमंतू जनजातियों को शिक्षा एवं नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण दिया जाय तब से आज तक उन्हें तो आरक्षण नहीं दिया गया जबकि आठ लाख रुपए सालाना आमदनी वाले (कमजोर सवर्णों) को 10 प्रतिशत लागू भी कर दिया गया. इदाते आयोग की रिपोर्ट प्रस्तुत किए भी एक वर्ष बीत गया लेकिन उसे लागू करने के बजाय डीएनटी विकास बोर्ड के गठन का लॉलीपॉप पकड़ा दिया गया. जबकि नीति आयोग ने इदाते आयोग कि प्रथम और प्रमुख सिफारिश अर्थात विमुक्त व घुमंतू जनजातियों के लिए एक स्थाई राष्ट्रीय आयोग गठित किए जाने की वकालत की थी. डीएनटी समुदायों को बहुत उम्मीद थी कि वर्तमान केंद्र सरकार दादा इदाते आयोग की रिपोर्ट को निश्चित लागू करेगी किन्तु प्रस्तावित बोर्ड के गठन की घोषणा से इस विशाल समुदाय में आक्रोश व्याप्त हो गया है. आज़ादी के बाद से लगातार यही हो रहा है कुल आठ नौ कमेटियों और दो राष्ट्रीय आयोगों की सिफारिशों के बाद फिर एक नए बोर्ड का झुनझुना भाजपा के गले की फांस बन सकता है.
Dr B K Lodhi, DNT Activist.
माननीय मुख्य मंत्री महोदय,
राजस्थान सरकार जयपुर।
विषय :- राजस्थान राज्य की मोगिया MOGIA जाति को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करवाने के लिए।
मान्यवर महोदय जी,
उपर्युक्त विषय में सविनय निवेदन है कि भारत सरकार द्वारा संविधान संशोधन अधिनियम विधेयक 1976 के अन्तर्गत मोगिया MOGIA जाति को अनुसूचित जनजाति की अनसुची में शामिल किया गया है।जिसका लाभ मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में बसने वाले हमारे मोगिया जाति के समुदाय को मिल रहा है। मोगिया जाति का समुदाय मध्य प्रदेश में अधिक निवास करता है। हमारा भोजन व्यवहार और बेटी व्यवहार परम्परा गत रीति रिवाज से मध्य प्रदेश की मोगिया जाति के साथ आज भी होता है। हमारा आपस में खून का रिश्ता है। हमारा सम्बन्ध एक पिता की दो सन्तान जैसा है। वैसे तो हमारा समाज सम्पूर्ण राजस्थान में निवास करता है। मोगिया समाज मध्य प्रदेश की सीमा से लगे उदयपुर मण्डल के सभी जिलो में लगभग 500 गांवों निवास करता है जिसकी आबादी करीब 50000 के आस पास है । आजादी के बाद राज्यों का पुनर्गठन किया गया था। मध्यप्रदेश और राजस्थान के बन्टवारे साथ साथ हमारी जाति का भी विभाजन कर दिया गया। भारत सरकार और राजस्थान सरकार द्वारा राजस्थान में निवास करने वाली हमारी मोगिया के साथ आरक्षण को लेकर सौतेला व्यवहार किया गया है। राजस्थान में हमारी जाति को ओबीसी वर्ग की अनुसूची में क्रमांक 54 पर मोगिया /मोग्या mogia/mogya शामिल किया गया है। जबकि अन्य पड़ोसी प्रान्त मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ में क्रमांक 16और महाराष्ट्र में क्रमांक 18 पर अनुसूचित जनजाति की सूची में रखा गया है। हमारा समाज जन्मजात अपराधी प्रवर्तियो की जाति की श्रेणी में आता है। राजस्थान में सर्वे कर्ताओ श्री मान् रेन्के कमीशन द्वारा तैयार की गई मसौदा सूची 2008 के अनुसार और राजस्थान सरकार द्वारा केन्द्र सरकार को भेजी गई सूची 2016 के अनुसार मोगिया MOGIA जाति को राजस्थान की Criminal Tribes की सूची में क्रमांक 8 पर सम्मिलित किया गया है। और भारत सरकार द्वारा भी मोगिया MOGIA जाति को राजस्थान राज्य की Denotified Tribes (विमुक्त जनजाति) की सूची में क्रमांक 05 पर दर्ज किया गया है। और Nomadic Tribes की सूची में क्रमांक 29 पर Mogia मोगिया /Mogya मोग्या दर्ज किया गया है। फिर भी राजस्थान सरकार द्वारा इसको उपेक्षा की नजर से देखा गया है। सदियों तक हमारी मोगिया जाति पर जरायमपेशा कानून लगा हुआ था। आजादी के बाद भी 1952 तक हमारी जाति इस कानून के बन्धन में रही। हमारी जाति को अत्यन्त गरीब और अशिक्षित होने के बावजूद भी अनुसूचित जनजाति के अन्तर्गत आरक्षण का लाभ नहीं दिया गया है। हमारे समाज के विध्यार्थियोँ के साथ अन्याय किया गया है। हमारी जाति का एक भी सदस्य सरकारी नौकरी में नहीं है। हमारा समाज अशिक्षा के गहरे अन्धकार में डूबा हुआ है। राजस्थान सरकार द्वारा संविधान में प्रदत आरक्षण से वंचित किये जाने के कारण हमारी जाति आर्थिक सामाजिक और शैक्षिक विकास के दौर में 43 साल पीछे खिसक गई है। रूढ़िवाद और अन्धविश्वास आज भी मौजूद है। समाज में कई प्रकार के अपराध और सामाजिक बुराइयाँ पनप रही है। सामाजिक स्तर अन्य सभी जातियो में हमारा समाज सबसे निम्न माना जाता है। अन्य जातियों के साथ हमारा कोई सामाजिक व्यवहार नहीं है। दूसरी जाति के लोग हमारे हाथ का छुआ पानी तक नहीं पीते है। हमारे समाज की राजस्व जमीन अन्य जातियोँ के द्वारा सस्ते दामो में खरीदने से हमारा समाज और भी गरीबी हो गया है। संसाधनों की कमी के कारण हमारे समाज के विध्यार्थियोँ को अपनी पढाई बीच में ही बन्द कर के घर के कार्यो में लग जाते है। और अपराधी प्रवर्तियो की ओर बढ़ जाते हैं।
अतः माननीय मुख्य मंत्री महोदय और सम्बन्धित विभाग सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग के माननीय मंत्री महोदय राजस्थान सरकार से सविनय प्रार्थना है कि राजस्थान राज्य में निवास करने वाली मोगिया/मोग्या Mogia/Mogya जाति को राजस्थान की ओबीसी की अनुसूची में से बाहर कर के राजस्थान की अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करवा कर हमारे समाज को न्याय दिलवाने की महती अनुकम्पा प्रदान करावे। सादर धन्यवाद।
दिनाँक :27/01/2019
समस्त प्रार्थी गण
मोगिया/मोग्या समाज छात्र सँघ
बड़ी सादड़ी जिला चित्तौड़गढ़
सरकार ने फिर ठेंगा दिखया विमुक्त और घुमंतू समुदायों को: –
राष्ट्रीय विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध घुमंतू जनजाति आयोग ( इदाते आयोग ) ने अपनी प्रथम व प्रमुख शिफारिश की थी कि इन समुदायों के लिए भी एक स्थाई आयोग का गठन किया जाय. आयोग की रिपोर्ट को तो अभी तक माना नहीं गया. पहले नीति आयोग ने इदाते आयोग की स्थाई आयोग गठन संबंधी सिफारिश पर अपनी सहमति भी दे दी थी लेकिन आज बजट सत्र में घोषणा यह की गई कि घुमंतू समुदाय जो एससी, एस टी और आेबीसी में नहीं है केवल उनके लिए डेवलपमेंट बोर्ड का गठन किया जाएगा. विदित रहे कि पहले भी ऐसे विमुक्त और घुमंतू समुदायों के लिए प्री मैट्रिक और पोस्ट मेट्रिक छात्र वृत्ति और हॉस्टल योजना लागू की गई थी जो किसी भी आरक्षित वर्ग में नहीं थे, ये दोनों योजनाएं बुरी तरह फ्लॉप हो गईं क्योंकि ये दोनों स्कीम भी केवल उन डीएनटी के लिए थी जो किसी रिजर्व कैटेगरी में नहीं थे. इसलिए वांछित संख्या में अभ्यर्थी / आवेदक ही नहीं मिले. यह तथ्य डीएनटी विशेषज्ञों और न्यायालयों द्वारा बार बार रेखांकित किया जा चुका है कि डीएनटी अत्यंत पिछड़े समुदाय हैं इसलिए उन्हें किसी अन्य कैटेगरी एससी, एस टी या ओबीसी में सम्मिलित करने से कभी भी हक नहीं मिल सकता फिर भी सरकारें इस वास्तविकता की अनदेखी कर रही हैं. रेनके आयोग ने 2008 में ही सिफारिश की थी कि विमुक्त और घुमंतू जनजातियों को शिक्षा एवं नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण दिया जाय तब से आज तक उन्हें तो आरक्षण नहीं दिया गया जबकि आठ लाख रुपए सालाना आमदनी वाले (कमजोर सवर्णों) को 10 प्रतिशत लागू भी कर दिया गया. इदाते आयोग की रिपोर्ट प्रस्तुत किए भी एक वर्ष बीत गया लेकिन उसे लागू करने के बजाय डीएनटी विकास बोर्ड के गठन का लॉलीपॉप पकड़ा दिया गया. जबकि नीति आयोग ने इदाते आयोग कि प्रथम और प्रमुख सिफारिश अर्थात विमुक्त व घुमंतू जनजातियों के लिए एक स्थाई राष्ट्रीय आयोग गठित किए जाने की वकालत की थी. डीएनटी समुदायों को बहुत उम्मीद थी कि वर्तमान केंद्र सरकार दादा इदाते आयोग की रिपोर्ट को निश्चित लागू करेगी किन्तु प्रस्तावित बोर्ड के गठन की घोषणा से इस विशाल समुदाय में आक्रोश व्याप्त हो गया है. आज़ादी के बाद से लगातार यही हो रहा है कुल आठ नौ कमेटियों और दो राष्ट्रीय आयोगों की सिफारिशों के बाद फिर एक नए बोर्ड का झुनझुना !!
Dr B K Lodhi, DNT Activist.
आरक्षण भक्षण के दौर में हाशिए से नदारद विमुक्त एवं घुमंतू समुदाय
*Dr. B K Lodhi
विमुक्त एवं घुमंतू समुदाय जिनकी जनसंख्या लगभग 20 करोड़ है, का कोई पुरसाहाल नहीं है. भारत जैसे कल्याणकारी राष्ट्र राज्य के अंतर्गत संविधान में विमुक्त जातियों के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गयी है. विमुक्त जातियां वे समुदाय हैं जो न केवल अपने मूल भूत मानवीय अधिकारों से वंचित है बल्कि अपनी वास्तविक पहचान के लिए भी मोहताज हैं. आखिर कौन हैं विमुक्त जातियां ? इसका संछिप्त उत्तर है ‘ब्रिटिश हुकूमत ने जिन विद्रोही समुदायों को क्रिमिनल ट्राईब्स एक्ट के तहत जन्मजात अपराधी घोषित किया था, उन्हें आजाद भारत में ( क्रिमिनल ट्राईब्स एक्ट की समाप्ति के बाद ) विमुक्त जनजातियाँ या डिनोटिफाइड ट्राइब्स कहा जाने लगा किंतु सामाजिक एवं सरकारी व्यवहार में इनके साथ आज भी अपराधी जैसा ही व्यवहार किया जाता है. किसी भी राजनीतिक दल के एजेंडा में इस विशाल आबादी के लिए कोई भी जगह नहीं है. शोध निष्कर्ष स्पष्ट रूप से कहते हैं कि भारत के इन समुदायों ने कंपनी सरकार के विरुद्ध शुरुआत से ही सशस्त्र विद्रोह किए थे और 1857 के स्वातंत्र्य समर के बाद ब्रिटेन की रानी विक्टोरिया द्वारा की गई आम माफी के बावजूद न तो माफी मांगी थी और न ही सरेंडर किया था. हालांकि ऐसे समुदायों को पहले मार्शल रेस कहा गया किंतु माफी न मांगने एवं समर्पण न करने के कारण इनके साथ युद्ध अपराधी जैसा व्यवहार किया गया. फिर क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट, 1871 के जन्मजात अपराधी घोषित कर दिया.
बताते चले की द्वितीय एंगलो अफगान युद्ध के लिए जब अंग्रेजों को भर्ती के लिए भारतीय सैनिकों की आवश्यकता हुई तो उन्होंने मार्शल रेस में से बफादार और गैर बफादार समुदायों की पहचान की. अंग्रेजों ने घुमंतू समुदायों को मार्शल रेस की सूची में शामिल नहीं किया था क्योंकि सेना में भर्ती के लिए आवश्यक उनका स्थाई ठौर ठिकाना नहीं था. अंग्रेजो का राज दुनियां के 53 देशों में था किन्तु क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट जैसा अमानवीय क्रूर कानून केवल भारत में ही लागू किया था. दरअसल भारत की जो सामूहिक सामाजिक एकता थी उसकी बजह से अंग्रेज निरंकुश रूप से भारत में अपना शासन कायम नहीं रख सकते थे. खासकर 1857 की क्रांति के बाद भारत की एकता को बिखंडित करने की हर संभव कोशिश उन्होंने की. जिसमे वे सफल भी हुए. इन घोषित अपराधी जातियों से भारतीय लोगों ने अंग्रेजों के डर से दूरियां बना लीं. इस तरह से अंग्रेजों द्वारा घोषित कुछ अपराधी जातियों को सामाजिक बहिष्करण के कारण अस्पृश्यता के कलंक से भी जूझना पड़ा. अंग्रेजों की चालाकी का कोई मुकाबला नहीं था. उन्होंने बड़ी चालाकी से समस्त जातिगत अस्पृश्यता का ठीकरा हिन्दू धर्म शास्त्रों पर फोड़ दिया. समाज विज्ञानियों का शोध निष्कर्ष यही है कि विमुक्त जातियां स्वातंत्र्य योद्धा थी. किन्तु इतिहास के पन्नों में उन्हें कोई स्थान नहीं दिया गया.
सामाजिक न्याय की अवधारणा यह है कि जो समुदाय किसी भी सामाजिक कारण से न्याय से वंचित हो गए हों, उन्हें संवैधानिक प्रावधानों द्वारा न्याय दिलाया जाय. किन्तु विमुक्त समुदायों के मामले में सामाजिक न्याय के ध्वजवाहकों के जो अन्यमनस्कता बरती है वह चिंता और चिंतन का विषय है. जब साइमन कमीशन भारत आया तब साइमन ने डॉ. आम्बेडकर से क्रिमिनल ट्राइब्स के बारे में उनकी राय ली थी, उस समय बाबा साहब ने साइमन कमीशन के समक्ष, 1928 में क्रिमिनल ट्राइब्स को डिप्रेस्ड क्लास माने जाने से इनकार किया था. इतना ही नहीं उन्होंने क्रिमिनल ट्राइब्स को वयस्क मताधिकार से वंचित करने के लिए भी कहा था. यद्यपि विमुक्त जातियों में से कुछ को अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल कर लिया गया, लेकिन यह सम्मिलिनिकरण भी एक बहुत बड़ी साजिश का हिस्सा था. इससे विमुक्त जातियों को कोई लाभ नहीं हुआ. ये केवल एस सी, एस टी और ओबीसी की संख्या वृद्धि और तदनुसार कोटा बढ़ाने में सहायक हुए जबकि इनके हिस्से में न नौकरियां आयीें और न ही अन्य सत्ता प्रतिष्ठानों में प्रतिनिधित्व ही मिला. उल्टे इनके लिए आवंटित धन राशि को भी एस सी, एस टी और ओबीसी के मलाईदार तबकों ने हड़प लिया. आरक्षण भक्षण का सिल सिला आज भी बदस्तूर जारी है. विशेषज्ञों एवं कतिपय उच्च न्यायालयों ने भी माना है कि विमुक्त जनजातियाँ एक प्रथक विशिष्ट वर्ग हैं, इन्हें एससी, एसटी या ओबीसी के साथ सम्मिलित करने से इनको न्याय नहीं मिल सकता. आवश्यकता यह है कि या तो इनके लिए एससी, एसटी की तरह अलग शेड्यूल बनाया जाय या एससी, एसटी और ओबीसी में प्रथक उपश्रेणी बनायीं जाय. अभी हाल में आनन फानन में आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लिए दस प्रतिशत आरक्षण लागू कर दिया गया. एससी, एसटी और ओबीसी के तुष्टिकरण के लिए भी हरसंभव कोशिश की जा रही हैं. लेकिन विमुक्त समुदाय ब्रिटिश कालीन पूर्वाग्रह से आज भी मुक्त नहीं हो सके. प्रथम तो यह कि इन समुदायों को आज़ादी (क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट से विमुक्ति ) ही पांच वर्ष सोलह दिन बाद 31 अगस्त 1952 को मिली थी. आज़ादी के बाद गठित 11 कमेटियों ने विमुक्त समुदायों के उत्थान हेतु कतिपय संस्तुतियां की थीं किन्तु उन्हें नजरअंदाज कर दिया गया. कमेटियों के अलावा राष्ट्रीय स्तर पर गठित राष्ट्रीय विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध घुमंतू जनजाति आयोग ( रेनके आयोग -2008 ) की सिफारिशों को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया था. इसके बाद भिकू रामजी इदाते, दादा की अध्यक्षता में एक और राष्ट्रीय विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध घुमंतू जनजाति आयोग ( इदाते आयोग ) का गठन किया गया. इदाते आयोग ने सारगर्भित और कानूनन स्वीकार किए जाने योग्य कुल बीस सिफारिशों वाली अपनी रिपोर्ट जनवरी 2018 में ही भारत सरकार को पेश कर दी थी. बहुत उम्मीद थी कि इदाते आयोग की रिपोर्ट को भारत सरकार तत्काल प्रभाव से लागू कर देगी किंतु अभी तक आयोग की सिफारिशों को लागू नहीं किया गया, जबकि आगामी लोक सभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए सवर्ण समुदाय को खुश करने के लिए आनन-फानन में संविधान संशोधन कर दस प्रतिशत आरक्षण लागू भी कर दिया. एससी, एसटी और ओबीसी को लुभाने के लिए भी घोषणाएं की जा सकती हैं. लेकिन लगता है कि केंद्र एवं राज्य सरकारों की संवेदनहीनता, के कारण, गूजर, लोधा, केवट, किसान, मल्लाह, भर, पासी, खटिक, सांसी, सपेरा, छारा, वाघरी, बहेलिया, भाट, जोगी, जंगम, बरवार, कंजर, कुचबंध, सहारिया, गाड़िया लोहार, धनगर, बंजारा, नट, पारधी, कोरवा, बावरी, भांतू, येरुकला, बोया, कोया, बांसफोर, बेलदार, भील, मुंडा, आदि जैसे, विमुक्त और घुमंतू समुदाय अपने मूलभूत मानवीय अधिकारों से वंचित ही रहेंगे.
लेखक परिचय:
डॉ. बी के लोधी, विमुक्त जन अधिकार कार्यकर्त्ता
पूर्व उपसचिव, राष्ट्रीय विमुक्त, घुमंतू और अर्द्धघुमंतू जनजाति आयोग, भारत सरकार.
सम्प्रति : सीनियर फेलो- भारतीय सामाजिक अनुसंधान परिषद
संपर्क : मोब. न. 9450111741, E-mail: lodhivimukt@gmail.com