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भाजपा के इशारे पर नीतीश ने चलवायी लाठी : कुशवाहा

बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के कार्यकर्ताओं पर भाजपा की शह पर लाठियां चलवायी है। मेरे साथ-साथ अनेक पार्टी कार्यकर्ताओं को चोटें आयी हैं। सत्ता के नशे में इस तरह की कार्रवाई का दुस्साहस किया गया है, जिसका चकनाचूर होना अब तय है

किस व्यक्ति की गरिमा मायने रखती है और किसकी गरिमा का कोई महत्व नहीं है, यह भी मुख्य धारा की मीडिया में उस व्यक्ति की जाति से तय होती है। कल 2 फरवरी 2019 को इसका उदाहरण हाल तक केंद्रीय मंत्री और रालोसपा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा की पटना में पुलिस द्वारा पिटाई के बाद सामने आया। भारत की मुख्यधारा धारा की मीडिया में पूरी तरह चुप्पी है। राजनीतिक गलियारे में भी शांति छायी हुई है। बात-बात पर मानवीय गरिमा की बात करने वाले द्विज बुद्धिजीवियों की कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई। कल्पना कीजिए कि यह घटना यदि किसी सवर्ण पूर्व केंद्रीय मंत्री के साथ होती, तो क्या होता? मसलन, यदि उपेंद्र कुशवाहा की जगह गिरिराज सिंह होते तो क्या होता? राजीव प्रताप रूडी होते तो क्या होता? क्या इसे एक सामान्य घटना मानकर इसी तरह की चुप्पी और उपेक्षा दिखती? सच तो यह है कि यदि उपेंद्र कुशवाहा के कद के किसी सवर्ण नेता के साथ ऐसा हुआ होता, तो अब तक चारों तरफ हंगामा मच जाता। गौरतलब है उपेंद्र कुशवाहा पर लाठियां जगदेव प्रसाद की जयंती के मौके पर शिक्षा में सुधार के लिए आयोजित विरोध प्रदर्शन में बरसीं। बिहार सरकार के मंत्री रहे जगदेव प्रसाद इसी प्रकार के एक विरोध प्रदर्शन के दौरान 5 सितंबर 1974 को बिहार के जहानाबाद जिले के कुर्था(अब अरवल जिला) में पुलिस की गोलियों से मारे गए थे। जगदेव प्रसाद भी उसी पिछडे समुदाय से आते थे, जिससे उपेंद्र आते हैं। जगदेव प्रसाद के हत्यारों को आज तक सजा नहीं मिल सकी, न ही भारत के द्विज बौद्धिक समुदाय  ने कभी उन्हें गरीबों के लिए हक के लिए जान देने वाले मसीहा के रूप में याद किया।

उपेंद्र कुशवाहा को निशाना बनाकर बरसाई गई लाठियों और कथित बौद्धिक समुदाय की चुप्पी को भी उपरोक्त परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। प्रस्तुत है इस संदर्भ में उपेंद्र कुशवाहा से फारवर्ड प्रेस की बातचीत का संपादित अंश :

फारवर्ड प्रेस : कैसी तबीयत है? डॉक्टरों ने क्या कहा है?
उपेंद्र कुशवाहा : ऊपर वाले का शुक्रगुजार हूं कि सीटी स्कैन में कुछ खास नहीं निकला है। हाथ व सिर में चोटें लगी हैं। डाक्टरों ने आराम की सलाह दी है।

फा.प्रे. : घटना के बारे में बताएं?
उ.कु. : पहले से घोषित कार्यक्रम के तहत अपनी 25 सूत्री मांगों को लेकर आक्रोश मार्च की शुरुआत पटना के गांधी मैदान से की गई जिसे राजभवन तक जाना था। लेकिन डाकबंगला चौक पर एकाएक पुलिस जबरदस्ती करने लगी और जब हमारी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने एतराज जताया तो पुलिस ने पहले पानी की बौछार की और फिर लाठीचार्ज कर दिया। जबकि हमने पहले ही अपने मार्च की विधिवत जानकारी प्रशासन को दे दी थी। यह तानाशाही रवैया है और सरकार के इशारे पर पुलिस ने हमलोगों पर लाठी चलाने का काम किया है।

पीएमसीएच में इलाजरत उपेंद्र कुशवाहा

फा.प्रे. : इस कार्रवाई पर आपकी प्रतिक्रिया?
उ.कु. : यह तो साफ है कि बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के कार्यकर्ताओं पर भाजपा की शह पर लाठियां चलवायी है। मेरे साथ-साथ अनेक पार्टी कार्यकर्ताओं को चोटें आयी हैं। सत्ता के नशे में इस तरह की कार्रवाई का दुस्साहस किया गया है, जिसका चकनाचूर होना अब तय है। आखिर कितने उपेंद्र कुशवाहों को लाठी से पिटवाएंगे? चौपट शिक्षा और निरंकुश शासन के खिलाफ लाखों और उपेंद्र कुशवाहा खड़े हो चुके हैं।

  • बहुत जल्द सत्ता का नशा हो जाएगा चकनाचूर, जनता समझ चुकी है
  • लाठीचार्ज के विरोध में चार को बिहार बंद का ऐलान
  • कांग्रेस, राजद, हम, माकपा, माकपा-माले आदि का मिला साथ

फा. प्रे. : आपने आरोप लगाया है कि बिहार में शिक्षा व्यवस्था चौपट हो गई है और शासन निरंकुश हो चुका है?
उ.कु. : शिक्षा के क्षेत्र में बिहार की हालत चिंताजनक है। सरकार ने दावे तो बहुत किए हैं, लेकिन शिक्षा व्यवस्था लगातार बेपटरी होती चली गई है। नीतीश कुमार के 15 साल के लंबे कार्यकाल में शिक्षा के क्षेत्र में जितने और जिस तरह के घोटाले हुए उसने बिहार का नाम देश में ही नहीं विदेशों में भी खराब किया। नीतीश कुमार साइकिल और पोशाक बांटने को ही अपनी और अपने सरकार की उपलब्धि मान कर अपनी पीठ थपथपाते रहे। लेकिन उन्होंने देखने की कोशिश कभी नहीं की कि शिक्षा के अधिकार के तहत स्कूली बच्चों को समय पर किताबें मिल रहीं हैं या नहीं। स्कूली सत्र शुरू होने के सात-आठ महीने बाद छात्रों को पुस्तकें मिलती हैं, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती। बच्चे बिना पढ़े-लिखे परीक्षा देते हैं और वे क्या लिख पाते होंगे, इसे आप भी आसानी से समझ सकते हैं।
अपने कार्यकाल में नीतीश कुमार जी ने ‘डिग्री लाओ-नौकरी पाओ’ का फार्मूला अपनाया, नतीजे में स्कूलों में ऐसे-ऐसे शिक्षक बहाल हो गए जिन्हें अपना नाम तक लिखना ठीक से नहीं आता। आपके ध्यानार्थ एक घटना का उल्लेख करना चाहता हूं कि बिहार के सरकारी माध्यमिक स्कूलों के प्राचार्यों का हाल यह है कि वेतन वृद्धि के लिए आयोजित विभागीय परीक्षा में 148 में से सिर्फ चार प्राचार्य ही पास कर सके। हालांकि प्रश्न पत्र उनके विषय से संबंधित ही थे। 148 में से सिर्फ चार प्राचार्यों का पास होना एक गंभीर रोग का लक्षण मात्र है।  लेकिन प्राचार्यों की हालत पहले ऐसी नहीं थी। इन पंद्रह सालों में स्कूलों में इस तरह के शिक्षकों की तादाद बढ़ी है। हालांकि सरकार चाहती तो ऐसा नहीं होता। लेकिन सरकार ने शिक्षा को राजनीतिक लेन-देन का माध्यम बनाया और ऐसे शिक्षकों की बहाली की जो योग्य नहीं थे। एक बड़ी वजह यह रही है। ऐसे शिक्षकों के हवाले भी अगर हम अपने बच्चों को करेंगे तो वे किस तरह की शिक्षा ग्रहण कर पाएंगे, इसे आसानी से समझा जा सकता है। जब प्राचार्यों का हाल यह है तो अन्य शिक्षकों का क्या हाल होगा, आप भी बेहतर समझ सकते हैं।

पटना में रालोसपा कार्यकर्ताओं पर लाठीचार्ज करती पुलिस

फा.प्रे. : सत्ता पक्ष का कहना है कि आरोप लगाना आसान है, सबूत पेश करें?
उ.कु. : रिपोर्ट से बेहतर व सटीक सबूत और क्या हो सकता है? शिक्षा व्यवस्था सुधारने की तमाम कवायदों के बीच स्कूली शिक्षा की एक चिंताजनक तस्वीर सामने आई है ।पांचवीं के करीब तीस फीसदी बच्चे पहली का पाठ भी नहीं पढ़ पाते हैं। दूसरी कक्षा के 25.3 प्रतिशत बच्चे सामान्य हिन्दी के अक्षर भी नहीं पढ़ पाते हैं। कक्षा आठवीं के 24 फीसदी बच्चों को दूसरी का पाठ पढ़ना नहीं आता। शिक्षा की गुणवत्ता का यह हाल है कि दूसरी कक्षा के 19 प्रतिशत बच्चे तो एक से नौ तक के अंक भी नहीं पहचानते। गांवों में स्कूली शिक्षा को बेहतर करने के सरकारी वादों और दावों के बावजूद सच यह है कि आधे छात्र अपनी कक्षा से निचली कक्षाओं की किताबें पढ़ने और गणित के मामूली सवाल हल करने में अक्षम हैं। स्वयंसेवी संस्था प्रथम की सालाना असर रिपोर्ट ने ऐसे अनेक चिंताजनक तथ्यों को रेखांकित किया है। यह रिपोर्ट देश के 596 जिलों के 3,54,944 परिवारों के तीन से 16 साल की उम्र के 5,46,527 बच्चों के सर्वेक्षण पर आधारित है। असर रिपोर्ट का एक संकेत यह भी है कि बिहार सहित आर्थिक रूप से पिछड़े राज्यों में समस्या तुलनात्मक रूप से अधिक गंभीर है। बिहार में तो पढ़ने की क्षमता पिछली रिपोर्ट के आंकड़ों से भी कम हुई है। आधे से अधिक बच्चों को घड़ी तक देखना नहीं आता। सच तो यह है कि रसोई तो मिली, लेकिन शिक्षक स्कूलों से गायब होते चले गए। यह भयावह स्थिति है। रिपोर्ट के मुताबिक प्रारंभिक योग्यता के बिना शिक्षा में सुधार नामुमकिन है। रिपोर्ट के मुताबिक सरकारी स्कूलों में गिरती शिक्षा व्यवस्था का फायदा निजी स्कूलों को मिल रहा है और स्कूल के संचालक अपनी मनमानी कर रहे हैं। शिक्षा में आई लगातार गिरावट से राष्ट्रीय लोक समता पार्टी चिंतित है। चिंता का कारण भी है। दरअसल सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे गरीबों, वंचितों, पिछड़ों, दलितों, अतिपिछड़ों और अकलियतों के होते हैं। जिनके लिए पढ़ाई का एकमात्र जरिया सरकारी स्कूल हैं। लेकिन सरकारी स्कूलों में शिक्षा गुणवत्तापूर्ण न होगी तो न तो गरीब बच्चे पढ़ पाएंगे और नही बिहार व देश विकास कर पाएगा।

पटना में उपेंद्र कुशवाहा के समर्थकों पर लाठी बरसाती पुलिस


फा.प्रे. : कुछ दिन पहले तक आप केंद्र में शिक्षा से जुड़े मंत्रालय मानव संसाधन विकास मंत्रालय में मंत्री थे। आप जिम्मेदारी से कैसे अलग हो सकते हैं?
उ.कु. : राष्ट्रीय लोक समता पार्टी बिहार में शिक्षा के सुधार के लिए जून 2017 से लगातार आंदोलन कर रही है। तब मैं मंत्री था और उस दौरान भी पंचायत से लेकर प्रखंड और जिला से लेकर राजधानी पटना में पार्टी ने शिक्षा सुधार के लिए चरणबद्ध तरीके से आंदोलन किया और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बार-बार नींद से जगाने की कोशिश की ताकि बिहार के स्कूलों में शिक्षा का स्तर सुधारें। हमने सरकार के सामने 25 सूत्री मांग रखी थी। हमारा मानना है कि शिक्षा में सुधार सियासी नहीं सामाजिक मुद्दा है। लेकिन हमारे बार-बार आग्रह करने के बावजूद बिहार के मुख्यमंत्री की अंतरात्मा नहीं जागी, जबकि छोटी-छोटी बातों पर वे अपनी अंतरात्मा की दुहाई देते रहे हैं। रालोसपा का मानना है कि हम शिक्षा में सुधार करेंगे, कर के रहेंगे। इसी आंदोलन के तहत हम बिहार के घर-घर गए, लोगों को इस आंदोलन से जोड़ा। बिहार की आम अवाम इस मुहिम से गहरे जुड़ी है। पटना की सड़क इसकी गवाह है जहां लोगों का आक्रोश मार्च के जरिए सड़कों पर नजर आया। बिहार की अवाम चाहती हैं कि सरकारी स्कूलों में शिक्षा में सुधार हो। हमारा भी मानना है कि शिक्षा में होगा सुधार होगा, तभी होगा विकास और बढ़ेगा बिहार। लोगों से संपर्क के दौरान हमने हस्ताक्षर अभियान चलाया। बिहार के लोगों ने इस हस्ताक्षर अभियान में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया. बिहार के लोगों ने हमारी आवाज को ताकत दी है। बिहार के लोगों का कहना है कि हम शिक्षा में सुधार करेंगे, कर के रहेंगे ताकि गरीब, दलित-महादलित, पिछड़ा-अतिपिछड़ा, गरीब सवर्ण और अकलियत का बच्चा बेहतर शिक्षा हासिल कर देश और समाज में अपना मुकाम हासिल करे।

फा.प्रे. : बिहार के मामले में केंद्र सरकार कैसे जिम्मेदार है?
उ.कु. : आप सभी जानते हैं बिहार में नीतीश की सरकार में भाजपा सहयोगी पार्टी है। चूंकि केंद्र में भाजपा की सरकार है, इसलिए वहां से नीतीश सरकार को उचित,अनुचित सहयोग मिलता आ रहा है और यही वजह है कि ओवर कांफिडेंस में सरकार भी आंदोलन को दबाने के लिए अनुचित कदम तक उठाने से परहेज नहीं कर रही है। साफ-साफ शब्दों में कहें तो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के खिलाफ कई ऐसे फैसले लिए गए जिससे लगने लगा है कि मोदी सरकार बहुजन के खिलाफ है।

फा.प्रे. : कुछ ऐसे फैसलों के बारे में बताएं?
उ.कु. : एक ताजा उदाहरण तो सुप्रीम कोर्ट द्वारा विभागवार आरक्षण के संबंध में फैसला दिया जाना है। केंद्र सरकार ने अदालत में दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों का पक्ष नहीं रखा। हमलोग इस फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार से मांग कर रहे हैं कि वह इसे निरस्त करने के लिए अध्यादेश लाए। यह सभी जानते हैं कि विश्वविद्यालयों में 13 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम ओबीसी, एससी और एसटी वर्ग के आरक्षण के खिलाफ है। इसके लिए देश भर में आंदोलन शुरू हो चुका है और इसके बावजूद केंद्र में मोदी सरकार व बिहार में नीतीश सरकार नहीं चेती तो बता दूं कि मोदी व नीतीश सरकार के खिलाफ शंखनाद हो चुका है और अब याचना नहीं, रण होगा।


(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)


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लेखक के बारे में

कुमार समीर

कुमार समीर वरिष्ठ पत्रकार हैं। उन्होंने राष्ट्रीय सहारा समेत विभिन्न समाचार पत्रों में काम किया है तथा हिंदी दैनिक 'नेशनल दुनिया' के दिल्ली संस्करण के स्थानीय संपादक रहे हैं

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