आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में लोकसभा की सात सीटों में से छह पर प्रत्याशियों की घोषणा भले ही कर दी हो लेकिन कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों को पता है कि ‘एकला चलो’ से भाजपा को शिकस्त नहीं दी जा सकती है। चुनावी आंकड़ों से भी इस बात की पुष्टि होती है और विश्वस्त सूत्र की मानें तो चुनावी आंकड़ों को देखते हुए दोनों पार्टियों के बीच समझौता हो चुका है। केवल औपचारिक घोषणा शेष है।
सूत्र बताते हैं कि समझौते को लेकर उधेड़बुन की स्थिति के भी अपने कारण हैं। इस बाबत जो खबर आ रही है, वह यह कि कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व तो समझौते के पक्ष में शुरू से रहा है लेकिन दिल्ली प्रदेश यूनिट आम आदमी पार्टी के साथ चुनावी गठजोड़ के पक्ष में बिल्कुल नहीं रहा है। प्रदेश नेतृत्व का साफ कहना है कि इस तरह का कोई भी समझौता कांग्रेस के लिए आत्मघाती जैसा होगा।

चुनावी विश्लेषक भी कांग्रेस के प्रदेश नेतृत्व के तर्क से बहुत हद तक इत्तेफाक रखते हैं। उनके मुताबिक आम आदमी पार्टी का उदय व कांग्रेस का अवसान दोनों साथ-साथ हुआ है। लगातार 15 वर्षों तक दिल्ली की सत्ता पर काबिज रहने वाली कांग्रेस का दिल्ली विधानसभा से पूरी तरह सफाए का कारण भी आम आदमी पार्टी के उदय को माना जाता रहा है। आम आदमी पार्टी की तरफ वोट बैंक शिफ्ट हुआ उसमें अधिकांश कांग्रेस से छिटक कर आया और यही वजह है कि कांग्रेस के प्रदेश नेतृत्व को लगता है कि चार साल तक सरकार में रहने के बाद चुनाव में एंटी इनकंबेंसी (सत्ता विरोधी लहर) वोट वापस कांग्रेस की तरफ आ सकता है।
प्रदेश नेतृत्व को लगता है कि आम आदमी पार्टी से समझौता नहीं करने से भले ही आगामी लोकसभा चुनाव में कुछ खास लाभ नहीं मिले लेकिन 2020 में दिल्ली विधानसभा चुनाव आते-आते इसका लाभ जरूर मिलेगा।
यानी कांग्रेस का प्रदेश नेतृत्व 2020 के विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर समझौते से इनकार कर रही है लेकिन महागठबंधन की अगुवाई कर रही कांग्रेस पार्टी नहीं चाहती है कि लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सातों सीटों पर कांग्रेस 2014 के लोकसभा चुनाव की तरह फिसड्डी रहे और भाजपा फिर क्लीन स्वीप कर सातों सीटें अपने कब्जे में करने में सफल हो जाए। समझौता नहीं होने की स्थिति में चुनावी आंकड़े भी भाजपा के पक्ष में ही रहने की संभावना की तरफ इशारा करते हैं।
विश्वस्त सूत्र की मानें तो दोनों पार्टियों कांग्रेस और आप के शीर्ष नेतृत्व का स्पष्ट मानना है कि बिना साझेदारी से भाजपा को शिकस्त देना आसान नहीं है। अपने इस बात के पक्ष में इन पार्टियों के शीर्ष नेतृत्व के रणनीतिकार आंकड़ों का सहारा ले रहे हैं और उसके मुताबिक 2013 में आम आदमी पार्टी के जन्म लेने के बाद कांग्रेस की वोट शेयरिंग में जबरदस्त गिरावट आई है, भाजपा की वोट शेयरिंग में बहुत कुछ बदलाव नहीं आया है। यानी माना जा रहा है कि आप के आने से कांग्रेस का ही वोट बैंक खिसक कर उसके पास गया है और ऐसे में दोनों अगर साझेदारी से चुनाव लड़ते हैं तो परिणाम सकारात्मक हो सकता है।
साल 2013 और 2015 के चुनाव का तुलनात्मक अध्ययन करें तो पता चलता है कि कांग्रेस के वोट प्रतिशत में 14.9 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई जबकि आम आदमी पार्टी के वोट बैंक में 24.8 फीसदी का जबरदस्त उछाल दर्ज किया गया। 67 सीटों के साथ आम आदमी पार्टी की ऐतिहासिक जीत की प्रमुख वजह यही थी। लेकिन समय के साथ इसके वोट बैंक में भी गिरावट होनी शुरू हो गई और इसकी पुष्टि दिल्ली नगर निगम चुनाव परिणाम से हो गई। नगर निगम चुनाव में भाजपा तीनों नगर निगम में कब्जा जमाने में सफल रही वहीं कांग्रेस ने भी विधानसभा चुनाव परिणाम को दरकिनार करते हुए अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में सफल रही।
माना जा रहा है कि आम आदमी पार्टी का वोट बैंक अपने पुराने घर कांग्रेस की तरफ खिसकना शुरू हो गया है। हालांकि आप दूसरे नम्बर की पार्टी निगम चुनाव में भी रही। बता दें कि इन आंकड़ों को देखकर ही दोनों पार्टियों कांग्रेस व आप का शीर्ष नेतृत्व सीट शेयरिंग को लेकर गंभीरता दिखा रही है और सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो आम आदमी पार्टी के प्रत्याशियों की घोषणा के बावजूद कोई नए फार्मूले पर समझौता हो सकता है।
सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के बीच समझौता हो चुका है और जल्द ही इसकी आधिकारिक घोषणा होने की उम्मीद है। विश्वस्त सूत्र की मानें तो सीट शेयरिंग को लेकर तीन-चार विकलपों पर दोनों पार्टियों में बात हुई है। यह बातचीत आम आदमी पार्टी के संजय सिंह और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल के बीच हुई है। बातचीत का सिरा टूटा नहीं है। कुछ फॉर्मूले भी हैं जिन पर बात चल रही है। एक फॉर्मूला तो यह है कि अगर आप और कांग्रेस के बीच सिर्फ दिल्ली में समझौता होता है तो आप 5 और कांग्रेस 2 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है। वहीं दूसरे फॉर्मूला में आम आदमी पार्टी पंजाब में भी कांग्रेस से गठबंधन के मूड में है। पंजाब में आप 2 सीटें चाहती है। हालांकि, 2014 में पार्टी ने अप्रत्याशित सफलता हासिल करते हुए यहां से 4 सीटें जीती थीं। अगर कांग्रेस, पंजाब में आप को 2 सीट देने पर राजी होती है तो दिल्ली में सीटों का बंटवारा आप के हक में 4 और कांग्रेस के खाते में 3 का हो सकता है। तीसरे फार्मूले के तहत सुझाया गया है कि कांग्रेस पंजाब में 2 सीटें छोड़ने के एवज में दिल्ली के लिए 3-3-1 का फॉर्मूला चाहती है। जहां आप और कांग्रेस 3-3 सीटों पर लड़ें और 1 सीट किसी तीसरे सहयोगी के लिए छोड़ दी जाए। वहीं चौथे फॉर्मूले के तहत कहा गया है कि ये भी मुमकिन है कि भीतर ही भीतर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस में बात बन जाए लेकिन औपचारिक गठबंधन की घोषणा न हो। अगर ऐसा हुआ तो आप 4 और कांग्रेस 3 सीटों पर लड़ सकती है।
(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)
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