‘द इकोनॉमिस्ट’ पत्रिका का अनुमान है कि नरेन्द्र मोदी एक बार फिर भारत के प्रधानमंत्री बनेंगे. पत्रिका के 2 मई 2019 के अंक में देश में चल रहे आम चुनाव पर एक लेख प्रकाशित हुआ है, जिसका शीर्षक है ‘मिसाइल्स मेकिथ द मैन : नेशनलिस्ट फ़र्वर इज़ लाइकली टू सिक्योर अ सेकंड टर्म फॉर नरेन्द्र मोदी’.
लेख में कहा गया है कि, मोदी एक प्रभावी व अत्यधिक परिश्रमी चुनाव प्रचारक हैं. वे लगातार अपनी पार्टी की बात लोगों के सामने ज़ोरदार ढंग से रख रहे हैं और अपने राजनैतिक प्रतिद्वंद्वियों पर कठोर प्रहार कर रहे हैं.
‘द इकोनॉमिस्ट’ ने लिखा है कि मोदी को अथाह आर्थिक संसाधनों की उपलब्धतता का लाभ भी मिल रहा है. उनकी पार्टी के पास कितना धन है यह कहना कठिन है परन्तु इसका एक अंदाज़ा पार्टी को इलेक्टोरल बांड्स के ज़रिये प्राप्त धन राशि से लगाया जा सकता है. इलेक्टोरल बांड्स योजना के अंतर्गत बिना अपना नाम उजागर किये राजनैतिक पार्टियों को चंदा दिया जा सकता है. इस योजना की शुरुआत भाजपा सरकार ने राजनैतिक दलों को चंदा देने की प्रक्रिया को ‘पारदर्शी’ बनाने के लिए पिछले साल की थी. इलेक्टोरल बांड्स के जरिये राजनैतिक दलों को जो चंदा मिला है, उसमें से 95 फ़ीसदी भाजपा के हिस्से में आया है.
पत्रिका का कहना है कि पुलवामा हमले ने इस चुनाव को निर्णायक मोड़ दिया. पिछले साल, भाजपा को हिंदी पट्टी के तीन राज्यों – मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ – सहित कई ऐसे अन्य राज्यों में चुनावों में हार का सामना करना पड़ा था, जहाँ उसकी स्थिति खासी मज़बूत थी.
लेख में कहा गया है कि, “गत वर्ष 14 फरवरी को, बीस साल के आदिल अहमद दर ने विस्फोटकों से लदी अपनी कार को जम्मू-कश्मीर में अर्द्धसैनिक बलों के एक काफिले से भिड़ा दिया. इस हमले में 40 सैनिक मारे गए. इस हमले की ज़िम्मेदारी एक पाकिस्तानी आतंकी समूह ने ली. इस घटना ने देश में भावनाओं का ज्वार उत्पन्न कर दिया. यह ज्वार दो सप्ताह बाद तब अपने चरम पर पहुंचा जब श्री मोदी ने पाकिस्तान में एक कथित आतंकी शिविर पर प्रतिशोधात्मक बमबारी करने का आदेश दिया. अब श्री मोदी राष्ट्रवादी भावनाओं का जबरदस्त दोहन रहे हैं. वे अपने दुश्मन देश पर मिसाइलों की वर्षा करने के धमकी दे रहे हैं और अपने विरोधियों को कायर और कमज़ोर बता रहे हैं.”
‘द इकोनॉमिस्ट’ का मानना है कि मोदी के अनवरत ‘शाब्दिक प्रहारों’ ने विपक्षी पार्टियों को दिग्भ्रमित कर दिया है. वे नज़दीक आने के बजाय वे एक-दूसरे से दूर हो गईं हैं. पत्रिका का निष्कर्ष है कि, “अगर भाजपा और उसके निकट सहयोगी स्पष्ट बहुमत पाने में असफल रहते हैं तो श्री (राहुल) गाँधी की तुलना में वे (मोदी), निश्चित रूप से क्षेत्रीय दलों की मदद से गठबंधन (सरकार) बनाने की बेहतर स्थिति में रहेंगे.”
(अनुवाद: अमरीश हरदेनिया)
फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्त बहुजन मुद्दों की पुस्तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्य, सस्कृति व सामाजिक-राजनीति की व्यापक समस्याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in
फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें
मिस कैथरीन मेयो की बहुचर्चित कृति : मदर इंडिया