h n

डॉ. आंबेडकर और मिथकीय धर्मशास्त्र

लेखक कंवल भारती बता रहे हैं हिन्दू धर्म ग्रंथों में वर्णित मिथकों के संदर्भ में डॉ. आंबेडकर के अध्ययन के बारे में। अपने अध्ययन में डॉ. आंबेडकर गीता को बुद्ध द्वारा जाति उन्मूलन के प्रयास के विरोध में रचित पाते हैं। साथ ही वे राम-कृष्ण के चरित्र के बारे में कहते हैं कि ये दोनों कोई आदर्श पुरूष नहीं थे और न ही ये देवता थे

वेंडी डोनिजर[1] के शब्दों में, मिथक को एक कहानी के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिसे लोग बड़े पैमाने पर, यह जानते हुए भी कि यह सच नहीं है, मानते हैं। असल में, मिथक की भावना पर्दे के पीछे होती है, जिस पर आदमी ध्यान नहीं देता है। उन्होंने एक उदाहरण देकर बताया है कि जब हम इस तरह का पाठ पढ़ते हैं कि एक हिन्दू राजा ने आठ हजार जैनों को सूली पर चढ़ा दिया, तो इस मिथक को समझने के लिए हमें इतिहास के प्रयोग की जरूरत है। अगर हमने यह बात समझ ली कि यह पाठ क्यों लिखा गया, तो जान जायेंगे कि उस समय हिन्दुओं और जैनों के बीच तनाव था।[2] लेकिन हम मिथक का उपयोग पाठ के पीछे के वास्तविक इतिहास के पुनर्निर्माण के लिए नहीं कर सकते, और हम इस पाठ को जैनों के प्रति हिन्दू राजा की क्रूरता का साक्ष्य भी नहीं कह सकतेI इसी तरह जब हम रामायण में राक्षसों के बारे में पढ़ते हैं, (कि राम ने राक्षसों को मारा), तो वह लेखक का काल्पनिक संसार है, जिसमें वह शत्रु पक्ष के मनुष्यों के लिए ख़ास शब्दावली का प्रयोग करता है। विचारों का इतिहास,  भले ही ‘कठिन’ इतिहास का स्रोत न हो, फिर भी बहुत कीमती चीज है। क्योंकि, कहानियां और कहानियों में विचार भविष्य में इतिहास को दूसरी दिशा में प्रभावित करते हैं।

पूरा आर्टिकल यहां पढें :डॉ. आंबेडकर और मिथकीय धर्मशास्त्र

 

 

 

 

लेखक के बारे में

कंवल भारती

कंवल भारती (जन्म: फरवरी, 1953) प्रगतिशील आंबेडकरवादी चिंतक आज के सर्वाधिक चर्चित व सक्रिय लेखकों में से एक हैं। ‘दलित साहित्य की अवधारणा’, ‘स्वामी अछूतानंद हरिहर संचयिता’ आदि उनकी प्रमुख पुस्तकें हैं। उन्हें 1996 में डॉ. आंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार तथा 2001 में भीमरत्न पुरस्कार प्राप्त हुआ था।

संबंधित आलेख

हूल विद्रोह की कहानी, जिसकी मूल भावना को नहीं समझते आज के राजनेता
आज के आदिवासी नेता राजनीतिक लाभ के लिए ‘हूल दिवस’ पर सिदो-कान्हू की मूर्ति को माला पहनाते हैं और दुमका के भोगनाडीह में, जो...
यात्रा संस्मरण : जब मैं अशोक की पुत्री संघमित्रा की कर्मस्थली श्रीलंका पहुंचा (अंतिम भाग)
चीवर धारण करने के बाद गत वर्ष अक्टूबर माह में मोहनदास नैमिशराय भंते विमल धम्मा के रूप में श्रीलंका की यात्रा पर गए थे।...
जब मैं एक उदारवादी सवर्ण के कवितापाठ में शरीक हुआ
मैंने ओमप्रकाश वाल्मीकि और सूरजपाल चौहान को पढ़ रखा था और वे जिस दुनिया में रहते थे मैं उससे वाकिफ था। एक दिन जब...
When I attended a liberal Savarna’s poetry reading
Having read Om Prakash Valmiki and Suraj Pal Chauhan’s works and identified with the worlds they inhabited, and then one day listening to Ashok...
मिट्टी से बुद्धत्व तक : कुम्हरिपा की साधना और प्रेरणा
चौरासी सिद्धों में कुम्हरिपा, लुइपा (मछुआरा) और दारिकपा (धोबी) जैसे अनेक सिद्ध भी हाशिये के समुदायों से थे। ऐसे अनेक सिद्धों ने अपने निम्न...