संदर्भ : व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ और कार्यस्थल विधेयक
एनडीए सरकार, या जैसा आमतौर पर कहते हैं- मोदी सरकार के केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने 10 जुलाई 2019 को व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ और कार्यस्थल विधेयक, 2019 सहिंता (कोड ऑन सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशन बिल, 2019) को मंजूरी दे दी। इस बिल को लेकर सरकार के प्रेस इन्फारमेशन ब्यूरो (पीआईबी) द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति एवं सरकार के द्वारा मीडिया में दिए गए बयान से ऐसा आभास दिया जा रहा है जैसे यह मजदूरों के हित में एक क्रांतिकारी कदम है। जबकि है बात ठीक इसके उलट। पहले हम यह देख लें कि सरकार का इस बारे मीडिया में क्या कहना है, फिर हम तह देखेंगे कि उसके दावों की असलियत क्या है।
सरकार द्वारा जारी विज्ञप्ति में यह दावा किया गया है कि : “प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार ‘सबका साथ-सबका विकास और सबका विश्वास’’ की भावना के साथ समाज के विभिन्न वर्ग के लोगों के कल्याण के लिए लगातार प्रयास कर रही है। इसके माध्यम से विधेयक में श्रमिकों की सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यस्थल की स्थितियों से संबंधित व्यवस्थाओं को वर्तमान की तुलना में कई गुना बेहतर बनाया जा सकेगा”।

इस बारे में मीडिया में छपी खबरों के अनुसार इस सहिंता के आने से 10 मजदूरों से ज्यादा वाले संस्थान में मजदूरों को उनकी नियुक्ति का पत्र मिलेगा। हर साल उनका मेडिकल चेकअप होगा एवं महिलाओं को स्वेच्छा से रात की पाली में काम करने की छूट मिलेगी।[1]
दरअसल, मोदी सरकार सभी 49 मजदूर कानूनों को 4 संहिताओं (कानूनों) में समेटना चाहती है। इसके पहले कदम के रूप में 5 जुलाई को ही “वेतन कोड संहिता 2019” को कैबिनेट ने मंजूरी दी, जिसके तहत मजदूरी को लेकर सारे कानूनों को एक छत के नीचे लाने के बात कही गयी है। वहीं इसके दूसरे कदम के रूप में मजदूरी, समाजिक सुरक्षा, औद्योगिक सुरक्षा एवं कल्याण, औद्योगिक संबंध रखने वाले 13 मजदूर कानूनों को समाप्त कर “ व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ और कार्यस्थल विधेयक, 2019 संहिता” का प्रस्ताव लाया गया है। जिन कानूनों को समाप्त कर यह कानून लाया जा रहा है, वे हैं : 1. कारखाना अधिनियम, 1948 2. खदान अधिनियम, 1952 3. बंदरगाह श्रमिक (सुरक्षा, स्वास्थ्य और कल्याण) कानून, 1986. 4. भवन और अन्य निर्माण कार्य (रोजगार का विनियमन और सेवा शर्तें) कानून, 1996. 5 बागान श्रम अधिनियम, 1951. 6 संविदा श्रम (विनियमन और उन्मूलन) अधिनियम, 1970. 7 अंतर्राज्यीय प्रवासी श्रमिक (रोजगार का विनियमन और सेवा शर्तें) अधिनियम, 1979, 8. श्रमजीवी पत्रकार और अन्य समाचार पत्र कर्मचारी (सेवा शर्तें और अन्य प्रावधान) अधिनियम, 1955, 9. श्रमजीवी पत्रकार (निर्धारित वेतन दर) अधिनियम, 1958, 10. मोटर परिवहन कर्मकार अधिनियम, 1961, 11. बिक्री संवर्धन कर्मचारी (सेवा शर्त) अधिनियम, 1976, 12. बीड़ी और सिगार श्रमिक (रोजगार शर्तें) अधिनियम, 1966 और 13 सिनेमा कर्मचारी और सिनेमा थिएटर कर्मचारी अधिनियम, 1981।[2]
अंग्रेजों की गुलामी के दौरान देश में मजदूरों को नाम के लिए ही कुछ कानूनी हक़ थे। यह जो सारे कानून मोदी सरकार समाप्त कर रही है, वो आजादी के बाद देश के मजदूरों को उनका हक़ देने की दिशा में उस समय की कांग्रेस सरकार का एक कदम था। और, यह सब कानून उस विशेष काम में लगे मजदूरों की विशेष आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर बनाया गया था। इसमें से ज्यादातर कानून मजदूरों के लम्बे संघर्ष के बाद अस्तित्व में आए।

अब नए कानून के जिन प्रावधानों की बात हो रही है उसके तहत हर मजदूर को नियुक्ति पत्र मिलेगा, उनका नियमित मेडिकल चेकअप होगा, महिलाएं अपनी मर्जी से रात पाली में काम कर सकेंगी। नियुक्ति पत्र और मेडिकल चेकअप की असलियत सब जानते हैं। इन प्रावधानों से मजदूरों को उनका सही हक़ मिलने से रहा।
क्योंकि, असलियत यह है कि इस कानून में जहां 63 बार वेज (मजदूरी) शब्द आया है, वहीं न्यूनतम मजदूरी क्या होगी या किस कानून के अनुसार होगी, इस बात का कोई जिक्र ही नहीं है; यहां तक कि प्रस्तावित “द वेज कोड बिल” जिसे हाल ही में कैबिनेट ने अपनी मंजूरी दी है, उसका भी जिक्र नहीं है। पूरे देश में मात्र ‘पत्रकार’ ही ऐसे मजदूर की श्रेणी में आते हैं, जिनकी पगार तय करने के लिए 1955 में “वेज बोर्ड” का गठन हुआ था। जिसे श्रमजीवी पत्रकार (निर्धारित वेतन दर) अधिनियम 1958 में जगह मिलने से, वो वैधानिक आधार वाला देश का एकमात्र वेज बोर्ड बन गया। नए कानून में इसे भी कोई जगह नहीं है। और कमाल की बात यह है कि किसी भी मीडिया समूह या पत्रकार ने इसकी चर्चा तक नहीं की। इसके अलावा निर्माण मजदूरों के लिए बने “बिल्डिंग एवं अन्य निर्माण मजदूर कल्याण बोर्ड” को भी समाप्त कर दिया गया है।
इस कानून के अनुपालन को सुनिश्चित करने वाले सरकारी कर्मचारी को भी इंस्पेक्टर (फैक्ट्री) नहीं, सुविधा और समन्वय स्थापित करने वाला बताते हुए उसका नाम “फैसिलिटेटर” रखा गया है। अब आप इससे अंदाजा लगा लें कि वह असल में क्या करेगा। कारखाना अधिनियम, 1948 एवं अन्य कानूनों में मजदूरों की सुरक्षा के लिए जो 73 प्रावधान थे, उन्हें इस कानून में द्वितीय अनुसूची में डालकर निपटा दिया गया है। उसके बारे में अभी कोई स्पष्टता नहीं है। इस बारे में केंद्र सरकार बाद में नोटिफिकेशन जारी करेगी। इसका मतलब है कि इन्हें समय-समय पर बिना विधायिका की मंजूरी के बदला भी जा सकेगा।
अगर थोड़े में कहें तो, यह सुधार के नाम पर मजदूरों के हक़ को मारकर उद्योगपतियों को साधने की कोशिश है। जब मजदूर यूनियन और हमारे सांसद और विपक्षी पार्टी के नेता इसकी हर धारा की चीर-फाड़ करेंगे, तब पूरी बात सामने आएगी। हालांकि, अभी तो ज्यादतर लोग चुप हैं। वो ऐसा करेंगे, इसकी उम्मीद भर ही हम कर सकते हैं।
(कॉपी संपादन : नवल)
[1] http://www.pib.nic.in/PressReleseDetail.aspx?PRID=1578227
[2] http://www.pib.nic.in/PressReleseDetail.aspx?PRID=1498175
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