h n

केंद्र सरकार दे रही आरक्षण को स्लो प्वाॅयजन : शैलजा

दबे-कुचले लोगों को मुख्यधारा से जोड़ना आरक्षण का मुख्य उद्देश्य रहा है और इसलिए ही संविधान में इसकी व्यवस्था की गई है। अभी इसका उद्देश्य पूरा नहीं हुआ है इसलिए इस व्यवस्था को मजबूत कर इसे जारी रखने की जरूरत है। प्रस्तुत है पूर्व केंद्रीय मंत्री व हरियाणा प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष कुमारी शैलजा से फारवर्ड प्रेस के प्रतिनिधि कुमार समीर की हुई बातचीत का संपादित अंश :

परदे के पीछे

(अनेक ऐसे लोग हैं, जो अखबारों की सुर्खियों में भले ही निरंतर न रहते हों, लेकिन उनके कामों का व्यापक असर सामाजिक व राजनीतिक जीवन पर रहता है। बातचीत के इस स्तंभ में हम ‘पर्दे के पीछे’ कार्यरत ऐसे लोगों के विचारों को सामने लाने की कोशिश करते हैं।

इस कड़ी में प्रस्तुत है, हरियाणा कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष व पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा से कुमार समीर की बातचीत। 

स्तम्भ में प्रस्तुत विचारों के इर्द-गिर्द प्रकाशनार्थ टिप्पणियों (700-1500 शब्द) का स्वागत है। हम चुनी हुई प्रतिक्रियाओं को प्रकाशित करेंगे – प्रबंध संपादक, ईमेल : managing.editor@forwardpress.in)


आरक्षण को मजबूत कर इसे जारी रखने की है जरूरत

  • कुमार समीर

कुमार समीर (कु.स.) : आरक्षण को लेकर सरकार की नीति पर आपका क्या कहना है? क्या सरकार इस पर सही दिशा में काम कर रही है?

कुमारी शैलजा (कु.शैलजा) : आरक्षण को लेकर मौजूदा सरकार बिल्कुल भी गंभीर नहीं है। रोज कोई न कोई शिगूफा छोड़ भोली भाली जनता को यह अहसास कराना चाहती है कि सरकार फिक्रमंद है। लेकिन हकीकत में यह सरकार दबे-कुचले गरीबों के बारे में नहीं सोचती बल्कि अग्रिम पंक्ति के अमीरों की शुभचिंतक है। मोदी सरकार का यह छठा साल है और इस राज में अमीर और अमीर हुआ है और गरीब और गरीब हुआ है। ऐसे में असमानता की खाई कम होने की बजाय बढ़ी है। बेरोजगारी चरम पर है और इसकी चपेट में सबसे अधिक युवा पीढ़ी है। इसके लिए कोई और नहीं बल्कि केवल और केवल केंद्र सरकार की नीतियां जिम्मेदार हैं। दलित बहुजन का एक बड़ा वर्ग आज भी काफी पिछड़ा है, इसलिए आरक्षण समय की मांग है और इसे और मजबूत कर उसे जारी रखने की जरूरत है। कमजोर करने की किसी भी कोशिश का पुरजोर विरोध किया जाना चाहिए। 

 

कु.स. : आप सरकार की नीतियों में कहां-कहां खामियां पाते  हैं?

कु.शैलजा : आरक्षण पर सरकार की नीतियां कारगर होतीं तो इसका उद्देश्य पूरा हो गया होता, असमानता खत्म हो गई होती। आज हकीकत क्या है, यह किसी से छिपा नहीं है। दलित बहुजनों का एक बड़ा हिस्सा आज भी उसी स्थिति में है जिस स्थिति में पहले था। बहुत कुछ उनमें अंतर नहीं आया है। सरकार को सबके विकास को ध्यान में रखकर नीतियां बनानी चाहिए, केवल ‘सबका साथ सबका विकास’ के स्लोगन से काम नहीं चलने वाला है। एक लाइन में कहूं तो सरकार की नीतियां दोषपूर्ण हैं और इससे बहुजन समाज का कहीं से भला नहीं होने वाला है। ये नीतियां ऐसी हैं जिससे लगेगा कि भला होने वाला है लेकिन मृगमरीचिका जैसी स्थिति है। सच कहें तो सही इच्छा शक्ति के साथ अगर आरक्षण की नीतियां बहाल की जातीं तो सकारात्मक रिजल्ट सामने होता।

कु.स. : तो आपका मतलब है कि यह सब केवल वोट बैंक व राजनीति चमकाने के लिए किया जा रहा है?

कु.शैलजा : आपने बिल्कुल सही कहा है। दलित बहुजन समाज भी इस बात को समझ रहा है और भावनाओं से खिलवाड़ करने वालों से अब दूरी बढ़ा रहा है यह तबका। इसलिए अब स्लोगन आदि भर से काम नहीं चलने वाला है। आजादी के बाद से नौकरियों में बैकलॉग नहीं भरा जाना क्या सरकार की नीतिगत खामियों की वजह से नहीं है। वहीं दूसरी तरफ धड़ल्ले से हो रहे आउटसोर्सिंग और लैटरल एप्वाइंटमेंट किस तरफ इंगित करता है? हाल ही में केंद्र सरकार ने ज्वाइंट सेक्रेटरी, डायरेक्टर, डिप्टी डायरेक्टर पद के लिए लेटरल एप्वाइंटमेंट किया। यह आरक्षण को दरकिनार करने की कोशिश नहीं है तो और क्या है?

कुमारी शैलजा, पूर्व केंद्रीय मंत्री व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष, हरियाणा

कु.स. : आरक्षण को दरकिनार करने वाली बात को केंद्र सरकार ग़लत ठहरा रही है। उसका कहना है कि आरक्षण का लाभ इसके दायरे में आने वाले सभी को मिले, इस पर काम कर रही है सरकार ? आपका इस पर क्या कहना है? 

कु. शैलजा : सरकार की कथनी और करनी में कितना अंतर है, इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि एक तरफ वह सरकारी नौकरियां कम करतीं जा रही हैं और दूसरी तरफ आरक्षण का लाभ सभी को देने की बात कर रही हैं। हकीकत यह है कि नौकरियां हैं नहीं और जो थोड़ी बहुत नौकरी की संभावना बनती भी है तो उसे प्राइवेट सेक्टर को दे दिया गया है जहां कांट्रेक्ट आधारित जॉब दिया जाता है। प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण की व्यवस्था नहीं है और इस तरह यह हकमारी नहीं तो और क्या है? रेलवे जहां नौकरियों की हर समय संभावनाएं बनी रहती थीं, वहां भी कई विभागों में पीपीपी मॉडल बहाल कर प्राइवेट सेक्टर को चलाने का जिम्मा दे दिया गया है।

यह भी पढ़ें : ‘जाति-जनगणना होनी ही चाहिए, इससे न्याय की राह में बाधक कूड़ा-करकट दूर होगा’ 

कु.स. : इसका क्या मतलब निकाला जाए? क्या केंद्र सरकार आरक्षण को खत्म करने की साजिश कर रही है?

कु. शैलजा : देखिए, सरकार आरक्षण खत्म करने की घोषणा एक बार में नहीं कर सकती क्योंकि उसे पता है कि दलित बहुजनों का एक बड़ा वर्ग उससे नाराज हो जाएगा। यह रिस्क सरकार लेना नहीं चाह रही इसलिए स्लो प्वायजन देकर आरक्षण को कमजोर करने की दिशा में कदम बढ़ा रही है। सरकार की नीतियां प्राइवेटाजेशन का पक्षधर है और यह ‘स्लो प्वायजन’ जैसा ही है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण बहाल करने की बाध्यता नहीं है। इसलिए यह कहने में हमें कोई गुरेज नहीं कि आरक्षण नहीं देना पड़े यह एक बड़ा कारण है प्राइवेटाइजेशन का। यह राजनीतिक चालबाजी है और दलित बहुजन समाज को इस तरह की किसी भी साजिश को विफल करने के लिए एकजुट रहने की जरूरत है ताकि आरक्षण विरोधी ताकतों के मंसूबे कामयाब नहीं हो सके। उदाहरण के तौर पर पिछले दिनों अगर 13 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम का विरोध नहीं किया जाता तो दोबारा से 200 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम फिर से बहाल नहीं हो पाता। 13 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम किस तरह आरक्षण को दरकिनार करने वाला था, इससे हम सब वाकिफ हैं और इस पर काफी चर्चा हो चुकी है। 

कु.स. : राजनीतिक चालबाजी से आपका क्या आशय है?

कु. शैलजा : राजनीतिक चालबाजी से सीधा तात्पर्य यह है कि अपना उल्लू सीधा करने के लिए आश्वासनों की बौछार करना और जब अपना काम हो जाए, अपना उद्देश्य पूरा हो जाए तो फिर उन आश्वासनों की फ़िक्र ना करना, उन सभी को ठंडे बस्ते में डाल देना। मौजूदा केंद्र सरकार अभी यही तो कर रही है। उसकी तरफ से लोकलुभावन योजनाओं की घोषणा खूब हो रही हैं लेकिन हकीकत में आज स्थिति करता है, यह किसी से छिपी नहीं है। देश की आर्थिक स्थिति कैसी है, जीडीपी दिन पर दिन निचले स्तर पर पहुंच रहा है, बेरोजगारी किस कदर मुंह बाए हुए है, यह सबको दिख रहा है। इन सवालों का जवाब सरकार के पास है नहीं और सही मायने में कहें तो इस तरफ से ध्यान हटाने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। 

कु.स. : सरकार के उपवर्गीकरण के सुझाव पर आपका क्या कहना है?

कु. शैलजा : सरकार का यह शिगूफा जैसा ही है। दो साल से अधिक का समय हो गया है और आज तक इस बाबत कोई रिपोर्ट नहीं आ पायी है। सरकार ने रिटायर्ड जज जी. रोहिणी की अध्यक्षता में कमेटी गठित की है और अब तक इस कमेटी को एक्सटेंशन पर एक्शटेंशन देना पड़ रहा है। ऐसा क्यों करना पड़ रहा है यह सरकार भी जानती है लेकिन इसे स्वीकार करने से परहेज़ कर रही है क्योंकि स्वीकार किया तो सवालों की झड़ी लग जाएगी और जवाब देते नहीं बनेगा। जाति आधारित जनगणना का डाटा है नहीं और फिर कैसे उपवर्गीकरण का खाका खींचा जाएगा। 

कु.स.: जाति आधारित जनगणना पर थोड़ा प्रकाश डालें?

कु.शैलजा : जाति आधारित जनगणना काफी समय से नहीं करायी गई है, इसलिए किस जाति के लोगों की संख्या हकीकत में कितनी-कितनी है, इसका आंकड़ा ना तो सरकार के पास है और ना ही किसी संबंधित एजेंसी के पास है। आखिरी बार जाति आधारित जनगणना 1931 में हुई थी, अब 2021 में जाति आधारित जनगणना कराने की बात चल रही है। हमारा भी मानना है कि इस तरह की जनगणना होनी चाहिए ताकि किस जाति की हकीकत में कितनी संख्या है, उसका सही आंकड़ा उपलब्ध हो सके। मेरा तो मानना है कि इस तरह का आंकड़ा रहने के बाद ही सही तरीके से उपवर्गीकरण किया जा सकता है। 

कु.स. : हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने जा रहा है। आप प्रदेश में कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व कर रही हैं। आपकी क्या प्राथमिकताएं हैं?

कु.शैलजा : देखिए, हमारे सामने जो सबसे बड़ा सवाल है वह आरक्षण का ही है। ओबीसी की छह जातियों को  आरक्षण हरियाणा में खटटर सरकार ने रोक रखा है जो अन्याय है। कांग्रेस पार्टी की हरियाणा में सरकार बनते ही इसे तत्काल ख़त्म करेंगे। साथ ही हमारी और हमारी पार्टी का मानना है कि संत रविदास की ऐतिहासिक मंदिर को टूटने से रोका जा सकता था। 1507 में सुल्तान लोदी संत रविदास का वहां प्रवचन सुनने आये थे। सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आड़ में अन्य साधु महात्मा की समाधियां तोड़ दी गई। यह दलित समाज को पीड़ा देता है। इसके अलावा महिलाओं को कांग्रेस सत्ता में आते ही पंचायत और नगर निगम में 50 प्रतिशत आरक्षण देगी और साथ ही सरकारी और निजी क्षेत्र की नौकरी में 33 फीसदी आरक्षण दिलाएगी। 

कु.स. : अंत में एक सवाल। दलित बहुजनों को क्या आप कोई संदेश देना चाहेंगे?

कु.शैलजा : बहुजन समाज को अपने हक की लड़ाई के लिए हर समय तैयार रहना होगा क्योंकि तैयारी रहेगी तो उनका कांफिडेंस लेवल ऊंचा रहेगा और जब कांफिडेंस लेवल ऊंचा रहेगा तो आपके खिलाफ साजिश करने का कोई साहस नहीं कर पाएगा। बारीकी से समझना होगा कि आप से आरक्षण को लेकर जो कहा जा रहा है, उसमें हकीकत क्या है। हवा-हवाई, जुमलों पर विश्वास नहीं कर सच्चाई को समझना होगा और अगर कहीं गड़बड़ी कहीं दिख रही है या उसकी थोड़ी सी भी संभावना नजर आ रही हो तो उसका पुरजोर तरीके से विरोध किया जाए ताकि आरक्षण विरोधी ताकतों के मंसूबे कामयाब नहीं हो सके। 

(संपादन : नवल)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

लेखक के बारे में

कुमार समीर

कुमार समीर वरिष्ठ पत्रकार हैं। उन्होंने राष्ट्रीय सहारा समेत विभिन्न समाचार पत्रों में काम किया है तथा हिंदी दैनिक 'नेशनल दुनिया' के दिल्ली संस्करण के स्थानीय संपादक रहे हैं

संबंधित आलेख

लोकसभा चुनाव : भाजपा को क्यों चाहिए चार सौ से अधिक सीटें?
आगामी 19 अप्रैल से लेकर 1 जून तक कुल सात चरणों में लाेकसभा चुनाव की अधिसूचना चुनाव आयोग द्वारा जारी कर दी गई है।...
ऊंची जातियों के लोग क्यों चाहते हैं भारत से लोकतंत्र की विदाई?
कंवल भारती बता रहे हैं भारत सरकार के सीएए कानून का दलित-पसमांदा संदर्भ। उनके मुताबिक, इस कानून से गरीब-पसमांदा मुसलमानों की एक बड़ी आबादी...
1857 के विद्रोह का दलित पाठ
सिपाही विद्रोह को भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम कहने वाले और अखंड हिंदू भारत का स्वप्न देखने वाले ब्राह्मण लेखकों ने यह देखने के...
मायावती आख़िर किधर जा सकती हैं?
समाजवादी पार्टी के पास अभी भी तीस सीट हैं, जिनपर वह मोलभाव कर सकती है। सियासी जानकारों का मानना है कि अखिलेश यादव इन...
आंकड़ों में बिहार के पसमांदा (पहला भाग, संदर्भ : नौकरी, शिक्षा, खेती और स्वरोजगार )
बीते दिनों दिल्ली के कंस्टीट्यूशन क्लब में ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज की एक रिपोर्ट ‘बिहार जाति गणना 2022-23 और पसमांदा एजेंडा’ पूर्व राज्यसभा...