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सीएए-एनआरसी के खिलाफ एकजुट हों दलित-बहुजन-मुसलमान : प्रकाश आंबेडकर

सीएए-एनआरसी के बहाने मुसलमानों को अलग-थलग करने की भाजपा की साजिश के खिलाफ  उठ खड़ा होने का आह्वान प्रकाश आंबेडकर ने किया है। फारवर्ड प्रेस के हिंदी संपादक नवल किशोर कुमार से विशेष बातचीत में उन्हाेंने इसे काले कानून की संज्ञा दी है और इसे दलित-बहुजनों के लिए खतरनाक बताया है

[पूरे देश में नागरिकता को लेकर चर्चा चल रही है। असम सहित पूरे पूर्वोत्तर में आंदोलन चल रहे हैं। लेकिन शेष भारत भी सामान्य नहीं है। हम अपने पाठकों के बीच नागरिकता संशोधन अधिनियम से जुड़े विचारों को रख रहे हैं। इसके तहत हम दलित-बहुजन चिंतकों, विचारकों और जनप्रतिनिधियों  का साक्षात्कार प्रकाशित कर रहे हैं। आज पढ़ें, दलित राजनेता और विचारक प्रकाश आंबेडकर से इस विषय पर बातचीत। उनके अनुसार, केंद्र सरकार के नए कानून से पसमांदा मुसलमानों सहित दलित-बहुजनों-विमुक्त जनजातियों के सामने बहुत बड़ी चुनौतियां सामने आनेवाली हैं।]


नवल किशोर कुमार (न.कि.कु.) : भारतीय संसद ने सिटीजन अमेंडमेंट बिल को पारित कर दिया है और राष्ट्रपति के अनुमोदन के उपरांत यह कानून बन चुका है। आपकी प्राथमिक प्रतिक्रिया क्या है?

प्रकाश आंबेडकर (प्र. आंबेडकर) : यह किसी के हित में नहीं है। यह कानून देश को खोखला कर देगा। वे जो सरकार में बैठे हैं, वे इसे मुसलमानों के खिलाफ बताने की साजिश कर रहे हैं। लेकिन मैं मानता हूं कि यह काला कानून सभी के लिए खतरनाक है और इसका विरोध किया जाना चाहिए।

न.कि.कु. : इस पूरे कानून को दलित-बहुजन नजरिए से कैसे देखा जाय?

प्र. आंबेडकर : देखिए, पहले तो आपको यह समझ लेना होगा कि यह कानून केवल मुसलमानों के खिलाफ नहीं है। इस कानून को अमल में लाया गया तो निश्चित तौर पर इसका शिकार मुसलमान भी होंगे और दलित-बहुजन भी। कानून में सरकार ने नागरिकता का कट ऑफ ईयर 2014 रखा है। आपको यह समझना होगा कि इस देश में पहचान संबंधी दस्तावेज का अभाव केवल मुसलमानों के पास ही नहीं है। इस देश में दलित-बहुजनों की बड़ी आबादी है, जिनके पास इस तरह के दस्तावेज नहीं है।

न.कि.कु. : कृपया इसे विस्तार से बताएं।

प्र. आंबेडकर : एक उदाहरण देता हूं। दलितों में भूमिहीनता की समस्या से आप परिचित होंगे ही। दलितों की बहुत बड़ी आबादी है जिनके पास रहने को घर तक नहीं है। वे गैरमजरूआ (सरकारी जमीन) पर रहते हैं। उनके पास कोई दस्तावेज नहीं है। कल होकर यदि सरकार उनसे पहचान का दस्तावेज मांगेगी तो वे दस्तावेज कहां से लाएंगे। अनुसूचित जनजातियों की समस्याएं तो और भी विषम हैं। क्या आप जानते हैं कि सन् 1871 में ब्रिटिश हुकूमत ने एक काला कानून  क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट बनाया था। दरअसल, यह काला कानून उन आदिवासियों के लिए था, जिन्होंने अंग्रेजी सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। तब अंग्रेजों ने उन्हें अलग-थलग करने के लिए एक तो काला कानून बनाया और दूसरा उनके लिए डिटेंशन कैंप बनवाया था। महाराष्ट्र में हम ऐसे आादिवासियों को पिंडारी कहते हैं। अंग्रेजी में नोमैडिक। आप हिंदी वाले इसके लिए कौन सा शब्द इस्तेमाल करते हैं?

प्रकाश आंबेडकर

न.कि.कु. : हिंदी राज्यों में इन्हें घूमंतू अथवा खानाबदोश जातियां भी कहते हैं। ये लोग कभी एक स्थान पर टिकते नहीं हैं।

प्र. आंबेडकर : आपने सही कहा। ये कहीं एक जगह टिककर नहीं रहते हैं। इनमें दलित भी हैं और कई राज्यों में ओबीसी में भी शामिल हैं। आपको यह जानना चाहिए कि क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट का खात्मा 1952 जवाहरलाल नेहरु ने किया। उन्होंने डिटेंशन कैंपों का दरवाजा खोलते हुए कहा था कि आज से आप आजाद हैं। लेकिन आज तक उन्हें आजादी कहां मिली। उनके पास कोई दस्तावेज नहीं है। 


न.कि.कु. : इस कानून के खिलाफ क्या आप कोई आंदोलन करेंगे?

प्र. आंबेडकर : हम लोग तो इसका विरोध कर ही रहे हैं। लेकिन मैं आपको बताऊं कि दिल्ली में जो दलित-बहुजन नेता बैठे हैं, वे सब आरएसएस-भाजपा के दलाल हैं। होना तो यह चाहिए था सभी इस कानून के विरोध में एकजुट होते। वे समझ ही नहीं पा रहे हैं कि असल में यह खेल क्या है।

यह भी पढ़ें : एनआरसी-सीएए से पसमांदा सहित सभी दलित-बहुजनों के सामने पहचान का संकट : अली अनवर

न.कि.कु. : क्या है यह खेल आपकी नजर में?

प्र. आंबेडकर : आपका जन्म कब हुआ?

न.कि.कु. : वर्ष 1984 में।

प्र. आंबेडकर : तब आप केवल छह वर्ष के रहे होंगे। क्या आप जानते हैं कि उन दिनों रथ आंदोलन के अलावा भी एक आंदोलन हुआ था?

न.कि.कु. : शायद आप मंडल आंदोलन की बात कर रहे हैं।

प्र. आंबेडकर : नहीं, वह तो मंडल कमीशन की अनुशंसाओं के लागू होने के साथ पूरा हो गया था। वह आंदोलन था। गैट आंदोलन। गैट मतलब जेनरल एग्रीमेंट ऑन टैरिफ्स एंड ट्रेड के खिलाफ आंदोलन। पूरी दुनिया के किसानों-व्यापारियों ने अपने-अपने देशों की सरकारों के समक्ष अपनी मांग रखी कि यदि दुनिया के बाजार में शामिल होना है तो उनकी अपनी शर्तें क्या होंगी। लेकिन भारत के किसान और व्यापारी ऐसा नहीं कर सकें, आरएसस-भाजपा ने रथ आंदोलन चलाया। उस समय के दो बड़े किसान नेता शरद जोशी और महेंद्र सिंह टिकैत ने गैट कानून का आंख मुंदकर समर्थन किया। जबकि वे जानते थे कि इससे भारत के किसानों-व्यापारियों का अहित होगा। आज जो आप आर्थिक मंदी देख रहे हैं, यह उसी का परिणाम है। इससे सबक सिखने के बजाय वे भारत को बेच देना चाहते हैं। आप देखिए न कि वे कर क्या रहे हैं। एक तरफ वे नवरत्न कंपनियों को बेचने का साजिश कर रहे हैं तो दूसरी तरफ वे कभी 370 तो अब सीएए लाकर मामलों को दबा देना चाहते हैं।  मैं आपको बता देना चाहता हूं कि कल जब वे नवरत्न कंपनियेां को बेच देंगे तो एकदिन वे सीएए जैसे कानूनों को यह कहकर वापस ले लेंगे कि इन कानूनों को जनता की स्वीकृति नहीं मिल रही है।

न.कि.कु. : देश के दलित-बहुजनों को आप क्या संदेश देना चाहेंगे।

प्र. आंबेडकर : केवल इतना ही कि यह केवल मुसलमानों के खिलाफ नहीं है। यह हम सभी के खिलाफ है। हमें मिलकर इसका विरोध करना चाहिए। वे हमारी एकता तोड़ना चाहते हैं। यह उनकी साजिश है। देश के सभी दलित-बहुजन उनकी इस साजिश को समझें और विरोध करें।

(संपादन : सिद्धार्थ/गोल्डी)


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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