आखिर क्या था कर्पूरी ठाकुर का आरक्षण फार्मूला और उनका अपमान करने वाले कौन थे, इस संबंध में नवल किशोर कुमार ने चिंतन-विचारक और वरिष्ठ साहित्यकार प्रेमकुमार मणि से विशेष बातचीत की। प्रस्तुत है संपादित अंश :
कृपया कर्पूरी जी द्वारा लागू आरक्षण के बारे में बताएं
आज के दिन उनके जन्मदिन पर आपने प्रासंगिक सवाल पूछा है। वह 1977 का साल था जब कर्पूरी जी ने वह साहसपूर्ण निर्णय लिया था। वह एक ऐसा निर्णय था जिसने उत्तर भारत की राजनीति को ही बदल दिया। आप इसको ऐसे देखिए कि 1977 में कर्पूरी जी ने 26 प्रतिशत आरक्षण लागू किया तो उसके बाद उत्तर प्रदेश में रामनरेश यादव ने भी 15 प्रतिशत आरक्षण लागू करने की घोषणा कर दी। फिर इसके बाद आरक्षण लागू करने का दबाव तत्कालीन केंद्र सरकार भी पड़ा और उसने बी. पी. मंडल की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया। इस प्रकार आप पाएंगे कि कर्पूरी जी द्वारा उठाया गया कदम पूरे उत्तर भारत की राजनीति में परिवर्तन का कारण बना।
क्या यह आरक्षण मुंगेरीलाल कमीशन की अनुशंसाओं के अनुरूप था?
हां,कर्पूरी जी द्वारा लागू किया गया आरक्षण मुंगेरीलाल कमीशन के द्वारा ही सुझाया गया था। इसके तहत कुल 26 फीसदी आरक्षण का प्रावधान था। इसमें 20 प्रतिशत आरक्षण पिछड़े वर्गों के लिए था और 3 प्रतिशत महिलाओं के अलावा 3 प्रतिशत आरक्षण गरीब सवर्णों के लिए था। पिछड़े वर्गों के लिए 20 प्रतिशत आरक्षण में भी वर्गीकरण था। मसलन, 12 प्रतिशत आरक्षण अत्यंत पिछड़े वर्गों के लिए था और 8 प्रतिशत आरक्षण ओबीसी की अग्रणी जातियों के लिए। कर्पूरी जी के फार्मूले के तर्ज पर मंडल कमीशन ने भी आरक्षण की अनुशंसा की। हालांकि राष्ट्रीय स्तर पर ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया। आप यह भी देखें कि बिहार में कर्पूरी जी के आरक्षण फार्मूले को लालू प्रसाद ने भी बरकरार रखा।
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उन दिनों इस आरक्षण को लेकर कर्पूरी ठाकुर को तीखे विरोध का सामना करना पड़ा था। इसकी वजह क्या थी?
विरोध उन लोगों ने किया था जो नहीं चाहते थे कि पिछड़ों को आरक्षण का लाभ मिले। ऐसे लोग यथास्थितिवादी लोग थे। उनके विरोध का तरीका निंदनीय था। वे खुलेआम कर्पूरी जी को भला-बुरा कहते थे। उन दिनों कई नारे भी लगाए जाते थे। मसलन, कर्पूरी कर पूरा, कुर्सी छोड़ धर उस्तूरा के अलावा आरक्षण की नीति कहां से आई …।
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क्या यह विरोध केवल सड़कों तक सीमित था?
नहीं, कर्पूरी जी द्वारा आरक्षण लागू किये जाने के बाद उनकी सरकार गिरा दी गई। उस समय जनता पार्टी की सरकार थी, जिसके मुखिया कर्पूरी ठाकुर थे। लेकिन तब की जनता पार्टी में जनसंघ भी शामिल था। कांग्रेस की ओर से जगन्नाथ मिश्र आरक्षण का विरोध तो कर ही रहे थे, जनसंघ के तत्कालीन वरिष्ठ नेता कैलाशपति मिश्र भी विरोधियों में अग्रणी थे। आरक्षण के विरोध के सवाल पर इन दोनों नेताओं को एक साथ आने में देर नहीं लगी।
(संपादन : सिद्धार्थ)