देश भर में जातिगत जनगणना की ज़ोर पकड़ती मांग के बीच गोवा के उप मुख्यमंत्री मनोहर बाबू अजगांवकर ने फारवर्ड प्रेस से बातचीत में राज्य में अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों की जातिवार सही संख्या जानने के लिए सर्वे की मांग दोहराई है। उन्होंने कहा है कि राज्य में अनुसूचित जाति/जनजाति की आबादी पिछले कुछ वर्षों में बढ़ी है लेकिन इसके बावजूद उनकी तादाद के हिसाब से राज्य में आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा है। अजगांवकर ने कहा कि जब तक राज्य में इन वर्गों की सही संख्या जानने के लिए सर्वे नहीं होगा. तब तक वंचितों को न्याय नहीं मिल पाएगा।
दरअसल राज्य में यह मुद्दा काफी पुराना है। गोवा में विधान सभा की कुल 40 सीट हैं लेकिन महज़ एक ही अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। इसी तरह राज्य में अनुसूचित जाति के लोगो को महज़ 2% आरक्षण मिलता है। मनोहर अजगांवकर का कहना है कि राज्य में अब अनुसूचित जातियों की हिस्सेदारी 18% से ज़्यादा है, लेकिन सर्वे न होने की वजह से इसे क़ानूनी तौर पर नहीं माना जा सकता। हालांकि अप्रैल 2018 में राज्य सरकार ने इस एससी/एसटी का ताज़ा सर्वे कराए जाने का ऐलान किया था। लेकिन इसे अभी तक अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका है।

यह मुद्दा एक बार फिर चर्चा में आया जब गोवा की राजधानी पणजी में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उप-मुख्यमंत्री ने एससी/एसटी आयोग के अध्यक्ष प्रकाश वेलिप से सार्वजनिक तौर पर सर्वे की मांग कर डाली। उन्होंने कहा कि यह सर्वे जल्द से जल्द कराया जाए ताकि राज्य में अनुसूचित जाति/जनजाति के लोगों को आरक्षण समेत तमाम सरकारी योजनाओं का लाभ मिल सके।
इस संबंध में फारवर्ड प्रेस ने मनोहर बाबू अजगांवकर से फोन पर बात की। इस दौरान अजगांवकर ने कहा कि अगर आरक्षण का प्रावधान न होता तो उन जैसे लोग कभी विधान सभा का मुंह नहीं देख पाते। उन्होंने आगे कहा कि आरक्षण अनुसूचित जाति और जनजातियों पर कृपा नहीं है बल्कि उनका अधिकार है जो बाक़ायदा लड़कर हासिल किया गया है। अगर बाबासाहेब आंबेडकर की कोशिशों से अनुसूचित जाति/जनजाति को आरक्षण का लाभ न मिला होता तो पाकिस्तान की ही तरह 1947 में दलितिस्तान नाम के एक और देश का जन्म हो गया होता।
अजगांवकर के मुताबिक़, तमाम कोशिशों के बावजूद देश में जातिवाद का ख़ात्मा नहीं हो पाया है। जब तक सभी तबक़ों में समानता न हो और दबे कुचले वर्गों को सम्मान न हासिल हो जाए आरक्षण की ज़रूरत बनी रहेगी। जनगणना से अलग जातिवार सर्वे के सवाल के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि ये इस इसलिए ज़रुरी है क्योंकि राज्य में आरक्षण से जुड़े संवैधानिक प्रावधानों को सही तरीके से लागू नहीं किया गया है और इस ग़लती को सुधारने की ज़रुरत है।
गोवा विधान सभा में 7 जनवरी, 2020 को एससी/एसटी आरक्षण को दस साल के विस्तार देने संबंधित संविधान संशोधन बिल सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया था। मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत द्वारा पेश किए गए विधेयक पर बहस के दौरान बोलने हेतु उन्हें समय नहीं दिया गया। इस पर उप-मुख्यमंत्री मनोहर अजगांवकर ने निराशा व्यक्त करते हुए कहा है कि वो सदन में जाति के अनुपात में आरक्षण की मांग उठाना चाहते थे।
दरअसल, गोवा में अनुसूचित जाति के लोगों को महज़ 2%, अनुसूचित जनजाति को 12% और ओबीसी को 27% आरक्षण का प्रावधान है। अजगांवकर की मानें तो नये सिरे से सर्वे के बाद यह तथ्य सामने आएगा कि किस वर्ग का आरक्षण कितना बढ़ाया जाना चाहिए।
(संपादन : नवल)