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रचो नया इतिहास, बुलंद करो बहुजनों की आवाज, कांशीराम का एक पत्र चंद्रशेखर के नाम

इस काल्पनिक पत्र के माध्यम से सिद्धार्थ बता रहे हैं कि कांशीराम के अनुसार राजनीतिक सत्ता प्राप्त करना अपने आप में कोई लक्ष्य है ही नहीं। यह तो सिर्फ एक उपकरण है मनुवादियों के सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक सत्ता को उखाड़ फेंकने का और बहुजनों की सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक मुक्ति का रास्ता प्रशस्त करने का

[यह एक काल्पनिक पत्र है और इसे हम इस कारण से प्रकाशित कर रहे हैं कि इसमें बहुजन समाज की मुक्ति की कामना है। बेशक इसमें अतीत की कड़वाहटें हैं। इस पत्र में कांशीराम के उस सपने की झलक मिलती है जो उन्होंने देखा था। मौजूदा दौर में बहुजनों के सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक विमर्शों को एक साथ प्रस्तुत कर रहे हैं डॉ. सिद्धार्थ ]

मान्यवर कांशीराम (15 मार्च, 1934 – 9 अक्टूबर, 2006) पर विशेष

प्रिय चंद्रशेखर,

जय जोती! जय भीम!

चंद्रशेखर, अपनी कुर्बानियों का हश्र देखकर, मैं लगभग निराश हो चला था। अपनी पूरी जिंदगी की अथक मेहनत से समाज को जो दिशा दे सका, उसको यूं बर्बाद होते देख बहुत पीड़ा में था। लेकिन मेरी डूबती उम्मीदों को जिस प्रकार से नवजीवन देने का काम तुम्हारे जैसे बहुजन युवक कर रहे हैं, उसके लिए,मैं सभी की बहादुरी और समाज के लिए कोई भी कुर्बानी देने के लिए तत्पर रहने की भावना को सलाम करता हूं और शुभकामनाएं देता हूं। बहुजन समाज के प्रति तुम्हारे जज्बे की भी मैं दिल से इज्जत करता हूं। पूरे देश में बहुजनों की सत्ता स्थापित करने और मनुवादियों की सत्ता को उखाड़ फेंकने के तुम्हारे संकल्प की कद्र करता हूं। 

तुम्हें तो पता ही है कि आज देश एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है, जहां बहुजन नायक-नायिकाओं के अनथक प्रयासों एवं कुर्बानियों से बहुजन समाज के लिए हासिल की उपलब्धियां दांव पर लगी हुई हैं। आज देश की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक सत्ता पर उन्हीं मनुवादियों ने फिर से पूर्ण कब्जा कर लिया है, जिनके वर्चस्व एवं नियंत्रण को तोड़ने के लिए जोतीराव फुले, डॉ. बाबासाहब आंबेडकर जैसे अनेक लोगों ने अपना सारा जीवन कुर्बान कर दिया था। बहुजनों के राजनीतिक संघर्ष की प्रयोगशाला उत्तर प्रदेश में भी बहुजन समाज को सत्ता से बाहर कर हाशिए पर धकेल दिया गया है। यह वही ज़मीन है, जहां पहली बार बहुजन समाज की वास्तविक राजनीतिक सत्ता मैंने कायम की थी और पहली बार एक दलित महिला को मुख्यमंत्री बनाया था। आज उत्तर प्रदेश पर भी मनुवादियों ने पूरी तरह कब्जा कर लिया है और एक ऐसा व्यक्ति मुख्यमंत्री बन चुका है, जिसके आदर्श मनु और हमारे पुरखे शंबूक की हत्या करने वाला राम है।

चंंद्रशेखर, आज बाबासाहब का संविधान भी खतरे में पड़ गया है। संविधान में तरह-तरह से मनुवाद को स्थापित किया जा रहा है, सवर्णों को आरक्षण, नागरिकता कानून और एससी-एसटी, ओबीसी और मुसलमानों-ईसाईयों के खिलाफ तमाम फैसले इसके ज्वलंत उदाहरण हैं। जिस ओबीसी को मैं बहुजन विचार धारा से काफी हद तक जोड़ने में कामयाब रहा, वह बसपा की नीतियों के कारण छिटक गया है। आज मनुवादी साजिशन बहुजन विरोधी सारे काम एक ओबीसी समाज से आए प्रधानमंत्री और दलित समाज से आए राष्ट्रपति के माध्यम से करा रहे हैं। ऐसे लोगों को ही मैंने अपनी किताब “चमचा युग” में राजनीतिक चमचा नाम दिया था। एक बार फिर पूरे देश में बहुजन समाज के राजनीति चमचों की भरमार हो गई है। 

मान्यवर कांशीराम (15 मार्च, 1934 – 9 अक्टूबर, 2006)

तुम जानते ही हो कि बहुजन की मेरी अवधारणा में, एससी-एसटी, ओबीसी, तथा धर्म परिवर्तक अल्पसंख्यक (मुसलमान, सिख ,बौद्ध ,ईसाई आदि) सभी शामिल रहे हैं, जो इस देश की आबादी के 85 प्रतिशत हैं। तुम्हें यह याद दिलाने की जरूरत नहीं है कि आज के अधिकांश मुसलमान और ईसाई हमारे ही पूर्वजों के वंशज है, जो मनुवादी व्यवस्था के अपमान से बचने और समानता की चाह में मुसलमान या ईसाई हो गए थे। लेकिन वहां भी उन्हें सामाजिक समता नहीं मिली, भले एक हद तक धार्मिक समता मिल गई हो। वहां भी जाति धर्म पर हावी रही, जिसके चलते वे अपमानित होते रहे। अतीत के हमारे पूर्वजों के वशंज इन मुसलमानों और ईसाईयों के खिलाफ उनके ही भाई-बंधु बहुजनों को खड़ा करने की कोशिश में मनुवादी द्विज पूरी तरह सफल होते दिख रहे हैं। आज यह देखकर मन रोता है कि मनुवादी ताकतें, सत्ता का सहारा लेकर,मुसलमानों के खून से सड़कों को लाल करने पर उतारू हैं। लेकिन जिस जीवटता से तुम इस कठोर दौर में अपने इन मुसलमान भाइयों के साथ मनुवादियों के हमलों के खिलाफ ढाल बनकर खड़े होने की कोशिश करते हो, और स्वयं कष्ट उठाते हो, यह मेरे लिए बहुत खुशी की बात है। क्योंकि 85 प्रतिशत बहुजनों को एक साथ खड़ा किए बिना मनुवादी द्विजों की सत्ता को उखाड़ा नहीं जा सकता है।

चंद्रखेशर तुम्हें पता ही है कि बहुजनों की सत्ता स्थापित करने के लिए मैंने अपना पूरा जीवन कुर्बान करके जिस बहुजन समाज पार्टी का निर्माण किया था, वह मेरे द्वारा बनाए व दिखाए रास्ते को करीब-करीब छोड़ चुकी है। वह मनुवादियों के हाथ का खिलौना बनती जा रही है। बहुजन या ओबीसी के नाम पर राजनीति करने वाले अन्य राजनीतिक दल कभी भी मनुवादियों के चंगुल से बाहर निकले ही नहीं। उन्होंने कभी जोतीराव फुले, शाहूजी महाराज और बाबासाहब के दिखाए रास्ता को अपनाया ही नहीं। 

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ऐसी परिस्थिति में बहुजन समाज अपनी वर्तमान हालात और भविष्य को लेकर गहरी बेचैनी में है। बहुजन समाज एक दोराहे पर खड़ा है। एक तरफ मनुवादी शक्तियां बहुजन समाज को मुसलमानों के खिलाफ खड़ा करके, उन्हें द्विजों के वर्चस्व एवं उनकी अधीनता को पूरी तरह से स्वीकार कराने का षड़यंत्र रच रही हैं, तो दूसरी तरफ बहुजन समाज इनसे मुक्ति का सपना संजोए नए मिशनरी संगठन, पार्टी और नेतृत्व को तलाश रहा है। वह तरह-तरह से मनुवादी शक्तियों और तथाकथित पार्टियों एवं उनके नेताओं के प्रति असंतोष और आक्रोश प्रकट कर रहा है, जो बहुजन हितों के खिलाफ काम कर रहे हैं। बहुजन समाज को जिस एक सूत्र में पिरोने की मेरी अभिलाषा थी, उसकी सबसे मुखर एवं ऐतिहासिक अभिव्यक्ति 2 अप्रैल, 2018 को हुई थी। उस दिन मुझे यह जानकर खुशी हुई कि भले ही बहुजन समाज के नेताओं ने अपनी जमीर बेच दी हों, लेकिन मेरे गरीब बहुजनों का ज़मीर तुम्हारे जैसे लाखों नौजवानों ने रखा हैं। उस दिन उत्तर भारत में बहुजन क्रांति की शंखनाद का दिन था, या यूं कहूं कि यह बहुजनों के स्वतंत्रता आंदोलन की नींव का पहला पत्थर था।

सुना है कि ऐसे ही समय में तुम “आजाद समाज पार्टी” नामक एक नई पार्टी बनाने जा रहे हो, जो मेरे अधूरे सपनों को पूरा करना चाहती है और बहुजनों को नेतृत्व देना चाहती है। मैं तुम्हारी भावनाओं एवं संकल्प की कद्र करता हूं और तुम्हारी ईमानदारी पर भरोसा करके तुमसे इस संदर्भ में कुछ बातें कहना चाहता हूं। दुखी न होना, लेकिन यह सच है कि है कि नई पार्टी बनाने की घोषणा करना और मनुवादियों की सत्ता उखाड़कर बहुजनों की सत्ता स्थापित करने का संकल्प व्यक्त करना सबसे आसान काम होता है। तुम जानते हो कि बाबासाहब ने अपने परिनिर्वाण से पहले रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया का गठन का मसौदा तैयार किया था, लेकिन बाबासाहब के परिनिर्वाण के कुछ दिनों बाद ही कैसे यह पार्टी कांग्रेसियों की चमचागिरी करने लगी और बाद में टुकड़े-टुकड़े में बंटकर कभी मनुवादी शिवसेना और कभी भाजपा की शरणागत हो गई। उसके बाद बहुजनों के हितों के नाम पर कितनी पार्टियां बनीं और खत्म हो गईं। आज भी बहुत सारी पार्टियां बहुजनों के हितों के नाम काम कर रही हैं। तुमने अब मेरे खून पसीने से सींची गई बहुजन समाज पार्टी का पतन होते भी देख लिया है। 

भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर आजाद

चंद्रशेखर, तुमसे प्रश्न यह है कि आखिर तुम्हारी “आजाद समाज पार्टी” इनसे भिन्न कैसे होगी? और किस तरीके से ऐसी पार्टी बनेगी, जिससे वह सच में 85 प्रतिशत बहुजनों – की अपनी पार्टी हो,और मनुवादी द्विजों की सत्ता को उखाड़ फेंक सके। 

चंद्रशेखर, बहुजनों का सच्चा प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टी और नेतृत्व कायम करने के लिए कुछ अनिवार्य शर्तें हैं, जिनका पालन किए बिना बहुजनों का वास्तविक अर्थों में प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टी नहीं बनाई जा सकती है। मैं जोतीराव फुले और बाबासाहब के विचारों और खुद के अनुभवों के आधार पर कह सकता हूं कि निम्नलिखित शर्तों का पालन किए बिना बहुजनों के हितों का प्रतिनिधित्व करने वाली किसी भी सच्ची पार्टी का निर्माण नहीं किया जा सकता है–

  • ऐसी पार्टी का नेतृत्व वही व्यक्ति कर सकता है, जो राजनीतिक सत्ता खुद के लिए, अपने परिवार के लिए और अपनी जाति विशेष के लिए नहीं, बल्कि पूरे बहुजन समाज के लिए हासिल करना चाहता हो। अपने और अपने परिवार के लिए धन-संपत्ति इकट्ठा करने और सत्ता की हनक पाने की अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए यदि कोई पार्टी का निर्माण करता है और उसे चलाता है, तो ऐसी पार्टी कभी भी बहुजनों के हितों का वास्तविक प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती है और न ही बहुजन समाज के बहुलांश हिस्से का समर्थन प्राप्त कर सकती है। मैं बहुजन समाज पार्टी का गठन इसलिए कर सका और बहुजन समाज के एक बड़े हिस्से का समर्थन हासिल कर उत्तर प्रदेश में सत्ता कायम कर पाया क्योंकि मैंने कभी भी इस पार्टी को अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा की पूर्ति का साधन नहीं समझा। सच तो यह है कि जोतीराव फुले और बाबासाहब की तरह मेरी भी कोई व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा थी ही नहीं। तुम जानते हो कि मनुवादियों ने मुझे राष्ट्रपति का पद देकर भी अपना चमचा बनाने की कोशिश की, लेकिन मैंने उस पद को ठुकरा दिया। मुझे तरह-तरह से खरीदने और तोड़ने की कोशिश की गई, लेकिन मुझे खरीदा नहीं जा सका। व्यक्ति दो वजहों से ही बिकता है, पहला धन संपत्ति के लिए और दूसरा पद एवं नाम के लिए। मैं इन दोनों इच्छाओं को अपने पास फटकने भी नहीं देता था। इसलिए मुझे मनुवादी न खरीद सके, न झुका सके और न चमचा बना सके। रही बात परिवार की तो मैंने पूरे बहुजन समाज को ही अपना परिवार माना और अंत तक भी अपने व्यक्तिगत परिवार को अपने बहुजन समाज परिवार पर कभी वरीयता नहीं दी । इस बात के निष्कर्ष के रूप में मैं तुमसे यह कहना चाहता हूं कि लेशमात्र भी व्यक्तिगत, पारिवारिक स्वार्थ और महत्वाकांक्षा पूरी करने की चाह रखने वाला व्यक्ति बहुजन समाज को नेतृत्व नहीं दे सकता है। यदि तुम विश्व के बड़े नेताओं पर दृष्टि डालो तो पाओगे कि वे केवल देश और देश की जनता के लिए जिए और उन्हें ही सर्वोपरि माना। देश से मनुवादियों की सत्ता उखाड़ने और बहुजनों की सत्ता स्थापित करने के लिए नेतृत्वकारी व्यक्तियों को व्यक्गित स्वार्थों एवं महत्वाकांक्षाओं की कुर्बानी देनी ही होगी।

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  • चंद्रशेखर, कोई एक व्यक्ति चाहे कितना ही महान क्यों न हो, अकेले ऐसी पार्टी का निर्माण नहीं कर सकता, जो मनुवादियों को सत्ता से बेदहखल कर बहुजनों की सत्ता स्थापित कर सके। ऐसी पार्टी बनाने के लिए लाखों मिशनरी कार्यकर्ताओं की जरूरत होगी, जो पार्टी के लिए सबकुछ कुर्बान करने को तैयार हों। तुम जानते ही होंगे कि मैंने अकेले बामसेफ और बहुजन समाज पार्टी का निर्माण नहीं किया था। मैंने रात-दिन एक करके ऐसे लाखों बहुजन कार्यकर्ताओं को तैयार किया था, जो मेरे साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करते रहे। तुम्हें पता होगा कि मैंने बहुजन समाज की पूर्ण मु्क्ति के सपने को पूरा करने के लिए 1965 में नौकरी से इस्तीफा दे दिया था। अपने खून के हर बूंद का इस्तेमाल मैंने बहुजन समाज के लिए किया। मैं देश के एक कोने से दूसरे कोने का चक्कर लगाता रहा, गांवों-शहरों की गलियों में घूमता रहा, बहुजनों को जुटाने और उन्हें संगठित करने की कोशिशें करता रहा। कभी भी मैंने व्यक्तिगत सुख-दुख के बारे में नहीं सोचा। इस तरह से मैंने लाखों बहुजन कार्यकर्ताओं को बहुजनों की मुक्ति के संघर्ष के लिए तैयार किया। 

तुम्हें यह जरूर जानना चाहिए कि मुझे सफलता क्यों मिली। इसका सिर्फ और सिर्फ एक कारण था कि मैंने उन्हीं कार्यकर्ताओं को तैयार किया और तरजीह दी, जो समाज और पार्टी को कुछ देना चाहते थे। ऐसे लोग जी समाज और पार्टी से केवल पाना चाहते, स्वार्थ की पूर्ति करना चाहते थे, उन्हें हमेशा दूर रखा। साथ ही मैं जब किसी से मिलता तो उसे इस बात का अहसास जल्द ही हो जाता था कि यह व्यक्ति किसी व्यक्तिगत स्वार्थ या महत्वाकांक्षा के लिए मेरे पास नहीं आया। यह बहुजनों के हितों के लिए मेरे पास आया है। यह वास्तव में मनुवादियों का वर्चस्व तोड़ना चाहता है और बहुजनों की सत्ता स्थापित करना चाहता है।

चंद्रशेखर, एक बात गांठ बांध लो, जैसा नेता होता है, वैसे ही कार्यकर्ता तैयार करता है। यदि नेता नि:स्वार्थ भाव से बहुजनों के हितों के लिए संघर्ष करता है, उसके इर्द-गिर्द लाखों ऐसे कार्यकर्ता जुटते जाते हैं, जो नि:स्वार्थ भाव से बहुजन समाज की सेवा करने के लिए तत्पर हो। इसके उलट स्वार्थी और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए राजनीति करने वाला नेता ऐसे स्वार्थी एवं व्यक्गित महत्वाकांक्षाओं वाले लोगों को ही इकट्ठा करता है, जो देर-सबेर बहुजन समाज के साथ दगाबाजी करते हैं और मनुवादी द्विजों के चमचे बन जाते हैं।

क्या तुम लाखों बहुजन मिशनरी कार्यकर्ताओं को खड़ा कर पाओगे? यह भविष्य के गर्भ में है, क्योंकि ऐसे लोगों को खड़ा करने के लिए खुद को भी ऐसा ही बनाना पड़ता है और धैर्य के साथ इसमें जीवन खपाना पड़ता है। यह कोई तात्कालिक भावना एवं जोश का मामला नहीं। यह इतिहास को उलट देने की परियोजना है, जो असीम धैर्य, अकूत त्याग, लक्ष्य के प्रति पूर्ण समर्पण और गंभीर वैचारिक-राजनीतिक समझ की मांग करती है। इसके साथ ही इसके लिए पुख्ता रणनीति एवं कार्य-नीति भी बनानी पड़ती है।

  • चंद्रशेखर, बहुजन विचारों को अपनाए बिना बहुजन राजनीति की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। आधुनिक काल में बहुजन विचारों की पुख्ता नींव जोतीराव फुले और बाबासाहब ने डाली है। तुम जानते होगे कि मैं फुले की “गुलामगिरी” और बाबासाहब की रचनाओं को निरंतर पढ़ता रहता था, उन पर मनन करता था और अपने समय की परिस्थितियों के अनुकूल उन्हें लागू करने की कोशिश करता था। तुम्हें तो पता ही होगा कि बाबासाहब की किताब “जाति के विनाश” ने मेरी जिंदगी की दिशा ही पूरी तरह से बदल दी थी। मनुवाद को उखाड़ फेंकने लिए फुले और बाबासाहब को निरंतर पढ़ते रहना जरूरी है। इनकी रचनाएं ऐसी मशाल हैं, जो हमें भटकने नहीं देती हैं और सही रास्ता दिखाती रहती हैं। मैं तुमसे अपेक्षा रखता हूं कि मेरी किताब “चमचा युग” तुम बार-बार पढ़ना। यह बहुजन राजनीति की हार और मनुवादियों की द्विज राजनीति की जीत के कारणों की तह में जाती है और यह भी बताती है कि कैसे मनुवादियों की चमचा बने बिना बहुजनों की सत्ता की स्थापना की जा सकती है।
  • चंद्रशेखर, एक बात और। कभी भी मनुवादियों के पैसे से बहुजन राजनीति करने की कोशिश न करना। जब भी तुम मनुवादियों के पैसे से बहुजन राजनीति करने की कोशिश करोगे, वे तुम्हें भीतर ही भीतर दीमक की तरह खोखला कर देंगे, तुम्हें कुछ पता भी नहीं चलेगा। वे तुम्हें खरीद लेंगे और तुम्हें पता भी नहीं चलेगा कि तुम कब उनके पालतू शेर बन गए। वो दिखने में शेर होगा, लेकिन पालतू, जो अपने मालिक के इशारों पर चलेगा। मेरी यह बात याद रखना जिसका सहारा होता है, उसका इशारा भी होता है। 

फिर यह प्रश्न उठेगा कि आखिर राजनीति करने के लिए पैसा कहां से आएगा। चंंद्रशेखर, तुम्हें मैं अपने अनुभव से बता रहा हूं। बहुजन समाज आधा पेट खाकर भी तुम्हें इतना पैसा दे सकता है, जिससे तुम मनुवादियों की सत्ता उखाड़ फेंक सको और बहुजनों की सत्ता स्थापित कर सको। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि बहुजन समाज को यह विश्वास हो जाए कि सचमुच में तुम उनके लिए संघर्ष कर रहे हो। उनके हित के लिए पैसे की मांग कर रहे हो। मैंने बहुजन समाज से करोड़ों-करोड़ रूपए जुटाए। लोगों ने सहर्ष दिया अपना पेट काटकर अपनी गाढ़ी कमाई से, पीएफ का लोन निकालकर। विश्वास और त्याग का ऐसा रिश्ता एक दिन में नहीं बनता है। इसके लिए लंबे समय तक त्याग एवं कुर्बानी देनी पड़ती है, लोगों का विश्वास जीतना पड़ता है। उन्हें अपना बनाना पड़ता है, उन्हें यह भरोसा दिलाना पड़ता है, कि तुम उन्हें धोखा नहीं दोगे, उनके साथ विश्वासघात नहीं करोगे।

  • चंद्रशेखर एक बात और तुम्हें तुम्हारा लक्ष्य स्पष्ट होना चाहिए। मनुवादियों की सत्ता उखाड़ फेंकने और बहुजनों की सत्ता स्थापित करने का मतलब सिर्फ राजनीतिक सत्ता प्राप्त करना नहीं होता। राजनीतिक सत्ता प्राप्त करना अपने आप में कोई लक्ष्य है ही नहीं। यह तो सिर्फ एक उपकरण है मनुवादियों के सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक सत्ता को उखाड़ फेंकने का और बहुजनों की सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक मुक्ति का रास्ता प्रशस्त करने का।

क्या तुम यह सब कर पाओगे? जोतीराव फुले और बाबासाहब के विचारों पर चल पाओगे? क्या मैंने और लाखों बहुजन कार्यकर्ताओं ने अपने खून-पसीने से जिस बहुजन मिशन की शुरूआत की थी, उसे उसकी मंजिल तक पहुंचा पाओगे? बहुजन समाज पार्टी का गठन इसका एक पड़ाव था। यदि तुम ऐसा कर पाए तो सूरज की तरह हमेशा चमकते रहोगे और यदि ऐसा नहीं कर पाए तो एक उल्का पिंड की तरह चमक कर फिर पूरी तरह बूझ जाओगे।

मेरी तो कामना है कि तुम बहुजन समाज के लिए सूरज की तरह चमको। लेकिन रास्ता कठिन है। इस रास्ते पर चलोगे, तो बहुजन समाज को तो बहुत कुछ मिल जायेगा, लेकिन शायद तुम्हें व्यक्तिगत तौर पर कुछ न मिले। जैसे मैंने अपने लिए कुछ नहीं चाहा, तो बहुजन समाज के लिए कुछ पाया। अपने लिए चाहता तो बहुजन समाज के लिए शायद कुछ नहीं कर पाता। मुझे खुशी है कि मैं बहुजन समाज के लिए जीया और मरा। क्या तुम ऐसा कर पाओगे?

तुम्हें सफलता मिले। इसी विश्वास के साथ       

कांशीराम

(संपादन : नवल/गोल्डी)

लेखक के बारे में

सिद्धार्थ

डॉ. सिद्धार्थ लेखक, पत्रकार और अनुवादक हैं। “सामाजिक क्रांति की योद्धा सावित्रीबाई फुले : जीवन के विविध आयाम” एवं “बहुजन नवजागरण और प्रतिरोध के विविध स्वर : बहुजन नायक और नायिकाएं” इनकी प्रकाशित पुस्तकें है। इन्होंने बद्रीनारायण की किताब “कांशीराम : लीडर ऑफ दलित्स” का हिंदी अनुवाद 'बहुजन नायक कांशीराम' नाम से किया है, जो राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित है। साथ ही इन्होंने डॉ. आंबेडकर की किताब “जाति का विनाश” (अनुवादक : राजकिशोर) का एनोटेटेड संस्करण तैयार किया है, जो फारवर्ड प्रेस द्वारा प्रकाशित है।

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