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आदिवासी लोक गीत-संगीत में मौजूदा संघर्ष के स्वर

हुल दिवस के मौके पर पढ़ें सुरेश जगन्नाथम का विशेष लेख। इसमें वह बता रहे हैं नियमगिरि पहाड़ियों में रहने वाले डोंगरिया कोंद व कुटिया कोंद समुदाय के लोगों द्वारा चलाए जा रहे आदोलन में उपयोग किए जाने वाले लोकगीतों के बारे में। उनके मुताबिक, यह वही परंपरा है जिसकी मुखर अभिव्यक्ति संथाल हुल से लेकर उलगुलान तक में होती है

आदिवासियों का इतिहास संघर्षों का इतिहास रहा है। यह बात अलग है कि भारतीय इतिहासकारों ने उनके इतिहास को तवज्जो नहीं दी। मसलन, संथाल हुल जिसकी उद्घोषणा 30 जून, 1855 को सिदो-कान्हु ने की थी। यह एक तरह से दिकुओं द्वारा जल-जंगल-जमीन पर कब्जे का सशस्त्र विरोध था जिसमें व्यापक जन भागीदारी थी। करीब 165 साल बाद आज के दौर में भी आदिवासियों के समक्ष कमोबेश उसी तरह के सवाल हैं और वे संघर्ष करने को मजबूर हैं। एक उदाहरण नियमगिरि पहाड़ियों में चल रहे विरोध का है।

यह सर्वविदित है कि उड़ीसा के कोरापुट-रायगढा-कालाहांडी के विशेषकर नियमगिरि पहाड़ियों में सर्वोत्तम बाॅक्साइट का भंडार है। इसी बाॅक्साइट के खनन के लिये वेदांता कंपनी निरंतर प्रयास कर रही है। इन्हीं पहाड़ियों पर सदियों से निवास करती एक सभ्यता है, संस्कृति है। इनकी अपनी समृद्ध भाषा है। गीत-संगीत है। अपने देवी-देवता हैं। कुल मिलाकर एक संपूर्ण आदिवासी जीवन है। पहाड़ियों के खनन की प्रक्रिया में नष्ट होते जीवन को बचाए रखने के लिए वहां के मूल निवासी डोंगरिया कोंद व कुटिया कोंद समुदायों के द्वारा विगत दो दशकों से वेदांता के विरुद्ध आंदोलन जारी है। 

आन्दोलन के गीत 

इस आंदोलन को व्यापक रूप से आगे बढ़ाने के लिये मौखिक परंपरा को एक हथियार के रूप में उपयोग किया गया है। कभी अपने मनोरंजन, या परंपरागत जात्रा (पर्व-त्योहार) तथा सामूहिक समारोहों में अपने आनंद के लिये गाए जाने वाले गीतों ने इस आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभायी है। यह वही परंपरा है जिसकी मुखर अभिव्यक्ति संथाल हुल से लेकर बिरसा मुंडा के उलगुलान तक में होती है। प्रतिरोध के इन गीतों के माध्यम से कहीं उनकी व्यथा व्यक्त होती दिखती है और लोगों में चेतना जगती है। 

गीत संख्या – 1

गा ऽ ऽ ऽ डा सढ्‍ढोरे आं लो ऽ ऽ ऽ गुं ऽ ऽ ऽ ड्डे मेलेरे आं लो ऽ ऽ ऽ
नियो ऽ ऽ ऽ मगिरी ता ऽ ऽ ऽ ल्लो दी ऽ ऽ ऽ प्पी उज्जड़ किन्ना लो ऽ ऽ ऽ
मे ऽ ऽ ऽ ल्ला गडा अन्ने ऽ ऽ ऽ बो ऽ ऽ ऽ ग्गा गडा अन्ने लो ऽ ऽ ऽ
नियो ऽ ऽ ऽ मगिरी ता ऽ ऽ ऽ ल्लो दी ऽ ऽ ऽ प्पी उज्जड़ किन्ना लो ऽ ऽ ऽ
आ ऽ ऽ ऽ ग्गे ओन्नायु ऽ ऽ ऽ अद्दे बो ऽ ऽ ऽ लु ओनायु लो ऽ ऽ ऽ
नियो ऽ ऽ ऽ मगिरी ता ऽ ऽ ऽ ल्लो दी ऽ ऽ ऽ प्पी उज्जड़ किन्ना लो ऽ ऽ ऽ
कत्ता ऽ ऽ ऽ ओनायू ऽ ऽ ऽ ऊ आय्या नोणो ऽ ऽ ऽ ओणायुऊ लो ऽ ऽ ऽ
नियो ऽ ऽ ऽ मगिरी ता ऽ ऽ ऽ ल्लो दी ऽ ऽ ऽ प्पी उज्जड़ किन्ना लो ऽ ऽ ऽ
सिसो ऽ ऽ ऽ ढांजिन अय्या ऽ ऽ ऽ लो बासो ऽ ऽ ऽ ढांजीन अय्या ऽ ऽ ऽ लो
नियो ऽ ऽ ऽ मगिरी ता ऽ ऽ ऽ ल्लो दी ऽ ऽ ऽ प्पी उज्जड़ किन्ना लो ऽ ऽ ऽ
सारूसिकनी रेन्नेयाया रोट्‍टा पाख्खार किन्नेयु अय्या
नियो ऽ ऽ ऽ मगिरी ता ऽ ऽ ऽ ल्लो दी ऽ ऽ ऽ प्पी उज्जड़ किन्ना लो ऽ ऽ ऽ
अय्या ऽ ऽ ऽ रेंगना मुण्डा ऽ ऽ ऽ अय्या ऽ ऽ ऽ रेंगना पट्‍टे लो ऽ ऽ ऽ
नियो ऽ ऽ ऽ मगिरी ता ऽ ऽ ऽ ल्लो दी ऽ ऽ ऽ प्पी उज्जड़ किन्ना लो ऽ ऽ ऽ
गडा ऽ ऽ ऽ रेंगञजी अय्या ऽ ऽ ऽ गुड्‍डे ऽ ऽ ऽ रेंगञजी लो ऽ ऽ ऽ
नियो ऽ ऽ ऽ मगिरी ता ऽ ऽ ऽ ल्लो दी ऽ ऽ ऽ प्पी उज्जड़ किन्ना लो ऽ ऽ ऽ
अय्या ऽ ऽ ऽ बीरी बिच्छेनी ऽ ऽ ऽ अय्या ऽ ऽ ऽ मुग्गा बिच्‍छेनी ऽ ऽ ऽ
नियो ऽ ऽ ऽ मगिरी ता ऽ ऽ ऽ ल्लो दी ऽ ऽ ऽ प्पी उज्जड़ किन्ना लो ऽ ऽ ऽ
कोडे ऽ ऽ ऽ एत्ति मन्मु अय्या ऽ ऽ ऽ कोडे ऽ ऽ ऽ डोंगी मन्मु लो ऽ ऽ ऽ
नियो ऽ ऽ ऽ मगिरी ता ऽ ऽ ऽ ल्लो दी ऽ ऽ ऽ प्पी उज्जड़ किन्ना लो ऽ ऽ ऽ
सोद्धो ऽ ऽ ऽ बतराता ओन्नेरू अय्या बारा ऽ ऽ ऽ बकराता ओन्नेरू ऽ ऽ ऽ
नियो ऽ ऽ ऽ मगिरी ता ऽ ऽ ऽ ल्लो दी ऽ ऽ ऽ प्पी उज्जड़ किन्ना लो ऽ ऽ ऽ
सन्दू ऽ ऽ ऽ र गाडाता ओन्नेरू अय्या नौरू ऽ ऽ ऽ गाडा ता ओन्नेरू ऽ ऽ ऽ
नियो ऽ ऽ ऽ मगिरी ता ऽ ऽ ऽ ल्लो दी ऽ ऽ ऽ प्पी उज्जड़ किन्ना लो ऽ ऽ ऽ
हाग्गू ऽ ऽ ऽ कोंबोता होनरे अय्या मुलगा ऽ ऽ ऽ कोंबोता होनेरू ऽ ऽ ऽ
नियो ऽ ऽ ऽ मगिरी ता ऽ ऽ ऽ ल्लो दी ऽ ऽ ऽ प्पी उज्जड़ किन्ना लो ऽ ऽ ऽ
सत्ता ऽ ऽ ऽ बेंदा रोम्मू अय्या ऽ ऽ ऽ बारा ऽ ऽ ऽ बेंदा कप्पटि रेम्मानु लो ऽ ऽ ऽ
नियो ऽ ऽ ऽ मगिरी ता ऽ ऽ ऽ ल्लो दी ऽ ऽ ऽ प्पी उज्जड़ किन्ना लो ऽ ऽ ऽ
एंबिनि ऽ ऽ ऽ गाडा रानी पाडे एंबिनि ऽ ऽ ऽ गुड्‍डे रानी पाडे
नियो ऽ ऽ ऽ मगिरी ता ऽ ऽ ऽ ल्लो दी ऽ ऽ ऽ प्पी उज्जड़ किन्ना लो ऽ ऽ ऽ
इदि ऽ ऽ ऽ नेबाराज अद्दे इदि ऽ ऽ ऽ बड्‍डा राजा लो ऽ ऽ ऽ
नियो ऽ ऽ ऽ मगिरी ता ऽ ऽ ऽ ल्लो दी ऽ ऽ ऽ प्पी उज्जड़ किन्ना लो ऽ ऽ ऽ

अर्थ

हमारा गांव नहीं छोडेंगे, हमारी धरती नहीं छोडेंगे
इस गांव को छोड़ कर चले जायेंगे तो हम बिखर जायेंगे
हम हमारी भाषा को ले जायेंगे।
हमारी भाषा ले जाने वाला, हमारी बोली ले जाने वाला
जंजीर से खींचकर ले जायेगा, रस्सी से बांधकर ले जायेगा।
हे सीमा की देवी, हे गांव की देवी
आप लोग गांव को पकड़कर रखो, नहीं तो वे ले जायेंगे
मां बीजों की देवी आप यहीं रहो
हमें आप अपने गोद में बैठा कर रखो, हमें बाजुओं में उठाकर चलो
हम आप को जाने नहीं देंगे। बारह-चौदह मंजिल का गड्डा खोदकर वहां छिपाएंगे।
आप को सात समंदर पार ले जाएंगे, आप हमें साहस दो, हम आप को ले जाने नहीं देंगे।
आप को बादलों के पार ले जायेंगे, अंतरिक्ष में ले जाएंगे।
मां तुम वेदांता का सात खंड कर दो, बारह खंड कर दो
मां आप उनकी शक्ति को हरण कर लो
बारह द्वार लगा दो, चौदह द्वार लगा दो ताकि वे अंदर न आ सके
उन्हें मुश्किलें दो, उन्हें बाधा दो
तुम हमारी मदद नहीं करोगी तो निंदित हो जाओगी
तुम हमारी मदद करोगी तो ही आप को सच्चा मानेंगे
नहीं तो तुम्हें पाताल में गाड़ देंगे।
यह पहाड़ हमारा राजा है, यह हमारा बड़ा राजा है।

विश्‍लेषण

इस गीत में डोंगरिया आदिवासी समुदाय के लोग अपनी वेदना को व्यक्त कर रहे हैं। वह अपनी जमीन छोड़ना नहीं चाहते हैं। वे अपने गांव से दूर नहीं होना चाहते हैं। वे जानते हैं कि इस गांव, प्रदेश को छोड़ देंगे तो उनका अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा। वे अपनी भाषा और संस्कृति के प्रति भी चिंता व्यक्त कर रहे हैं। वे अपनी भाषा खोना नहीं चाहते हैं और न ही अपनी बोली। वे नि:सहाय स्थिति में अपने ग्राम देवी, सीमा की देवी देवताओं से अनुरोध कर रहे हैं कि वे गांव को उजड़ने न दें। गांव की रक्षा करें। इनकी संस्कृति में मानना है कि गांव की देवी गांव की रक्षा करती है, उसी प्रकार सीमा की देवी बाहरी शक्तियों से पूरे क्षेत्र की रक्षा करती है। इसलिए वे उन देवी-देवताओं से गांव की तथा उस क्षेत्र की सुरक्षा की कामना कर रहे हैं। वे देवी-देवताओं से मांग कर रहे हैं कि वे उन बाहरी शक्तियों को पहाड़ियों में प्रवेश करने से रोकें। जिस प्रकार किसी को घर के अंदर आने से दरवाजा बंद करके रोकते हैं उसी प्रकार पहाड़ियों में प्रवेश को रोकें। उन्हें यातनाएं दें। वे अपने देवी-देवताओं से कामना ही नहीं बल्कि ऐसा न करने पर निंदित होने का भय भी दिखा रहे हैं। आगे कह रहे हैं यदि आप उन्हें नहीं रोकेंगे तो हम आप पर विश्‍वास नहीं करेंगे। तुम्हें पाताल में गाड़ देंगे। आगे कभी आप की पूजा नहीं होगी। इस प्रकार वे अपने गीतों के माध्यम से अपनी विवशता और आक्रोश को उजागर कर रहे हैं।       

नियमगिरि इलाके में घुम-घुमकर गीत गाते ग्रामीण युवा

गीत संख्या – 2 (घुर्खा पणम्बू)

नियमगी ऽ ऽ ऽ रि पिहःप अद्दे कासीपू ऽ ऽ ऽ रु पिहःप
नगवा ऽ ऽ ऽ ली नगारा ऽ ऽ ऽ जे बालिपो ऽ ऽ ऽ डा बोज्जा ऽ ऽ ऽ रो
जेंदु देलो ऽ ऽ ऽ अद्दे बाडा ऽ ऽ ऽ जेंदुदेलो गोया ऽ ऽ ऽ ले
नगवा ऽ ऽ ऽ ली नगारा ऽ ऽ ऽ जे बालिपो ऽ ऽ ऽ डा बोज्जा ऽ ऽ ऽ रो
माठा ऽ ऽ ऽ न गेन्निलो ऽ ऽ ऽ अद्दे मामा ऽ ऽ ऽ टी गेन्निलो ऽ ऽ ऽ
नगवा ऽ ऽ ऽ ली नगारा ऽ ऽ ऽ जे बालिपो ऽ ऽ ऽ डा बोज्जा ऽ ऽ ऽ रो
सिंसङोंइ ऽ ऽ ऽ मन्नेलो अद्दे बासोंङों ऽ ऽ ऽ इ मन्नेलो ऽ ऽ ऽ
नगवा ऽ ऽ ऽ ली नगारा ऽ ऽ ऽ जे बालिपो ऽ ऽ ऽ डा बोज्जा ऽ ऽ ऽ रो
हत्ताढां ऽ ऽ ऽ जी मन्नेलो अद्दे गोड्‍डुढां ऽ ऽ ऽ जी मन्नेलो ऽ ऽ ऽ
नगवा ऽ ऽ ऽ ली नगारा ऽ ऽ ऽ जे बालिपो ऽ ऽ ऽ डा बोज्जा ऽ ऽ ऽ रो
मदए ऽ ऽ ऽ सींग ऽ ऽ ऽ ताक्‍किलो अद्दे मदके ऽ ऽ ऽ लिंगा ताक्‍किलो ऽ ऽ ऽ
नगवा ऽ ऽ ऽ ली नगारा ऽ ऽ ऽ जे बालिपो ऽ ऽ ऽ डा बोज्जा ऽ ऽ ऽ रो
अय्या ज ऽ ऽ ऽ तरा कुड्‍डेणी ऽ ऽ ऽ अद्दे आय्या निया ऽ ऽ ऽ री कुड्‍डेणी ऽ ऽ ऽ
नगवा ऽ ऽ ऽ ली नगारा ऽ ऽ ऽ जे बालिपो ऽ ऽ ऽ डा बोज्जा ऽ ऽ ऽ रो
जेंदु देलो ऽ ऽ ऽ अद्दे बड़ा जेंदु दे ऽ ऽ ऽ लो गोया लो ऽ ऽ ऽ
नगवा ऽ ऽ ऽ ली नगारा ऽ ऽ ऽ जे बालिपो ऽ ऽ ऽ डा बोज्जा ऽ ऽ ऽ रो
जाणीवा ऽ ऽ ऽ आ तेन्नुलो ऽ ऽ ऽ अद्दे बुज्जीवा ऽ ऽ ऽ आ तेन्नुलो ऽ ऽ ऽ
नगवा ऽ ऽ ऽ ली नगारा ऽ ऽ ऽ जे बालिपो ऽ ऽ ऽ डा बोज्जा ऽ ऽ ऽ रो
जेई सि ऽ ऽ ऽ ग्गी अन्नेलो ऽ ऽ ऽ अद्दे जेई मज्जि ऽ ऽ ऽ ग अन्नेलो ऽ ऽ ऽ
नगवा ऽ ऽ ऽ ली नगारा ऽ ऽ ऽ जे बालिपो ऽ ऽ ऽ डा बोज्जा ऽ ऽ ऽ रो
आया कासी ऽ ऽ ऽ मुंडा लो अद्दे अय्या मोद्धे मुंडा ऽ ऽ ऽ लो
नगवा ऽ ऽ ऽ ली नगारा ऽ ऽ ऽ जे बालिपो ऽ ऽ ऽ डा बोज्जा ऽ ऽ ऽ रो
जेंदु देलो ऽ ऽ ऽ अद्दे बाडा ऽ ऽ ऽ जेंदु देलो ऽ ऽ ऽ गोया ऽ ऽ ऽ ले
नगवा ऽ ऽ ऽ ली नगारा ऽ ऽ ऽ जे बालिपो ऽ ऽ ऽ डा बोज्जा ऽ ऽ ऽ रो
आया रेंगणा ऽ ऽ ऽ मुंडा ऽ ऽ ऽ लो अद्दे अय्या रेंगणा ऽ ऽ ऽ पट्टे ऽ ऽ ऽ लो
नगवा ऽ ऽ ऽ ली नगारा ऽ ऽ ऽ जे बालिपो ऽ ऽ ऽ डा बोज्जा ऽ ऽ ऽ रो
निदिनी ऽ ऽ ऽ य ओनेरु आय्या निदिक ऽ ऽ ऽ त्ता ओनेरू ऽ ऽ ऽ
नगवा ऽ ऽ ऽ ली नगारा ऽ ऽ ऽ जे बालिपो ऽ ऽ ऽ डा बोज्जा ऽ ऽ ऽ रो
जेंदु देलो ऽ ऽ ऽ अद्दे माद्धे जेंदु देलो ऽ ऽ ऽ गोया ऽ ऽ ऽ लो
नगवा ऽ ऽ ऽ ली नगारा ऽ ऽ ऽ जे बालिपो ऽ ऽ ऽ डा बोज्जा ऽ ऽ ऽ रो
जेई सि ऽ ऽ ऽ गी अन्नेलो ऽ ऽ ऽ अद्दे जेई मा ऽ ऽ ऽ ज्जिग अन्ने लो ऽ ऽ ऽ
नगवा ऽ ऽ ऽ ली नगारा ऽ ऽ ऽ जे बालिपो ऽ ऽ ऽ डा बोज्जा ऽ ऽ ऽ रो
संदुर गा ऽ ऽ ऽ ट्टुता ओने ऽ ऽ ऽ रू अय्या नौरु गा ऽ ऽ ऽ ट्टू ओनेरू
नगवा ऽ ऽ ऽ ली नगारा ऽ ऽ ऽ जे बालिपो ऽ ऽ ऽ डा बोज्जा ऽ ऽ ऽ रो
ऐद्धा सि ऽ ऽ ऽ न्नी रेम्मुलो ऽ ऽ ऽ अद्दे ऐद्धा बा ऽ ऽ ऽ च्ची रेम्मुलो ऽ ऽ ऽ
नगवा ऽ ऽ ऽ ली नगारा ऽ ऽ ऽ जे बालिपो ऽ ऽ ऽ डा बोज्जा ऽ ऽ ऽ रो

अर्थ

नियमगिरि छोडेंगे नहीं
नागावली छोडेंगे नहीं, काशीपुर छोडेंगे नहीं
चलो दोस्त चलो अपनी माटी छोड़ेंगे नहीं
हाथ से हाथ मिलाकर, पांव से पांव मिलाकर
आज खुशी से नाचेंगे, आज खुशी से गाएंगे
मां जतरा कुड्डी, मां नियारी कुड्डी
हमारी दोस्ती के लिये चलो, हमारे स्नेह के लिये चलो
चलो जल्दी चलो दोस्त
मां कसी मुण्डा, मां मोद्धे मुण्डा
मां रेंगना मुण्डा, मां रेंगना पट्टे
आप के विचार लेंगे, आप का मशवरा लेंगे
हमारे बकरी के झुंड को ले जायेंगे, हमारे गाय के झुंड़ को ले जायेंगे
समंदर के पार ले जायेंगे, नदी के पार ले जायेंगे
हमें जंजीर सा बनाना मां, हमें मजबूत जंजीर की तरह बनाना

विश्‍लेषण

डोंगरिया कोंद समुदाय नियमगिरि को पहाड़ियों को छोड़ने के लिये तैयार नहीं हैं। नियमगिरि के प्रति अपनी श्रद्धा तथा अपनी देवी-देवताओं के प्रति विश्‍वास को साथ लेकर आन्दोलन को आगे बड़ा रहे हैं। वे कह रहे हैं की हम अपनी माटी छोड़ेंगे नहीं, अपनी धरती छोड़ेंगे नहीं। अपने पहाड़ों को छोड़ेंगे नहीं और अपनी नदियों को नहीं छोड़ेंगे। वे चाहते हैं कि उनकी संस्कृति जस की तस बनी रहे, ताकि वे अपनी खुशियों को गीत नृत्य के माध्यम से व्यक्त करते रह सकें। वे अपने देवी-देवताओं से उनके साथ इस आन्दोलन में भाग लेने की आग्रह कर रहे हैं। अपने देवी देवताओं के आज्ञा से आन्दोलन को आगे बढ़ाना चाहते हैं। उनके मनोबल को जंजीरों की तरह दृढ़ रखने की कामना कर रहे हैं। 

नृत्य की मुद्रा में डोंगरिया समुदाय की महिलाएं

गीत संख्या – 3 (हेड़ी पणम्बु)

अद्दे मत्तो बड़ालो ऽ ऽ ऽ ए खोसाला खुदु अद्दे बड़ालो ऽ ऽ ऽ ए
नियमगिरी अद्दे पिअःपो ऽ ऽ ऽ ए खोसाला खुदु अद्दे बड़ालो ऽ ऽ ऽ ए
नेभाहुरू अद्दे पिअःपो ऽ ऽ ऽ ए खोसाला खुदु अद्दे बड़ालो ऽ ऽ ऽ ए
कोयुवाली अद्दे पिअःपो ऽ ऽ ऽ ए खोसाला खुदु अद्दे बड़ालो ऽ ऽ ऽ ए
मादे अयु अद्दे पिअःपो ऽ ऽ ऽ ए खोसाला खुदु अद्दे बड़ालो ऽ ऽ ऽ ए
मादे ठाना अद्दे पिअःपो ऽ ऽ ऽ ए खोसाला खुदु अद्दे बड़ालो ऽ ऽ ऽ ए
मादे पेनु अद्दे पिअःपो ऽ ऽ ऽ ए खोसाला खुदु अद्दे बड़ालो ऽ ऽ ऽ ए
अइदे दिन ताद्धे मच्छारो ऽ ऽ ऽ ए खोसाला खुदु अद्दे बड़ालो ऽ ऽ ऽ ए
ओजा से वेड़ाता अद्दे मच्छारो ऽ ऽ ऽ ए खोसाला खुदु अद्दे बड़ालो ऽ ऽ ऽ ए
कोट्‍टेयु वाली अद्दे पिअःपो ऽ ऽ ऽ ए खोसाला खुदु अद्दे बड़ालो ऽ ऽ ऽ ए
धरणी पेनु अद्दे पिअःपो ऽ ऽ ऽ ए खोसाला खुदु अद्दे बड़ालो ऽ ऽ ऽ ए
मंगेदे एंबे अद्दे यादे डाकीनेयू ऽ ऽ ऽ ए खोसाला खुदु अद्दे बड़ालो ऽ ऽ ऽ ए
मंगेदे एंबेदे अद्दे पायू नेयू ऽ ऽ ऽ ए  खोसाला खुदु अद्दे बड़ालो ऽ ऽ ऽ ए

अर्थ – 

हम खोसला खाने वाले नियमगिरि को नहीं छोडेंगे
नेभा होरू को नहीं छोडेंगे, कोयुवाली को नहीं छोडेंगे
हमारा पानी को नहीं छोडेंगे, हमारे जमीन को नहीं छोडेंगे
हमारे देवी को नहीं छोडेंगे, हमारे देव को नहीं छोडेंगे
पुरखों के जमाने से हैं हम यहां
दादी के समय से हैं हम दादा के समय से हैं हम यहां
कोई आकर हमें बली देगा, कोई आकर हमें मारेंगे पीटेंगे
हम नियमगिरी को नहीं छोड़ेंगे।

विश्‍लेषण

डोंगरिया कोंद इस गीत में अपनी जमीन को न छोड़ने की बात कर रहे हैं। वे कह रहे हैं कि हम पारंपरिक अनाजों को इस पहाड़ियों में उगाते हैं। उन्हीं फसलों को खाकर हम जीते हैं। हमें ऐसी जमीन और कहीं नहीं मिलेगी। सदियों से रह रहे हैं यहां, हमारे दादा, पर दादा थे यहां। ये हमारी जमीन है हमारे पहाड़ हैं। नेभाहोरू (नियम राजा) हमारे राजा हैं, हम उनके बेटे हैं। हम नियमगिरि को बचाए रखेंगे। यहां हमारे देवी-देवताओं का वास है। कोयुवाली (देवी का नाम) नहीं छोड़ेंगे। हमारे देवी-देवताओं को नहीं छोड़ेंगे। इस आंदोलन में हम मरने के लिये भी तैयार हैं, हमारे आन्दोलन को आगे बढ़ाएंगे।    

लोकगीत गाते ग्रामीण

गीत संख्य 4 (गुर्खा पणम्बु)

कोय्युवाली रोताक्‍कि कि अद्दे ले ऽ ऽ ऽ कोंयां मालिंगा तादा डींबोरो ऽ ऽ ऽ
लेक्‍कोन कोल्ला वाताक्‍कि अद्दे ले ऽ ऽ ऽ कोंयां मालिंगा तादा डींबोरो ऽ ऽ ऽ
माद्धि एयु रोताक्‍कि अद्दे ले ऽ ऽ ऽ कोंयां मालिंगा तादा डींबोरो ऽ ऽ ऽ
टानापेनु रोताक्‍कि अद्दे ले ऽ ऽ ऽ कोंयां मालिंगा तादा डींबोरो ऽ ऽ ऽ
नेभाहोरू रोत्‍ताक्‍कि अद्दे ले ऽ ऽ ऽ कोंयां मालिंगा तादा डींबोरो ऽ ऽ ऽ
जेई गिम्मालो अद्दे बाड़ा रे ऽ ऽ ऽ कोंयां मालिंगा तादा डींबोरो ऽ ऽ ऽ
नियमगिरी वाताक्‍कि अद्दे ले ऽ ऽ ऽ कोंयां मालिंगा तादा डींबोरो ऽ ऽ ऽ
जुज्जो वायु सेमान्‍नेरू अद्दे ले ऽ ऽ ऽ कोंयां मालिंगा तादा डींबोरो ऽ ऽ ऽ
ढाका कोयू सेकीना अद्दे ले ऽ ऽ ऽ कोंयां मालिंगा तादा डींबोरो ऽ ऽ ऽ
जगा साड्‍डोवा ईआबू अद्दे ले ऽ ऽ ऽ कोंयां मालिंगा तादा डींबोरो ऽ ऽ ऽ
आयी दिन्‍ना वान्‍नारा गोड़े डे ऽ ऽ ऽ कोंयां मालिंगा तादा डींबोरो ऽ ऽ ऽ
ओज्जा वेड़ा तान्‍नारा गोड़े डे ऽ ऽ ऽ कोंयां मालिंगा तादा डींबोरो ऽ ऽ ऽ
नोंर पोलो वा पिहःपो माबू डे ऽ ऽ ऽ कोंयां मालिंगा तादा डींबोरो ऽ ऽ ऽ
कोमला फोले वा पिहःपो मारो डे ऽ ऽ ऽ कोंयां मालिंगा तादा डींबोरो ऽ ऽ ऽ
हिंगा वाड़ा वा पिहःपो मारो डे ऽ ऽ ऽ कोंयां मालिंगा तादा डींबोरो ऽ ऽ ऽ
आद्धा बाड़ा से पिहःबू माबू डे ऽ ऽ ऽ कोंयां मालिंगा तादा डींबोरो ऽ ऽ ऽ
एयु वच्‍चावा जागा गोड़े डे ऽ ऽ ऽ कोंयां मालिंगा तादा डींबोरो ऽ ऽ ऽ
कुन्‍ना तिंजीवा माच्छा नत्ताबू ऽ ऽ ऽ कोंयां मालिंगा तादा डींबोरो ऽ ऽ ऽ
तला तिंजीवा मच्छा नत्ताबू ऽ ऽ ऽ कोंयां मालिंगा तादा डींबोरो ऽ ऽ ऽ
कद्धो पाणी वा उच्छा नत्ताबू ऽ ऽ ऽ कोंयां मालिंगा तादा डींबोरो ऽ ऽ ऽ
काक्‍कोरो पाणी बा उच्छा नत्ताबू ऽ ऽ ऽ कोंयां मालिंगा तादा डींबोरो ऽ ऽ ऽ
बोरिंग पाणी बा उन आबू माबू डे ऽ ऽ ऽ कोंयां मालिंगा तादा डींबोरो ऽ ऽ ऽ
निसात हज्जाने गोरोम होत्ताने ऽ ऽ ऽ कोंयां मालिंगा तादा डींबोरो ऽ ऽ ऽ
मा एयु दे पीहः माबू डे ऽ ऽ ऽ कोंयां मालिंगा तादा डींबोरो ऽ ऽ ऽ
मा होरू जे पीहः माबू डे ऽ ऽ ऽ कोंयां मालिंगा तादा डींबोरो ऽ ऽ ऽ
एंबोन आंबा पानाबू माबू डे ऽ ऽ ऽ कोंयां मालिंगा तादा डींबोरो ऽ ऽ ऽ
एंबोन पिड़िआ जे पानाबू माबू डे ऽ ऽ ऽ कोंयां मालिंगा तादा डींबोरो ऽ ऽ ऽ
पणच्छे इलआरो जागात तआडे ऽ ऽ ऽ कोंयां मालिंगा तादा डींबोरो ऽ ऽ ऽ
डोंगी साड्‍डोवा रेआबू माबूडे ऽ ऽ ऽ कोंयां मालिंगा तादा डींबोरो ऽ ऽ ऽ
डंडाणी ईबा पीहःबू माबू डे ऽ ऽ ऽ कोंयां मालिंगा तादा डींबोरो ऽ ऽ ऽ

अर्थ 

कोय्युवाली पहाड़ के लिये खेलेंगे, लोक्कोन कोल्ला के लिये नाचेंगे
हमारे पानी के लिये, हमारी माटी के लिये
नेभा होरू के लिये, नियमगिरि के लिए चलो उठो दोस्त
युद्ध करने के लिये आ रहे हैं
मुर्गी की तरह उन्हें बलि देंगे
हमारी जगह छोडेंगे नहीं, हमारी जमीन देंगे नहीं
हमारा दादी पर दादी बसे हुए हैं इस जगह पे
हमारे दादा पर दादा भी बसे हुए हैं यहां
हमारा नारंगी फल नहीं छोडेंगे
हमारा अदरख नहीं छोडेंगे
हमारा संतरा नहीं छोडेंगे
हमारी हल्दी नहीं छोडेंगे
अदरख की बगीचा नहीं छोडेंगे
हमारे सोता को नहीं छोडेंगे
खांदा खा कर जीने वाले हम लोग
बाड़ का लाल पानी पिये हैं हम
बोरिंग का पानी नहीं पीयेंगे हम
बोरिंग का पानी पीने से अस्वस्थ हो जायेंगे
हम अपना पानी नहीं छोडेंगे
नियमगिरि छोडेंगे तो ऐसा आम कहां मिलेगा
इस जगह को छोडेंगे तो ऐसा अच्छा आम कहां मिलेगा
कटहल नहीं रहने वाली जगह पर नहीं जाएंगे
आम और कटहल के पहाड़ को नहीं छोड़ेंगे

विश्‍लेषण

वे अपने समुदाय को संबोधित कर रहे हैं कि हम कोय्युवाली (पहाड़ के उपर एक समतल जगह है, जहां कोय्युवाली देवी रहती है) को नहीं छोड़ेंगे। चलो दोस्त अपने नियमगिरि के लिये आंदोलन करेंगे। इस आंदोलन को युद्ध का रूप देते हुए कह रहे हैं कि शत्रु युद्ध करने के लिये आ रहा है, वह हमारे पहाड़ों को अपने अधीन करना चाहता है। दोस्तों चलो, युद्ध के लिये तैयार हो जाओ। उसे अपने देवी देवताओं को बलि चढाएंगे। यह हमारे पुरखों की जमीन है। इसे किसी को नहीं देंगे। यहां हमारे खेत हैं जिसमें हम तरह-तरह के फल उगाते हैं। हमारे जमीन में पुराने फसलों को उगाते हैं। हम अपने फसलों को नहीं छोड़ेंगे और न ही अपने फलों को। हम झरने का पानी पीने वाले बोरिंग का पानी नहीं पी सकते।  यहां से चले जाएंगे तो ऐसा जीवन और कहीं नहीं मिलेगा। हम अपनी जमीन नहीं छोड़ेंगे।   

(संपादन : नवल/गोल्डी)

लेखक के बारे में

सुरेश जगन्नाथम

डॉ. सुरेश जगन्नाथम आदिवासी मामलों के अध्येता व स्वतंत्र लेखक हैं जिनकी विशेष रुचि आदिवासी मौखिक साहित्य के संकलन और दस्तावेजीकरण में है। इन्होंने हैदराबाद विश्वविद्यालय, इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय सहित अनेक संस्थानाओं में अध्यापन किया है। इसके अलावा इन्होंने आईसीएसएसआर द्वारा सहायता प्राप्‍त शोध परियोजना के तहत दक्षिण, मध्य, पूर्वोत्तर भारत तथा अंडमान के आदिम आदिवासियों के मौखिक साहित्य के संग्रह पर विशेष अध्ययन किया है।

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